राजपूत राजाओं ने मुगलों को कितनी बेटियां दी थीं?

नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के एक बयान के बाद इन दिनों राजस्थान में जातीय जंग छिड़ती नजर आ रही है। हनुमान बेनीवाल ने अपने एक बयान में दावा किया कि राजस्थान में महाराजा सूरजमल और महाराणा प्रताप के अलावा कोई राजा नहीं लड़ा। यहां के राजा इतने कमजोर थे कि 70 किलोमीटर आगे जाकर अपनी बेटियों की मुगलों से शादी कर समझौता कर लेते थे। इस बयान के बाद राज्य में राजपूत समाज के कुछ संगठनों ने हनुमान बेनीवाल के खिलाफ मोर्चो खोल दिया है। 

सांसद को सोशल मीडिया पर धमकियां मिल रही हैं और कुछ असामाजिक लोग इतने उत्तेजित हैं कि हनुमान बेनीवाल से इसका बदला लेने की हूंकार तक भर रहे हैं। ऐसे में इस बात की पड़ताल करनी जरूरी है कि क्या वास्तव में राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों की मुगलों शादी की थीं? अधिकांश लोगों को यही पता है कि आमेर के राजा भारमल ने अपनी बेटी जोधाबाई की अकबर से शादी कर उसकी अधीनता स्वीकार कर थी। 

आमेर के कछवा राजाओं ने अलग—अलग टाइम अपनी चार बेटियों की शादियां मुगलों से की थीं। जब इतिहास में जाकर इस पूरे घटनाक्रम की पड़ताल की जाती है तो कई बड़े उदाहरण निकलकर सामने आते हैं, जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अपना शासन बचाने के लिए मुगलों से अपनी बेटियों की शादी की थी। इस वीडियो में हम विस्तार से समझेंगे कि किस राजा ने अपनी बेटी की शादी किस मुगल शासक से कब की थी? 

आमेर के राजा भारमल की बेटी हीरा कुंवारी का विवाह 6 फरवरी 1562 को मुग़ल सम्राट अकबर से किया गया, जो मुग़ल-राजपूत संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। शादी के बाद हीरा कुंवारी का नाम जोधाबाई रखा गया। आमेर में भारमल और उसके भाई पूरणमल के बीच सत्ता का संघर्ष चल रहा था, तब भारमल ने जोबनेर के पास जाकर अपनी बेटी का विवाह अकबर से करके मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। 

भारमल ने यह शादी अपनी राजनीतिक और सामरिक स्थिति को मजबूत करने अलावा अपने भाई से होने वाले खतरे से बचने के लिए की थी। जोधाबाई की शादी के बाद मुगलों ने आमेर पर आक्रमण नहीं किया उसे दूसरे दुश्मनों से भी बचाया। आमेर के कच्छावा राजघराने पर हमेशा सामाजिक, सांस्कृति और राजनीतिक तौर पर मुगलों का प्रभाव रहा है। अकबर ने अपने जीवनकाल में कुल 10 राजपूत कन्याओं से विवाह किया था।

मुगलों द्वारा आक्रमण करने पर जैसलमेर के महारावल हरिराज सिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार करते हुए अपनी बेटी नाथीबाई का विवाह 1570 में मुग़ल सम्राट अकबर से किया। इस शादी के बाद मुगलों ने जैसलमेर पर आक्रमण नहीं किया और उसका संरक्षण किया। राजकुमारी नाथी बाई से अकबर को एक पुत्री माही बेगम हुई, लेकिन शादी के 7 साल बाद 1577 में नाथीबाई का निधन हो गया। बीकानेर के कन्हाजी की पुत्री राज कंर का विवाह 15 नवंबर 1570 को मुग़ल सम्राट अकबर से नागौर में संपन्न हुआ। 

यह विवाह अकबर की राजपूत नीति का हिस्सा था, जिसके माध्यम से उन्होंने राजपूत राजाओं की बेटियों के साथ वैवाहिक संबंध बनाकर उनको अपने अधीन किया। विवाह के बाद बीकानेर के राव कल्याणमल और उनके पुत्र राय सिंह को मुग़ल दरबार में उच्च पद प्रदान किए गए। कन्हाजी ने दूसरे राजपूत राजाओं को भी मुग़ल साम्राज्य के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित किया, जिससे मुगल साम्राज्य राजस्थान में फैलता चला गया। 

मारवाड़ पर अकबर ने आक्रमण किया तो वहां के राठौड़ वंश के राजा उदय सिंह और रानी मनरंग देवी की पुत्री मणावती का विवाह 11 जनवरी 1586 को मुग़ल सम्राट जहाँगीर से हुआ। शादी के बाद मणावती को जगत गौसांई के नाम से जाना गया। इस विवाह का उद्देश्य मुग़ल और मारवाड़ की सुरक्षा के साथ दोनों के बीच राजनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना था। 

शादी के बाद उदय सिंह को 'राजा' की उपाधि और 1000 मनसब का दर्जा प्राप्त हुआ। जगत गौसांई ने 1592 में खुर्रम को जन्म दिया, जो बाद में शाहजहां के नाम से मुग़ल सम्राट बना। इस विवाह का कुछ राजपूतों द्वारा विरोध भी हुआ। जगत गौसांई के चचेरे भाई कल्याण दास राठौड़ ने इसे राजपूत सम्मान के विरुद्ध माना और विद्रोह किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका निधन हुआ।

साम्राज्य विस्तार के लिए जहांगीर ने बीकानेर पर आक्रमण कर दिया। इससे बचने के लिए राव केशव दास राठौड़ ने अपनी बेटी करमसी बाई की शादी 1591 में जहांगीर से कर दी। इस विवाह का उद्देश्य बीकानेर की सुरक्षा पक्की करते हुए मुग़ल साम्राज्य के बीच राजनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना था। 

इसके कारण बीकानेर को मुग़ल दरबार में उच्च पद और संरक्षण प्राप्त हुआ। इसी क्रम में मुगल राजस्थान में आगे बढ़े तो जैसलमेर के भाटी वंश के महारावल भीम सिंह की पुत्री मलिका बाई का विवाह 1587 में मुग़ल युवराज सलीम हुआ। जिसको बाद में सम्राट जहाँगीर के नाम से जाना गया। महारावल ने अपनी बेटी की शादी मुगल सम्राट से करके अपना राज बचाने में कामयाबी पाई। 

उससे पहले की बात करें तो मेड़ता के राठौड़ शासक वीरमदेव ने अपनी बेटी पूरम कंवर का विवाह 1570 में मुगल सम्राट अकबर से किया था। इस विवाह का उद्देश्य मेड़ता की मुगल साम्राज्य से रक्षा करनी थी। अकबर जब राजपूताना पर चढ़ाई कर रहा था, तब मेड़ता भी उसके मार्ग में आ रहा था, लेकिन अकबर की विशाल सेना से डरकर वीरमदेव ने भी वही किया, जो बाकी राजपूत राजाओं ने किया। अकबर से पूरम कंवर की शादी के बाद मेड़ता के राजा को मुगल दरबार में काफी सम्मान दिया गया। 

राजकुमारी रुक्मावती जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव की पुत्री थीं, जिनका विवाह 1570 में मुग़ल सम्राट अकबर से हुआ। इस विवाह का मकसद जोधपुर को मुगल साम्राज्य के तूफान से बचाना था। रुक्मावती के विवाह के बाद मुगलों ने जोधपुर पर आक्रमण नहीं किया, जिससे जोधपुर राज्य अनवरत विकास करने में कामयाब रहा। मुगल अक्सर जिस राज्य को जीत लेते थे, उससे केवल टैक्स वसूली का काम करते थे, बाकी सारी सत्ता स्थानीय राजा के हाथ में रहती थी।

इसी तरह से नागौर के राजा जयचंद की पुत्री बाईजी लाल का विवाह 1573 में मुगल सम्राट अकबर से हुआ। जब मुगलों ने राजस्थान में आक्रमण किया, तब नागौर पर चढ़ाई करने से पहले ही दोनों में समझौता हुआ और बाईजी लाल का अकबर से विवाह तय हुआ। बाईजी लाल की शादी के बाद मुगल शासक अकबर ने कभी नागौर पर हमला नहीं किया। राजकुमारी मनभवती बाई जोधपुर के महाराजा गज सिंह राठौड़ की बहन थीं, जिनका विवाह 1624 में मुगल राजकुमार सुलतान मुहम्मद परवेज मिर्ज़ा से हुआ। 

जोधपुर पर जब मुगल बादशाह ने हमला किया, तब मनभवती का विवाह हुआ, जिससे जोधपुर को मुगल दरबार में सम्मान और राज्य को संरक्षण मिला। इसी तरह से आमेर के राजा भगवंत दास की बेटी मनभावती बाई का विवाह भी 1586 के आसपास शाहजादे सलीम से हुआ। भगवंत दास तब पंजाब के सूबदार हुआ करते थे।

जोधपुर के राठौड़ शासक रायमल की बेटी का विवाह 2 अक्टूबर 1595 को मुगल सम्राट अकबर के बेटे दानियाल से हुआ। इस विवाह का उद्देश्यर मारवाड़ और मुगल साम्राज्य के बीच राजनीतिक संबंधों को मजबूत कर मारवाड़ की रक्षा करना था। 

इसी तरह से आमेर के राजा जगत सिंह की पुत्री कोंक कुमारी का विवाह 17 जून 1608 को मुगल सम्राट जहांगीर से हुआ। जहांगीर भारमल की बेटी जोधाबाई का बेटा था। इस शादी के कारण मुगलों और आमेर के बीच पहले से चले आ रहे संबंधों को मजबूत करने का काम किया। मुगलों और कच्छावा वंश के बीच अकबर के समय से शुरू हुए संबंध मुगलकाल के अंत तक चलते रहे। 

ओरछा के राजा रामचंद्र बुंदेला की बेटी का फरवरी 1609 में मुगल सम्राट जहांगीर के साथ विवाह हुआ। यह विवाह ओरछा और मुगल साम्राज्य के बीच युद्ध को रोककर तनाव कम करने के लिए किया गया था। इस विवाह के माध्यम से ओरछा ने मुगल साम्राज्य के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। इसके बाद मुगलों ने ओरछा को संरक्षण दिया। 

राजकुमारी लीलावती बाई मारवाड़ के राठौड़ वंश के राव सकत सिंह की पुत्री थी, जिसका 1627 में विवाह शहजादे खुर्रम से हुआ। बाद में यही खुर्रम सम्राट शाहजहां के नाम से जाना गया। इस विवाह का उद्देश्य मारवाड़ को मुगलों से सुरक्षित रखना था। लीलावती की शादी से मारवाड़ के राजा सकत सिंह को मुगल दरबार में मनसबदारी मिली। अमृता बाई किशनगढ़ के महाराजा रूप सिंह राठौड़ की बेटी थी। उनका 1671 में मुगल युवराज मोहम्मद मुअज्ज़म से विवाह हुआ, जो बाद में सम्राट बहादुर शाह प्रथम के नाम से जाना गया। 

जब मुगल काल का उत्तरार्द चल रहा था, तब किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौड़ ने खुद को मुगल साम्राज्य से अलग करने की घोषणा कर दी, तब बहादुर शाह ने आक्रमण कर दिया। इसके कारण रूप सिंह ने अपनी बेटी अमृता बाई का विवाह मुगल बादशाह से किया। विवाह का उद्देश्य मुगलों से अपने शासन की सुरक्षा करना था। 

ऐसे ही जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह की बेटी इंदिरा कंवर का विवाह 1715 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर से हुआ। यह विवाह मुगल-राजपूत संबंधों का अंतिम उदाहरण था, क्योंकि इसके बाद कोई और राजपूत राजकुमारी मुगल सम्राट से नहीं ब्याही गई। शादी के समय इंदिरा कंवर का धर्म परिवर्तन कराया गया और उन्हें एक लाख सोने के सिक्कों के मेहर के साथ निकाह किया गया। 

निकाह के कुछ वर्षों बाद उनके पिता अजीत सिंह ने मुगल सम्राट फर्रुखसियर को दिल्ली के लाल किले में बंदी बनाकर अंधा करवा दिया। इस घटना के बाद इंदिरा कंवर ने इस्लाम धर्म त्यागकर पुनः हिंदू धर्म अपनाया और जोधपुर लौट आईं। यह घटना मुगल-राजपूत संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इसके बाद मुगल दरबार में राजपूत राजकुमारियों की शादी करने की प्रथा समाप्त हो गई। 

इनके अलावा भी कई छोटे राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों का विवाह मुगलों से करके अपना शासन बचाया था। मुगलों और राजूपतों के बीच शादियां आम बात हो गई थीं। आमेर के शासक भारमल ने मुगलों के साथ अपनी बेटियां देकर संबंध बनाने की ऐसी नींव डाली कि राजपूत शासकों में ऐसा करना आम बात हो गई। 

अकबर के शासनकाल में राजपूतों और मुगलों के बीच 34 शादियां हुईं, जहांगीर के शासन में 7, शाहजहां के समय 4 और औरंगजेब के टाइम 8 शादियां हुईं। वास्तव में देखा जाए तो ये तमाम शादियां उस समय सत्ता को बचाने के लिए की गई थीं। 

लेकिन चार-पांच सदियों पुराने इतिहास में आज जिस तरह से राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है, वो कतई अनुचित है। इससे समाजों के बीच दीवारें खड़ी होती हैं और बेवजह के विवाद पैदा होते हैं। राजनीति में इस तरह से बयानबाजी करके दोनों और से माहौल खराब करने का काम किया जाता है। इस अनुचित बयानबाजी को रोकना बेहद जरूरी है।

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