सरकार के वादों और योजनाओं के बावजूद 30 गांवों में बदहाल जनजीवन, मवेशी-मासूम तक नहीं सुरक्षित, लू की मार और दूषित पानी का कहर
गर्मी की भयावहता में झुलस रहे पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर, पाली और बालोतरा जिलों के लोगों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक ओर लू की तपिश जानलेवा बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर जोधपुर के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में बहती जोजरी नदी का जहरीला पानी लोगों के जीवन को नरक बना रहा है।
गर्मी में पानी की किल्लत और जोजरी की त्रासदी
जहां रेगिस्तान में लोग कई किलोमीटर दूर से पीने के लिए पानी जुटाते हैं, वहीं जोजरी नदी का गंदा पानी उनके जीवन को और भी मुश्किल बना रहा है। नदी से उठती सड़ांध, मच्छरों का आतंक और जहरीले पानी के कारण फैलती बीमारियां – यह सब क्षेत्र के 30 से अधिक गांवों को बर्बादी के कगार पर पहुंचा चुका है।
सरकारी दावे और ज़मीनी सच्चाई
4 साल पहले आया था ‘जोजरी रिवर फ्रंट’ का सपना
साल 2021 में केंद्र सरकार ने जोधपुर की जोजरी नदी को “नमामि गंगे” मिशन में शामिल कर 500 करोड़ की लागत से सालावास से बनाड़ तक 31 किलोमीटर लंबे रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट का वादा किया था। नदी के दोनों किनारों पर पर्यटन स्थल, एम्यूजमेंट पार्क, ग्रीन बेल्ट और कैफेटेरिया जैसी योजनाएं कागज़ों तक सीमित रह गईं।
तथ्यों का बॉक्स] जोजरी नदी: एक नज़र में
बिंदु |
विवरण |
उद्गम स्थल |
पुन्दलू गांव, नागौर |
लंबाई |
लगभग 150 किलोमीटर |
मिलन बिंदु |
लूनी नदी के पास मजल धूधाड़ा |
फैक्ट्रियों की संख्या |
400+ रजिस्टर्ड, 300+ अनरजिस्टर्ड |
प्रमुख समस्या |
दूषित पानी, मच्छर, बदबू, बंजर भूमि |
प्रभावित क्षेत्र |
धवा, डोली समेत 30+ गांव |
जोजरी की बर्बादी के जिम्मेदार कौन?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार रजिस्टर्ड फैक्ट्रियां पानी को ट्रीट कर नदी में छोड़ती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता कम होने से ट्रीटेड और अनट्रीटेड दोनों तरह का पानी सीधे नदी में जा रहा है। वहीं, अनरजिस्टर्ड फैक्ट्रियां बगैर किसी ट्रीटमेंट के जहरीला कचरा नदी में बहा रही हैं।
पशु, पेड़ और पर्यावरण सब तबाह
नदी किनारे की जमीन बंजर हो गई है, मवेशी जहरीला पानी पीकर मर रहे हैं, 4,000 से अधिक चीतलों की मौत हो चुकी है। नीलगायों की संख्या में भारी गिरावट आई है। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में त्वचा, पेट और सांस की गंभीर बीमारियां फैल रही हैं।
इनका क्या कहना है?
“हमने हर स्तर पर शिकायत की, मगर प्रशासन सुनने को तैयार नहीं। अब लोग गांव छोड़कर पलायन करने लगे हैं।”
— धवा गांव के निवासी लक्ष्मणराम
“मच्छर दिन में भी जीने नहीं देते। कई घरों में पानी घुस चुका है, दीवारें फट रही हैं।”
— डोली गांव की महिला सरोज देवी
क्या सरकार सिर्फ वादे करती रहेगी?
केंद्र और राज्य सरकारों ने जनता को बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि नदी का पानी और अधिक जहरीला होता जा रहा है। स्थानीय विधायक और मंत्री मौके पर तो जाते हैं, मगर समाधान की कोई ठोस पहल नहीं हो रही।
निष्कर्ष: कब सुधरेगा हालात का रूख?
रेगिस्तान की भूमि, जहां कभी सरस्वती काल में खेती होती थी, आज उसी भूमि पर न पानी पीने लायक है, न हवा सांस लेने लायक। जोजरी को साफ करने के दावे कब पूरे होंगे, यह सवाल अब सिर्फ पत्रकारिता का नहीं, बल्कि इंसानियत का है।
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