न्यू दिल्ली। लोकसभा में बुधवार को उस समय तीखी बहस देखने को मिली जब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने भारत के रूपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन एवं अभिवर्धन विधेयक-2025 को राष्ट्रहित के खिलाफ बताते हुए सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए। बेनीवाल ने साफ कहा कि यह विधेयक भारत के रूपांतरण का नहीं, बल्कि जोखिम के विस्तार का दस्तावेज है, जिसे लेकर देश की जनता के मन में गहरी शंका और कड़ी आपत्ति है। उन्होंने कहा कि पहली नज़र में यह विधेयक तकनीकी संशोधन जैसा दिखाया जा रहा है, लेकिन इसके भीतर छिपी मंशा कहीं अधिक खतरनाक है, क्योंकि यह हमारे संवैधानिक सिद्धांतों, जन-सुरक्षा और सरकारी जवाबदेही की बुनियादी अवधारणा को बदलने का प्रयास है।
हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस सरकार और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हुए परमाणु परीक्षणों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि उस दौर में नाभिकीय ऊर्जा को पूरी तरह सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन रखकर राष्ट्रहित और सुरक्षा को सर्वोपरि माना गया था, लेकिन वर्तमान एनडीए सरकार उसी रणनीतिक और संवेदनशील क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने पर आमादा है। उन्होंने चेताया कि यह बदलाव केवल बाज़ार खोलने का सवाल नहीं है, बल्कि इससे जोखिम की प्रकृति, दुर्घटना की स्थिति में देयता, ऑपरेटर की जिम्मेदारी और निगरानी की पूरी संरचना ही बदल जाएगी। यदि निजीकरण की यह प्रक्रिया पारदर्शी, कठोर और जनता-हित की शर्तों पर नहीं हुई तो देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सांसद ने विशेष रूप से विधेयक में प्रस्तावित देयता सीमा और ऑपरेटर-उत्तरदायित्व के नए प्रावधानों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई रिपोर्टें साफ इशारा करती हैं कि नाभिकीय दुर्घटनाएं केवल स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि उनका प्रभाव क्षेत्रीय होता है और पीढ़ियों तक महसूस किया जाता है। ऐसे असीमित जोखिमों के सामने सीमित लाइबिलिटी की व्यवस्था पीड़ितों के पुनर्वास और पर्यावरणीय विनाश की भरपाई के लिए पूरी तरह नाकाफी साबित हो सकती है। बेनीवाल ने सरकार से सवाल किया कि जब नुकसान की संभावना पीढ़ियों तक फैली हो तो जिम्मेदारी को सीमित करने का नैतिक और संवैधानिक आधार क्या है।
इसी दौरान सांसद हनुमान बेनीवाल ने कृषि से जुड़े एक अन्य अहम मुद्दे पर भी केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि राजस्थान सहित पूरे देश में नकली खाद, नकली बीज और नकली कीटनाशकों के कारण फसलों को भारी नुकसान पहुंचने की शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं, किसान अपनी उपज बर्बाद होने की बात प्रशासन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाते रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार ने आईसीएआर या किसी अन्य संस्थान के जरिए इस विषय पर कोई स्वतंत्र और व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं कराया। लोकसभा में पूछे गए उनके सवाल के जवाब में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भगीरथ चौधरी ने यह स्वीकार किया कि नकली खाद-बीज के प्रभावों पर अलग से कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं कराया गया है, हालांकि बीज आपूर्ति शृंखला की पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक पोर्टल शुरू किया गया है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बेनीवाल ने कहा कि नकली खाद-बीज को लेकर सरकारी आंकड़ों में जिस कार्रवाई का दावा किया जाता है, वह जमीनी हकीकत में बेहद कम नजर आती है। उन्होंने सवाल उठाया कि जो सरकार खुद को कृषि अनुसंधान और वैज्ञानिक अध्ययन में अग्रणी बताती है, उसी के शासनकाल में नकली खाद-बीज से उपज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का कोई ठोस वैज्ञानिक मूल्यांकन न करवाना सरकार की नीयत पर बड़ा सवालिया निशान है। सांसद ने कहा कि कृषि प्रधान देश में किसानों की आजीविका से जुड़े इस गंभीर विषय को नजरअंदाज करना भविष्य की खाद्य सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे इस मुद्दे को लेकर शीघ्र ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर ठोस कार्रवाई और वैज्ञानिक अध्ययन की मांग करेंगे।

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