राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही स्थायी शत्रु, लेकिन कुछ रिश्ते इतने गहरे जख्म छोड़ जाते हैं कि उनकी मरहम—पट्टी महज़ औपचारिकता लगती है। राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अदावत ऐसी ही एक कहानी है। एक ऐसी लड़ाई, जिसने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया, और आज जब वही दो चेहरे एक ही फ्रेम में नजर आते हैं, तो सवाल उठता है। क्या यह वास्तविक मेल है या सिर्फ एक मंचीय दिखावा बनने वाला है?
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. राजेश पायलट की पुण्यतिथि के बहाने हुई मुलाकात ने सियासी हलकों में नई चर्चा को जन्म दिया है। सचिन पायलट खुद अशोक गहलोत के साथ एक्स पर तस्वीर साझा करते हैं, जबकि 13 जुलाई 2020 की तारीख आज भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के जेहन में ताजा है, जब मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत ने उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से सचिन को हटाकर उन्हें ‘नाकारा, निकम्मा और गद्दार’ कह डाला था।
गहलोत की इन टिप्पणियों ने उस समय राजनीतिक मर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ दी थीं। और अब पायलट द्वारा उन्हीं गहलोत के घर जाकर आमंत्रण देना कई संकेतों और सवालों को जन्म देता है। क्या यह मुलाकात 2028 की रणनीति का हिस्सा है? कहा जा रहा है कि सचिन पायलट अब उस दौर में पहुंच गए हैं, जहां उन्हें सत्ता का सपना फिर से साकार करने के लिए रिश्तों की गांठ बांधनी पड़ रही है।
वो न केवल गहलोत से, बल्कि उन तमाम नेताओं से संवाद की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने उनके रास्ते में कभी कांटे बोए थे। उनकी यह पहल राजनीतिक दृष्टि से व्यावहारिक हो सकती है, लेकिन इसकी सफलता संदेह के घेरे में है। क्योंकि गहलोत वो शख्स हैं, जो अपनी ही पार्टी के भीतर किसी को उगते सूरज की तरह नहीं देख सकते।
गहलोत का पूरा राजनीतिक जीवन इस बात की मिसाल है कि वह अपने विरोधियों को या तो खत्म कर देते हैं, या उन्हें हाशिये पर धकेल देते हैं। चाहे वह दिवंगत नेता परसराम मदेरणा, महिपाल मदेरणा, शीशराम ओला हों, अस्पताल में मौत से जूझ रहे पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी हों, सचिन पायलट हों या फिर महेश जोशी जैसे करीबी ही क्यों न हों, गहलोत की रणनीति हमेशा एक समान रही है।
सत्ता अपने पास और बाकियों की संभावनाओं को जड़ से खत्म करो। 25 सितंबर 2022 को जब कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की तैयारी की, तो उन्होंने केवल इस डर से उस पद को ठुकरा दिया कि कहीं पायलट मुख्यमंत्री न बन जाएं। यह घटना बताती है कि गहलोत सत्ता के इतने लोभी हैं कि वे पार्टी हाईकमान तक के आदेशों को ठुकरा सकते हैं, लेकिन पायलट को मुख्यमंत्री बनते हुए नहीं देख सकते।
ऐसे में अगर आज सचिन पायलट यह सोचते हैं कि गहलोत से संबंध सुधारकर वो 2028 में मुख्यमंत्री पद तक पहुंच सकते हैं, तो यह मासूमियत से ज्यादा एक भ्रम हो सकता है। राजनीति में चालें चलने वाले खिलाड़ी भूलने का दिखावा तो कर सकते हैं, लेकिन माफ नहीं करते, और गहलोत तो माफ करने वालों की कतार में कभी रहे ही नहीं।
वास्तविकता यह भी है कि आज राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता वापसी की उम्मीद में तिरंगा यात्रा निकाल रही है, लेकिन जनता की नजर में वो अब भी तीन या चार जगह विभाजित है। पायलट की यह पहल अगर गहलोत से सामंजस्य बैठाने की कोशिश है, तो इसका असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर कैसा पड़ेगा, यह विचारणीय है।
जिन युवाओं ने पायलट को गहलोत के खिलाफ एक 'बदलाव' के प्रतीक के रूप में देखा, उनके लिए यह तस्वीर गहरी निराशा का कारण बन सकती है। खुद पायलट ने मई 2022 में अपनी 125 किलोमीटर लंबी यात्रा के बाद कहा था कि वो कभी माफ नहीं करेंगे, कभी नहीं रुकेंगे, और कभी नहीं झुकेंगे, लेकिन यह तस्वीर इन दावों से बिलकुल उलट है। पिछले 7—8 सालों में पायलट ने गहलोत से बहुत कुछ सीखा है, लेकिन वो शायद गहलोत का 'अमर संवाद' भूल जाते हैं, 'राजनीति में जो होता है, वो दिखता नहीं और जो दिखता है, वो होता नहीं।'
राजनीतिक परिपक्वता और निजी महत्वाकांक्षा के बीच संतुलन साधना आसान नहीं होता। अगर सचिन पायलट यह समझते हैं कि गहलोत के साथ बेहतर संबंध उन्हें सत्ता की सीढ़ी चढ़ने में मदद करेंगे, तो शायद वे गहलोत की राजनीति को अब भी ठीक से समझ नहीं पाए हैं। गहलोत न तो समझौतावादी हैं और न ही किसी को अपना उत्तराधिकारी मानने को तैयार हैं।
यह मुलाकात एक औपचारिकता है या सुलह की शुरुआत, यह तो समय बताएगा। लेकिन आज की तस्वीर में जो मुस्कान दिखती है, वह भविष्य की गारंटी नहीं है। सचिन पायलट के लिए अगली चुनौती यह नहीं है कि वे गहलोत से कैसे मिलते हैं, बल्कि यह है कि वे खुद को उनके साये से कैसे अलग कर पाते हैं। क्योंकि पायलट जब तक गहलोत के आगे सर झुकाते रहेंगे, तब तक ‘मुख्यमंत्री बनने का सपना’ महज एक राजनीतिक अफवाह बना रहेगा, हकीकत कभी नहीं बन पाएगा।
वैसे टुकड़ों में बंटी कांग्रेस के ईमानदार कार्यकर्ताओं के लिए यह तस्वीर तपती लू में जोरदार मानसून के समान है। यूं मान लीजिए कि सूरज की आग से तपती धरती पर बरसात की बूंदें गिरती हैं, तो उसको शीतल कर देती है। दोनों नेताओं की इस तस्वीर को देखकर पायलट के समर्थक कितने खुश होंगे, ये तो पता नहीं, लेकिन इतना पक्का है कि गहलोत के समर्थक आज बेहद प्रसन्न होंगे।
Post a Comment