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सचिन पायलट पर इसलिये एक्शन नहीं लेगी कांग्रेस पार्टी?

Ram Gopal Jat
कांग्रेस के सबसे तेज तर्रार नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पालयट के खिलाफ भले ही जल्दबाजी में प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने बयान दे दिया हो कि अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी, लेकिन हकिकत यह है कि कांग्रेस की ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं है। पार्टी के कई नेता भले ही कहें कि सचिन पायलट ​के खिलाफ अनुशासन हीनता की सख्त कार्यवाही होनी चाहिये, लेकिन वास्तव में देखा जाये तो राजस्थान ही नहीं, बल्कि देशभर में सचिन पायलट जैसा नेता कांग्रेस के पास है ही नहीं है। पायलट पर यदि कांग्रेस ने कार्यवाही की, या पायलट ने खुद भी पार्टी छोड़ी तो पार्टी को इतना बड़ा नुकसान होगा, जिसकी अगले कई बरसों तक भरपाई नहीं हो पायेगी। पायलट के द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अशोक गहलोत सरकार पर वसुंधरा राजे की जांच नहीं कराने के आरोप लगाये दो सप्ताह से अधिक हो गया है, यहां तक की अनशन—धरने को भी दो सप्ताह से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन कांग्रेस संगठन द्वारा मना करने के बाद भी अनशन करने वाले सचिन पायलट पर कांग्रेस पार्टी आखिर क्यों कोई एक्शन नहीं ले पा रही है, इस बात को समझना जरुरी है?
असल बात तो यह है कि कांग्रेस पार्टी किसी भी सूरत में सचिन पायलट के खिलाफ कोई एक्शन लेने की सूरत में है ही नहीं। कारण यह है कि पहली बात तो कांग्रेस को यह पता चल चुका है कि पायलट यदि पार्टी छोड़ देंगे तो उसके पास ऐसा कोई युवा नेता नहीं है, जो पूरे देश में समान रुप से युवाओं को प्रभावित करने का दम रखता हो। इस कारण कांग्रेस की टॉप लीडरशिप ने तय किया है कि जहां तक हो सके पायलट को पार्टी में बनाये रखने का प्रयास किया जायेगा। यही वजह है कि पायलट के अनशन के बाद उपजे विवाद को थामने के लिये तीन सह प्रभा​री बनाये गये हैं। असल बात यह है कि ये तीनों ही सह प्रभारी पायलट कैंप को हैंडल करने के लिये भेजे गये हैं, जो सरकार से उपकृत नहीं होंगे। अब तक होता यह रहा है कि जो भी प्रभारी आता है, वह गहलोत सरकार के अहसान तले दब जाता है। परिणाम यह होता है कि गहलोत कैंप के अलावा उसे कुछ दिखाई ही नहीं देता है। लोग तो यहां तक कहते हैं कि गहलोत के ​द्वारा सबसे पहले प्रभारी को ही अपने पाले में लिया जाता है। उसे साम, दाम दण्ड, भेद के जरिये ट्रेप किया जाता है।
बीते तीन साल में तीन प्रभारी बदले हैं, लेकिन तीनों ही पायलट के बजाये गहलोत कैंप की तरफ झुके रहे हैं, जिसके कारण कांग्रेस आलाकमान को पायलट की समस्याएं पता ही नहीं चलती हैं। जिसके कारण गहलोत पायलट के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। दूसरी बात यह भी है कि गहलोत सत्ता में होने का फायदा लेते हैं। सभी तरह के संसाधन और शासन प्रशासन गहलोत के पास होने के कारण कांग्रेस के टॉप नेताओं को अपने पक्ष में रखने के लिये कई तरह के हथकंडे अपनाये जा​ते हैं। अशोक गहलोत के पक्ष में बहुत कुछ है, लेकिन गहलोत ऐसे नेता हैं, जिनको मोदी भी अपना ब​ताते हैं। यह भी माना जाता है कि जब भी कांग्रेस पर बड़ा संकट खड़ा होता है, तब गहलोत ही आगे रहते हैं। राज्य में जो भी प्रभारी बनता है, वह सबसे पहले सीएम होने के कारण गहलोत से मिलता है और पहली ही मुलाकात से वो सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसकी परिणीति पायलट गहलोत विवाद बढ़ने के रुप में सामने आती है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों कांग्रेस पार्टी इतनी ताकत दिखाने और ​बगावत करने के बाद भी पायलट पर कार्यवाही कर उनको बाहर का रास्ता दिखा रही है? पहली बात तो यह है कि सरकार के पास अभी भी पांच माह का समय शेष है। यदि पायलट को बाहर किया जाता है तो कम से कम 30 विधायकों के इस्तीफे होंगे, जिसके कारण सरकार अल्पमत में आयेगी। कांग्रेस नहीं चाहती है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करे। गहलोत ने भी अब चुप्पी इसलिये खींच ली है कि कैसे भी करके उनको अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करके पायलट से फिर निपटा जायेगा और सरकार रिपीट नहीं होगी तो पायलट के सिर पर ठीकर फोड दिया जायेगा। यदि सरकार रिपीट हो गई तो अपनी पीठ थपथपाऐंगे कि उनकी सरकार के कामों के दम पर सरकार रिपीट हो गई।
इसके अलावा कांग्रेस और गहलोत को यह बात पक्के तौर पर पता है कि चुनाव से पहले यदि पायलट को बाहर कर दिया तो कई नेता पायलट के साथ चले जायेंगे, जिससे चुनाव में सरकार के खिलाफ माहोल बनेगा। पूर्वी राजस्थान से कांग्रेस का सूपड़ा साफ होना बिलकुल पक्का है। यही वह क्षेत्र है, जिसके दम पर सरकार बनी थी। पायलट के कांग्रेस से बाहर जाते ही पूर्वी राजस्थान भी कांग्रेस के हाथ से चला जायेगा। इस वजह से कांग्रेस और गहलोत किसी भी सूरत में पायलट पर कार्यवाही करने की स्थिति में नहीं हैं। अब कांग्रेस किसी भी तरह से पायलट को चुनाव में गहलोत के साथ कंधा मिलाने का प्रयास कर रही है। यह बात गहलोत भी जानते हैं कि यदि पायलट नहीं मिले तो सरकार रिपीट होने का सपना ही रह जायेगा। यही वजह है कि पायलट द्वारा वसुंधरा सरकार की जांच कराने की मांग करने और गहलोत सरकार द्वारा वादे पूरा नहीं करने के आरोप लगाने के बाद भी अशोक गहलोत चुप हैं। गहलोत जैसे अनुभवी नेता को पता है कि सत्ता रिपीट कराने के बाद सारी कसर निकाल लेंगे, उससे पहले नीची गर्दन करके सुनने में क्या बिगड़ रहा है। यहां तक कि गहलोत तो अब पायलट के साथ सुलह करने के मूड में भी दिखाई दे रहे हैं।
इसके साथ ही जब से पायलट ने अनशन किया है, तब से गहलोत सरकार के कई मंत्री और विधायक उनके समर्थन में आ गये हैं। प्रताप सिंह से लेकर रघु शर्मा और मुरारीलाल मीणा से लेकर कई विधायकों ने साफ कहा है​ कि पायलट जो कह रहे हैं, वह बिलकुल सही है, सरकार को वसुंधरा की जांच करवानी चाहिये, क्योंकि यही वादा करके सत्ता में आये हैं। पायलट का समर्थन करने वालों ने तो यहां तक कहा है कि जब मोदी कांग्रेस नेताओं की जांच करवा सकते हैं तो गहलोत बीजेपी नेताओं की जांच क्यों नहीं करवा रहे हैं? अब सवाल यह उठता है कि जब कांग्रेस और गहलोत मिलकर भी पायलट को बाहर नहीं निकालेंगे, तब पायलट क्या बिना सीएम बने ही रह जायेंगे? इसका जवाब अगले कुछ समय में सामने आ जायेगा। लेकिन यह बात पक्की है कि यदि अंतिम दिन तक भी यदि पायलट को सीएम नहीं बनाया गया तो उनका अगला लक्ष्य राजस्थान से कांग्रेस का सूपड़ा साफ करना ही रहेगा। पायलट दिखा देंगे कि 2018 में सत्ता उनके कारण मिली थी, जिसका सुख गहलोत ने भोगा है और जब उन्होंने साथ छोड़ा तो कांग्रेस ने एतिहासिक पराजय पाई है। राजनीति भी यही कहती है कि यदि कोई आपको खाने नहीं दे रहा है, तो उसे भी मत खाने दो। पायलट ने बहुत लंबे समय तक ​सब्र कर लिया, इसलिये उनके मन की टीस भी तभी शांत होगी, जब गहलोत के सीएम रहते कांग्रेस की एतिहासिक पराजय होगी।
हालांकि, पायलट ने अपनी पार्टी रजिस्ट्रड करवा ली है, लेकिन वह इसी बात का इंतजार कर रहे हैं कि या तो कांग्रेस उनको सीएम बना दे, या फिर उनपर कार्यवाही कर पार्टी से बाहर कर दे। दोनों ही सूरत में पायलट की जीत है। क्योंकि यदि सीएम बनते हैं तो गहलोत का वो गुरुर टूट जायेगा, जिसमें उन्होंने सदन के भीतर टेबल ठोकते हुये कहा था कि वही पांच साल सीएम रहेंगे और सरकार कोई गिरा नहीं सकता। दूसरी बात यह है कि यदि उनको पार्टी से बाहर किया गया तो कांग्रेस टूट जायेगी, कई नेता पायलट के साथ कांग्रेस छोड़ने को तैयार बैठे हैं। उसके बाद पायलट अपनी पार्टी से मैदान में उतरेंगे। क्योंकि पायलट को निश्चत तौर पर कांग्रेस का ही वोट मिलेगा। जो कांग्रेस पायलट के होते हुये ही केवल एक लाख वोट अधिक पाकर सत्ता में आई थी, सोचो जब पायलट नहीं होंगे, तब कांग्रेस की क्या गत होने वाली है। इससे पायलट के दो मकसद पूरे हो जायेंगे। पहला तो वह कांग्रेस को पूरी तरह से साफ कर देंगे, दूसरा भविष्य में यदि वह भाजपा में जायेंगे तो अपने वोटों की ताकत से अधिक आसानी से गठबंधन का मोलभाव कर पायेंगे।
यह बात गहलोत जानते हैं, और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को भी इस बात से अवगत करवा दिया है कि पायलट के बिना सत्ता रिपीट नहीं हो पायेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि हर बार आलाकमान के आश्वासन से चुप रहने वाले पायलट एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान के झूठ झांसे में आ गये हैं। असल में पायलट को कहा गया है कि 10 मई को कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद उनके साथ न्याय किया जायेगा। अब यदि कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता प्राप्त कर लेती है तो वह भारी पडेगी और पायलट को मिला आश्वासन केवल झूठा झांसे से अधिक कुछ साबित नहीं होगा। यदि कर्नाटक में कांग्रेस हार जाती है, तो फिर भी पायलट को सीएम बनाने के एक प्रतिशत चांस बनते हैं। यही वजह है​ कि पायलट ने अपने आलाकमान को आखिरी मौका दे दिया है। संभवत: 10 मई के बाद कभी भी कोई बड़ा खेल राजस्थान की राजनीति में हो सकता है। अब इंतजार केवल इस बात का है कि कौन पहल करता है? यदि कांग्रेस ने पहल की तो पायलट फायदे में रहेंगे और यदि पायलट ने पहल की तो कांग्रेस के पास राजस्थान हारकर भी पायलट के नाम से अपना बचाव करने का एक बहाना मिल जायेगा।
अशोक गहलोत तीन बार सीएम रहने की मौज काट चुके हैं, इसलिये उनके पास खोने को कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि गहलोत अब खुलकर बेटिंग करने के मूड में हैं। उन्होंने जिस तरह से फ्री घोषणाओं के जरिये जनता को रिझाने का प्लान बनाया है, उससे साफ है कि यदि सरकार रिपीट हो गई तो केंद्र पर आरोप लगा देंगे कि पैसे नहीं दे रही है, नहीं तो सभी घोषणाएं पूरी करते। और यदि सत्ता रिपीट नहीं होगी, तो कह देंगे कि पायलट की बगावत के कारण लोगों ने कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया। वैसे भी सत्ता रिपीट नहीं होने पर गहलोत की घोषणाएं पूरी करने का काम नई सरकार को करना होगा। वह नहीं करती है तो कहेंगे कि उनकी घोषणाएं बंद कर दी गईं, और यदि बंद नहीं की जायेंगे तो कहेंगे कि भाजपा इनको पूरे देश में लागू करे। इसलिये अब गहलोत के पास खोने को कुछ नहीं है, और पायलट के पास पाने को कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।
अंत में उस बात को याद रखना चाहिये और समझना चाहिये, जो किरोड़ीलाल मीणा ने कहा है कि सचिन पायलट ने उनका समर्थन तब भी किया था, जब वीरांगनाएं सड़क पर न्याय मांग रही थीं और रामप्रसाद के सुसाइड मामले में भी धरने पर जाकर समर्थन दिया था। इसलिये यदि सचिन पायलट उनसे समर्थन मांगेंगे तो वह तैयार हैं। इसके साथ ही किरोड़ीलाल मीणा ने कहा है कि यदि राज्य के जाट, गुर्जर, मीणा मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो वह तैयार हैं। इससे दो बातें साफ हो जाती हैं, एक तो भले ही किरोड़ीलाल भाजपा के सांसद हों, लेकिन उनका मन नहीं लग रहा है। दूसरी बात यह है कि गहलोत—वसुंधरा के कथित गठजोड़ से वह भी पीड़ित हैं और यदि उनको मंत्री नहीं बनाया गया तो वह चुनाव के दौरान हनुमान बेनीवाल के उस प्रस्ताव के लिये तैयार हो जायेंगे जो कहते हैं कि पायलट को कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना लेनी चाहिये और उनके साथ गठबंधन कर लेना चाहिये।
असल बात यह है कि ये तीनों ही नेता अपने दम पर राज्य के बड़े वोटबैंक को प्रभावित करने का दम रखते हैं। राज्य में इन तीनों के बड़े स्तर पर समर्थक हैं और तीनों के समर्थन में पड़ने वाला वोट एक हो गया तो यह संभवत भी है कि राज्य में भाजपा—कांग्रेस को सत्ता ही नहीं मिले। हनुमान बेनीवाल इससे पहले 2018 में भी किरोड़ीलाल को अपने साथ लेने का प्रयास कर चुके हैं, प्रस्ताव भी दे चुके हैं। यह बात भी सही है कि अब राजस्थान के लोग गहलोत—वसुंधरा से उब चुके हैं जो नये विकल्प का इंतजार कर रहे हैं। पायलट के साथ कांग्रेस को अन्याय भी चार साल से जनता देख रही है। किरोड़ी, बेनीवाल और पायलट के मिलने का मतलब यह है कि सीधे तौर पर जहां करीब 40 फीसदी वोट प्रभावित होता है, तो परोक्ष रुप से गहलो—वसुंधरा से उबे हुये लोग भी इनको समर्थन करेंगे। इससे तीसरा मोर्चा सामने आयेगा। इन तीनों के एक होने के बाद केवल एक ही समस्या है कि सत्ता मिलने पर सीएम कौन बनेगा और सरकार कितनी मजबूती से चल पायेगी। क्योंकि भाजपा—कांग्रेस इतने मजबूत हैं कि इनके तिलिस्म को तोड़ना बेहद कठिन है।
फिर भी यदि ये तीनों नेता एक साथ, एक दल या एक गठबंधन से चुनाव लड़ेगे तो थर्ड फ्रंट की सरकार बनने की संभावना सबसे अधिक है। चुनाव नजदीक आने के साथ ही इस तीसरे मोर्चे की संभावना भी प्रबल होगी, जिसका सबसे बड़ा कारण होगा कांग्रेस द्वारा सचिन पायलट की उपेक्षा करना और इन दलों द्वारा हनुमान बेनीवाल, किरोड़ीलाल को लगातार हल्के में लेना।

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