2024 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने तीसरी बार केंद्र में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। यह विजय केवल राजनीतिक रणनीति की सफलता नहीं, बल्कि जनता की उन अपेक्षाओं का प्रतिबिंब थी, जो स्थिरता, विकास और राष्ट्रीय गौरव से जुड़ी थीं। एक वर्ष पूर्ण होने पर यह आवश्यक हो जाता है कि हम सरकार के कार्यों का मूल्यांकन करें-क्या वादे पूरे हुए, क्या चुनौतियाँ बनी रहीं, और क्या नए प्रश्न उभरे।
सरकार ने इस वर्ष बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। रेलवे, सड़कों, सेमीकंडक्टर निर्माण और हरित ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाया गया। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी पहलों को प्रोत्साहन मिला, जिससे भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाने की दिशा में कदम बढ़े।
हालांकि, आर्थिक विकास की यह तस्वीर तब अधूरी लगती है जब हम बेरोज़गारी और महंगाई जैसे मुद्दों को देखते हैं। शिक्षित युवाओं के लिए स्थायी और सम्मानजनक रोज़गार की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता भी बढ़ती दिखाई देती है, जिससे सामाजिक संतुलन पर प्रभाव पड़ता है।
प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, मुफ्त राशन और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने करोड़ों लोगों को राहत प्रदान की है। सरकार ने इन योजनाओं के दायरे और पहुँच को विस्तारित किया है, जिससे ‘गरीबों की सरकार’ की छवि को बल मिला है।
परंतु, यह भी महत्वपूर्ण है कि ये योजनाएँ केवल राहत प्रदान करने तक सीमित न रहें, बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कार्य करें। शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर ही यह संभव हो सकता है। सरकार ने इस वर्ष अपने वैचारिक एजेंडे को स्पष्ट रूप से आगे बढ़ाया।
राम मंदिर का उद्घाटन, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियमों की अधिसूचना और अन्य सांस्कृतिक पहलें इस दिशा में उठाए गए कदम हैं। इन पहलाओं ने समर्थकों में उत्साह और आलोचकों में चिंता दोनों उत्पन्न की हैं। जहां एक ओर यह ‘आत्मगौरव’ के रूप में देखा गया, वहीं दूसरी ओर ‘ध्रुवीकरण’ के रूप में भी। लोकतंत्र में विविधता और समावेशिता की रक्षा करना उतना ही आवश्यक है जितना कि सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करना।
भारत ने G20 की सफल मेज़बानी की और वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की आवाज़ बनने के प्रयास किए। अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारियाँ मजबूत हुईं। हालांकि, पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में चुनौतियाँ बनी रहीं। चीन के साथ सीमा तनाव और पाकिस्तान के साथ ठहरे हुए संबंध इस दिशा में प्रमुख उदाहरण हैं।
विदेश नीति में आत्मविश्वास के साथ-साथ पड़ोसी संबंधों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर इस वर्ष कई प्रश्न उठे। प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर विपक्ष और नागरिक समाज ने चिंता व्यक्त की।
लोकतंत्र की सेहत के लिए यह आवश्यक है कि संस्थाएँ स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य करें। सत्ता का केंद्रीकरण और संस्थाओं की स्वायत्तता में हस्तक्षेप लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा बन सकता है।
विपक्ष, विशेषकर ‘INDIA’ गठबंधन, इस वर्ष प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ रहा। नीति विकल्पों की स्पष्टता और जनभावनाओं से जुड़ाव की कमी विपक्ष की कमजोरी रही है। लोकतंत्र में एक मजबूत और रचनात्मक विपक्ष का होना आवश्यक है, जो सरकार की नीतियों की समीक्षा कर सके और जनता को एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान कर सके।
22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष तीर्थयात्रियों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले की प्रतिक्रिया में भारत ने 6 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए। इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के अड्डों को नष्ट किया गया और लगभग 100 आतंकवादी मारे गए। इस ऑपरेशन की विशेषता इसकी सटीकता और तीव्रता थी।
भारतीय वायुसेना ने राफेल लड़ाकू विमानों और SCALP मिसाइलों का उपयोग करते हुए महज 25 मिनट में यह कार्रवाई पूरी की। इस ऑपरेशन में किसी भी नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचा, जो इसकी रणनीतिक सफलता को दर्शाता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ न केवल आतंक के खिलाफ एक निर्णायक कदम था, बल्कि यह उन परिवारों के लिए भी न्याय की भावना लेकर आया, जिन्होंने इस हमले में अपने प्रियजनों को खोया था।
यह कार्रवाई भारत की सुरक्षा नीति में एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती है, जिसमें आतंक के खिलाफ सख्त और सटीक जवाब देने की प्रतिबद्धता स्पष्ट है।
मोदी सरकार का यह एक वर्ष राजनीतिक स्थिरता, विकास परियोजनाओं की गति और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रियता के लिए उल्लेखनीय रहा है। परंतु, सामाजिक असमानता, बेरोज़गारी, संस्थाओं की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संतुलन जैसे मुद्दे अब भी गंभीर चिंताओं के रूप में मौजूद हैं।
आवश्यक है कि सरकार इन चुनौतियों का समाधान खोजे और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़े। जनता ने सरकार को व्यापक समर्थन दिया है; अब यह सरकार की नैतिक और संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि वह इस विश्वास को ठोस परिणामों में परिवर्तित करे।
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