तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत एक बार फिर से जादू दिखाने जा रहे हैं। अपने 3 दशक के सीएम और विपक्ष में मुख्य भूमिका निभाने वाले गहलोत अब तक कई नेताओं को जादू दिखा चुके हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि गहलोत के जादू में केवल कांग्रेसी नेता ही फंसते हैं, विपक्षी दलों के नेताओं पर उनका जादू नहीं चलता है। प्रत्यक्ष में देखा जाए तो हरिदेव माथुर, जग्गनाथ पहाड़िया, परसराम मदेरणा, सीपी जोशी, शीशराम ओला, महिपाल मदेरणा, रामेश्वर डूडी और सचिन पायलट जैसे नेता शामिल हैं, लेकिन इनके अलावा भी कई नाम ऐसे हैं, जो कभी लाइम लाइट में आए बिना ही गहलोत के जादू में निपट गए। इन दिनों अशोक गहलोत के निशाने पर पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा हैं, जिन्हें सचिन पायलट की जगह खुद गहलोत ने ही 15 जुलाई 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था। गहलोत की इस जादूगरी के तमाम तरीके हैं, जिन्हें जानने के लिए अशोक गहलोत की राजनीति यात्रा और उनकी वर्किंग स्टाइल को समझना होगा। अशोक गहलोत खुद एक सामान्य परिवार से आते थे। छात्र जीवन में जोधपुर विवि का छात्रसंघ चुनाव जीते। इसके बाद 1977 में सरदारपुरा निर्वाचन क्षेत्र से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जनता पार्टी के माधव सिंह के सामने 4426 मतों से हार गए। पहला चुनाव हारने के 3 साल बाद कांग्रेस ने गहलोत 1980 में लोकसभा का टिकट दे दिया। कहा जाता है कि टिकट उनको परसराम मदेरणा ने दिलाया था और पूरे जोधपुर में उनका परिचय भी करवाया था। गहलोत 1989 का लोकसभा चुनाव हारने के अलावा 5 बार जोधपुर के सांसद बने। 1998 में सीएम बनने के बाद 1999 में सरदारपुरा से उपचुनाव में विधायक बने, जहां से आज दिन तक लगातार जीत रहे हैं।
अशोक गहलोत ने अपनी जादूगरी का परिचय देते हुए कइयों को सियासी शिकार किया। अशोक गहलोत के जादू का पहला बड़ा शिकार बने तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया। राजस्थान के एक ऐसे नेता जो सबसे कम उम्र में देश के सांसद बने। उसके बाद संजय गांधी के करीबी होने के कारण प्रदेश के सीएम बने। उन्होंने एक साहित्य सम्मेलन में छायावादी कावित्री महादेवी वर्मा की आलोचना की तो सीएम की कुर्सी चल गई। यह सीएम की कुर्सी उन्हें संजय गांधी का करीबी होने की वजह से मिली थी। उनके सीएम पद से हटने का किस्सा भी बड़ा ही रोचक है। एक बार जयपुर में लेखकों के एक सम्मेलन में सीएम के तौर पर पहाड़िया को भी बुलाया गया था। इस कार्यक्रम में उस समय की मशहूर कावित्री महादेवी वर्मा भी मौजूद थीं। पहाड़िया ने कहा कि महादेवी वर्मा की कविताएं मुझे कभी समझ में नहीं आई, साहित्य ऐसा होना चाहिए ताकि आम-आदमी की समझ में आ सकें। ऐसा माना जाता है कि अशोक गहलोत के उकसावे के कारण ही पहाड़िया की इसी टिप्पणी के बाद महादेवी वर्मा ने उनकी शिकायत इंदिरा गांधी से की। उसके बाद पहाड़िया को सीएम पद इस्तीफा देना पड़ा। संजय गांधी की मृत्यु के बाद पहाड़िया हाशिए पर चले गए थे। बाद में वे बिहार और हरियाणा के राज्यपाल भी रहे।
उनका दूसरा शिकार बने हरिदेव जोशी, जो उस समय मुख्यमंत्री थे। देश में कांग्रेस सरकार के खिलाफ महौल बन रहा था, जिससे निपटने के लिए राजस्थान में सीडब्ल्यूसी की मीटिंग आयोजित की गई थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निर्देशों के मुताबिक उस दौरान राज्य के मंत्री उनसे मिलने के लिए आधिकारिक गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। यहां तक कि राजीव गांधी भी अपनी गाड़ी खुद चलाते थे। राजीव गांधी अपनी एसयूवी कार चला रहे थे, जिसे मोड़ पर एक ट्रैफिक कांस्टेबल ने सीधे जाने के बजाय लेफ्ट मुड़ने का संकेत दे दिया। देखने और सुनने में तो ये एक मामूली गलती ही लगती है, लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि इसके पीछे जादूगर अशोक गहलोत की करतूत थी, क्योंकि इस मोड़ पर मुड़ने के बाद राजीव की कार वहां जाकर रुकी जहां राज्य के मंत्रियों, अधिकारियों के साथ बाकी और लोगों की गाड़ी पार्क होती थीं। बोफोर्स और शाहबानो विवाद के कारण राजीव गांधी सरकार कई मोर्चों पर राजनीतिक रूप से जूझ रही थी। इस दौरान राजीव गांधी ने इस बात का संकेत देने की कोशिश की थी कि वो सन्यास ले लेंगे। उधर, राजस्थान में जिस तरह से हरिदेव जोशी सूखा और सतीप्रथा को हैंडल कर रहे थे, उससे भी राजीव खुश नहीं थे। जब उनकी गाड़ी सरिस्का पार्किंग एरिया में पहुंची तो राजीव गांधी ने देखा कि उनकी भी कार उस जगह पर पहुंच गई है, जहां पर अधिकारियों और मंत्रियों की कार पार्क है। ऐसे में राजीव गांधी ने अपना आपा खो दिया और सीएम हरिदेव जोशी को फटकार लगा दी। जोशी को ये फटकार नागवार गुजरी और उन्होंने दोपहर के खाने का बहिष्कार कर दिया। मेजबान मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी को पीवी नरसिम्हा राव ने नोटिस किया। इसके कारण आलाकमान की नजर में जोशी की जगह शिवचरण माथुर ने ले ली। जोशी को सीएम पद से हटाना इतना आसान नहीं था, क्योंकि वो 87 विधायकों के समर्थन का दावा करते थे। जोशी के पास वास्तव में बहुमत का समर्थन था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व राजीव गांधी के निर्देश पर अड़ा रहा, जबकि माथुर के पास मात्र 25 विधायकों का ही समर्थन था। राजीव गांधी के निर्देश पर हरिदेव जोशी को हटाकर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और जोशी असम के राज्यपाल बना दिए गए। इसी तरह से जगन्नाथ पहाड़िया को भी अचानक हटाने के पीछे अशोक गहलोत का दिमाग बताया जाता है।
गहलोत का तीसरा शिकार बने परसराम मदेरणा, जो उस समय सीएम पद के सबसे बड़े और नैसर्गिक दावेदार थे। पार्टी उन्हीं के नाम पर चुनाव लड़ रही थी। प्रदेश के सबसे बड़े किसान वर्ग को लग रहा था कि पहली बार उनमें से एक सीएम बनने जा रहा है। इस वजह से कांग्रेस को बंपर वोट मिला। पार्टी 153 सीटों पर जीत और सीएम बनाने के लिए सोनिया गांधी ने कदम बढ़ाए। परसराम मदेरणा सिद्धांतों के पक्के नेता थे। उस समय अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। इसलिए गहलोत को दिल्ली बुलाया गया, ताकि सीएम पद के लिए मंत्रणा की जा सके। कहते हैं कि सोनिया गांधी परसराम मदेरणा के नाम पर मुहर लगाने ही वाली थीं, लेकिन उसी समय अशोक गहलोत ने बीबीसी रेडियो के जरिए यह खबर प्रसारित करवा दी कि प्रदेश कांग्रेस के जीते हुए विधायक अशोक गहलोत के नाम पर एकजुट हो गए हैं। दिल्ली में बैठे गहलोत के करीबी कांग्रेसियों द्वारा सोनिया गांधी को बताया गया कि अगर अशोक गहलोत को सीएम नहीं बनाया तो कांग्रेस के विधायक बगावत कर सकते हैं, इसलिए मजबूरी में सोनिया गांधी ने उनका नाम फाइनल कर दिया। परसराम मदेरणा कांग्रेस के पक्के सिपाही थे। कांग्रेस पार्टी उनके खून में रची बसी थी। गांधी परिवार का सम्मान करते उनका जीवन गुजरा था। इसलिए अपने ही सियासी चेले के इस कारनामे से हुए अपमान का घूंट पीकर भी उन्होंने सोनिया गांधी के आदेश को सहर्ष स्वीकार कर लिया। बाद में परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर ठंड में डाल दिया गया। इस तरह से अशोक गहलोत का तीसरा बड़ा शिकार बने परसराम मदेरणा।
अशोक गहलोत की पहली सरकार के समय राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा था। तब सरकार ने लोगों को राहत पहुंचाने काम बेहतर तरीके से किया। जितना सरकार के पास संसाधन थे, उसके अनुसार अच्छा काम किया। अशोक गहलोत सरकार की इसके चलते विपक्षी नेताओं ने भी तारीफ की। पत्रकारों के साथ उनके अच्छे रिश्ते थे, इसलिए सरकार के कामों को मीडिया ने भी खूब सराहा। तीन साल तक लग रहा था कि सरकार रिपीट करेगी, लेकिन 2002 में भाजपा ने वसुंधरा राजे को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाकर राजस्थान भेज दिया और भैरोंसिंह शेखावत की सिफारिश पर 2003 में उनको सीएम का चेहरा भी प्रोजेक्ट कर दिया। राज्य में वसुंधरा राजे का ऐसा जादू चला कि भाजपा पहली बार पूर्ण बहुमत पाते हुए 120 सीटें जीत गई। कांग्रेस के खाते में केवल 56 सीटें आई। इस तरह से अशोक गहलोत पर पार्टी का विश्वास कम हो गया।
2008 का चुनाव आया उससे पहले पार्टी की कमान सीपी जोशी के हाथ में आ गई। गहलोत पहली पारी खेल चुके थे और राज्य की जनता ने उनके नाम पर दूसरी बार वोट भी नहीं डाला। किसान वर्ग परसराम मदेरणा को सीएम नहीं बनाए जाने से खासा नाराज था। इस बात को सोनिया गांधी अच्छे से जानती थीं। इसलिए कांग्रेस पार्टी ने अघोषित रूप से सीपी जोशी को सीएम के लिए आगे बढ़ा दिया था। गहलोत जितना विपक्षी पार्टी पर ध्यान रखते हैं, उससे कहीं अधिक अपनी पार्टी के नेताओं पर तीखी नजर रखते हैं। असल में अशोक गहलोत जनता के नेता नहीं हैं, बल्कि संगठन के नेता हैं। उनको रणनीति बनानी आती है, लेकिन जनता का विश्वास कभी नहीं जीत पाए। चुनाव का समय आया और सीपी जोशी को नाथद्वारा से टिकट मिला। जोशी को पूरा विश्वास था कि जनता उनको जिताएगी, इसलिए उन्होंने प्रचार का जिम्मा अपने कार्यकर्ताओं पर छोड़ दिया और खुद प्रदेश में कांग्रेस का प्रचार करने में जुट गए। कहा जाता है कि सीपी जोशी की जीत के प्रति हर कोई आश्वस्त था, इसके चलते उनकी पत्नि तक ने वोट नहीं दिया था। जब परिणाम आया तो सीपी जोशी भाजपा के कल्याण सिंह के सामने केवल एक वोट से हार गए। कांग्रेस 96 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन बहुमत में नहीं आई। इस हार से सीपी जोशी को बहुत गहरा सदमा लगा और वो सुन्न से हो गए। इसका फायदा उठाया अशोक गहलोत ने और सोनिया गांधी को अपने नाम पर फिर से राजी कर लिया। गहलोत ने दावा किया कि यदि उनको सीएम नहीं बनाया गया तो कोई भी विधायकों को एकजुट नहीं रख पाएगा और बहुमत के लिए जरूरी 101 विधायकों का आंकड़ा भी नहीं जुटा पाएगा। दिल्ली में बैठी सोनिया गांधी को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनका सबसे विश्वासपात्र नेता ही राजस्थान में गेम खेल रहा है। तो जादू ऐसा हुआ कि नाथद्वारा में अशोक गहलोत के लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ जमकर काम किया और जो 10—20 हजार वोटों की लीड सीपी जोशी को मिली रही थी, उसको खत्म कर दिया गया। जो कांग्रेस पार्टी और खुद सीपी जोशी हजारों वोटों से जीत के प्रति आश्वस्त थे, वहां पर जोशी को एक वोट से हार मिली। इस तरह से अशोक गहलोत के चौथे बड़े शिकार बने सीपी जोशी। बाद में लोकसभा चुनाव हुए तो वहीं सीपी जोशी भीलवाड़ा सीट से 2009 को लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बने, लेकिन तब तक खेल खत्म हो चुका था और गहलोत राजस्थान में अपनी तिकडम पक्की कर चुके थे।
अशोक गहलोत दूसरी बार सीएम तो बन गए, लेकिन उनके पास 101 विधायकों की संख्या रखना चुनौती हो रही थी। तब राजस्थान में बसपा के 6 विधायक जीतकर आए थे। अशोक गहलोत ने सियासी जादू किया और बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया। तब किरोड़ीलाल मीणा की पत्नि गोलमा देवी भी कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार में मंत्री बनी थीं। तीन टांग की सरकार को संभालना आसान नहीं होता है, खासकर जब पार्टी निर्दलीयों और बसपा के विधायाकों के साथ सत्ता में हो। तो ग्रांउड पर सरकार की नाकामी साफ तौर पर दिखाई देने लगी थी। इधर, मारवाड़ के कद्दावर नेता परसराम मदेरणा के बेटे महिपाल मदेरणा, जो जलदाय मंत्री थी, वो सीएम बनने के लिए दावेदारी कर रहे थे। एक तरह से उनका कद अशोक गहलोत के बराबर ही था। मंत्री भले गहलोत सरकार के थे, लेकिन उनका सियासी कद और किसान वर्ग की उम्मीदों के कारण गहलोत सरकार के लिए सिरदर्द बन गए थे। नेता भले ही चतुर हों, लेकिन अशोक गहलोत कभी अधिकारी लॉबी को कंट्रोल नहीं कर पाए। इस वजह से गर्वनेंस की कमी के कारण अशोक गहलोत सरकार विफल हो गई थी। ऐसे में सोनिया गांधी के पास राजस्थान में सीएम बदलने का ही रास्ता बचा था। कहते हैं सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को दिल्ली बुलाकर इस्तीफा ले लिया था और 7 दिन के भीतर स्थितियां सामान्य करने और नए सीएम का चेहरा सुझाने को कहा गया था। इसी दौरान अचानक से एक अश्लील सीडी कांड़ सामने आया, जिसमें सीएम के दावेदार मंत्री महिपाल मदेरणा एक नर्स भंवरीदेवी के साथ थे। उसी दौरान भंवरीदेवी को अपहरण हुआ और मामला राष्ट्रीय स्तर पर चला गया। भंवरीदेवी गायब थीं, उसका मर्डर हो गया था और महिपाल मदेरणा और मलखान सिंह विश्नोई का नाम उसमें सामने आया। अशोक गहलोत ने मौके का लाभ उठाया और प्रकरण को सीबीआई जांच के लिए भेज दिया। इसके चलते महिपाल मदेरणा को इस्तीफा देना पड़ा और बाद में सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया। होने को तो महिपाल मदेरणा भंवरीदेवी अपहरण और हत्य के मामले में निपटे थे, लेकिन कहते हैं कि इसकी जड़ में भी अशोक गहलोत ही थे, जिनको मामला काफी समय पहले से पता था और अपनी जान की सुरक्षा को लेकर भंवरीदेवी खुद अशोक गहलोत से भी मिली थी। इस तरह से देखा जाए तो महिपाल मदेरणा अशोक गहलोत का पांचवां बड़ा शिकार बने।
अशोक गहलोत की उसी सरकार में कांग्रेस के दूसरे मंत्री बाबूलाल नागर पर भी एक महिला ने रेप का आरोप लगाया और वो भी जेल गए। गहलोत सरकार में गर्वनेंस की भारी कमी, उनके मंत्रियों के जेल जाने के अलावा गुजरात से नरेंद्र मोदी का प्रादुर्भाव ऐसा हुआ कि वसुंधरा राजे की लीडरशिप में भाजपा ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 163 सीटों के प्रचंड़ बहुमत की सरकार बनाई। अशोक गहलोत के सीएम रहते कांग्रेस ने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले और पार्टी पहली बार 21 सीटों पर सिमट गई। सोनिया गांधी को अपनी गलती का अहसास हुआ और राहुल गांधी ने कमान संभाली। उन्होंने जनवरी 2014 में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट को पीसीसी चीफ बनाकर राजस्थान की कमान सौंपी। साथ ही किसान नेता रामेश्वर डूडी को वसुंधरा की भारी भरकम सरकार से लोहा लेने के लिए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया। इन दोनों ने अपनी अपनी भूमिका को निभाया और 2018 में कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली। भाजपा 72 सीटों के साथ सत्ता से बाहर हो गई। इस बार अशोक गहलोत ने एक साथ दो नेताओं को निपटाने का प्लान बनाया। चुनाव के दौरान रामेश्वर डूडी को नोखा में हराया गया। यहां पर उनका साथ दिया हनुमान बेनीवाल ने, जिन्होंंने रामेश्वर डूडी की ही रिश्ते में भांजी को मैदान में उतार दिया। इसके कारण डूडी कम अंतराल से चुनाव हार गए। गहलोत और पायलट की लड़ाई में रामेश्वरी डूडी गांधी परिवार के पास तीसरा सबसे बड़ा चेहरा थे, जिनको सीएम बनाने की चर्चा थी। डूडी के चुनाव हारते ही गहलोत और पायलट बचे। दोनों के बीच सीएम बनने की लड़ाई दिल्ली से जयपुर तक चल। कई दिनों की खींचतान के बाद तय हुआ कि लोकसभा चुनाव तक अशोक गहलोत का अनुभव काम लिया जाएगा और पायलट को उनका डिप्टी बनाया जाएगा। गहलोत ने गांधी परिवार को आश्वासन दिया कि कम से कम 10 सीटों पर कांग्रेस को जिताएंगे। किंतु राजस्थान से कांग्रेस पार्टी लगातार दूसरी बार लोकसभा में खाता भी नहीं खोल पाई। इसके बाद पायलट ने गांधी परिवार को अपना वादा याद दिलाया। पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम होने के कारण सचिन पायलट की बातों में दम था। इसकी खबर गहलोत को बराबर मिल रही थी। उन्होंने एक पद पर एक व्यक्ति का सिगुफा छोड़ दिया। गहलोत ने मीडिया में प्रचारित करवाया कि जल्द ही सचिन पायलट को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाया जाएगा। अथवा उनको डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देना होगा। इधर, पायलट फिर भी चुप नहीं थे। उनको दबाव में लाने के लिए गहलोत ने पायलट के विभाग की फाइलें सीएमआर मंगवाना शुरू कर दिया। देश दुनिया में अप्रेल 2020 तक कोरोना का कहर बरपना शुरू हो चुका था। राजस्थान भी इससे अछूता नहीं था, लेकिन सरकारी नाकामी ने जनता को निराश कर दिया। एक तरफ जनता कोरोना से जूझ रही थी और दूसरी ओर गहलोत—पायलट के सियासी टकराव ने राज्य को बेहाल कर दिया था। जुलाई 2020 तक यही सिलसिला चला। फिर एक दिन 11 जुलाई को अचानक पता चला कि कांग्रेस सरकार में बगावत हो गई है। सचिन पायलट और कई मंत्रियों के साथ कांग्रेस के तीन चार दर्जन विधायकों ने बगावत कर दी है। 13 जुलाई को गहलोत ने विधायक दल की बैठक बुला ली और जब सचिन पायलट उसमें शामिल नहीं हुए तो पायलट समेत तीन मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। दो दिन बाद पायलट को पीसीसी चीफ के पद से भी हटा दिया गया और उनकी जगह गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस अध्यक्ष बन दिया गया। सचिन पायलट के डर से पूरी सरकार को होटलों में शिफ्ट कर दिया गया और अशोक गहलोत ने मीडिया के सामने आकर बार—बार बयान दिए कि सचिन पायलट गद्दार हैं, वो सरकार को गिराना चाहते हैं, पायलट भाजपा में जा रहे हैं, भाजपा ने उनको और उनके साथियों को 30—40 करोड़ रुपयों में खरीद लिया है। लगातार 34 दिन तक सियासी ड्रामा चला, पूरी सरकार एक महीने तक होटलों में मौज मस्ती करती रही और जनता कोरोना से जूझती रही। इस तरह से गहलोत के छठे शिकार सचिन पायलट बने।
राजनीति में अपने से छोटे नेता को कभी बराबर नहीं आने दिया जाता है। यदि कोई बराबर आने का प्रयास करता है तो उसको पहले निपटाया जाता है। दिसंबर 2023 में अशोक गहलोत की तीसरी सरकार भी सत्ता से बाहर हो गई। विपक्ष का जिम्मा पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के पास आ गया। दोनों ने अपने अपने स्तर पर सरकार को घेरा है। गोविंद सिंह डोटासरा के तीखे रवैये के कारण उनका सियासी कद बढ़ रहा है। इसके कारण सचिन पायलट भी चिंतित हैं, तो अशोक गहलोत ने अपना सातवां शिकार ढूंढ लिया है। अभी बयानबाजी का पहला चैप्टर खुला है, यदि डोटासरा किसी भी तरह से गहलोत के रास्ते की रुकावटे बनते दिखेंगे तो पक्का ही समझिये कि उनके लिए भी कोई जादूगरी तैयार हो चुकी होगी।

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