राजस्थान की राजनीति में इन दिनों एसआई भर्ती मामला सुर्खियों में है। मामला केवल परीक्षा की निष्पक्षता तक सीमित नहीं रह गया है, अब यह एक राजनीतिक शक्ति परीक्षण बन गया है। डेढ़ साल तक मंत्री पद पर रहते हुए डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने सरकार से एसआई भर्ती की सीबीआई जांच और रद्द करने की लगातार मांग की, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। आखिरकार किरोड़ी थक गए और दोबारा मंत्रालय का कामकाज संभाल लिया। लेकिन यह लड़ाई अब खत्म नहीं हुई-बल्कि एक नए चेहरे के साथ फिर से सड़कों पर लौट आई है। नागौर के सांसद और रालोपा प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने मोर्चा संभाला है और घोषणा की है कि जब तक भर्ती रद्द नहीं होगी, तब तक धरना जारी रहेगा।
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अब यह मामला साफ तौर पर सरकार बनाम हनुमान बन गया है। लेकिन यहां एक रोचक मोड़ यह है कि पर्दे के पीछे से ऐसा कहा जा रहा है कि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा, जो खुद डेढ़ साल तक इसी मुद्दे पर लड़ते रहे, अब हनुमान को समर्थन दे रहे हैं। हालांकि उनके सामने सियासी मजबूरियां हैं, इसीलिए वह खुद धरने पर नहीं बैठ सकते, लेकिन चर्चा यह भी है कि उनका अप्रत्यक्ष समर्थन हनुमान के साथ है। पर सवाल उठता है—क्या किरोड़ी हनुमान के साथ हैं या हनुमान को किसी और शक्ति का समर्थन मिल रहा है, जिससे किरोड़ी का राजनीतिक कद सीमित किया जा सके? राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं, और जो होता है, वह दिखता नहीं—अशोक गहलोत की यह बात इस पूरे घटनाक्रम पर बिल्कुल सटीक बैठती है।
हनुमान बेनीवाल का इतिहास देखिए, चाहे किसानों की लड़ाई रही हो, बेरोजगारी का मुद्दा हो या पेपर लीक—हर बार वह अपनी बात मनवाकर ही उठे हैं। लेकिन इस बार परिस्थिति थोड़ी अलग है। एक ओर सरकार है जो हठधर्मी रवैया अपनाए बैठी है, दूसरी ओर खुद भाजपा के ही कुछ नेता स्वीकार करते हैं कि भर्ती रद्द होने से सीधा फायदा किरोड़ी लाल को होता है, और यही वजह है कि सरकार इस मांग को नहीं मान रही। यहां तक कहा जा रहा है कि सरकार ने जानबूझकर भर्ती रद्द नहीं की ताकि किरोड़ी का प्रभाव न बढ़े। वहीं दूसरी तरफ एक नई राजनीतिक सोशल इंजीनियरिंग के तहत किरोड़ी के समुदाय के ही एक युवा नेता को जेल में बड़ा चेहरा बनाया जा रहा है।
अब अगर वाकई में किरोड़ी लाल मीणा हनुमान के साथ हैं, तो भर्ती रद्द होने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि सरकार उनकी कोई मांग पूरी नहीं करना चाहती। लेकिन अगर पर्दे के पीछे सरकार का ही कोई गुट हनुमान को आगे कर रहा है, तो यह साफ संकेत है कि सरकार अब भर्ती को रद्द करने की योजना बना चुकी है—लेकिन पूरे खेल को ऐसे पेश किया जाएगा कि सरकार झुकी नहीं, बल्कि मजबूरी में फैसला लिया।
और अगर कोई पर्दे के पीछे नहीं है, और हनुमान बेनीवाल अकेले दम पर यह लड़ाई लड़ रहे हैं, तब भी यह आसान नहीं है। क्योंकि सरकार जिस तरीके से एसआई भर्ती को बचा रही है, उससे यह स्पष्ट है कि अब यह केवल भर्ती का सवाल नहीं रह गया—यह शक्ति संतुलन, जातीय समीकरण और भविष्य की सियासत का खेल बन गया है। इधर, भर्ती से जुड़े 859 युवक बैठे—बैठे वेतन ले रहे हैं, सरकार कहती है कि भर्ती में कोई गड़बड़ी नहीं, जबकि पूर्व मंत्री किरोड़ी खुद यह स्वीकारते हैं कि इसमें व्यापक स्तर पर धांधली हुई है।
आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। ऐसे समय में यह बात भी जोर देकर कहनी चाहिए कि राजस्थान का अधिकांश मीडिया इस मुद्दे पर चुप है। धरना हो रहा है, सैकड़ों युवा वहां हैं, लेकिन टीवी डिबेट्स और अखबारों में इस खबर की गंभीरता नहीं है। कारण साफ है—राज्य सरकार का विज्ञापन। हनुमान बेनीवाल को चाहे जितनी भी जन समर्थन मिले, गरीबों, किसानों, युवाओं के लिए वे कितनी भी लड़ाई लड़ लें, लेकिन विज्ञापनजीवी परतंत्र मीडिया उनके संघर्षों को न्याय नहीं देगा।
फिलहाल यह लड़ाई जहां पहुंची है, वहां से पीछे हटना किसी के लिए आसान नहीं। हनुमान ने एलान कर दिया है कि भर्ती रद्द करवाकर ही उठेंगे। सरकार झुकेगी या नहीं, यह तो वक्त बताएगा—but the game has begun. हनुमान मैदान में हैं, सवाल है—क्या सरकार में कोई भी अब सच्चाई के साथ खड़ा होगा?
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