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नालंदा विवि की स्थापना, स्वर्णिम इतिहास, पतन और पुन: उत्थान कैसे हुआ?



नालंदा विवि का नाम आते ही दिमाग में एक ब्रिलियंट यूनिवर्सिटी की तस्वीर उभरती है। जिसमें 1600 शताब्दी पहले हजारों स्टूडेंट्स दुनियाभर से क्वालिटी एजुकेशन के लिए भारत आते थे। इस विवि का उत्थान और पतन कई बार हुआ, लेकिन 12वीं​ सेंचुरी में नालंदा को बख्तियार खिलजी ने जलाकर नष्ट कर दिया, जिसे अगले 600 साल तक किसी शासक वापस बनाने प्रयास नहीं किया, नतीजा यह हुआ कि विवि कैंपस रेत के टीले में दफन हो गया। भारत सरकार ने नालंदा को फिर से जीवित कर विश्व की टॉप यूनिवर्सिटी बनाने का बीड़ा उठाया है। पीएम मोदी ने पिछले दिनों इसका उद्घान किया है, जहां पर 17 देशों के 1900 से ज्यादा स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं। इस वीडियो में बताउंगा कि नालंदा कैसे दुनिया की पहली कम्पलीट हॉस्टल यूनिवर्सिटी था? इस विवि में क्या खूबियां थी? कितने देशों के स्टूडेंट्स अध्ययन करते थे और तुर्की के एक सनकी सेनापति ने उस ग्लोरियस कैंपस को कैसे नष्ट कर दिया था? लेकिन वही नालंदा 831 साल बाद कैसे फिर से उठ खड़ा हुआ है।

प्रोडेक्शन के दम पर जीडीपी में हिसाब से भारत दुनिया में 5वें स्थान पर है जो 2027 तक तीसरे नंबर पर आ जाएगा, लेकिन जबतक वर्ल्ड को नॉलेज में लीड नहीं करेगा, तबतक हमारा देश विश्वगुरू नहीं बन सकता। सरकार ने मॉर्डन जमाने के मुताबिक 2020 में न्यू एजुकेशन पॉलिसी बनाई। सेंट्रल लेवल पर न्यू एजुकेशन सिस्टम के साथ ओल्ड एजुकेशन सिस्टम को भी जागृत करने का काम किया जा रहा है। इसी के तहत सभी पुराने मॉन्यूमेंट्स को वापस खड़ा किया जा रहा है, जिसमें 550 साल पहले नष्ट किए गए राम मंदिर से लेकर 831 साल पहले बर्बाद की गई नालंदा यूनिवर्सिटी भी शामिल है।

नालंदा का इतिहास—1

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक हेमंत कुमारगुप्त प्रथम ने 427 ईस्वीं में करवाया था। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों ने विश्व प्रसिद्धी तक पहुंचाया। टॉप क्लालिटी एजुकेशन के कारण नालंदा को भारतीय राजाओं के साथ ही फॉरेन एम्पायर्स से भी डोनेशन मिलता था। विवि का परिसर 10 किमी लंबा और 5 किमी चौड़ा था। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्रा ह्वेनसांग जब भारत आया, तब विवि में 10 हजार स्टूडेंट्स और करीब 1600 आचार्य थे। आज दुनिया की टॉप कही जाने वाली यूनिवर्सिटीज में एंट्रेंस जितना टफ है, उससे कहीं टफ नालंदा विवि में एडमिशन लेना था। एडमिशन के लिए छात्रों को तीन फेज के एग्जाम से गुजरना पड़ता था। सबसे पहले विवि के मैन गेट पर खड़े द्वारपाल स्टूडेंट्स की परीक्षा लेते थे। नालंदा के द्वारपाल कोई साधारण गार्ड नहीं होते थे, बल्कि विद्वान लोग ही द्वारपाल होते थे। मैन गेट का एग्जाम पास होने के बाद विवि परिसर में एंट्री मिलती थी, जहां लिखित और इंटरव्यू के रूप में दो दौर का एग्जाम देना होता था। एंट्रेस एग्जाम इतना टफ होता था कि 10 में से 2 स्टूडेंट ही एडमिशन ले पाते थे।

भारत के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की जैसे 20 से अधिक देशों स्टूडेंट्स एजुकेशन के लिए नालंदा आते थे। यहां के स्पेशल ग्रेजुएट्स दुनियाभर में बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। नालंदा को 9वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक वैश्विक ख्याति प्राप्त थी। 1096 में बनी लंदन की ओक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दुनिया की सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी माना जाता है, लेकिन जब ओक्सफोर्ड बनी, तब नालंदा से अध्ययन कर निकले हजारों छात्र दुनियाभर में बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे। आज जो नाम ओक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, हारवर्ड, इंपीरियल यूनिवर्सिटीज का है, उससे कहीं अधिक नालंदा विवि का हुआ करता था। जब नालंदा अपने चरम पर था, तब दुनिया की इन टॉप यूनिवर्सिटीज का अस्तित्व भी नहीं थीं। यूरोप और अमेरिका की इन यूनिवर्सिटीज को जिस तरह का संरक्षण वहां के किंग्स से मिला, वैसा नालंदा विवि को भारत के राजाओं से नहीं मिला।

शिक्षा व्यवस्था—2

यहां पर ग्रामर, फिलोस्पी, सर्जरी, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र जैसे दर्जनों सब्जेक्ट्स का अध्ययन कराया जाता था। जिस समय दुनिया में कोई विवि नहीं था, तब नालंदा विश्वभर में अपने अध्ययन के लिए ख्याति प्राप्त कर चुका था। यहां स्टूडेंट्स के रहने के लिए 300 रूम्स थे, लेकिन उनको किसी प्रकार की आर्थिक चिंता नहीं थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र, मेडिसिन और ट्रीटमेंट भी निःशुल्क था। राज्य की ओर से विवि को 200 गाँव दान में मिले हुए थे, जिनसे होने वाली इनकम से पूरा खर्च चलता था।

कैसे नष्ट हुआ नालंदा—3

नालंदा को पहली बार चौथी शताब्दी में स्कंदगुप्त के शासनकाल के दौरान मध्य एशिया से आए हूण शासक मिहिरकुल ने नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारियों ने यहां लाइब्रेरी का बहुत बड़ा भवन बनवा दिया। दूसरी बार 7वीं सेंचुरी की शुरुआत में नालंदा पर गौदास ने अटैक किया। तब भी इस यूनिवर्सिटी को काफी नुकसान पहुंचा, किंतु बौद्ध राजा हर्षवर्धन ने फिर से पूरी यूनिवर्सिटी को तैयार करवा दिया।

नालंदा विवि के पूर्ण विनाश की कहानी 12वीं सदी में अफगानिस्तान से शुरू होती है। हिस्टोरियन मिन्हाज ने अपनी बुक 'तबकात-ए-नासिरी' में बख्तियार खिलजी की स्टोरी का जिक्र किया है। खिलजी तब मुहम्मद गोरी के दरबार में मुलाजिम हुआ करता था। 21 बार जीतने के बाद 1192 ईस्वीं में जब पृथ्वीराज चौहान की हार हुई तो मुहम्मद गोरी के आर्मी कमांडर कुतबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली को अपना एम्पायर घोषित कर दिया। बख्तियार खिलजी नामक लड़का अफगानिस्तान से इसी कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ भारत आया था। वह बिलकुल अनपढ़ था, लेकिन बहुत एंबिशियस था। दिल्ली सल्तनत मिलने के बाद कुतुबुद्दीन के लिए बख्तियार खिलजी बहुत मेहनत करता है, इसे देखते हुए ऐबक उसको अपना आर्मी कमांडर बना देता है। इसके बाद दिल्ली एंपायर के मिशन पर खिलजी बंगाल जाता है, तब बंगाल भारत के सबसे अमीर इलाकों में से एक था। वहां से खूब सारी दौलत लूटकर दिल्ली लाता है। फिर उसे बिहार का मिशन मिलता है। बिहार अभियान के दौरान खिलजी ने बौद्ध शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लेता है, किंतु बीमार पड़ जाता है। उसका तुर्की हकीमों से ट्रीटमेंट करवाया जाता है, लेकिन उसकी सेहत में सुधार नहीं होता, बीमारी के कारण खिलजी मरने की हालत में पहुँच जाता है।

एक थ्योरी के अनुसार खिलजी जब बीमारी के कारण मरने की स्थिति में पहुंच जाता है, तब उसे कोई नालंदा विवि के के चांसलर आचार्य राहुल श्रीभद्र से ट्रीटमेंट करवाने की सलाह देता है। किन्तु इस्लामिक धर्मांध खिलजी भारत के प्रोफेसर से ट्रीटमेंट कराने के लिए तैयार नहीं होता है, क्योंकि उसे तुर्की हकीमों पर ज्यादा भरोसा था। अनपढ़ व्यक्ति वॉर के लिए शक्तिशाली तो हो सकता है, लेकिन उसका सेंस काम करे, इसकी गारंटी नहीं होती। खिलजी यह मानने को तैयार नहीं था कि भारत का वैद्य उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञानी, ज्यादा काबिल हो सकता है। हर दिन मरने की तरफ बढ़ता है तो आखिर जान बचाने के लिए आचार्य श्रीभद्र को बुलवा लेता है। श्रीभद्र के सामने खिलजी शर्त रखता कि भारतीय चिकित्सा पदत्ति में बनी किसी भी मेडिसिन को नहीं खाएगा, इसलिए बिना औषधि के वो उसको ठीक करके दिखाएं। वैद्यराज श्रीभद्र कुरान की एक कॉपी उसे देकर शुरुआती कुछ पृष्ठ पढ़ने को कहते हैं। प्रोफेसर श्रीभद्र के बताए अनुसार खिलजी कुरान को पढ़ता है और कुछ ही दिनों ठीक हो जाता है। असल में श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर आयुर्वेदिक दवा का लेप लगा दिया था।

खिलजी थूंक लगाकर कुरान के पन्नों को पढ़ता गया, जिससे दवा उसके शरीर में जाती रही और वह ठीक हो गया। खिलजी बीमारी से ठीक तो हो गया, लेकिन आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के इस शानदार तरीके से उसे ईर्ष्या हो गई। खिलजी यह मानने को तैयार नहीं था कि एक भारतीय वैद्य उनके हकीमों से ज्यादा ज्ञानी कैसे हो सकता है? इसलिए श्रीभद्र जिस नालंदा विवि के चांसलर थे, उसी को नष्ट करने के लिए 9 मंजिला तीनों पुस्तकालयों में आग लगा देता है, इस आग में लगभग 90 लाख पुस्तकें और पांडुलिपियां जल जाती हैं। नालंदा की लाइब्रेरी में इतनी बुक्स थीं कि अगले तीन महीने तक आग धधकती रहती है। इसके बाद खिलजी नालंदा विवि में रहने हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं की भी हत्या कर देता है। पुस्तकालयों में धधकती आग 3 महीने चली, लेकिन लाखों पुस्तकों के कारण लाइब्रेरी में 11 महीनों तक आग सुलगती रहती है। इतने लंबे समय आग जलने का कारण यह था कि उस समय कागज का आविष्कार नहीं हुआ था और लेखन का कार्य पेड़ के पत्तों पर किया जाता था, जिनको सुरक्षित रखने के लिए ताम्रपत्र, यानी तांबे की बनी प्लेट्स के बीच में रखा जाता था। इस वजह से आग की लपटें धीरे—धीरे बुक्स तक पहुंचती है, जिसके कारण आग तीन महीने तक धधकती रहती है। 

दूसरी थ्योरी 'तबाकत-ए-नासिरी' एक फारसी इतिहासकार 'मिनहाजुद्दीन सिराज' द्वारा रचित पुस्तक में बताया है कि खिलजी और उसकी तुर्की सेना ने हजारों भिक्षुओं और विद्वानों को जला कर मार दिया था। खिलजी नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म का विस्तार हो। वह केवल इस्लाम धर्म का प्रचार करना चाहता था। इसलिए उसने नालंदा की लाइब्रेरी में आग लगवाकर पूरे विवि को ही जला दिया।

उसके बाद किसी भारत के शासक या राजा ने नालंदा को फिर से बनाने का साहस नहीं किया। लाइब्रेरी में धार्मिक ग्रंथों के जलने के कारण भारत में एक बड़े धर्म के रूप में उभरते हुए बौद्ध धर्म को अबतक का सबसे बड़ा झटका लगा। धर्म, शास्त्र, गणित, विज्ञान, भौतिकी, भूगोल, वास्तु जैसे विषयों के कारण सम्पूर्ण विश्व में तेजी से फैलने वाला बौद्ध धर्म फिर कभी उभर नहीं सका है। दुनिया के टॉप विद्वान दावा करते हैं कि नालंदा विवि की लाइब्रेरी में इतना ज्ञान था कि 90 लाख बुक्स यदि आज होतीं तो पूरी दुनिया बदल सकती थी।

नालंदा की पुन: खोज कैसे हुई—4

नालंदा जब अपने चरम पर था तब दुनियाभर से विद्वान अध्ययन करने आते थे। इनमें ही चीनी यात्री ह्रेनसांग और इत्सिंग प्रमुख थे। 7वीं सदी में भारत आये ह्वेनसांग और इत्सिंग की पुस्तकों से इस नालंदा के बारे में डिटैल से जानकारी मिलती है। ह्वेनसांग ने इस विवि में लगभग 5 साल शिक्षा ली थी। सन् 629 में चीन से भारत की यात्रा के लिए चला तथा 17 साल की लम्बी यात्रा पूरी कर वापस अपने देश में पहुंचा। ह्नेनसांग जब वापस लौटा तो वह नालंदा से अपने साथ 756 पुस्तकें 20 घोड़ों पर लादकर ले गया था।

ह्नेनसांग वापस लौटा तो नालंदा की ख्याति चीन और कोरिया में फैल गई। अगले 30 साल में चीन रीजन के देशों से 11 फैमस यात्री अध्ययन के लिए नालंदा आए, जिनमें इत्सिंग भी था। इत्सिंग यहां पर करीब 10 साल तक रहा, वापस जाते वक्त वो 456 किताबें साथ ले गया। इत्सिंग ने अपनी रोमांचकारी भारत यात्रा का वृत्तांत चीनी भाषा में लिखा। उसकी मूल पुस्तक का नाम 'सी यू की' यानी 'पश्चिमी राज्य का इतिहास' है। जिसमें इस विवि की गौरव के बारे में डिटैल से बताया गया है। इस बुक से यह पता चल पाया कि यहां पर भव्य और प्राचीन विवि था। तमाम विदेशी यात्री यहां अध्ययन करने नालंदा आए और अपने साथ ज्ञान का विशाल खजाना लेकर लौटे, लेकिन जब खिलजी ने विवि को नष्ट कर दिया तो विदेशी छात्र भी भारत आना बंद हो गए। कालांतर में समय बदला और मुगलकाल से होता हुआ भारत अंग्रेजों का गुलाम बन गया। 

नालंदा विवि को जलाए जाने के करीब 600 साल बाद 19वीं सदी में अंग्रेज़ों के समय में नालंदा की एक बार फिर खोज शुरू हुई। फ्रांसिस भूगौलविद हैमिल्टन बुकानन ने 1811 में इस स्थल का सर्वे किया, उन्होंने मिट्टी और मलबे के टीलों को देखा, उसने यह माना कि यहां पर बहुत बड़ा रहस्य छिपा है, लेकिन वह इस प्रसिद्ध स्थान को नालंदा विवि से नहीं जोड़ पाया। ह्नेनसांग और इत्सिंग की बुक्स में लिखे वृतांत के आधार पर मेजर मार्खम किट्टो ने 1847 में पहली बार इन टीलों का संबंध नालंदा विवि से स्थापित किया। इसके बाद अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861 में अधिकारिक सर्वे किया। ब्रिटिश काल में एएसआई ने 1915 से 1937 तक इन खंडहरों की खुदाई की। भारत की आजादी के बाद पाली व संस्कृत भाषा में एक आधुनिक केंद्र नालंदा के खंडहरों के पास 1951 में नव नालंदा महाविहार स्थापित किया गया। उसके बाद 1974 और 1982 के बीच खुदाई और जीर्णोद्धार का दूसरा दौर शुरू हुआ, जिसमें प्राचीन नालंदा विवि के सम्पूर्ण अवशेष मिले, इसके बावजूद कई दशकों तक भारत की सरकारों ने नालंदा को पुन: स्थापित करने में रुचि नहीं दिखाई। 

नया नालंदा महाविहार कैसे बना—5

तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के प्रस्ताव पर 2006 में नालंदा महाविहार को फिर से बनाने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नालंदा मेंटर ग्रुप का अध्यक्ष बनाया जाता है। संसद में विवि की स्थापना के लिए 2010 में बिल पास होने के बाद 2011 में नालंदा कैंपस के लिए बिहार सरकार ने 455 एकड़ जमीन देती है, साथ ही नई बिल्डिंग के लिए केंद्र सरकार भी 2000 करोड़ देती है। 2012 में अमर्त्य सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी का पहला चांसलर अपॉइंट किया जाता है। 1 सितंबर 2014 को राजगीर में 15 छात्रों के साथ एक आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय के पहले शैक्षणिक वर्ष की शुरूआत होती है। नालंदा खंडहरों को 2016 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इस वजह से पुराने कैंपस के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इधर, नई बिल्डिंग बननी शुरू भी नहीं होती है और छात्र पढ़ने लग जाते हैं। उसी दौरान चांसलर अमृत्य सेन नालंदा गवर्निंग बोर्ड से रिजाइन कर देते हैं। तबतक विवि एक होटल में चल रहा होता है। विवि के नाम पर एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा खूब पैसा खर्च किया जाता है, जबकि बिल्डिंग निर्माण ही शुरू नहीं होता है। इसी दौरान अमृत्य सेन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो खुद सेन राज्य सरकार पर राजनीति करने के आरोप लगाकर चांसलर पद से इस्तीफा दे देते हैं।

इसके बाद नया चांसलर अपोइंट कर विवि बिल्डिंग का काम तेज गति से शुरू होता है। नालंदा के कैंपस का जो प्रोजेक्ट पास हुआ था, उसे 2017 में शुरू किया जाता है, जिसका निर्माण 2020 में पूरा हो जाने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड के चलते निर्माण के काम में देरी होती है। बिहार के नालंदा जिले में राजगीर की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच पिखली गांव के नजदीक नई नालंदा यूनिवर्सिटी स्थापित की गई है। नालंदा यूनिवर्सिटी के कारण राजगीर एक लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है। 

नई थीम पर पुरानी यूनिवर्सिटी—6

यूनिवर्सिटी में 26 देशों के स्टूडेंट्स आर्ट्स, ह्यूमैनिटीज, सोशल साइंसेस, मैनेजमेंट, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, मास मीडिया, जर्नलिज्म, साइंस कोर्सेस, पीएचडी कर रहे हैं। नालंदा में एडमिशन एंट्रेस टेस्ट के आधार पर होता है। यहां विदेशी स्टूडेंट्स के लिए 37 प्रकार की स्कॉलरशिप भी शुरू की गई है। विश्वविद्यालय में पीजी, पीजी डिप्लोमा, पीएचडी और शाॅर्ट टर्म कोर्स संचालित हैं। नए कैंपस का निर्माण 1750 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है। कैंपस में कई भवनों को हाईटेक तकनीक से बनाया गया है, जो गर्मी के दिनों में ठंड और ठंड के दिनों में गर्म रहते हैं। कैंपस में खुद का पावर प्लांट भी है। कैंपस में ही दो एकेडमिक ब्लाॅक बनाए गए हैं, जिसमें कुल 40 क्लासरूम में करीब 1900 स्टूडेंट्स के बैठने की व्यवस्था है। एक बड़ा आडिटोरियम है, जिसमें 300 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। स्टूडेंट्स के लिए फैकल्टी क्लब और खेल परिसर है।

यूनिवर्सिटी में कॉमन किचन और खाना खाने के लिए कॉमन डाइनिंग हॉल है। प्रत्येक स्टूडेंट को अपने कमरों में अटैच किचन भी दिया गया है, ताकि वह अपनी परंपराओं और धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार खुद खाना बनाकर खा सके। कैंपस में ही वाटर री-साइकलिंग का प्लांट है। यूनिवर्सिटी कैंप 'नेट जीरो' ग्रीन कैम्पस के रूप में कार्य करता है। इसमें सौर ऊर्जा संयंत्र, वाटर ट्रीटमेंट और रीसाइक्लिंग, व्यापक जल निकाय पर्यावरण के अनुकूल फैसेलिटीज हैं। एनवाइरोमेंट के अनुकूल पढ़ाई और दूसरी एक्टिविटी कराई जाती हैं। मैनेजमेंट और इतिहास की पढ़ाई के लिए अलग-अलग स्कूल हैं। यूनिवर्सिटी ने आस्ट्रेलिया, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैड, वियतनाम सहित कुल 17 देशों के साथ एमओयू साइन किया है। नए कैंपस के निर्माण का काम करीब—करीब पूरा हो चुका है, जिसका प्रधानमंत्री मोदी उद्घाटन कर चुके हैं। उम्मीद करते हैं ये विश्वविद्यालय एक बार फिर शिक्षा के उसी शिखर पर पहुंचेगा, जहां एक हजार साल पहले नालंदा महाविहार हुआ करता था। भारत सरकार को चाहिए कि नालंदा विवि तरह तक्षशिला और विक्रमशिला यूनिवर्सिटीज जैसे एनीसेंट एजुकेशन सेंटर्स को फिर से शुरू करना चाहिए, ताकि भारत के प्राचीन एजुकेशन सिस्टम को दुनिया जान सके। 


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