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हिंदुओं से क्यों वसूला जाता है हलाल सर्टिफिकेट का पैसा?



भारत में हलाल सर्टिफिकेट को लेकर विवाद लगातार बढ़ रहा है। यह सर्टिफिकेट इस्लामी मानकों के अनुसार भोजन और अन्य उत्पादों को “वैध” घोषित करता है। 


भारत में इस समय लगभग 5 प्रमुख एजेंसियां हैं जो हलाल सर्टिफिकेट जारी करती हैं – इनमें Jamiat Ulama-i-Hind Halal Trust, Halal India, Halal Council of India, Jamiat Ulama Maharashtra और Global Halal Board प्रमुख हैं। 


इनके पास FSSAI जैसे सरकारी अधिकार नहीं हैं, बल्कि ये प्राइवेट संस्थान हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत का हलाल प्रमाणन बाजार 2022 में लगभग ₹1,200 करोड़ का था और आने वाले वर्षों में इसके और बढ़ने की संभावना है, क्योंकि भारत से हर साल लगभग ₹50,000 करोड़ से ज्यादा का हलाल उत्पाद मुस्लिम देशों को निर्यात होता है। 


केवल मांस निर्यात ही नहीं, बल्कि दवाइयों, कॉस्मेटिक्स और पैकेज्ड फूड पर भी हलाल का ठप्पा लगता है। हलाल प्रमाणपत्र की लागत भी कंपनी और कारोबार के आकार पर निर्भर करती है। छोटे रेस्टोरेंट और दुकानदारों से सालाना लगभग ₹10,000 से ₹50,000 तक शुल्क लिया जाता है। 


वहीं बड़ी कंपनियों और एक्सपोर्ट करने वालों को ₹1 लाख से लेकर ₹5 लाख या उससे अधिक चुकाने पड़ते हैं। यह रकम हर साल रिन्यूअल के नाम पर भी दोबारा देनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, Halal India की वेबसाइट पर बताया गया है कि उनके पास 1,800 से ज्यादा कंपनियां और 85,000 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हलाल सर्टिफाइड हैं। 


इसी तरह Jamiat Ulama-i-Hind Halal Trust का दावा है कि उन्होंने अब तक 3,500 से ज्यादा कंपनियों को हलाल सर्टिफिकेट जारी किया है। इन सर्टिफिकेट्स से होने वाली कमाई सरकारी खाते में नहीं जाती, बल्कि सीधे इन प्राइवेट ट्रस्टों और संगठनों के पास जाती है। आलोचकों का कहना है कि यह एक तरह से समानांतर आर्थिक ढांचा है। 


आंकड़े बताते हैं कि भारत से 2021-22 में करीब ₹22,000 करोड़ का मांस निर्यात हुआ और इसमें सबसे बड़ा हिस्सा हलाल मांस का था, क्योंकि मुस्लिम देश नॉन-हलाल मांस स्वीकार नहीं करते। यही कारण है कि अमूल, हल्दीराम, नेस्ले, पतंजलि से लेकर मैकडॉनल्ड्स और KFC जैसी कंपनियां भी हलाल सर्टिफिकेट लेने को मजबूर हैं। 


हालाँकि यह सर्टिफिकेट न तो भारत सरकार ने अनिवार्य किया है और न ही हिंदुओं या अन्य समुदायों के लिए इसकी कोई जरूरत है। लेकिन एक्सपोर्ट मार्केट और मुस्लिम उपभोक्ताओं तक पहुँचने के लिए कंपनियों पर इसका दबाव है। एक अनुमान के मुताबिक केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का हलाल मार्केट 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है और भारत इस बाजार का बड़ा हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है। 


लेकिन सवाल यह है कि जब भारत में पहले से FSSAI खाद्य सुरक्षा का सरकारी प्रमाणपत्र देता है तो क्या एक अतिरिक्त धार्मिक सर्टिफिकेट की जरूरत है? यही मुद्दा आज राजनीति और समाज दोनों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।


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