कांग्रेस की अंग्रेजी स्कूलों का शिक्षा सच कितना श्याह है?



Ram Gopal Jat

कांग्रेस की अशोक गहलोत वाली पिछली राजस्थान सरकार ने प्रदेश के 3737 हिंदी विद्यालयों का नाम बदलकर अंग्रेजी कर दिया। अब राजस्थान में सरकार बदलने के बाद भाजपा की भजनलाल सरकार ने उनको फिर से हिंदी माध्यम करने का निर्णय लिया है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि चुनाव जीतने के लिए तत्कालीन शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा और सीएम रहे अशोक गहलोत ने राज्य का संसाधन और बच्चा का भविष्य बर्बाद करने का काम किया है। राज्य सरकार ने उन सभी सरकारी विद्यालयों का वापस हिंदी माध्यम किया जाएगा, जिनको कांग्रेस की सरकार ने चुनाव जीतने के लिए अंग्रेजी मीडियम कर दिया था।

दूसरी तरफ इसको लेकर पीसीसी चीफ और तब के शिक्षा मंत्री डोटासरा ने मदन दिलावर को चुनौती देते हुए कहा है, 'एक बार स्कूलों को बदलकर दिखाएं, हम सदन नहीं चलने देंगे, ईंट से ईंट बजा देंगे, पहले की तरह थोड़े ही है जो 20 हजार स्कूलों को बंद करके चले गए और कुछ नहीं हुआ, इस बार सरकार को चैन नहीं लेने देंगे'. अब सवाल यह उठता है कि क्या राज्य सरकार इन स्कूलों को फिर से हिंदी विद्यालय कर सकती है? प्रश्न यह भी उठ रहा है कि आखिर सरकार उनको फिर से हिंदी में क्यों करना चाहती है, जबकि एडमिशन लेने वालों की कतारें लगी हैं?

दरअसल, कांग्रेस सरकार ने राज्य के 3737 विद्यालयों का नाम हिंदी से बदलकर अंग्रेजी कर दिया, इनकी ड्रेस भी बदल दी, लेकिन न तो एक शिक्षक भर्ती किया और न ही किसी स्कूल में संसाधन बढ़ाने का काम किया। अब डोटासरा का कहना है कि यदि स्कूलों को हमने ​टीचर नहीं दिए, संसाधन नहीं दिए तो सरकार शिक्षक भर्ती करे और संसाधन मुहैया करवाएं, बंद नहीं करने देंगे। मजेदार बात यह है कि 3737 के अलावा 1467 स्कूलों को अंग्रेजी करने की प्रक्रिया चल भी रही है। यानी मोटे तौर देखा जाए तो कांग्रेस सरकार चाहती थी कि राज्य के सरकारी विद्यालय बंद हो जाए, मतलब राज्य की हिंदी शिक्षा व्यवस्था बंद हो जाए और केवल अंग्रेजी चले।

अब आप समझने का प्रयास कीजिए! जिस सरकार के उपर हिंदी विद्यालयों को शिक्षक देने, उनमें संसाधन बढ़ाने और विद्यालय भवन निर्माण कर प्रदेश के बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी थी, उस सरकार के मुखिया की 'अंग्रेजी कुंठा' ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को ही चौपट करने की नींव रख दी। हजारों विद्यालयों को अंग्रेजी स्कूल तो बना दिए, लेकिन एक भी शिक्षक भर्ती नहीं किया। ऊपर से डोटासरा शान से कहते हैं कि उन्होंने हिंदी वाले शिक्षकों की लिखित परीक्षा लेकर उनको अंग्रेजी पढ़ाने वाला बना दिया। डोटासरा से कोई पूछे कि क्या एक परीक्षा लेने से ही हिंदी का शिक्षक अंग्रेजी का टीचर बन जाता है? यदि एक परीक्षा ही भाषा ​सिखा सकती है तो फिर 15—20 साल पढाई करने की क्या जरूरत है? क्यों बार बार परीक्षा लेकर शिक्षक भर्ती की जाती है, एक छोटी सी लिखित परीक्षा लें और कर लें शिक्षक भर्ती। उल्लेखनीय बात यह है कि गांधी परिवार अंग्रेजी को ही पसंद करता है, सोनिया गांधी हिंदी में परेशान रहती हैं, जबकि भाजपा हमेशा हिंदी को बढ़ावा देने का काम करती रही है। इसलिए कांग्रेस की गहलोत सरकार ने राज्य के करीब 4 हजार हिंदी विद्यालयों को अंग्रेजी स्कूल्स में बदल डाला।

दूसरी बात, जब 2013 से 2018 की भाजपा सरकार ने एकीकरण के नाम पर राज्य के करीब 22000 स्कूलों को बंद किया था, तब विपक्ष में बैठे खुद डोटासरा ही दावा करते थे कि उनकी सरकार आने पर सभी स्कूलों को फिर से शुरू किया जाएगा, लेकिन पांच साल होटलों और बाड़ों में चली गहलोत की सरकार ने एक भी बंद सरकारी स्कूल को फिर से शुरू करने का काम नहीं किया। आखिर क्या कारण रहा है कि अपने सदन में किए गए अपने वादे को डोटासरा पांच साल में एक बार भी याद नहीं कर पाए, लेकिन जब, अब सरकार चली गई है तो नई सरकार को चुनौती देकर फिर से जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं।

असल में देखा जाए तो बीते 10 साल में हिंदी दुनिया के कई देशों की भाषा बनती जा रही है। कई देशों में हिंदी के पाठ्यक्रम शुरू हो गए हैं। ऐसे में भारत सरकार ने भी अपनी नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं के साथ हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास तेज किया है। किंतु दूसरी ओर 'अंग्रेजी कुंठित' गहलोत और डोटासरा ने राजस्थान में हिंदी को समाप्त करने की नींव रख दी है, जिसको भाजपा सरकार उखाड़ फेंकना चाहती है, तो डोटासरा को तकलीफ हो रही है। इसके पीछे का सच यह है कि सोनिया गांधी को हिंदी आती भी नहीं है और गांधी परिवार को हिंदी पसंद भी नहीं है। उनको खुश करने के लिए गहलोत और डोटासरा ने हिंदी विद्यालयों को बदलकर अंग्रेजी कर दिया, ताकी सोनिया गांधी खुश रहे और उनको पार्टी में चुनौती नहीं मिले।

एक तरफ जहां विश्व भारत की बढ़ती ताकत से परिचित हो रहा है, दुनिया का एक बड़ा जनमानस हिंदी को अपनाने की ओर बढ़ रहा है, तो दूसरी और गहलोत—डोटासरा जैसे लोग भारत में बैठकर ही भारत की मातृभाषा को समाप्त करने का ठेका लेकर बैठे हैं। यदि इन लोगों को लगता है कि अंग्रेजी इतनी ही जरूरी है तो नए स्कूल खोलते, अंग्रेजी माध्यम के नए शिक्षक भर्ती करते, इनकी नीयत सही होती तो स्कूलों में संसाधन बढ़ाते, जिससे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार होता, लेकिन बेहतरीन ढंग से चल रहे सरकारी हिंदी विद्यालयों के नाम बदलकर अपने आकाओं को खुश करने और चुनाव जीतने का विफल प्रयास किया है। 

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