जयपुर, राजस्थान की राजधानी, अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन जब बात होती है शहर के बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं की, तो तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। द्रव्यवती नदी परियोजना इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो सरकारों की अदूरदर्शिता और राजनीतिक अस्थिरता के कारण अपने उद्देश्य से भटक गई।
साल 2015 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने अमानीशाह नाले को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से द्रव्यवती नदी परियोजना की शुरुआत की। इस परियोजना का उद्देश्य 47.5 किमी लंबी नदी को साफ-सुथरा और सुंदर बनाना था, जिससे यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लाभकारी हो, बल्कि शहरवासियों के लिए एक आकर्षक स्थल भी बने। परियोजना की कुल लागत 1,676 करोड़ रुपये थी, जिसमें 1,470 करोड़ रुपये निर्माण कार्य के लिए और 206 करोड़ रुपये 10 वर्षों के रखरखाव के लिए निर्धारित किए गए थे।
परियोजना के तहत 5 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए गए, जिनकी कुल क्षमता 170 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) थी। इनमें बसी सीतारामपुरा (20 एमएलडी), देवड़ी (15 एमएलडी), सांगानेर (100 एमएलडी), बंबाला (25 एमएलडी) और गोनेर (10 एमएलडी) शामिल हैं।
हालांकि, 2018 में सरकार बदलने के बाद, परियोजना की गति धीमी पड़ गई। नए प्रशासन ने परियोजना की प्राथमिकता को कम कर दिया, जिससे रखरखाव और संचालन में समस्याएँ उत्पन्न हुईं। टाटा प्रोजेक्ट्स और जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) के बीच वित्तीय विवादों के कारण परियोजना का रखरखाव प्रभावित हुआ, और नदी पुनः गंदगी और दुर्गंध का स्रोत बन गई।
राजस्थान में राजनीतिक सत्ता के परिवर्तन का सीधा प्रभाव विकास परियोजनाओं पर पड़ा है। द्रव्यवती नदी परियोजना के अलावा, बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) और रिंग रोड जैसी परियोजनाएँ भी राजनीतिक अस्थिरता की भेंट चढ़ गईं।
बीआरटीएस परियोजना, जो शहर में सार्वजनिक परिवहन को सुदृढ़ करने के लिए शुरू की गई थी, को हाल ही में रद्द कर दिया गया। इसके स्थान पर 12,000 करोड़ रुपये की लागत से मेट्रो लाइन 2 की योजना बनाई गई है, जो सिटापुरा से अंबाबाड़ी और विद्याधर नगर तक जाएगी।
रिंग रोड परियोजना, जो 2000 में प्रस्तावित की गई थी, का पहला चरण 2018 में पूरा हुआ। इसके बाद से परियोजना में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, जिससे शहर की यातायात व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। द्रव्यवती नदी परियोजना का उद्देश्य न केवल नदी को पुनर्जीवित करना था, बल्कि इसके माध्यम से भूजल स्तर को भी सुधारना था।
हालांकि, नदी के किनारों को सीमेंटेड करने और प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित करने से भूजल पुनर्भरण में कमी आई है, जिससे शहर में में आसपास के क्षेत्र में जल संकट गहरा गया है।
इसके अतिरिक्त, परियोजना के तहत विकसित किए गए पार्क, साइकिल ट्रैक और अन्य सुविधाएँ भी उचित रखरखाव के अभाव में उपेक्षित हो गई हैं, जिससे जनता को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकारों को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर विकास परियोजनाओं को निरंतरता प्रदान करनी चाहिए।
परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक रखरखाव योजनाएँ बनानी चाहिए, जिससे उनकी स्थायित्व सुनिश्चित हो सके। स्थानीय समुदायों को परियोजनाओं में शामिल करना चाहिए, जिससे उनकी सक्रिय भागीदारी से परियोजनाओं की सफलता सुनिश्चित हो सके। परियोजनाओं की प्रगति और खर्चों की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे जनता का विश्वास बना रहे।
द्रव्यवती नदी परियोजना जयपुर की विकास योजनाओं का एक प्रतीक है, जो सरकारों की अदूरदर्शिता और राजनीतिक अस्थिरता के कारण अपने उद्देश्य से भटक गई। यदि सरकारें और संबंधित एजेंसियाँ समय रहते उचित कदम उठाएँ, तो यह परियोजना न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लाभकारी हो सकती है, बल्कि शहरवासियों के लिए एक आकर्षक स्थल भी बन सकती है। जनता की जागरूकता और भागीदारी से ही ऐसी परियोजनाओं की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।
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