किशनगढ़ (अजमेर) का औद्योगिक क्षेत्र एक बार फिर श्रमिक असंतोष के केंद्र में आ गया है। देश-विदेश में पहचान बना चुके मार्बल और ग्रेनाइट उद्योग से जुड़े हजारों मजदूरों ने अपने हक़ और जीवन-सुरक्षा को लेकर निर्णायक आवाज़ बुलंद की है। सोमवार को बड़ी संख्या में मजदूर और उनके प्रतिनिधि उपखंड अधिकारी कार्यालय पहुंचे और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तथा जिला कलेक्टर के नाम 10 सूत्रीय मांगों का विस्तृत ज्ञापन सौंपा। श्रमिकों ने साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि इन मांगों पर शीघ्र और ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो वे सामूहिक हड़ताल जैसे कठोर कदम उठाने को मजबूर होंगे।
ज्ञापन में श्रमिकों ने कहा है कि किशनगढ़ क्षेत्र का मार्बल-ग्रेनाइट उद्योग राज्य के औद्योगिक विकास की रीढ़ है, लेकिन इसी उद्योग में काम करने वाले मजदूर वर्षों से शोषण, असुरक्षित कार्य-परिस्थितियों और स्वास्थ्य जोखिमों के बीच जीने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन की अनदेखी के चलते न्यूनतम मजदूरी, कार्य-समय, सुरक्षा उपकरण, सामाजिक सुरक्षा और इलाज जैसी बुनियादी सुविधाएं भी आज तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाई हैं।
श्रमिकों की पहली और प्रमुख मांग न्यूनतम मजदूरी के पूर्ण भुगतान और सेवा-संबंधी पारदर्शिता से जुड़ी है। मजदूरों का आरोप है कि कई फैक्ट्रियों में तय न्यूनतम मजदूरी नहीं दी जा रही और वेतन में मनमानी कटौती की जाती है। साथ ही बिना पूर्व सूचना के काम से निकाल देना आम बात बन चुकी है। मजदूरों ने मांग की है कि किसी भी श्रमिक को हटाने से पहले कम से कम 15 दिन पूर्व लिखित सूचना देना अनिवार्य किया जाए।
दूसरी अहम मांग कार्य-समय और ओवरटाइम भुगतान को लेकर है। ज्ञापन में स्पष्ट किया गया है कि 8 घंटे प्रतिदिन और 48 घंटे साप्ताहिक कार्य-समय सुनिश्चित किया जाए तथा तय सीमा से अधिक काम कराने पर दोगुनी दर से ओवरटाइम का भुगतान हो। मजदूरों का कहना है कि फैक्ट्रियों में लंबे समय तक काम कराया जाता है, लेकिन ओवरटाइम का भुगतान या तो मिलता ही नहीं या बेहद कम दिया जाता है।
तीसरी और सबसे संवेदनशील मांग सिलिकोसिस से सुरक्षा की है। किशनगढ़ का मार्बल-ग्रेनाइट उद्योग सिलिका डस्ट के कारण देशभर में कुख्यात है। मजदूरों ने मांग की है कि सभी फैक्ट्रियों में वेट ड्रिलिंग, ग्राइंडिंग और वेंटिलेशन जैसे डस्ट-कंट्रोल सिस्टम अनिवार्य रूप से लगाए जाएं। साथ ही N95 या P100 स्तर के मास्क और रेस्पिरेटर मुफ्त उपलब्ध कराए जाएं तथा मजदूरों की नियमित मेडिकल जांच और स्वास्थ्य निगरानी की व्यवस्था हो।
सुरक्षा उपकरणों को लेकर भी श्रमिकों ने सख्त रुख अपनाया है। ज्ञापन में कहा गया है कि हेलमेट, सेफ्टी शूज, ग्लव्स, आई-प्रोटेक्शन, मास्क और मशीन गार्ड जैसे सभी सुरक्षा उपकरण फैक्ट्री मालिकों द्वारा बिना किसी लागत के उपलब्ध कराए जाएं और उनका उपयोग सुनिश्चित किया जाए। मजदूरों का कहना है कि लापरवाही के कारण आए दिन हादसे होते हैं, जिनका खामियाजा मजदूरों और उनके परिवारों को भुगतना पड़ता है।
सामाजिक सुरक्षा के मोर्चे पर ESI और PF को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। श्रमिकों ने मांग की है कि जिन फैक्ट्रियों में 10 या 20 से अधिक मजदूर कार्यरत हैं, वहां ESI और PF में अनिवार्य पंजीकरण कराया जाए ताकि मजदूरों को इलाज, बीमा और भविष्य निधि का लाभ मिल सके। इसके साथ ही प्रत्येक कार्यस्थल पर प्रशिक्षित व्यक्ति के साथ फर्स्ट-एड बॉक्स की उपलब्धता और दुर्घटना की स्थिति में तत्काल चिकित्सा व इलाज का पूरा खर्च कंपनी द्वारा वहन करने की मांग की गई है।
मजदूरों ने पहचान पत्र, मासिक वेतन पर्ची और उपस्थिति व वेतन का पारदर्शी रिकॉर्ड उपलब्ध कराने की भी मांग रखी है। उनका कहना है कि रिकॉर्ड के अभाव में मजदूर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ भी नहीं उठा पाते। इसके अलावा साप्ताहिक अवकाश, राष्ट्रीय अवकाश और वैधानिक छुट्टियों का लाभ सभी श्रमिकों को देने की मांग भी ज्ञापन में शामिल है।
किशनगढ़ क्षेत्र के लिए एक स्थायी श्रम न्यायालय या औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना की मांग भी प्रमुखता से उठाई गई है, ताकि मजदूरों से जुड़े विवादों का त्वरित, सुलभ और न्यायसंगत समाधान हो सके। साथ ही मार्बल-ग्रेनाइट मजदूरों के लिए एक सरकारी, समर्पित अस्पताल या ट्रॉमा व सिलिकोसिस उपचार केंद्र स्थापित करने और कार्य के दौरान दुर्घटना होने पर ₹50 लाख तक का पूर्ण दुर्घटना बीमा तत्काल दिए जाने की मांग रखी गई है। यदि कोई मजदूर स्थायी रूप से काम करने में अक्षम हो जाए, तो उसके लिए आजीवन आर्थिक सहायता या पेंशन की व्यवस्था की मांग भी शामिल है।
मजदूर प्रतिनिधियों ने प्रशासन को पांच दिन का अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि यदि मांगों पर अमल नहीं हुआ, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। इस घटनाक्रम ने किशनगढ़ के औद्योगिक माहौल में हलचल पैदा कर दी है। अब निगाहें सरकार और जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वे श्रमिकों की इस गंभीर चेतावनी को कितनी संवेदनशीलता और तत्परता से लेते हैं, क्योंकि यह आंदोलन सिर्फ मजदूरी का नहीं, बल्कि मजदूरों के जीवन और सम्मान का सवाल बन चुका है।

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