अंता विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया और निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा के बीच सीधी टक्कर हो रही है। भाजपा के प्रत्याशी और नेताओं की नाटकीय गतिविधयों से स्पष्ट हो गया है कि पार्टी ने यहां सियासी सरेंडर कर दिया है।
सत्ताधारी दल ने जिस तरह से अपना उम्मीदवार उतारा है, नामांकन तक में बड़े नेताओं ने दूरी बनाई है और पार्टी के सभी जिम्मेदारों का पूरा फोकस बिहार पर है, उससे साफ हो गया है कि प्रमोद जैन भाया को जिताने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
कारण यह है कि नरेश मीणा को भाजपा या कांग्रेस, दोनों ही जिताने के मूड में नहीं हैं। इसी समीकरण से भाजपा के मोरपाल सुमन आज तीसरी नंबर पर दिखाई दे रहे हैं। इस वीडियो में आगे सभी समीकरणों के जरिए साफ करने का प्रयास करूंगा कि भाजपा ने कैसे प्रमोद जैन भाया के लिए रास्ता साफ किया है।
नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद अंता सीट की स्थितियां बिलकुल साफ हैं। भाजपा विधायक कवंरलाल मीणा की विधायकी जाने के बाद रिक्त हुई अंता विधानसभा सीट पर भाजपा ने बारां के प्रधान मोरपाल सुमन, कांग्रेस ने पूर्व एमएलए प्रमोद जैन भाया को मैदान में उतारा है, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नरेश मीणा ने भी नॉमिनेशन किया है। यानी इस हाई प्रोफाइल हो चुकी सीट पर इन तीनों प्रत्याशियों ही मुकाबला होने जा रहा है।
प्रमोद जैन भाया यहां से पांचवी बार चुनाव लड़ रहे हैं, तो नरेश मीणा और भाजपा के मोरपाल सुमन पहली बार मैदान में हैं। भाया दो बार विधायक बने हैं, जबकि पिछली अशोक गहलोत सरकार में मंत्री थे। पहली बार 2008 में कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने भाजपा के दिग्गज नेता रघुवीर सिंह कौशल को 29,668 वोटों के बड़े अंतर से हराया।
इस जीत के बाद प्रमोद जैन भाया गहलोत सरकार में मंत्री बने। उसके बाद 2013 में भाजपा के प्रभुलाल सैनी ने कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया को 3,399 वोटों के छोटे अंतर से हराया। सैनी भी जीत के बाद वसुंधरा राजे सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रमोद जैन भाया फिर से यहां चुनाव जीते। उन्होंने भाजपा के प्रभुलाल सैनी को 34063 वोटों से हराकर जोरदार तरीके से हार का बदला लिया।
इस जीत के बाद जैन दूसरी बार गहलोत कैबिनेट में शामिल हुए, लेकिन 2023 के चुनाव में भाया फिर हार गए। दिसंबर 2023 में भाया को बीजेपी के कंवरलाल मीणा ने 5,861 मतों के अंतर से हराया, लेकिन मीणा मंत्री नहीं बन पाए और 20 साल पहले के एक मामले में दो साल की सजा होने के बाद विधायकी भी चल गई। इस तरह से यह सीट रिक्त हुई और अब उपचुनाव हो रहे हैं।
होने में तो आज भाजपा की सत्ता है, लेकिन भाजपा इस सीट के लिए जबरदस्त गुटबाजी में उलझी हुई है। सीएम भजनलाल शर्मा और पार्टी अध्यक्ष मदन राठौड़ ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से मुलाकात करके प्रभुलाल सैनी के नाम पर सहमति बनाने का प्रयास किया, लेकिन वसुंधरा ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद दोनों ने प्रभुलाल सैनी को भी वसुंधरा राजे के पास मनाने को भेजा, लेकिन उन्होंने फिर से इनकार कर दिया।
अंतत: पार्टी को वसुंधरा राजे की सहमति लेकर बारां के प्रधान मोरपाल सुमन जैसे नए चेहरे को प्रत्याशी बनाना पड़ा। हालांकि, सुमन भी माली समाज से आत हैं, लेकिन जैसा चुनाव प्रभुलाल सैनी लड़ सकते थे, वैसा मोरपाल के बस की बात नहीं।
वसुंधरा के कैबिनेट मंत्री रहे प्रभुलाल सैनी ने सत्ता से बेदखल होने के बाद 2018 से 2023 तक वसुंधरा राजे से एक दिन भी मुलाकात नहीं की, इसके कारण वो बेहद नाराज थीं और इसी वजह से उन्होंने प्रभुलाल सैनी के खिलाफ वीटो कर दिया। मोरपाल सुमन वसुंधरा राजे के कार्यकर्ता हैं और स्थानीय स्तर पर उनके लिए काम करते हैं।
राजनीति का यही सबक है। किसी बड़े दुश्मन को मारने के लिए छोटे ब्यादे का बलिदान लिया जाता है। सुमन को पता है कि वो जीतेंगे नहीं तो भी अगली बार मुख्य चुनाव में प्रत्याशी का सबसे बड़े दावेदार होंगे। प्रभुलाल को टिकट नहीं मिलने से उनकी सियासी पारी का अंत होने का सिलसिला चल पड़ा है।
भजनलाल और मदनलाल के लिए इन चुनावों से कोई फर्क नहीं पड़ता। भजनलाल पर्ची से सीएम बने हैं, जिनकी कभी भी पर्ची बदल सकती है, तो सत्ता होने के कारण भाजपा के अध्यक्ष के पास भी करने को कुछ नहीं है। पार्टी सत्ता में होती है, तब जीत या हार सरकार की जिम्मेदारी होती है।
वैसे भी भजनलाल और मदनलाल का कद ऐसा नहीं है कि वसुंधरा राजे के सामने बोल सकें। अंता सीट पर अब तक भाजपा ने उसी को टिकट दिया है, जिसे वसुंधरा ने चाहा है, और वही जीता है, जिसको वसुंधरा ने जिताया है। प्रभुलाल सैनी और कंवरलाल मीणा इसके उदाहरण हैं, तो मोरपाल सुमन को टिकट देकर उन्होंने इसका प्रमाण भी दे दिया है।
आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो प्रमोद जैन भाया भारी पड़ रहे हैं। चाहे वो दो बार जीते हों या दो बार हारे हों, चारों से ही उनके वोट में बेहद कम अंतराल का अंतर पड़ा है। जीते तब अंतर 29 हजार और 34 हजार से उपर रहा, लेकिन जब हारे तो 3400 और 5800 रहा है। इससे साबित होता है कि प्रमोद जैन भाया का वोट बैंक स्थिर है, जबकि भाजपा के उम्मीदवार जीते तब अंतर कम था, लेकिन हार तब बड़ा अंतराल से हारे हैं।
नरेश मीणा खुद को शुरू से ही कांग्रेसी कहते आए हैं, वो दावा करते हैं कि उनकी तीन पीढ़ियों से कांग्रेसी हैं। हालांकि, कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगा दिए। समीकरण यह है कि कांग्रेस के साथ भाजपा भी नहीं चाहती है कि नरेश मीणा जीते। भाजपा के बड़े नेताओं का बिहार पर फोकस है, जबकि अंता में टिकट देकर मोरपाल सुमन को लगभग अकेला छोड़ दिया है।
जातिगत आधार पर जीत हार के समीकरण की बात करें तो कंवरलाल मीणा के कारण जो मीणा वोट भाजपा को मिले थे, वो सभी निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा को मिलेंगे, जबकि धाकड़ समाज की पैरवी करने के कारण धाकड़ समाज के वोट भी अधिकांश नरेश को मिलने की संभावना है।
माली वोट सुमन को मिल जाएंगे, लेकिन गुर्जर वोट सचिन पायलट के कारण प्रमोद जैन को मिलेंगे, जबकि भाया गहलोत के खास हैं। इसी तरह से एससी वोट भाया और नरेश में बंटने की संभावना अधिक है। कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रमोद जैन भाया ने पैसे के दम पर भाजपा के भी कई नेताओं को अपने पक्ष में कर रखा है, जिसके कारण उनका पलड़ा भारी पड़ता है।
तीनों उम्मीदवारों में सबसे अमीर प्रमोद जैन हैं, जबकि मुकदमों की बात करें तो देवली-उनियारा चुनाव में एसडीएम को थप्पड़ मारकर 8 महीने जेल में रहे नरेश मीणा तीनों में भारी हैं। भाया पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जबकि नरेश के साथ बाहरी लोग अधिक होने की बातें सामने आ रही हैं। इस बीच भाजपा के मोरपाल सुमन का कमजोर कद और भाजपा नेताओं की उनके प्रचार से दूरी खटक रही है।
एक तरफ नामांकन के समय कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, सुखजिंदर सिंह रंधावा समेत तमाम कांग्रेसी नेता मौजूद रहे, तो भाजपा की ओर से केवल सांसद दुष्यंत सिंह और विधायक ललित मीणा ही दिखे। कांग्रेस ने गुटबाजी को भुलाकर यहां एक मंच पर एकता दिखाई, जबकि सत्ताधारी दल की गुटबाजी और जोर आजमाइश खुलकर सामने आई।
इससे एक बात बिलकुल साफ हो गई है कि भाजपा के अधिकांश नेता चाहते ही नहीं कि उनका उम्मीदवार जीते, जबकि नरेश मीणा को हराने के लिए अंदरखाने प्रमोद जैन भाया का सपोर्ट भी करने के आरोप लग रहे हैं। यदि प्रमोद जैन ने चंद्रशेखर रावण और हनुमान बेनीवाल को मैनेज कर लिया तो नरेश मीणा की राहें कठिन हो जाएंगी, जबकि टिकट वितरण से ही भाजपा के मोरपाल सुमन तीसरे स्थान पर दिखाई दे रहे हैं।
यह सीट यदि भाजपा हारती है तो सत्ता के मुंह पर तमाचा होगा, जो अपने घोषणा पत्र के वादे पूरे करने का अहंकार दिखाती फिरती है। टिकट भले वसुंधरा राजे की मर्जी से दिया गया हो, लेकिन मोरपाल सुमन हारते हैं तो सत्ता के मुखिया पंडित भजनलाल और संगठन प्रमुख मदनलाल को ही हार के लिए जवाब देना होगा। तमाम समीकरणों का विश्लेषण करने के बाद ऐसा लगता है कि भाजपा ने यहां पर पूरी तरह से सियासी सरेंडर कर दिया है।
Post a Comment