पहलगाम में पाकिस्तान-समर्थित आतंकियों द्वारा 26 मासूम लोगों की धर्म पूछकर की गई हत्या के बाद भारत में गहरा रोष था। देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत सरकार से पाकिस्तान पर बड़ा और निर्णायक हमला करने की मांग की।
यह हत्याकांड 22 अप्रैल को हुआ, और भारत की वायुसेना ने आतंकी ठिकानों की पहचान कर, पूरी तैयारी के साथ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत 7 मई की आधी रात को नौ जगहों पर 24 मिसाइलें दागीं। विभिन्न मीडिया संस्थानों ने इस हमले में लगभग 150 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की सूचना दी।
इसके अगले दिन पाकिस्तान ने भारत पर मिसाइलों और ड्रोनों से हमला किया। भारत को इसकी पहले से आशंका भी थी और तैयारी भी पूरी थी। परिणाम यह रहा कि पाकिस्तान की एक भी मिसाइल अपने लक्ष्य पर नहीं लगी। तुर्किये और चीन से खरीदे गए ड्रोन इतने बेअसर रहे कि भारत की एयर गनों ने ही उन्हें मार गिराया।
यह सिलसिला दो दिन चला। लेकिन 10 मई की शाम को अचानक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की और बयान जारी किया कि उन्होंने भारत–पाकिस्तान के बीच सुलह करवा दी है, और शाम 5 बजे से दोनों देशों की ओर से युद्धविराम यानी ‘सीज़फायर’ लागू हो गया है।
दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश मध्यस्थता करता है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश इसे मानते हुए युद्ध रोक देता है और आतंकवाद की शरणस्थली पाकिस्तान केवल दो घंटे में ही सीज़फायर को तोड़ देता है। हालांकि भारतीय सेनाओं को पहले से पाकिस्तान की इन करतूतों का अंदाजा था, इसलिए तैयारियां जारी रखी गईं।
पाकिस्तान ने सैकड़ों मिसाइल और ड्रोन से हमले किए, जिन्हें भारत की 'सुदर्शन चक्र' प्रणाली और एयर गनों के माध्यम से निष्प्रभावी कर दिया गया। रविवार को भारतीय वायुसेना ने बयान जारी कर कहा कि ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है, अतः सरकारी एडवाइजरी का पालन करें।
पाकिस्तान द्वारा सीज़फायर का उल्लंघन किए जाने के बाद अमेरिका ने फिर से बयान जारी किया। ट्रंप ने लिखा- “दोनों देशों ने समझदारी और साहस का परिचय देते हुए युद्ध से पीछे हटने का फैसला लिया, जिससे लाखों निर्दोष लोगों की जान बच सकती थी। मैं दोनों महान देशों के साथ मिलकर काम करूंगा, ताकि शायद ‘हजार सालों’ बाद कश्मीर का हल निकाला जा सके।
मैं भारत और पाकिस्तान के मजबूत और समझदार नेतृत्व की बहुत सराहना करता हूं, जिन्होंने समय रहते अपनी बुद्धि और धैर्य से यह समझ लिया कि अब और लड़ाई को रोकना आवश्यक है, क्योंकि युद्ध से विनाशकारी परिणाम मिल सकते थे। लाखों अच्छे और निर्दोष लोग मारे जा सकते थे। आपके इस साहसी फैसले से आपका नाम और सम्मान बढ़ा है।”
इतने बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष जब कोई बयान देता है तो उसके मायने होते हैं। लेकिन लगता है कि अमेरिकी जनता ने ऐसा प्रमुख चुन लिया है, जिसे बयान देते समय यह भी होश नहीं होता कि वह कह क्या रहा है। पहली बात, कश्मीर का मसला ‘हजार साल’ पुराना कैसे हो गया? जब पाकिस्तान 1947 में भारत से अलग हुआ था, तो मामला हजार साल पुराना कैसे हो गया?
क्या ट्रंप हिंदू–मुस्लिम संघर्ष को हवा देने का प्रयास कर रहे हैं? करीब एक हजार साल पहले आक्रांताओं ने भारत पर हमले किए और यहां शासन कर यहीं के होकर रह गए। शायद ट्रंप उसी इतिहास की ओर संकेत कर रहे हैं। इस तरह की बातें करने वाले को लोग दो तरह से देखते हैं या तो ट्रंप पागलपन की सीमाएं लांघ चुके हैं, या फिर अत्यंत चतुराई से वह हिंदू–मुस्लिम संघर्ष का संकेत देकर भारत और पाकिस्तान को एक बार फिर कश्मीर मुद्दे में उलझाना चाहते हैं।
याद रखने वाली बात यह है कि भारत ने 2019 में ही अनुच्छेद 370 समाप्त कर कश्मीर को संवैधानिक रूप से भारत का अभिन्न अंग बना दिया है। हालांकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) अब भी पड़ोसी देश के कब्जे में है, जिसे वापस लेने की बात मोदी सरकार कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुकी है।
लोगों का मानना है कि जब पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ ही दिया है, तो पीओके को वापस लेने का यह सबसे उपयुक्त अवसर है। संभवतः भारतीय सेनाएं उसी दिशा में आगे बढ़ भी रही थीं, लेकिन इस बीच ‘मान या न मान, मैं तेरा मेहमान’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए अमेरिका ने अपनी नाक घुसेड़ दी।
अब सबसे बड़ा सवाल मोदी सरकार से है— जब पहलगाम हत्याकांड के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को फटकार नहीं लगाई, उसकी मदद नहीं रोकी, उस पर प्रतिबंध नहीं लगाए, तो फिर 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान वह जबरन पंच बनने कौन आ गया? क्या मोदी सरकार ने अमेरिका को मध्यस्थता का अधिकार दिया, या वह खुद ही पंचायती करने आ गया? क्या भारत इतना मजबूर है कि अमेरिका जो कहे, वही मान लिया जाए?
डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी दावा किया है कि बैक-चैनल के जरिए उनकी भारत और पाकिस्तान के नेताओं से बातचीत चल रही थी। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत सरकार ने ट्रंप प्रशासन को इतना अवसर क्यों दिया? आज लोग इंदिरा गांधी को याद कर रहे हैं, जब 1971 के युद्ध में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से मिले बिना ही अमेरिका से लौट आने का साहस दिखाया था और अमेरिका–ब्रिटेन की परवाह किए बिना पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे।
हालांकि एक सवाल यह भी उठता है कि जब पाकिस्तान हार गया था, बांग्लादेश बन चुका था और पाकिस्तान के 93,000 सैनिक आत्मसमर्पण कर चुके थे तो इंदिरा गांधी ने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू की गलती सुधारते हुए उस समय PoK को वापस क्यों नहीं लिया?
अमेरिका जानता है कि भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। उसे रोकना भी ज़रूरी है और चीन का काउंटर बनाने के लिए भारत का इस्तेमाल भी करना है। इस युद्ध के दौरान ही भारत के विरोध के बावजूद आईएमएफ ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर की मदद दे दी। कहा जा रहा है कि इस मदद के पीछे भी अमेरिका ही था, जिसने वीटो करके यह राशि दिलवाई।
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए गए थे, तब एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था— "पाकिस्तान के आतंकी भारत पर हमला करते हैं, और मनमोहन सरकार अमेरिका जाकर ओबामा-ओबामा करते हुए रोती है।" मोदी का यह वीडियो अब फिर से वायरल हो रहा है।
सवाल यह है कि जब मोदी 11 वर्षों से सत्ता में हैं, और फिर भी अमेरिका भारत के मामलों में 'सरपंच' बन रहा है? वह भी तब, जब भारत की धरती पर पाकिस्तानी आतंकी निर्दोष लोगों का नरसंहार कर रहे हैं तो क्या मोदी को अपनी ही कही बातें याद नहीं हैं?
जब भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जब वह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है, तब अमेरिका जैसे देश का इस तरह पंचायती करना और भारत को अपने लक्ष्य से भटकाना, सवाल खड़े करता है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां अच्छा काम करने पर जनता सरकार को सिर पर बिठा लेती है, लेकिन विफलता पर उतारने में भी देर नहीं लगाती। चाहे चुनाव बिहार के हों, पश्चिम बंगाल के या लोकसभा के, हर बार सरकार को जनता की कसौटी पर खरा उतरना होता है।
पाकिस्तान पर हमले का समर्थन भी होगा, और अमेरिका को पंच बनाने पर विरोध भी। सरकार को आज सबसे पहले जनता का मन और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया समझनी चाहिए। यदि मोदी सरकार समय रहते जनभावना का सम्मान नहीं करती, तो जिन्हें 2014 से सिर–आंखों पर बिठाया है, उन्हें जनता नजरों से उतारने में देर नहीं लगाएगी।
Post a Comment