Popular

सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के आगे सरेंडर कर दिया?

राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही स्थायी शत्रु। लेकिन कुछ रिश्ते इतने गहरे जख्म छोड़ जाते हैं कि उनकी मरहम-पट्टी भी महज़ औपचारिकता लगती है। राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस के दो प्रमुख चेहरे, अशोक गहलोत और सचिन पायलट, इसी जख्मी रिश्ते का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। एक ऐसा रिश्ता, जिसने न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाया, बल्कि राज्य की सत्ता तक कांग्रेस के हाथों से छीन ली। 

और अब, करीब डेढ़ साल बाद, जब यही दो चेहरे एक साथ एक ही फ्रेम में  मुस्कराते हुए दिखाई दिए। सहज दिखते हुए, तो सियासत में हलचल मचना स्वाभाविक था। सवाल उठने लगा, क्या ये दोनों सच में एक हो गए हैं? या यह भी राजनीति का ही एक नया खेल है? पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथि के बहाने हुई यह मुलाकात पहली नजर में तो सम्मान और श्रद्धा का भाव लिए हुए दिखाई दी। 

लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें केवल फूलों की माला पर नहीं टिकतीं, वो तो उन हाथों को भी पढ़ लेती हैं जो कभी तलवार थामे हुए थे। सचिन पायलट खुद अशोक गहलोत के साथ तस्वीर साझा करते हैं। सोशल मीडिया पर ‘एक्स’ यानी ट्विटर पर वह तस्वीर वायरल हो जाती है। लेकिन इसी दृश्य के पीछे एक तारीख बार-बार कानों में गूंजती है 13 जुलाई 2020।

वही दिन जब अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया था, और सिर्फ हटाया ही नहीं, बल्कि उन पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाए उन्हें नाकारा, निकम्मा और गद्दार तक कहा। ऐसा तीखा हमला, जो किसी विपक्षी नेता से नहीं, बल्कि खुद उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री की ओर से आया। 

यह बात तब भी चौंकाने वाली थी और आज जब पायलट उन्हीं गहलोत के घर जाकर उन्हें व्यक्तिगत रूप से एक कार्यक्रम में आमंत्रित करते हैं, तो ये सवाल पूछना लाज़िमी हो जाता है, क्या यह मुलाकात दिल से है या राजनीति की एक नई रणनीति? कहा जा रहा है कि सचिन पायलट अब 2028 की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उनके पास राजस्थान कांग्रेस में अब न कोई पद है, न ही सत्ता की कोई अधिकारिक शक्ति, लेकिन महत्वाकांक्षा वैसी ही है। 

राजस्थान की सत्ता के शीर्ष पर बैठने की और इसी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए वह अब उन तमाम नेताओं से संवाद कर रहे हैं जो कभी उनके विरोध में खड़े थे। कुछ को तो उन्होंने ही कभी नकार दिया था, जबकि कुछ ने उन्हें गिराने की साजिशें रचीं। लेकिन पायलट अब उस मोड़ पर हैं, जहां उन्हें हर हाथ थामना पड़ रहा है, जो उनकी आगे की राह आसान कर सकता है, पर क्या अशोक गहलोत उन हाथों में से एक हैं?

गहलोत की राजनीतिक शैली को करीब से देखने वाले जानते हैं कि वे कभी भी अपने दुश्मन को माफ नहीं करते। चाहे वो परसराम मदेरणा हों, उनके बेटे महिपाल मदेरणा, शीशराम ओला जैसे दिग्गज हों, या अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे रामेश्वर डूडी, सबके साथ गहलोत ने एक ही सियासी रुख अपनाया, जो सामने आया, उसे रास्ते से हटा दो। महेश जोशी जैसे कभी उनके करीबी भी इसी कुशल साजिशकारी राजनीति का शिकार हो चुके हैं, सचिन पायलट भी इन्हीं कड़ियों में एक नाम हैं। 

जब सितंबर 2022 में कांग्रेस नेतृत्व ने अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की तैयारी की, तो उन्होंने वह पद इस डर से ठुकरा दिया कि कहीं सचिन पायलट मुख्यमंत्री न बन जाएं। सोचिए, यह वही नेता है जो सोनिया गांधी और पार्टी हाईकमान के निर्देशों को भी दरकिनार कर सकता है, लेकिन पायलट को सत्ता में आते नहीं देख सकता। ऐसे में अगर पायलट यह मानते हैं कि अब गहलोत के साथ तालमेल बिठाकर वह 2028 में मुख्यमंत्री बन सकते हैं, तो शायद यह मासूमियत नहीं, बल्कि एक राजनीतिक भ्रम है।

राजनीति में चालें चलने वाले खिलाड़ी भूलने का दिखावा तो कर सकते हैं, लेकिन माफ नहीं करते। और गहलोत इस मामले में किसी भी राजनीतिक खिलाड़ी से कम नहीं। वे अपनी पार्टी में भी किसी को इतना नहीं बढ़ने देते कि वो उनके बराबर खड़ा हो सके। ऐसे में अगर आज सचिन पायलट गहलोत से मेलजोल बढ़ा रहे हैं, तो यह सिर्फ एक रणनीति हो सकती है, लेकिन यह रणनीति कांग्रेस के उन कार्यकर्ताओं पर क्या असर डालेगी, जो पिछले चार साल से पायलट को एक ‘बदलाव’ के प्रतीक के रूप में देख रहे थे? 

क्या ये कार्यकर्ता अब भ्रमित होंगे? क्या उन्हें यह लगेगा कि उनका नेता भी राजनीति की उसी चादर में लिपट चुका है, जिससे वो अब तक खुद को अलग दिखाने की कोशिश करता रहा है? याद कीजिए, मई 2022 में पायलट ने एक 125 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकाली थी। उन्होंने तब स्पष्ट रूप से कहा था—“ना झुकेंगे, ना रुकेंगे और ना माफ करेंगे।” लेकिन अब, जब वो गहलोत के साथ फोटो खिंचवाते हैं और उनके घर जाकर उन्हें व्यक्तिगत रूप से आमंत्रण देते हैं, तो उनके वही शब्द सवालों के घेरे में आ जाते हैं।

दरअसल, पिछले 7—8 सालों में पायलट ने गहलोत से बहुत कुछ सीखा है। सत्ता की राजनीति, संगठन पर पकड़ और मीडिया मैनेजमेंट भी, लेकिन शायद वो गहलोत का वो अमर संवाद भूल जाते हैं, जो उन्होंने कई बार दोहराया है, “राजनीति में जो होता है, वो दिखता नहीं और जो दिखता है, वो होता नहीं।” पायलट की मौजूदा स्थिति को देखें तो यह साफ है कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए गहलोत जैसे पुराने दुश्मनों से भी संवाद बनाना होगा, लेकिन सवाल यही है कि क्या यह संवाद सिर्फ सतही है? या इसमें कोई गहराई भी है? 

क्या गहलोत वाकई पायलट को अब स्वीकार कर चुके हैं? या फिर यह मुलाकात भी उसी राजनीति का हिस्सा है, जिसमें हर मुस्कान के पीछे एक साजिश छुपी होती है? राजस्थान में कांग्रेस एक बार फिर सत्ता वापसी की कोशिश कर रही है। पार्टी नेतृत्व अब भी भ्रम की स्थिति में है, पायलट को आगे करे या गहलोत को ही मौका दे। ऐसे में यह तस्वीर, जिसमें दोनों नेता साथ दिखाई दे रहे हैं, एक गहरा राजनीतिक संकेत भी हो सकता है या सिर्फ क्षणिक मेल भी। 

इस मुलाकात का एक असर यह भी हो सकता है कि कांग्रेस कार्यकर्ता भ्रमित हो जाएं। खासकर युवा कार्यकर्ता, जो पायलट को उम्मीद की किरण मानते रहे। उन्हें अब समझ नहीं आ रहा कि यह पायलट वही हैं, जिन्होंने कभी कहा था, “मेरी लड़ाई किसी पद के लिए नहीं, बल्कि सिद्धांतों के लिए है।” अब वही सिद्धांत झुकते दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक परिपक्वता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होता। 

और सचिन पायलट इस मुश्किल संतुलन को साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जब तक पायलट गहलोत के साये से बाहर नहीं निकलेंगे, तब तक मुख्यमंत्री बनने का सपना, एक अफवाह से ज़्यादा नहीं बन पाएगा।

यह मुलाकात एक औपचारिकता है या सुलह की शुरुआत, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन आज की तस्वीर में जो मुस्कान दिखती है, वह किसी भी राजनीतिक गारंटी की गवाही नहीं देती। पायलट के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे खुद को गहलोत की परछाई से कैसे अलग कर पाते हैं। वैसे कांग्रेस के ईमानदार कार्यकर्ताओं के लिए यह तस्वीर तपती लू में बरसी बारिश की तरह हो सकती है

 जिनको लगता था कि पार्टी में संवाद खत्म हो गया है, उनके लिए यह दृश्य एक उम्मीद भी हो सकती है, लेकिन यह उम्मीद किसके लिए है? पायलट के लिए? या गहलोत के लिए? शायद पायलट के समर्थकों को इस तस्वीर में सुकून न मिले, लेकिन गहलोत के समर्थकों को जरूर संतोष मिला होगा। क्योंकि राजनीति में जो दिखाई देता है, उसमें कभी-कभी सबसे ज्यादा धोखा छुपा होता है।


Post a Comment

Previous Post Next Post