जोधपुर की जहरीली नदी, जहां जीव सभ्यता खत्म होने की कगार पर है!

गर्मी का समय है और इस वक्त पश्चिमी राजस्थान का पूरा इलाका लू की चपेट में है। यहां के करीब आधा दर्जन जिलों में कई महीनों तक लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। मार्च से शुरू होने वाली गर्मी अगले चार महीनों तक पाकिस्तान से सटे जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर जिलों के साथ ही नागौर, पाली, बालोतरा से लेकर अजमेर होते हुए जयपुर तक भयंकर लू जन जीवन अस्त-व्यस्त कर देती है। जहां पानी की मात्रा ठीक-ठाक होती है, वहां लू का असर थोड़ा कम होता है, बाकी इलाकों में बहुत बुरे हालात होते हैं। 

लोग कई किलोमीटर से पानी का इंतजाम करते हैं, तब कहीं जीवन यापन होता है। कुल मिलाकर पानी के बिना जीवन में कुछ भी नहीं है, लेकिन इसी रेगिस्तान में कुछ जगह ऐसी भी है, जहां पानी ही आम आदमी का जीवन नरक बना दिया है। जोधपुर के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों का दर्द इसी तरह का है। नागौर से निकलकर जोधपुर में बहने वाली जोजरी नदी का पानी हजारों लोगों के लिए नारकीय जीवन बना रहा है। 

जोजरी के गंदे पानी के कारण भयानक सड़ांध, असहनीय मच्छरों की मार, बंजर होती धरती, प्रकृति को निगलता दुषित पानी और इसी जहरीले पानी को पीने के कारण तिल-तिलकर मरते वन्यजीव आपके अंदर हाहाकार मचा देंगे। प्रभावित लोगों की तमाम गुहार के बाद भी शासन, प्रशासन का निकम्मापन और सरकार की अनदेखी ने लोगों का जीवन नरक बना दिया है।

सरकार में बैठे मंत्री, विधायक, कलेक्टर, इंडस्ट्री के उद्योगपति के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन धरातल पर लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है, लोग अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पलायन करने को मजबूर हैं, जबकि सरकार अपने दावे कर रही है। ये दृश्य आपके मन को विचलित कर सकते हैं। मासूम बच्ची का चेहरा देखिये, क्या ऐसा चेहरा किसी अधिकारी, विधायक या मंत्री अथवा मुख्यमंत्री की संतानों का हो सकता है? लेकिन लोकतांत्रिक देश में जिस आम आदमी के वोट से विधायक और मंत्री, मुख्यमंत्री बनते हैं, उनके बच्चे इस नरकीय हालात में जी रहे हैं। 

आज से चार साल पहले केंद्र सरकार ने जोधपुर में 400 करोड़ लागत के जोजरी रिवर फ्रंट को क्लीन गंगा में शामिल कर स्वच्छ करने का दावा किया था। तत्कालीन केंद्रीय जलशक्ति मंत्री और स्थानीय के सांसद गजेंद्रसिंह शेखावत ने भी दावा किया था कि जोधपुर के इस बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट को महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट क्लीन गंगा में शामिल कर लिया है।

सरकार ने कहा था कि सालावास से बनाड़ तक कुल 31 किमी लंबी रिवर फ्रंट के डवलपमेंट के लिए केंद्र सरकार 500 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान कर रही है। लोगों को सब्जबाग दिखाया गया कि 31 किमी लंबे रिवर फ्रंट के दोनों किनारों पर कंक्रीट बिछाकर उसे टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर विकसित करने की योजना है।

इसके लिए सालावास से बनाड़ तक नदी में 38.5 मीटर चौड़ाई के 8 चैनल बनाने थे। इसके लिए 19,982 वर्गमीटर जमीन अधिग्रहित करना भी शामिल था। रिवर फ्रंट के चैनल में पानी रखने के लिए 150 एमएलडी पानी की जरूरत बताई गई। सरकार ने दावा किया कि चार साल पहले तक तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से 120 एमएलडी उपचारित पानी जोजरी में छोड़ा जा रहा था। ऐसे में 30 एमएलडी अतिरिक्त पानी की जरुरत थी। इसके लिए 49 एमएलडी उपचारित पानी के लिए 6 एसटीपी बनाने प्रोजेक्टर का हिस्सा थे। रिवर फ्रंट के दोनाें ओर ग्रीन स्पेस, एम्यूजमेंट पार्क, कैफेटेरिया व अन्य सुविधाएं भी विकसित करने का दावा किया गया।

जोजरी नदी का उद्गम राजस्थान में नागौर जिले के पुन्दलू गांव की पहाड़ियों होता है। यह नदी जोधपुर से बहते हुए दक्षिण-पश्चिम में बालोतरा में प्रवेश करती है और फिर मजल धूधाड़ा के पास लूनी नदी में मिल जाती है। इस नदी के लम्बाई 150 किलोमीटर है। लूनी की सहायक नदियों में यह सबसे लम्बी नदी है। लूनी नदी के पश्चिम की ओर चलने वाली जोजरी नदी प्राचीन सरस्वती नदी की एक धारा है। इसके क्षेत्र में आज भी धवा-कल्याणपुर सहित अन्य स्थानों पर बड़े कोल्हू यह प्रमाणित करते हैं कि सरस्वती कालीन इस नदी के किनारे प्राचीन काल में गन्ना, चावल और कपास की खेती होती थी।

जोजडी नदी के किनारे 31 किमी लंबी वाटर फ्रंट पर्यटन स्थल विकसित करने की योजना जोधपुर शहर के पास सालावास से बनाड़ के मध्य प्रस्तावित है, लेकिन अब नदी में केवल जोधपुर की फैक्ट्रियों का दूषित पानी आता है, जिसने इसके आगे आने वाले गांव धवा, डोली और असपास के करीब 30 गावों के हजारों लोगों का जीवन तहस-नहस कर दिया है! जोधपुर इंडस्ट्री एसोशिएशन का दावा है जिले में करीब सवा 400 रजिस्ट्रड फैक्ट्रियां हैं, उनका गंदा पानी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में जाता है। 

वहां दुषित पानी को ट्रीट किया जाता है, और फिर जोजरी नदी में छोड़ा जाता है। इसके अलावा करीब 300 से ज्यादा ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो Registered नहीं हैं। इन कारखानों से निकला दुषित पानी बिना ट्रीट किये नदी में डाला जाता है। परिणाम यह होता है कि नदी का पानी दुषित हो जाता है। जबकि हकीकत यह है कि सीईटीपी कैपेसिटी कम होने के कारण Registered कारखानों का दुषित पानी भी नदी में जा रहा है। 

यह पानी करीब 30 गावों से होकर गुजर रहा है, जहां पर गंदगी का आलम यह है कि पास खड़े रहने पर केवल तेजाब की बदबू आती है। नदी किनारे घास तक जल चुकी है, पेड़ पौधे सूखकर गिर चुके हैं। नदी का पानी पीने वाले मवैशी पानी पीकर मर रहे हैं। यहां कि भूमि बंजर हो गई है। यहां के जैव विविधता के लिए बेहद जरूरी वन्यजीव भी विलुप्त होने की कगार पर हैं। बीते कुछ बरसों में यहां पर 4 हजार से अधिक चीतल अकाल मौत के शिकार हो चुके हैं, नीलगायों की लगातार मौत हो रही है। काला, बदबूदार जहरीला पानी पीने पशुओं का जीवन समाप्त हो रहा है। तड़प-तड़प कर मरते बेजुबान जानवरों की पुकार कोई सुनने को तैयार नहीं है। स्थानीय लोगों के घरों में पानी भर जाता है, दीवारें फट रही हैं, रास्ते बंद हो रहे हैं। गंदे पानी के कारण यहां पर मच्छरों बसेरा है। 

रात तो छोड़ ही दीजिये, मच्छरों ने दिन में भी लोगों का चैन छीन लिया है। लोगों की शादियां होनी मुश्किल होने लगी हैं। नन्हें बच्चों से लेकर वृद्धों और महिलाओं को बीमारियों ने जकड़ लिया है। शासन, प्रशासन से गुहार लगाकर लोग थक चुके हैं, लेकिन कोई भी उनकी सुनने को तैयार नहीं है। प्रशासन के आगे अपनी पीड़ा जाहिर करने वाले लोगों को जोजरी नदी में जहरीला पानी छोड़ने वाले कारखानों के मालिक डराने का काम करते हैं। ऐसे हालात में मजबूरन लोग अपने घर छोड़कर दूसरी जगह पलायन कर रहे हैं।

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