सचिन पायलट कांग्रेस को वहीं ले जायेंगे जहां अशोक गहलोत ने छोड़ा था

Ram Gopal Jat
राजस्थान कांग्रेस की आपसी फूट चुनाव से पहले पार्टी के लिये सिर दर्द बन गई है। एक तरफ जहां सचिन पायलट पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार की जांच कराने को लेकर सरकार के खिलाफ मुखर हैं, तो दूसरी ओर आलाकमान के निर्देश पर सीएम अशोक गहलोत, अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा विधायकों से व्यक्तिगत मुलाकात कर उनसे फीडबैक ले रहे हैं। इसी फीडबैक कार्यक्रम में कई विधायकों ने सरकार के खिलाफ माहोल बताकर अशोक गहलोत सरकार की हवा निकाल दी है। गहलोत दावा तो कर रहे हैं कि सरकार रिपीट होगी, लेकिन जिन 13 प्रश्नों के साथ विधायकों से वन टू वन मुलाकात कर सरकार विरोधी एंटी इनकंबेंसी को जानने का प्रयास किया जा रहा है, उसी में गहलोत सरकार के खिलाफ विरोधी स्वर फूट पड़े हैं।
कांग्रेस विधायकों के वन टू वन फीडबैक में कांग्रेस विधायक रामनारायण मीणा ने अपनी ही सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि राजस्थान का मतदाता कांग्रेस को जिताने के मूड में है, लेकिन तभी जब हम उनका आदर करें। कुछ मंत्री करप्शन में बहुत आगे बढ़ चुके हैं। मुख्यमंत्री की मजबूरी है या कमजोरी है कि उनको हटा नहीं पा रहे? कुछ मंत्री तो चोटी से लगाकर पैर के अंगूठे तक करप्शन में रंगे हुए हैं। कुछ मंत्री अपने पद का दुरुपयोग करके बीजेपी वालों का साथ देते हैं। ऐसे लोगों के आगे बढ़ने से हम कमजोर में हो गए हैं।
इसी तरह से पहले दिन हरीश मीणा और राकेश पारीक ने उनको अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा द्वारा 'मानेसर रिटर्न्स' बोले जाने से नाराजगी जाहिर की है। दोनों विधायकों ने गहलोत और रंधावा से साफ कहा है कि इन हरकतों से सरकार रिपीट होनी नामुनकिन है। इसी तरह से सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देते हुये कहा है कि सचिन पायलट पर कार्यवाही करके दिखायें, छठी का दूध याद दिला देंगे। पायलट खुद ने कहा है कि वह सभ्य भाषा में विरोध करते हैं, लेकिन जब विरोध करते हैं तो धुवां निकाल देते हैं। वास्तव में देखा जाये तो इन दिनों पायलट ने विरोधी स्वर अपनाकर कांग्रेस और गहलेात सरकार की पूरी तरह से धुवां ही निकाल रखी है। खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी पायलट की मांग को जायज ठहराया है। इसी तरह से गहलोत समर्थक सिरोही विधायक संयम लोढ़ा और पूर्व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने भी पायलट की मांग का समर्थन करते हुये कहा कि वसुंधरा सरकार के घोटालों की जांच होनी चाहिये।
खास बात यह है कि इन दिनों सचिन पायलट बोल रहे हैं, लेकिन पायलट कैंप चुप है। पिछले दिनों अनशन के दौरान भी पायलट ने अपने साथी विधायकों को धरने से दूर रहने को कहा था। इसका मतलब यह है कि सचिन पायलट अब भी आलाकमान से आस लगाये बैठे हैं कि उनको सीएम बनाया जायेगा, लेकिन प्रदेश का हर आदमी इस बात को समझ चुका है कि गहलोत के जीते जी अब इस बार सचिन पायलट सीएम नहीं बनाये जायेंगे। जो समय सरकार को अपनी योजनाओं का प्रचार करने और जनता में जनमत जानने के लिये जाने में खर्च करना चाहिये था, वह समय पार्टी के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में गंवा रहे हैं। अशोक गहलोत सरकार 'महंगाई राहत कैंप' के नाम से नया कार्यक्रम शुरू करने जा रही है, जिसमें वर्तमान में चल रही योजनाओं का प्रचार करने का काम किया जायेगा। कांग्रेस सरकार का मत है कि यदि कहीं पर एंटी इनकंबेंसी बनती है तो उसको राहत कैंप के द्वारा कम किया जाये, ताकि सत्ता रिपीट कराई जा सके।
इधर, सचिन पायलट की गतिविधि को बारीकी से समझें तो वह आरपार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं। माना जा रहा है कि इस महीने में यदि उनको सीएम नहीं बनाया गया तो वह कांग्रेस की राजस्थान से खटिया खड़ी करने के मिशन में जुट जायेंगे। पायलट ने संभवत: यह ठान लिया है कि यदि पार्टी उनके साथ न्याय नहीं करेगी, तो वह कांग्रेस को उसी जगह ले जाकर छोड़ेंगे, जहां से उठाकर सरकार बनाने जितनी सीटें जिता लाये थे। इसका मतलब जो बात मंत्री और विधायक कह रहे हैं कि पायलट को यदि साथ नहीं लिया गया तो कांग्रेस की इतनी ही सीटें आयेंगी, जो एक कार में सवारी कर सके।
सचिन पायलट ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जिसके कारण सब लोग केवल कयास ही लगा पा रहे हैं। समय के साथ चर्चाओं ने भी जोर पकड़ लिया है। जैसे जैसे समय निकल रहा है, उससे तरह तरह की बातें हो रही हैं। सबसे जरुरी बात यह है कि पायलट के आगे के एक्शन को लेकर कोई भी अंदाजा नहीं लगा पा रहा है। यहां तक की कांग्रेस भाजपा वाले बड़े नेता भी समझ नहीं पा रहे हैं कि पायलट अब क्या करने वाले हैं। हालांकि, कुछ चर्चाएं हैं, तो पायलट के अगले कदम को लेकर काफी कुछ साफ कर देती हैं।
पहली बात तो यह है कि पायलट कांग्रेस में रहकर अपने साथ अब भी न्याय की उम्मीद लगायेंगे। आलाकमान तक अपनी बात पहुंचा दी है कि वह क्या चाहते हैं? आलाकमान यदि गहलोत को हटने को कहेगा तो संभवत: सरकार गिरेगी ही। सरकार केवल उसी हालात में बची रह सकती है, जब खुद गहलोत ही इस्तीफा दें और कह दें कि पायलट को सीएम बना दे और वह सरकार रिपीट कराने में मिलकर मेहनत करेंगे, जिसकी संभावना शून्य ही है। दूसरी बात यह है कि आलाकमान पायलट को अध्यक्ष बनाये और आगे सीएम का चेहरा घोषित कर दे और दोनों नेताओं में सुलह करवा दे, जिसकी उम्मीद करना ही बेमानी है। क्योंकि कांग्रेस आलाकमान इन दोनों नेताओं को अपने हाल पर छोड़ दिया है, जहां ये दोनों लड़कर जो जीतेगा, वही आगे कांग्रेस को संभाल लेगा। फिलहाल तो पार्टी अशोक गहलोत के कब्जे में है। तीसरी बात यह है कि पायलट अंत समय तक कांग्रेस में ही रहेंगे और पार्टी को जिताने का प्रयास करेंगे और सत्ता रिपीट होने पर सीएम बनने के लिये कांग्रेस पर दबाव बनायेंगे, जो अशोक गहलोत होने नहीं देंगे। क्योंकि गहलोत तो पहले 2030 तक राजस्थान को नंबर एक बनाने का संकल्प ले चुके हैं, तो वह आगे भी सीएम बनना चाहेंगे।
सचिन पायलट को लेकर चर्चा यह भी है कि उन्होंने अपनी पार्टी का रजिस्ट्रेशन करवा लिया है और चुनाव से पहले उसकी घोषणा कर आरएलपी, आप जैसे दलों के साथ गठबंधन करके भाजपा कांग्रेस को सत्ता से बाहर बिठाने का प्रयास करेंगे। हालांकि, अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है, जिससे लगे कि पायलट ने पार्टी बना ली है, लेकिन जनता के बीच इस बात की अफवाह भी चल रही है। पायलट को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में अधिकतर अपने लोगों को टिकट दिलाकर उन्हें अपने दम पर जिताने का प्रयास करेंगे, उसके बाद पूरी पार्टी को लेकर ही कांग्रेस छोड़ देंगे, चुनाव बाद वह भाजपा में चले जायें या परिस्थितियां यदि सरकार बनाने की हो जाये तो वह खुद आरएलपी जैसे दलों को साथ लेकर सरकार बना लें।
इस बात की चर्चा सबसे अधिक है कि पायलट चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो जायेंगे और अपने सा​थियों को टिकट दिलाकर मैदान में उतरेंगे, वहीं से कांग्रेस का सूपडा साफ करेंगे। कुछ सियासी लोग यह भी कहते हैं कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस में रहकर ही लड़ेंगे पार्टी को धूल चटाने के लिये मेहनत करेंगे। किंतु लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होकर केंद्र में मंत्री बन जायेंगे। एक संभावना यह भी है कि पार्टी बनायेंगे और गठबंधन करके चुनाव लड़ेंगे। उसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी का कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह भाजपा में विलय कर लेंगे, जहां खुद केंद्र में मंत्री बनेंगे और आगे भाजपा में रहकर राजस्थान में सीएम बनने के लिये मेहनत करेंगे। जितने मुंह, उतनी बातें, वाली कहावत यहां सटीक बैठ रही है। किंतु भविष्य की असलियत केवल सचिन पायलट ही जानते हैं।
इस बीच यदि गहलोत सरकार के टिके रहने की संभावना और सत्ता रिपीट होने की बात की जाये तो उसकी उम्मीद बेहद कम दिखाई दे रहे है। पहला कारण तो यह है कि संगठन मृतप्राय: स्थिति में पड़ा है। दूसरी बात यह है कि पार्टी के कार्यकर्ता दो धड़ों में बंटे हुये हैं, तो अपने अपने नेता के लिये तो मेहनत कर लेंगे, लेकिन पार्टी के लिये सोचने या मेहनत करने का समय किसी के पास नहीं है। पायलट के समर्थक गहलोत को वोट नहीं दिलायेंगे और गहलोत वाले पायलट के पक्ष में वोट नहीं होने देंगे। इस हालात में संगठन के लिये किसी के पास फुरसत नहीं है और यही बात सत्ता रिपीट कराने में सबसे बड़ी बाधा है। सरकार भले ही अपनी योजनाओं को एतिहासिक और जोरदार बताकर सत्ता रिपीट कराने का दावा करे, लेकिन इतना तय है​ कि कांग्रेस को वोट इन योजनाओं के दम पर नहीं पडेगा, क्योंकि पार्टी में चल रही धड़ेबाजी के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का होसला पस्त है।
अंतत: यही कहा जा सकता है​ कि दिसंबर 2013 में कांग्रेस को अशोक गहलोत की लीडरशिप जहां 21 सीटों पर ले गई थी और जनवरी 2014 में पीसीसी चीफ बनकर आये पायलट ने दिसंबर 2018 में पार्टी को 100 सीटों के साथ सत्ता दिलाई थी, वही सचिन पायलट कांग्रेस को इस बार दिसंबर 2013 के हालात से भी नीचे ले जायेंगे, जहां से पार्टी का फिर उठ खड़ा हो पाना बेहद कठिन है।

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