वित्त मंत्री और डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने विधानसभा के भीतर वाहवाही लूटने के लिए घोषणा करके सबसे बड़ा झूठ बोल दिया और अब राज्य सरकार के अधिकारी इस झूठ को का भंड़ाफोड़ कर रहे हैं। दीया कुमारी ने उस प्रोजेक्ट की घोषणा कर दी, जिसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि जिसकी रिक्वायरमेंट नहीं है, उसकी घोषणा करने का कोई औचित्य नहीं है। राजस्थान में सरकारें जनता के हित में कितना काम करती हैं, इसके बड़े उदाहरण राजधानी जयपुर से लेकर दूसरे कई जिलों में बेकार पड़े प्रोजेक्ट्स गवाही देने के लिए काफी हैं। जयपुर में करोड़ों रुपयों की लागत से बना खासा कोठी ओवर ब्रिज आज भी केवल गाड़ियां पार्क करने के काम आता है। जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स का करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाकर ये ओवर ब्रिज बनाया, लेकिन एक दशक बाद आज भी ब्रिज के नीचे दोनों तरफ कई किलोमीटर का जाम राहगीरों को सुबह—शाह खून के आंसू रुलाता है। खासा कोठी ओवर ब्रिज की तरह ही बेकार प्रोजेक्ट के तौर पर करीब सवा 400 करोड़ फूंककर बीआरटीएस बनाया गया, जिसको बरसों तक अधूरा रखा गया, कई लोगों की इसके कारण जान चली गई और आखिर फिजिबल नहीं मानते हुए उसे हटा दिया गया। प्रदेश में ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं, जो बिना जरूरत और बिना सर्वे किए बनाकर वापस हटा दिए गए या उनको यूं ही आम लोगों की परेशानी के लिए छोड़ दिया गया, जो अब न तो अपनी जगह से हट सकते हैं और न ही जनता के लिए किसी काम आ सकते हैं।
सरकारों द्वारा हर बार विधानसभा में बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं, जो हर बार पूरी नहीं होतीं। लेकिन इस बार जो हुआ है, वह सिर्फ राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि संवैधानिक मंच, यानी विधानसभा के अंदर वित्ता मंत्री के द्वारा बजट भाषण में बोला गया एक सफेद झूठ है। इस झूठ की जिम्मेदार खुद भाजपा सरकार है, जबकि इसकी सीधे लाइबलिटी जाती है उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री दीया कुमारी पर, जिन्होंने बजट भाषण में ऐसे प्रोजेक्ट्स घोषित कर दी, जिनकी न तो कोई वास्तविक योजना थी, न तकनीकी स्वीकृति और न ही जमीनी फिजिबिलिटी।
अब सरकारी फाइलों से निकली ताज़ा रिपोर्ट ने पर्दा हटा दिया है। दीया कुमारी बजट में झूठा वादा करके वाहवाही लूट ले गईं, जबकि जेडीए ने जयपुर में 65 करोड़ रुपये का झोटवाड़ा–खातीपुरा एलिवेटेड प्रोजेक्ट रद्द कर दिया। इसी के साथ जेडीए द्वारा फिजिबल और जरूरत नहीं होने के कारण 1800 करोड़ रुपये के 6 और प्रोजेक्ट भी अब ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर ली गई है। यह मामला अब केवल विकास योजनाओं की देरी का नहीं, बल्कि शासन के ढांचे में पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रश्न का है, क्योंकि यह दावा किसी विपक्षी दल का आरोप नहीं, बल्कि खुद सरकारी तंत्र द्वारा तैयार की गई फिजिबिलिटी रिपोर्ट का नतीजा है, जिसमें साफ लिखा गया है कि “ये प्रोजेक्ट जरूरी नहीं हैं।”
अब सवाल उठता है कि जब विभाग खुद कह रहा है कि ये प्रोजेक्ट ज़रूरी नहीं, व्यावहारिक नहीं और तकनीकी रूप से संभव नहीं, तो फिर बजट में इन्हें इतनी मजबूती से क्यों और किस मंशा के साथ घोषित किया गया था? जेडीए की सर्वे रिपोर्ट कहती है कि झोटवाड़ा–खातीपुरा मार्ग पर 100 फीट की सड़क में सिर्फ 60 फीट ही उपलब्ध है और अतिक्रमण हटाने की स्थिति भी साफ नहीं है। यहां तक कि अगर अतिक्रमण हट भी जाए तो इस प्रोजेक्ट की वास्तविक जरूरत 2036 से पहले नहीं पड़ेगी।
यानी दीया कुमारी ने जनता से ताली और मीडिया से सुर्खियों के लिए योजना की घोषणा कर दी गई, लेकिन जमीन पर यह घोषणा पूरी तरह हवा साबित हुई। जयपुर में ही दो और एलिवेटेड कॉरिडोर पर 150 करोड़ रुपये खर्च कर फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार की गई। उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी ने घोषणा कर दी और अब जेडीए कह रहा है कि “इनका कोई उपयोग ही नहीं है।” इसका मतलब यह है कि जनता का पैसा योजनाओं में नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रदर्शन में खर्च किया गया।
यह मामला सामने आया है तो विपक्ष की प्रतिक्रियाओं ने इसे और राजनीतिक रंग दे दिया है। पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने आरोप लगाया है कि राजस्थान में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है, केवल बजट घोषणाएं होती हैं, उनका कोई अता—पता नहीं होता है, जहां जरूरत नहीं, वहां की भी घोषणा हो जाती हैं, जो काम उनकी सरकार के समय हुए थे, उनका ही ढिंढोरा पीटा जा रहा है, दो बजट पेश हो चुके हैं, लेकिन कोई वादा पूरा नहीं किया गया है। जेडीए अपनी मर्जी से काम करता है, सरकार है ही नहीं और भाजपा झूठे विकास का ढ़िंढोरा पीट रही है।
इन आरोपों और इस रिपोर्ट के मिलते ही अब एक गंभीर सवाल पैदा हो गया है, क्या राजस्थान की भाजपा सरकार खुद अपने भीतर एक दूसरे के खिलाफ काम कर रही है? क्या वित्त मंत्री, उनका विभाग और सीएमओ में संवाद की कमी है या फिर यह सब राजनीति के नाम पर योजनाओं का दुरुपयोग हो रहा है? यह मामला अब सिर्फ टेक्निकल फेलियर नहीं, बल्कि राज्य शासन की बड़ी विफलता है। एलिवेटेड रोड के दोनों मेगा प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं, सीएम के विधानसभा क्षेत्र सांगानेर में एलिवेटेड रोड का काम शुरू नहीं हो पा रहा है। गहलोत की दूसरी सरकार के समय बनी मेट्रो ट्रेन के विस्तार में जो काम वसुंधरा की दूसरी सरकार में हुआ, वो वहीं का वहीं पड़ा है। उसके बाद कई बार घोषणाएं हुईं, लेकिन काम आगे बढ़ ही नहीं रहा है। मेट्रो रूट के विस्तार की तमाम घोषणाओं और दावों के बावजूद दो साल बाद एक ईंट नहीं रखी गई है। प्रदेश के शहरों में फैला अतिक्रमण हटाने की कोई स्पष्ट नीति नहीं है और तमाम बजट घोषणाओं पर सवाल उठ चुके हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या दीया कुमारी विधानसभा में की गई घोषणा और अपनी इस विफलता की जिम्मेदारी लेंगी? क्योंकि बजट केवल भाषण नहीं होता, वह एक संवैधानिक दस्तावेज होता है, जिसमें लिखा एक भी शब्द गलत नहीं हो सकता। अगर इसमें झूठ हो, फर्जी योजना हो या अव्यावहारिक घोषणा हो तो यह केवल राजनीति नहीं, बल्कि संविधान के प्रति असम्मान है।
सच यह है कि अगर यही गलती कांग्रेस सरकार ने की होती तो भाजपा और खुद दीया कुमारी सड़क पर उतरकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुकी होतीं। राजस्थान की जनता के सामने आंकड़े साफ हैं, सदन में घोषणा की गई 65 करोड़ की योजना झूठी निकली, 1800 करोड़ की योजनाएं रद्द हो रही हैं, 150 करोड़ की फिजिबिलिटी रिपोर्ट बेकार गई। इससे बड़ा प्रमाण नहीं हो सकता कि वित्त मंत्री दीया कुमारी का बजट भाषण सिर्फ वाहवाही लूटने की घोषणा थी, योजना थी ही नहीं। अब जनता यह सवाल पूछने का अधिकार रखती है कि यह बजट विकास था या चुनावी जुमला, यह घोषणाएं थी या पीआर स्टंट ही था?
अब इसका जवाब कौन देगा? सबसे बड़ी जिम्मेदार वित्त मंत्री दीया कुमारी या भाजपा सरकार का पूरा सिस्टम? अगर आप मानते हैं कि सच्चाई बोलना लोकतंत्र की जिम्मेदारी है तो यह सवाल उठाना जरूरी है, क्योंकि अब समय सिर्फ देखने का नहीं, बल्कि जवाब मांगने का है।
सरकार की ओर से या भाजपा की तरफ से अभी तक इसको लेकर किसी जिम्मेदार व्यक्ति नहीं ने कोई जवाब नहीं दिया है, ऐसे में यह माना जा रह है कि वित्त मंत्री दीया कुमारी ने सदन के भीतर बजट भाषण में सरासर झूठ बोला था, जो योजना बनकर जमीन पर उतरने जैसा कुछ था ही नहीं।
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