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म्यांमार में ULFA ठिकानों पर ड्रोन हमला: भारत की रणनीति का बदलता चेहरा


म्यांमार की सीमा से सटे इलाकों में फिर हलचल है। खबरों के मुताबिक, म्यांमार में स्थित उग्रवादी संगठन उल्फा (ULFA - यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) के ठिकानों पर हाल ही में ड्रोन हमले किए गए हैं। ये हमले भारत की पूर्वोत्तर नीति, आंतरिक सुरक्षा और सीमापार रणनीति के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इस घटना ने उन दो बड़े सैन्य अभियानों की याद ताज़ा कर दी है, जब भारत ने अपने हितों की रक्षा के लिए सीमापार जाकर सर्जिकल कार्रवाई की थी—2015 का म्यांमार ऑपरेशन और 2019 का बालाकोट एयर स्ट्राइक।

ULFA: एक पुरानी चुनौती, नया तरीका

ULFA की स्थापना 1979 में हुई थी और तब से ही यह संगठन असम में अलगाववाद की आग को हवा देता रहा है। समय के साथ संगठन कमजोर तो पड़ा है, लेकिन इसके उग्रवादी गुट, विशेषकर ULFA (Independent), अब भी म्यांमार के घने जंगलों में सक्रिय हैं और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। इन हमलों से एक बात तो स्पष्ट होती है—भारत अब सिर्फ डिफेंसिव नहीं, बल्कि प्रो-एक्टिव रणनीति पर काम कर रहा है। अब हमला तभी नहीं किया जाएगा जब दुश्मन सीमा में घुस आए, बल्कि जब वह सीमा पार बैठकर खतरा पैदा करे।

2015: म्यांमार ऑपरेशन की पृष्ठभूमि

4 जून 2015 को मणिपुर में उग्रवादियों के एक घातक हमले में भारतीय सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे। इसके महज चार दिन बाद, भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा पार कर NSCN-K और अन्य उग्रवादी समूहों पर हमला किया। इस ऑपरेशन ने यह संदेश दे दिया था कि भारत अब अपने सैनिकों की शहादत को अनुत्तरित नहीं छोड़ेगा।हालांकि उस समय ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल नहीं हुआ था, लेकिन यह पहली बार था जब भारत ने खुलेआम सीमापार कार्रवाई को स्वीकारा।

2019: बालाकोट एयरस्ट्राइक की गूंज

14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में 40 CRPF जवान शहीद हो गए। इसका जवाब भारत ने 26 फरवरी को दिया, जब वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला किया। यह कार्रवाई भले पाकिस्तान में हुई, लेकिन इसका संदेश पूरी दुनिया को गया—भारत अब ‘न्यू इंडिया’ है, जो हर मोर्चे पर सक्षम और तत्पर है।

अब ड्रोन से कार्रवाई: नई तकनीक, नया भारत

इस बार की कार्रवाई में सबसे उल्लेखनीय पहलू है—ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल। माना जा रहा है कि यह हमला भारतीय सेना या खुफिया एजेंसियों द्वारा किया गया, जिसमें सटीक जानकारी और लक्ष्य निर्धारण के साथ अत्यधिक सटीक ड्रोन स्ट्राइक्स की गईं। ड्रोन तकनीक की यह तैनाती दर्शाती है कि भारत अब पारंपरिक सैन्य अभियानों के बजाय “लागत कम, असर ज़्यादा” वाली नीति पर चल रहा है।

म्यांमार की भूमिका और भारत की कूटनीति

म्यांमार की स्थिति भी इन अभियानों में अहम भूमिका निभाती है। वहां की सेना (Tatmadaw) कभी-कभी भारत का सहयोग करती है, लेकिन वहां के आंतरिक राजनीतिक संकट और सैन्य शासन की चुनौतियां भारत की नीति को जटिल बनाती हैं। हालांकि, यह साफ है कि भारत अपनी सुरक्षा को लेकर किसी के भरोसे नहीं बैठा है।

रणनीतिक संदेश और भविष्य की झलक

यह हमला एक सीधा संदेश है—भारत अब अपने दुश्मनों को उनकी “सेफ हैवन” में भी सुरक्षित नहीं रहने देगा। यह कार्रवाई पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा व्यवस्था को और मज़बूत करेगी। इससे अन्य उग्रवादी संगठनों में भी डर का माहौल बनेगा। भारत की तकनीकी क्षमता और खुफिया नेटवर्क की मजबूती का प्रदर्शन भी हुआ है।

ULFA जैसे संगठनों की गतिविधियाँ केवल असम ही नहीं, पूरे भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देती हैं। ऐसे में सीमापार जाकर किए गए ये सर्जिकल और ड्रोन हमले दिखाते हैं कि भारत अब सिर्फ चेतावनी नहीं देता—कार्रवाई करता है। यह ऑपरेशन, चाहे आधिकारिक रूप से स्वीकार किया जाए या नहीं, एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अब ‘नई नीति, नई तकनीक और नया आत्मविश्वास’ लेकर आगे बढ़ रहा है। आप क्या सोचते हैं? क्या भारत को ऐसी सीमापार रणनीति को और आगे बढ़ाना चाहिए? अपने विचार नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें।

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