नरेंद्र मोदी की जगह अमित शाह बनेंगे प्रधानमंत्री?



Ram Gopal Jat

लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है और इसमें पक्ष-विपक्ष की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी जहां तीसरे कार्यकाल की तैयारी कर रहे हैं, तो 50 दिन जेल काटकर चुनाव प्रचार की अनुमति से दो जून तक जमानत पर बाहर आए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि पीएम मोदी दो बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं, लेकिन इस बार वो पीएम नहीं बनेंगे, बल्कि अपने खास मित्र अमित​ शाह को पीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। केजरीवाल ने दावा किया है कि मोदी 75 साल के हो जाएंगे और इसके कारण वो पद छोड़कर गृहमंत्री अमित शाह को पीएम बना देंगे। साथ ही यह भी दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद से मोदी-शाह परेशान हैं, 4 जून को चुनाव परिणाम के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को हटा देंगे। केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि मोदी ने शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे, मनोहर लाल खट्टर जैसे नेताओं को घर बिठा दिया है। चुनाव के बाद भाजपा उनके अलावा ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, नवीन पटनायक, सिद्धारमैया, पिनराई विजयन समेत तमाम विपक्षी मुख्यमंत्रियों को जेल में डाल देगी।

केजरीवाल के इन आरोपों पर भाजपा की ओर से खुद गृहमंत्री अमित शाह ने केजरीवाल के इस दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भाजपा के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि 75 साल के होने पर मोदी पीएम नहीं रह सकते। उन्होंने यह भी दावा किया है कि 4 जून को भाजपा के पक्ष में परिणाम आएगा, मोदी तीसरी बार पीएम बन रहे हैं और पूरे पांच साल तक देश का नेतृत्व करेंगे। अमित शाह ने तो यह भी दावा किया है कि केजरीवाल चुनाव जीतने और जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसे उलटे-सीधे बयान दे रहे हैं, जबकि उन्हें 2 जून को फिर से जेल जाना है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में नरेंद्र मोदी 75 साल के होने पर दो साल बाद पीएम की कुर्सी छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने वाले हैं? क्या वाकई में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को हटाया जाएगा और केजरीवाल के आरोपों को सही माना जाए तो क्या मोदी तीसरी बार पीएम बनते ही तमाम विपक्ष दलों के मुख्यमंत्रियों को जेल में डाल देंगे? दरअसल, केजरीवाल द्वारा मोदी के 75 साल के होने पर अमित शाह के पीएम बनने के इस दावे के पीछे खुद भाजपा का अलिखित संविधान है, जो मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद स्वत: ही लागू हो गया है। हालांकि, भाजपा के संविधान में इस तरह का कोई लिखित उल्लेख नहीं है कि कोई भी नेता जब 75 साल का होगा, तब उसको रिटायर होना अनिवार्य है, लेकिन जब 2014 में मोदी सत्ता में आए तो उन्होंने 75 साल से ऊपर के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था। इस लिस्ट में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेताओं को घर बिठा दिया गया था। खुद मोदी ने कहा था कि 75 साल पार करने के बाद भाजपा अपने नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में लेने जा रही है।

2014 के बाद 2019 और इस बार भी भाजपा ने 75 साल से कम उम्र के नेताओं को ही टिकट दिया है, कहीं पर अपवाद को छोड़कर इस मौखिक नियम को लागू किया गया है। करीब दो साल बाद 17 सितंबर 2026 को पीएम मोदी खुद 75 साल के हो जाएंगे। ऐसे में यदि उनका मौखिक नियम लागू किया जाए तो उनको सक्रिय राजनीति से दूर होकर किसी अन्य नेता को मौका देना चाहिए। अमित शाह आज की तारीख में करीब 59 साल के हैं, जबकि मोदी से लगभग 14 साल छोटे हैं। मोदी के मौखिक नियम का सहारा लेकर ही केजरीवाल ने दावा किया है कि पीएम मोदी इस बार खुद के लिए वोट नहीं मांग रहे हैं, बल्कि अपने खास मित्र अमित शाह को 2026 में पीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। यह बात सही है कि भाजपा के अधिसंख्य नेता 75 के बाद रिटायर हो रहे हैं, और भाजपा के तमाम नेता यह बात मानकर चल रहे हैं कि 75 साल के होने के बाद उनको राजनीति से रिटायर होना ही है। शायद यही वजह है कि केजरीवाल ने मोदी को दो साल बाद रिटायर होने और अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने का दावा किया है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में पीएम मोदी दो साल बाद रिटायर हो जाएंगे और अमित शाह को पीएम बनाएंगे? वास्तव में देखा जाए तो मोदी के कथनानुसार उनको भी 75 साल पूरे करते ही स्वत: राजनीति से दूर हो जाना चाहिए। उनको खुद आगे बढ़कर पार्टी को कहना चाहिए कि उनका रिटायर होने का समय आ गया है, इसलिए पीएम पद के लिए नया उम्मीदवार तलाश कर लें, लेकिन जिस तरह से मोदी ने प्रचार को अपने हाथ में ले रखा और 18-20 घंटों तक काम कर रहे हैं, उससे साफ दिखाई दे रहा है कि वो अपना तीसरी कार्यकाल न केवल पूरा करेंगे, बल्कि चौथे कार्यकाल के बारे में भी सोच सकते हैं। आपको याद होगा लालकृष्ण आडवाणी ने 2014 में 87 साल की उम्र में चुनाव लड़ा था, जबकि मोदी की उम्र अभी केवल 73 साल है। इस लिहाज से मोदी 14 साल तक सक्रिय रह सकते हैं। वैसे भी भाजपा में ऐसा कोई संविधान नहीं है कि कोई नेता को 75 साल में जाकर सन्यास लेना ही पड़े। ऐसे में मोदी जब तक सक्रिय रहेंगे, तब तक पीएम बने रह सकते हैं।

दूसरी तरफ अमित शाह की बात की जाए तो बीते 44 साल में एक दिन भी ऐसा नहीं आया, जब उन्होंने पीएम मोदी को क्रॉस करने के बारे में सोचा भी हो। यहां तक कि अमित शाह नरेंद्र मोदी से पहले विधायक बन गये थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मोदी से आगे बढ़ने के बारे में कल्पना नहीं की। उम्र में भले ही मोदी से 14 साल छोटे हों, लेकिन गुजरात के गृहमंत्री से लेकर देश के गृहमंत्री तक रह चुके अमित शाह आज भी खुद को मोदी का फॉलोवर ही प्रस्तुत करते हैं। जिस पोजीशन में अमित शाह हैं, वहां आकर कोई भी नेता आगे बढ़कर पीएम बनने की सोच सकता है, लेकिन अमित शाह ने कभी भी कल्पना नहीं की है कि मोदी के होते हुए वो पीएम बन सकते हैं। इसलिए भले ही मोदी के मन में कभी अमित शाह को पीएम बनाने की बात नहीं आई। केजरीवाल ने मोदी की तीसरी लहर का अंदाजा अच्छे से लगा लिया है। 
उनको पता है कि मोदी के नाम पर तीसरी बार देश भाजपा को सत्ता की दहलीज पर ले जा रहा है। ऐसे में लोगों को यह विश्वास दिलाना है कि जो वोट आपसे मोदी के नाम पर मांगे जा रहे हैं, वास्तव में वो अमित शाह को पीएम बनाने के लिए काम आएंगे। आपको पता है जितना बड़ा कद और विश्वास मोदी का है, अमित शाह का उतना नहीं है, ऐसे में अमित शाह के नाम पर भाजपा को संभवत: उतना समर्थन नहीं दे, जितना मोदी के नाम पर देती है, जिसके कारण कन्फ्यूजन पैदा होगा और भाजपा का वोट कम होगा। यही कारण है कि केजरीवाल ने मोदी की जगह अमित​ शाह को पीएम बनाने का शिगूफा छेड़ा है।

केजरीवाल द्वारा दूसरा दावा लोकसभा चुनाव बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को हटाने का किया गया है। आपको याद होगा 2022 को यूपी चुनाव, जब मतदान से कुछ समय पहले इसी तरह की अफवाह उड़ी थी कि योगी को हटाया जा सकता है, लेकिन हकीकत में ऐसा कभी नहीं हुआ। अब केजरीवाल द्वारा एक बार फिर से वही शिगूफा छोड़ा गया है। असल में इसके पीछे का कारण यह है कि यूपी समेत कई राज्यों में राजपूत मतदाता बड़ी संख्या में हैं, जो भाजपा को वोट करते हैं। यूपी में योगी को वैसे तो सभी जातियां पसंद करती हैं, लेकिन विपक्ष का मानना है क राजपूत समाज योगी हो हटाने की खबर पर भाजपा से नाराज हो सकता है। विपक्ष को पता है कि यदि राजपूतों का 2-4 फीसदी वोट भी भाजपा से छिटका तो बहुत नुकसान होगा। इसलिए बिना आधार के यह अफवाह फैलाई जा रही है कि आम चुनाव के बाद योगी को हटा दिया जाएगा।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई में योगी को हटाया जा सकता है? देखा जाए तो देश में योगी भाजपा के तीसरे सबसे ताकतवर नेता हैं। जितनी मजबूत स्थिति में योगी हैं, उतने पॉवर में दूसरा कोई भी सीएम नहीं है। नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह का नंबर आता है और उसके बाद राजनाथ सिंह को माना जाता है, लेकिन राजनाथ सिंह भी योगी आदित्यनाथ जितने पॉवरफुल नहीं हैं। जनता की डिमांड के अनुसार यदि आकलन किया जाए तो मोदी के बाद योगी ही आते हैं। देश का सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश है, और उसके सीएम कितना पावरफुल हो सकता है, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। 

ह बात भी सही है कि जब 2017 में यूपी का सीएम बनने की बारी आई थी, तब काफी खींचतान चली थी। तब योगी को भाजपा ने मजबूरी में सीएम बनाया था और माना जा रहा था कि एक भगवाधारी कितने दिन सरकार चला पाएगा, आखिर शासन व्यवस्था विफल होगी और उसके कारण उनको हटाया जा सकेगा, लेकिन योगी ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को बदलकर रख दिया, बल्कि विकास के नए आयाम स्थापित करने का काम किया है, जिसके दम पर यूपी की जनता ने 2022 में उनको फिर से बहुमत के साथ चुना। यूपी में योगी की सरकार बने करीब सवा साल हो चुकी है। इस दौरान योगी ने कई ऐतिहासिक काम किए हैं, जिसके कारण उनके कद में वृद्धि हुई है।

यह बात सही है कि मोदी अपने बाद अमित शाह को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं, लेकिन जिस गति से योगी का कद बढ़ा है, उसके कारण मोदी की चिंता जायज है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि देश के किसी राज्य में भाजपा का ऐसा कोई सीएम नहीं है, जो अमित शाह का या मोदी को किसी भी तरह की चुनौती दे सके, लेकिन योगी के बढ़ते कद से साबित होता है कि जब मोदी पीएम की कुर्सी छोड़ेंगे, तब देश में अमित शाह से ज्यादा योगी को पीएम बनाने की आवाज आएगी। इस बात का अंदाजा खुद मोदी और अमित शाह को भी है। 

हालांकि, अभी तक योगी ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसके कारण यह लगे कि उनको अमित शाह से पहले पीएम बनने की जल्दबाजी है, लेकिन जिस तेजी से योगी ने अपने काम के दम पर लोगों के दिलों में जगह बनाई, उससे एक बात जरूर साबित होती है जिस तरह से 2017 में विधायकों की संख्या बल अधिक होने के कारण सीएम बने थे, ठीक वैसे ही यदि मोदी के बाद पीएम कैंडिडेट का चुनाव होगा तो भाजपा के सामने बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। तब देश की जनता द्वारा अमित शाह से अधिक योगी आदित्यनाथ को पसंद किया जा सकता है।

यही वजह है कि पीएम मोदी भी अपने खास मित्र को अपने पावर में रहते ही पीएम बनाने का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास शुरू कर दिया होगा। पीएम मोदी का 75 साल बाद रिटायर होना और उनकी अमित शाह से घनिष्ठता ही सबसे बड़ा प्रमाण है कि उनके रिटायर होने की स्थिति में अमित शाह को उत्तराधिकारी बनाया जाए। वैसे भी अमित शाह में वो सब गुण हैं, जो मोदी में हैं। 

दोनों में अंतर केवल इतना ही है कि मोदी जब रैलियों में भाषण देते हैं, तब जनता से कनेक्ट जल्दी हो जाते हैं, जबकि अमित शाह इतना लच्छेदार भाषण नहीं दे पाते, लेकिन चाहे संसद में जवाब देना हो या फिर मीडिया के सामने जवाब देना है, हर जगह पर अमित शाह नरेंद्र मोदी पर भारी ही पड़ते हैं। उम्र के लिहाज और काम के दम पर मोदी के द्वारा अमित शाह को उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है। इस बात का फैसला समय करेगा कि अमित शाह पीएम बनेंगे या योगी आदित्यनाथ, लेकिन इतना तय है कि केजरीवाल ने इस मुद्दे को छेड़कर भाजपा के भीतर एक बारगी हलचल जरूरी पैदा कर दी है।

दूसरा आरोप लगाया है कि आम चुनाव के बाद यदि मोदी की सरकार बनी तो उनके साथ ही सभी विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को मोदी सरकार जेल में डाल देगी। सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में ऐसा किया जा सकता है? वर्तमान में झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन जेल में हैं। उनके ऊपर सरकारी जमीन घोटाले का आरोप है। जेल जाने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, जबकि केजरीवाल पर शराब नीति बनाने के दौरान अपनों को करोड़ों रुपयों के हेरफेर करने का आरोप है। केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार करने के लिए 2 जून तक जमानत दी है। 

दो जून को उन्हें फिर से सरेंडर होना है। इसके अलावा केजरीवाल ने ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, सिद्धारमैया, पिनराई विजयन, नवीन पटनायक समेत तमाम विपक्षी दलों के सीएम को जेल में डालने का दावा किया है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत में न्यायपालिका नहीं है, जो कोई भी उठाकर किसी भी नेता को जेल में डाल देगा? दूसरी बात यह है कि किसी सीएम या मंत्री को गिरफ्तार करने से पहले पूरी संवैधानिक प्रक्रिया से गुजरना होता है, यानी गैर कानूनी तरीके से नहीं पकड़ा जा सकता है।

किसी भी सीएम को पकड़ने से पहले उसके खिलाफ इतने पुख्ता सबूत होने चाहिए, जो कोर्ट में गिरफ्तारी को जस्टिफाई कर सकें। केंद्र में भले किसी की सरकार हो, लेकिन बिना सबूत के किसी सीएम को अरेस्ट नहीं किया जा सकता है। दरअसल, अभी चुनाव चल रहे हैं, और इस दौरान विपक्षी दलों को कमजोर करने और उनके खिलाफ हवा बनाने के लिए राजनीति में नेता ऐसे भाषण देते रहते हैं, जिससे एक नैरेटिव बनाया जा सके। 

इस तरह के एजेंडे से जनता को गुमराह करने का प्रयास किया जाता है, ताकि लोग सरकार से डर जाए और विपक्ष को वोट देने लगें। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि केजरीवाल द्वारा लगाए गए सभी आरोप निराधार और केवल वोट पाने का तरीका मात्र हैं, इन आरोपों में किसी तरह की न तो सच्चाई और न ही इनका कोई आधार है। 

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