बूंद-बूंद पानी को तरस जाएगा पाकिस्तान

कश्मीर में पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या के बाद भारत द्वारा उठाये गये कठोर कदमों से पाकिस्तान पानी की एक एक बूंद के लिए तरसने वाला है। भारत सरकार ने करीब 6 दशक पहले किये गये सिंधु जल बंटवारे का समझौता रद्द कर दिया है। भारत ने सख्त रवैया अपनाते हुए पहली बार इंडस वाटर ट्रीटी को सस्पेंड किया है, जवाब में पाकिस्तान ने भी शिमला समझौता रद्द करने की घोषणा कर दी है। 

भारत में पाकिस्तान का दूतावास बंद कर सभी पाकिस्तानियों को एक मई तक देश छोड़कर जाने को कहा है। इसके साथ ही अटारी बॉर्डर बंद कर दी है। पाकिस्तान के राजदूत और अन्य स्टाफ को भी भारत छोड़ने को कह दिया गया है। भारत ने पहले ही दिन पांच बड़े फैसले लिये हैं। इसमें सबसे कठोर निर्णय इंडस वॉटर ​ट्रीटी को रद्द करना है। 

इसे रद्द करने से पाकिस्तान की 80 फीसदी सिंचित भूमि प्यासी मरने वाली है। देखा जाए तो पाकिस्तान की 80 प्रतिशत जलापूर्ति को यही नदियां पूरी करती हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर करीब 65 साल पहले Indus Waters Treaty हुई थी। जिसपर कराची में 19 सितंबर 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किया था।  

संधि के मुताबिक छह नदियों के जल का बंटवारा किया गया था। इसमें भारत को रावी, ब्यास और सतलुज का पानी दिया जाना तय किया गया, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब का जल दिया जा रहा है। भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग की अनुमति है, जैसे कृषि, घरेलू उपयोग और 'रन-ऑफ-द-रिवर' जल विद्युत परियोजनाएं। 

दोनों देशों ने एक स्थायी आयोग का गठन किया था, जिसमें प्रत्येक देश से एक आयुक्त होता है। संधि में विवादों के समाधान के लिए एक बहु-स्तरीय प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसमें स्थायी आयोग, तटस्थ विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण शामिल हैं। संधि में एकतरफा समाप्ति का कोई प्रावधान नहीं है। 

हालांकि, भारत ने 23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मृत्यु के बाद संधि को निलंबित कर दिया। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया। पाकिस्तान ने इस कदम को आक्रामकता की कार्रवाई बताते हुए चेतावनी दी है कि जल संधि में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप युद्ध की कार्रवाई के रूप में देखा जाएगा।  

सिंधु जल समझौता रद्द करने से पाकिस्तान पर क्या असर होगा? पाकिस्तान में खेती की 90% जमीन, यानी 4.7 करोड़ एकड़ एरिया में सिंचाई के लिए पानी सिंधु नदी प्रणाली से मिलता है। पाकिस्तान की नेशनल इनकम में एग्रीकल्चर सेक्टर की हिस्सेदारी 23% है, इससे 68% ग्रामीण पाकिस्तानियों की जीविका चलती है। 

ऐसे में पाकिस्तान में आम लोगों के साथ-साथ वहां की बेहाल अर्थव्यवस्था और बदतर हो सकती है। पाकिस्तान के मंगल और तारबेला हाइड्रोपावर डैम को पानी नहीं मिल पाएगा। इससे पाकिस्तान के बिजली उत्पादन में 30% से 50% तक की कमी आ सकती है। साथ ही औद्योगिक उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ेगा। 

भारत द्वारा संधि के निलंबन के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया है और सभी द्विपक्षीय संधियों को निलंबित कर दिया है, जिसमें 1972 का शिमला समझौता भी शामिल है। सिंधु जल संधि का निलंबन पाकिस्तान की कृषि और जलविद्युत परियोजनाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि देश की अधिकांश सिंचाई इसी जल पर निर्भर है।  

सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का आधार है। अगर इसे तोड़ा जाता है या स्थायी रूप से निलंबित किया जाता है, तो दोनों देशों को अलग-अलग प्रकार के नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि इन्हीं पश्चिमी नदियों के पानी पर निर्भर है। अगर भारत इस पानी को रोकता है या मोड़ता है तो पाकिस्तान में खरीफ और रबी फसलें बर्बाद हो सकती हैं। पाकिस्तान पहले ही जल संकट की कगार पर है। 

2025 तक वह “जल-अभावी देश” की श्रेणी में आ सकता है। सिंधु जल पर नियंत्रण में कमी से शहरी और ग्रामीण जल आपूर्ति प्रभावित होगी। पाकिस्तान की कई जलविद्युत परियोजनाएं पश्चिमी नदियों पर आधारित हैं। पानी की आपूर्ति में बाधा से ऊर्जा संकट गहरा सकता है।  जल संकट से खेती, रोजगार और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा, जिससे भीतरी अस्थिरता पैदा हो सकती है।

सवाल यह उठता है कि क्या इससे भारत को ही नुकसान होगा? इस संधि के निलंबन करने से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर होगा।भारत अगर संधि तोड़ता है तो वह एक संधि-उल्लंघनकारी राष्ट्र के रूप में देखा जा सकता है। इससे उसकी वैश्विक साख को झटका लग सकता है, खासकर विकासशील देशों में। 

पाकिस्तान इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जा सकता है। इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजनीतिक दबाव झेलना पड़ सकता है। चीन पाकिस्तान का समर्थन कर सकता है, जो भारत के लिए रणनीतिक रूप से खतरनाक हो सकता है, खासकर ब्रह्मपुत्र नदी जैसे संसाधनों पर बुरा असर पड़ सकता है। यदि भारत पानी का पुनः प्रयोग करने लगे, तो नई बांध परियोजनाओं से स्थानीय समुदायों में विस्थापन और विरोध हो सकता है।

संधि रद्द होने से पाकिस्तान को तत्काल और गंभीर नुकसान होगा, क्योंकि उसकी जीवनरेखा समान रूप से सिंधु प्रणाली पर टिकी हुई है।भारत को दीर्घकालिक कूटनीतिक और रणनीतिक नुकसान हो सकता है, विशेषकर अगर इसे वैश्विक कानूनों की अनदेखी के रूप में देखा गया। भारत संधि को एक हथियार की तरह प्रयोग कर सकता है, लेकिन इसका उपयोग सावधानी और रणनीतिक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।

भारत के इस कदम के बाद पाकिस्तान ने भी शिमला समझौता ​रद्द कर दिया है। यहां पर यह समझना जरूरी है कि शिमला समझौता क्या है और इससे भारत को क्या नुकसान होने की संभावना है? 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था, जो शिमला में हुआ था। 

इसे दोनों देशों के नेताओं, भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने साइन किया था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम को सुदृढ़ करना और कश्मीर सहित दोनों देशों के विवादों का शांतिपूर्ण समाधान खोजना था।

दोनों देशों ने युद्धविराम की स्थिति की पुष्टि की और एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करने का वचन लिया। समझौते के तहत कश्मीर का विवाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल किया जाने था। इसका मतलब यह था कि कश्मीर से संबंधित मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के पास नहीं भेजा जाएगा। दोनों देशों ने एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करने का वचन लिया। समझौते में युद्ध के दौरान पकड़े गए युद्ध बंदियों की अदला-बदली का प्रावधान था। 

शिमला समझौते के रद्द होने से भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद और तनाव फिर से बढ़ सकता है, जो कि दोनों देशों के लिए सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक होगा। शिमला समझौते के अंतर्गत कश्मीर विवाद का हल द्विपक्षीय वार्ता के जरिए खोजने की बात की गई थी। यदि यह समझौता रद्द होता है, तो कश्मीर विवाद फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाया जा सकता है, जो कि दोनों देशों के रिश्तों को और जटिल बना सकता है।

दोनों देशों के बीच यदि शिमला समझौते की शर्तें समाप्त होती हैं, तो सीमा पर तनाव बढ़ सकता है और युद्ध की संभावना पैदा होती हैं। समझौते के रद्द होने से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सैन्य संबंधों में संकट आ सकता है, जो द्विपक्षीय शांति और संवाद को कमजोर कर सकता है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही दक्षिण एशिया में प्रमुख शक्ति हैं। 

यदि दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं तो यह पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर प्रभाव डाल सकता है। शिमला समझौता एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि थी, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की स्थिति को काफी हद तक कायम किया था। हालांकि, पाकिस्तान कभी भी इस समझौते को पूर्णत: नहीं मानता था। इसके रद्द होने से दोनों देशों को सैन्य, कूटनीतिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से बड़े नुकसान हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। फिर भी भारत से अधिक पाकिस्तान का नुकसान होगा। 


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