सचिन पायलट जंग तो आरपार की करेंगे, लेकिन कब तक करेंगे?

Ram Gopal Jat
राजस्थान कांग्रेस में इन दिनों पॉवर गैम चल रहा है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच इस बात की रेस चल रही है कि आलाकमान को अपने पक्ष में कौन रख पाता है। यह भी सोचनीय बात है कि एक तरफ तीन बार के मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के सबसे विश्वसनीय अशोक गहलोत हैं, जो दूसरी तरफ सचिन पायलट हैं। 11 जुलाई को अनशन और धरने के बाद जिस तरह से प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पायलट पर कार्यवाही करने के बयान दिये थे, वो सब थोथे साबित होते जा रहे हैं। इस बीच रंधावा को पूरी तरह से चुप कर दिया गया है। दूसरी ओर सचिन पायलट ने भी साफ कर दिया है​ कि वसुंधरा सरकार पर लगे भ्रष्टचार के आरोपों की जांच के मामले में अपने बयान से पीछे हटने वाले नहीं हैं। पायलट ने अनशन के बाद दिल्ली जाकर कांग्रेस आलाकमान को अपनी बात से अवगत करवाया था, उसके बाद उन्होंने शाहपुरा और खेतड़ी में अपनी बातें दोहराई थीं।
रविवार को एक बार फिर से पायलट ने जयपुर में झाडखंड महादेव के दर्शन करने के बाद पत्रकारों से बात कर अपनी बातों को दोहराया है। इसके साथ ही उन्होंने पूछा है कि आखिर दो सप्ताह पहले की गई मांग पर अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई है। सितंबर में अशोक गहलोत कैंप द्वारा सोनिया गांधी के नुमाइंदों मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की बेइज्जती करने के मामले में भी कार्यवाही नहीं होने दुखद बताया है। साथ ही वसुंधरा के द्वारा दूध और नींबू का उदाहरण देने के मामले में पायलट ने कहा कि जब उन्होंने दोनों की मिलीभगत के आरोप लगाये ही नहीं, तो फिर उनको इस बारे में बोलने की जरुरत कहां थी, इसका मतलब यह है कि दोनों मिले हुये हैं। इस बार पायलट ने अपनी सभी बातों केा पुरजोर तरीके से रखा और फिर एक तरह से कांग्रेस आलाकमान को कार्यवाही करने की चुनौती दी है। लगता तो ऐसे है कि पायलट भाजपा सरकार के घोटालों की जांच की मांग ही कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से वह गहलोत सरकार से जांच की मांग पर अड़े हुये हैं, उससे साफ हो गया है कि वह इस मामले को पूरा किये बिना छोड़ने वाले नहीं हैं।
पिछले दिनों कांग्रेस ने फीडबैक कार्यक्रम चलाया था, जिसमें भी सचिन पायलट नहीं पहुंचे। अब एक दिन पहले ही अशोक गहलोत अचानक दिल्ली पहुंच गये हैं, लेकिन वह पायलट के उपर बोलने से बच रहे हैं। दूसरी तरफ रंधावा पूरी तरह से चुप कर दिये गये हैं। समझा जा रहा है कि उनपर नकैल कसने के लिये तीन सह प्रभारी बनाकर भेजे गये हैं। अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल कर्नाटक चुनाव में गये हुये हैं, लेकिन फिर भी गहलोत दिल्ली पहुंचकर संभवत: गांधी परिवार से मिलकर अपनी स्थिति साफ करना चाहते हैं। कांग्रेस सूत्रों का दावा यह भी है कि गहलोत अपने मंत्रीमंडल में फेरबदल करने की अनुमति लेने के लिये दिल्ली गये हैं। बदलाव के तहत राजेंद्र गुढ़ा जैसे मंत्रियों को बाहर किया जायेगा तो हरीश चौधरी, रघु शर्मा जैसे नेताओं को अंत समय में फिर से ​कैबिनेट मंत्री बनाकर खुश करने का प्रयास किया जायेगा। फीडबैक कार्यक्रम के दौरान विधायकों की राय के कारण सरकार फिर सकते में आ गई है। यही वजह है कि कुछ नाराज विधायकों को मंत्री बनाकर खुश करने का प्रयास किया जायेगा।
इस बीच जानकारी में आया कि पायलट अब राजस्थान में अपना प्रचार अ​भियान शुरू करने वाले हैं। जानकारी में आया है कि वह प्रदेश में दौरों पर निकलेंगे, जहां रैलियां कर अपनी ताकत दिखाने का काम करेंगे। आलाकमान यदि फैसला नहीं लेता है, तो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिये बुरा समय आने वाला है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ​एक बार फिर दावा किया है कि जिलाध्यक्षों की घोषणा इसी महीने कर दी जायेगी। जिलाध्यक्षों के नामों से ही साफ हो जायगा कि पायलट कैंप को लेकर कांग्रेस क्या सोच रही है। यदि सूची में बैलेंस करने का प्रयास किया गया तो यह माना जायेगा कि आलाकमान भी पायलट के उपर कोई कार्यवाही नहीं करेगा। जिस तरह से पिछले दिनों पायलट को कर्नाटक के स्टार प्रचारकों की सूची में जगह नहीं दी गई है, उसी तरह से यदि जिलाध्यक्षों में भी उनको नजरअंदाज किया गया तो साफ हो जायेगा कि कांग्रेस किसी भी सूरत में पायलट के साथ समझौता करने के मूड में नहीं है और अशोक गहलोत को ही एकमात्र बॉस मान लिया गया है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सचिन पायलट भी आलाकमान के अनुसार अब गहलोत को बॉस मान लेंगे? असल बात तो यह है कि सचिन पायलट ने ना तो कभी गहलोत को बॉस माना और ना ही मानेंगे। कारण यह है कि दोनों के बीच लड़ाई जिस चीज को लेकर है, वह गहलोत छोड़ना नहीं चाहते और पायलट उसको पाये बिना रह नहीं सकते। इस बीच कांग्रेस आलाकमान आखिरी बार बीच का रास्ता निकालने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इस रास्ते में बहुत कांटे हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है​ कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को फिर से अध्यक्ष बनाकर उनको अगली बार सीएम बनाने का आश्वासन देकर मना सकता है, किंतु यह बात असंभव जान पड़ती है, क्योंकि जब 11 जुलाई 2020 को सचिन पायलट ने बगावत की थी, तब वह पार्टी के अध्यक्ष भी थे और उपमुख्यमंत्री भी थे, तभी ही उन्होंने समझौता नहीं किया तो अब क्यों मानेंगे? दूसरी बात यह है कि तब तो सरकार भी खुद की थी, अब फिर से कांग्रेस की सरकार बन ही जायेगी, इसकी गुंजाइश भी नजर नहीं आ रही है, तो फिर पायलट क्यों ऐसा करेंगे?
यह बात तो तय हो चुकी है कि पायलट आरपार की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इस बात का अंदाजा अभी किसी को नहीं है कि आगे क्या होने वाला है। कांग्रेस के नेताओं ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है, लेकिन मैंने पहले भी आपको बताया था और अब फिर कह रहा हूं कि पायलट ने अपनी पार्टी बना ली है। उनका इस बात का इंतजार है कि कांग्रेस आलाकमान क्या निर्णय करता है। क्योंकि पायलट नहीं चाहते कि वह खुद आगे बढ़कर पार्टी छोड़ें और अशोक गहलोत इसका फायदा उठाने का प्रयास करें। दूसरी ओर कांग्रेस भी आगे बढ़कर यह नहीं करना चाहती है। क्योंकि जैसे ही कांग्रेस कार्यवाही करेगी, वैसे ही करीब चालीस विधायक पार्टी छोड़ने को तैयार बैठै हैं, और यदि इतने विधायकों ने एक साथ पार्टी छोड़ी तो फिर सरकार अल्पमत में होगी और गहलोत का पांच साल तक सीएम बने रहने का सपना टूट जायेगा। हालांकि, इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस कोई निर्णय करे या नहीं, लेकिन पायलट इसी महीने में अपने भविष्य का निर्णय कर चुके होंगे, भले ही इसकी घोषणा करने में कुछ समय और लग जाये।
दूसरी तरफ भाजपा में भी गुटबाजी अपने चरम की तरफ जा रही है। अध्यक्ष बदलने के बाद यह माना जा रहा था कि सबकुछ ठीक हो जायेगा, लेकिन अभी भी भाजपा के नेता एक मंच पर नहीं आ रहे हैं। एक तरफ जहां वसुंधरा राजे एकला चलो की नीति पर काम कर रही हैं, तो हाल ही में नेता प्रतिपक्ष के पद प्रमोट किये गये राजेंद्र राठौड ने भी जन संपर्क अभियान तेज कर सीएम पद के लिये दावेदारी ठोक दी है। दूसरी ओर अध्यक्ष बने सीपी जोशी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं। वह या तो राठौड़ के साथ होते हैं, या फिर मुद्दों से गायब नजर आते हैं। संगठन को सतीश पूनियां ने जो धार दी थी, उसको सीपी जोशी बरकरार नहीं रख पा रहे हैं। वसुंधरा राजे की सक्रियता और राजेंद्र राठौड़ के स्वागत के बहाने रैलियों ने साफ कर दिया है कि इन दोनों ही नेताओं में सीएम की रेस चल पड़ी है। सतीश पूनियां के बाद वसुंधरा राजे के गुट को भी एक तरह से संजीवनी मिली है, जिसका तीन साल से इंतजार किया जा रहा था।
अब तक भाजपा कहती आ रही है कि किसी को भी सीएम का चेहरा नहीं बनाया जायेगा, चुनाव परिणाम के बाद ही तय किया जायेगा कि कौन सीएम होगा। किंतु फिर भी नेताओं में आगे बढ़ने की होड़ ने साफ कर दिया है कि सब अपनी ताकत दिखाकर आलाकमान को अपने पक्ष में लेने का प्रयास कर रहे हैं। वसुंधरा राजे सोचती हैं कि चुनाव से पहले अपनी ताकत दिखाई जाये, ताकि सीएम फेस बनाने के लिये दबाव बनाया जा सके, जबकि इसी बहाने वह चुनाव परिणाम के बाद की भी तैयारी कर रही हैं।

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