Popular

लव जिहाद: बहस, हकीकत और कानून की परतें

नई दिल्ली: देश में "लव जिहाद" को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। यह शब्द पहली बार 2009 में केरल और कर्नाटक में सामने आया था, जब कुछ संगठनों ने दावा किया था कि मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाकर उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। इसके बाद से यह मुद्दा कई बार सियासत, समाज और मीडिया के केंद्र में रहा है।

हालांकि अब तक "लव जिहाद" की परिभाषा को लेकर कोई आधिकारिक या कानूनी मान्यता नहीं है। ना ही भारत की किसी अदालत ने इस शब्द के आधार पर किसी को दोषी ठहराया है। केरल सरकार ने विधानसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया था कि 2006 से 2014 तक राज्य में लगभग 2,667 महिलाओं ने इस्लाम स्वीकार किया, लेकिन इनमें जबरन धर्म परिवर्तन का कोई प्रमाण नहीं मिला।

वहीं दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात जैसे राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं, जिनमें विवाह के माध्यम से धर्म परिवर्तन को लेकर कड़ी सज़ा का प्रावधान है। इन कानूनों के तहत विवाह से पहले धर्म परिवर्तन की जानकारी जिला प्रशासन को देनी होती है, अन्यथा दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की सजा भी हो सकती है।

इस बीच, मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ये कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। कई बार ऐसे मामलों में परस्पर सहमति से किए गए विवाहों को भी संदेह की दृष्टि से देखा गया है।

वहीं कई घटनाएं, जैसे अजमेर और ब्यावर रेप कांड, को भी 'लव जिहाद' की बहस में बार-बार उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन इन मामलों की कानूनी जांच ने इन्हें संगठित ‘लव जिहाद’ साजिश के रूप में नहीं माना है, बल्कि अलग-अलग आपराधिक कृत्य माना है।

सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई केंद्रीय कानून नहीं बनाया है, लेकिन गृह मंत्रालय ने संसद में कई बार यह स्पष्ट किया है कि ‘लव जिहाद’ शब्द का कोई वैधानिक अस्तित्व नहीं है और धर्मांतरण पर कानून बनाना राज्यों का विषय है।

फिलहाल, यह मुद्दा धार्मिक ध्रुवीकरण और महिलाओं की स्वतंत्रता, दोनों से जुड़ा हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रेम और विवाह जैसे निजी विषयों में धर्म को हथियार बनाना समाज में अविश्वास और तनाव को जन्म देता है। अब ज़रूरत इस बात की है कि तथ्यों और कानूनों के आधार पर इस विषय को समझा जाए, न कि अफवाहों और प्रचार के सहारे।


Post a Comment

Previous Post Next Post