कुंठा में अशोक गहलोत ने हिंदी विद्यालयों को इंग्लिश स्कूलों में बदला, अब ये सभी ​वापस हिंदी विद्यालय बनेंगे



जयपुर। राज बदलने के साथ ही काज बदलने लगता है। बीते कुछ दशकों से राजस्थान में यह परंपरा आम हो गई है। जब भाजपा सत्ता में आती है तो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं को बंद किया जाता है और जब कांग्रेस सत्ता में आती है तो भाजपा सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं को डिब्बा बंद कर दिया जाता है। यह परंपरा न केवल राजस्थान के अरबों रुपयों को स्वाहा कर देती है, बल्कि राज्य के विकास की गति को भी तोड़ देती है। यह बात सही है कि पिछले पांच सरकारों ने चुनाव जीतने के लिए अपने अंतिम छह महीने में पैसा लुटाने का काम किया जाता है, लेकिन इस बार कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने तो अति ही कर डाली। चुनाव जीतने के लिए गहलोत ने राज्य के राजकोष पर हजारों करोड़ का कर्जा लाद दिया। अंतिम महीनों में खजाने को न केवल रिक्त कर दिया गया, बल्कि उधार लेकर घी खाने की कहावत को चरितार्थ किया गया। परिणाम यह हुआ कि प्रदेश का खजाना तो खाली हुआ ही, ऊपर से बैंकों और दूसरे राज्यों का इतना कर्जा हो गया कि नई सरकार वित्तीय फैसले लेने से ही हिचक रही है।

ऐसा ही एक फैसला चुनाव जीतने के लिए हिंदी माध्यम विद्यालयों को इंग्लिश मीडियम स्कूल बनाने का किया गया, जिसके तहत राज्य के 3737 हिंदी विद्यालयों को इंग्लिश मीडियम कर दिया गया। मजेदार बात यह रही कि इन स्कूलों का केवल नाम बदला गया, संसाधन बढ़ाने या शिक्षक भर्ती करने के लिए एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया। परिणाम यह हुआ कि अपने बच्चों का इंग्लिश मीडियम में पढ़ाने के शौकीन जनता ने प्रवेश तो दिला दिया, लेकिन जब शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ तो इनसे मोह भंग होने लगा। राज्य की नई भाजपा सरकार को इसकी रिपोर्ट मिली तब पता चला कि केवल विद्यालयों का नाम बदला गया है, संसाधनों पर एक प्रतिशत भी खर्च नहीं किया गया।

अब राज्य सरकार ने तय किया है कि नाम बदली गई सभी स्कूलों को फिर से हिंदी माध्यम के विद्यालय किया जाएगा। अपने कुकर्मों के कारण कुख्यात सही गहलोत सरकार के शिक्षा मंत्री रहे गोविंद सिंह डोटासरा ने इस खबर के बाद प्रतिक्रिया देकर कहा है कि यदि सरकार ने ऐसा किया तो ईंट से ईंट बजा देंगे। अब डोटासरा को कोई यह बात समझाए कि आपने क्यों तो हिंदी विद्यालयों का नाम बदला और जब नाम बदल ही दिया था तो उनमें संसाधन देने और शिक्षक भर्ती करने काम क्यों नहीं किया। असल बात यह है कि डोटासरा तो केवल मोहरा थे, असली खेल तो खुद गहलोत का चल रहा था। दरअसल, अशोक गहलोत को इंग्लिश नहीं आती है। दूसरी तरफ 22 साल कांग्रेस अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी को हिंदी नहीं आती है। इसके कारण उनको सोनिया गांधी से संवाद करने में दिक्कत होती है।

अशोक गहलोत इस पीड़ा से लंबे समय तक गुजरे हैं। हालांकि, पहले दो कार्यकाल तो बिना किसी संघर्ष के निकल गए, लेकिन तीसरी और आखिरी कार्यकाल में उनका मुकाबला सचिन पायलट जैसे तेज तर्रार नेता से हुआ। परिणाम यह हुआ कि गहलोत को बार बार दिल्ली भागकर सोनिया गांधी से अभ्यदान लेकर आना पड़ता था, लेकिन वहां पर सोनिया गांधी को कम्यूनिकेट नहीं कर पाते और इसके चलते उनको दुभाषिये का सहारा लेना होता था। इस सहारे के कारण उनकी सोनिया गांधी से होने वाली बातचीत सार्वजनिक होने लगी। इससे गहलोत कुंठित हो गए। बदले में राज्य के हिंदी विद्यालयों को इंग्लिश करके शिक्षा व्यवस्था को ही पटरी से उतार दिया।

करीब तीन साल में गहलोत की कांग्रेस सरकार ने राजस्थान के 3737 हिंदी विद्यालयों को इंग्लिश नाम करके छोड़ दिया, जहां अंग्रेजी माध्यम से शिक्षक ही नहीं हैं। गहलोत सरकार ने जाते—जाते ऐसे कर्म किए कि 1467 स्कूलों का नाम बदलने का काम तो प्रक्रियाधीन ही छोड़ गए। ऐसे में सवाल यह उठा कि जब शिक्षक ही नहीं हैं, तो शिक्षा कैसे मिलेगी। दरअसल, शिक्षकों के औसत अनुपात के अनुसार यदि एक विद्यालय में 20 शिक्षक भी माने जाएं तो करीब चार हजार विद्यालयों में 80 हजार शिक्षक केवल अंग्रेजी पढ़ाने वाले भर्ती होने चाहिए, लेकिन राज्य की गहलोत सरकार ने एक भी शिक्षक भर्ती नहीं किया और हिंदी शिक्षकों से ही इंग्लिश के सब्जेक्ट्स पढ़ाने का काम करवाया गया। इसका नुकसान यह हुआ कि बच्चे न तो ठीक से इंग्लिश ही पढ़ पाए, बल्कि हिंदी सीखने से भी वंचित रह गए।

नए शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने आते ही सबसे पहले इन स्कूलों की स्थिति का जायजा लिया तो पाया कि चुनाव जीतने के लिए केवल नाम बदले गए, इसके अलावा कुछ भी नहीं किया गया। प्रश्न यह उठता है कि यदि कांग्रेस की गहलोत सरकार को इंग्लिश मीडियम ही पढ़ाना था तो नए स्कूल शुरू करते, नए शिक्षक भर्ती करते, उनमें संसाधन बढ़ाने का काम किया जाता, लेकिन इससे इतर दशकों से चल रहे जमे जमाए हिंदी माध्यम विद्यालयों का बेड़ागर्क कर दिया गया। जानकारी में आया है कि सरकार एक तरफ इन स्कूलों को फिर से हिंदी माध्यम करने का काम शुरू कर दिया है तो दूसरी ओर नया सत्र शुरू होने के कारण 3.50 करोड़ की किताबें छापने का काम किया जा चुका है, जिनमें 40 लाख किताबें ​इंग्लिश मीडियम की हैं।

खास बात यह है कि शहरी क्षेत्रों में सरकार की नाक के नीचे होने के कारण हिंदी माध्यम विद्यालयों में संसाधन और सुविधाएं अच्छी थीं, तो इनका नाम बदलते ही इंग्लिश पढ़ाने के शौकरी परिजनों ने प्रवेश दिलाने के लिए अप्रोच लगाना शुरू कर दिया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाएं नहीं होने के कारण इंग्लिश स्कूलों का हाल पहले से भी बुरा हो गया है। कांग्रेस का कहना है क राजनीतिक द्वेष की भावना से काम किया गया तो उसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन कांग्रेस खुद अपने नेता की कुंठा मिटाने के लिए तुगलकी फरमान बच्चों का भविष्य बर्बाद करने को क्यों लागू कर गई?

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