मोदी—शाह ने जम्मू—कश्मीर में फिर कर दिया बड़ा खेल

करीब तीन साल बाद नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में एक और बड़ा कारनामा कर दिया है। इसके बाद इस नये केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। सरकार यहां पर चुनाव कराकर नए मुख्यमंत्री के निर्वाचन का मार्ग प्रसस्त कर रही है। इस कदम से भाजपा को फायदा होगा, लेकिन यह निर्णय पाकिस्तान व चीन के मंसूबों पर भी पानी फेर रहा है। पाकिस्तान—चीन के फायदे और नुकसान की बात आगे करेंगे, लेकिन उससे पहले जान लीजिए मोदी सरकार का नया निर्णय क्या है, जो केंद्र सरकार को एक और मास्टर स्ट्रोक करार दिया जा रहा है। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव की सुगबुगाहट के बीच परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के लिए तैयार की गई अपनी अंतिम रिपोर्ट हस्ताक्षर के बाद जारी कर दी है। आयोग के प्रस्ताव के अमल में आने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ जाएंगी। आयोग के मुताबिक पहली बार एसटी के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई हैं। आयोग ने फैसला किया है कि सभी पांच संसदीय क्षेत्रों में समान संख्या में विधानसभा क्षेत्र होंगे। इसके लिए गजट नोटिफिकेशन भी गुरुवार को जारी किया गया। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में 18 विधानसभा क्षेत्र होंगे। अंतिम परिसीमन आदेश के अनुसार 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू संभाग में और 47 कश्मीर संभाग में होंगे। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, नागरिकों और नागरिक समाज समूहों के साथ विचार-विमर्श के बाद, 9 विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित की गई हैं, जिनमें से 6 जम्मू क्षेत्र में और 3 घाटी में हैं। यहां कुल 5 संसदीय क्षेत्र हैं, प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में 18 विधानसभा क्षेत्र होंगे। स्थानीय प्रतिनिधियों की मांग को ध्यान में रखते हुए कुछ विधानसभा क्षेत्रों के नाम भी बदले गए हैं। परिसीमन आयोग के अनुसार लोकसभा की पांच सीटों में दो-दो सीटें जम्मू और कश्मीर संभाग में होंगी, जबकि एक सीट दोनों के साझा क्षेत्र में होंगी। कश्मीरी पंडितों के लिए भी दो सीटें रिजर्व रखने का प्रस्ताव आयोग द्वारा दिया गया है। परिसीमन आयोग का कार्यकाल 6 मई को समाप्त हो रहा था। साल 2011 की जनगणना के अनुसार आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के लिए कुल 7 सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है, इस प्रस्ताव के अमल में लाए जाने के बाद यहां विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। परिसीमन आयोग के अनुसार जो 7 सीटें बढ़ाई गई हैं, उनमें से 6 सीटें जम्मू के हिस्से में आएगी। जबकि एक सीट कश्मीर में बढ़ाई जाएगी। बता दें कि अभी जम्मू संभाग में 37 विधानसभा सीटें हैं और कश्मीर संभाग में 46 विधानसभा सीटें आती हैं। यह तो वो बातें हैं तो सामान्य चर्चा की हैं। किंतु इस बदलाव के पिछे कारण क्या हैं? करीब तीन साल पहले जब 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से धारा 370 व 35ए का हटाया गया था, तब जम्मू कश्मीर अलग से केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, जबकि लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बना था। जम्मू कश्मीर में विधानसभा और मुख्यमंत्री, मंत्री बनाने का प्रावधान किया गया था, जबकि लद्दाख में केवल एक संसदीय सीट है और पर उपराज्यपाल है, जहां विधानसभा नहीं है। इसके कारण जम्मू कश्मीर में डिलिमिटेशन, यानी परिसीमन किया जाना जरुरी था। 5 अगस्त 2019 से पहले तक जम्मू कश्मीर में 111 सीटें थीं, जिनमें से 46 सीट कश्मीर में, 37 सीट जम्मू क्षेत्र, 4 लद्दाख के अलावा 24 सीटें पीओके, यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के आरक्षित थीं। लद्दाख को अलग करने के बाद 107 सीटें रह जाती हैं, पीओके की 24 सीटें समेत अब जम्मू कश्मीर में 114 सीट हो जाती हैं। पहले क भांति ही अभी भी पीओके के लिए 24 सीटें आरक्षित रखी गई हैं, इसका मतलब यह है कि मोदी सरकार पीओके को हासिल करके रहेगी। इस नये केंद्र शासित राज्य के लिए 6 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजन प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था, जिसका कार्यकाल 6 मई, यानी आज ही खत्म हो रहा था। इस आयोग में मुख्य ​चुनाव आयुक्त, जम्मू कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और एसोसिएट मैम्बर्स के तौर पर जम्मू कश्मीर के पांचों सांसद भी थे, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन सांसदों ने इसका बायकॉट कर रखा था। इससे पहले तत्कालीन फारुख अब्दुला सरकार ने 1995 में परिसीमन किया था, जो 2002 में लागू हुआ था। साथ ही बाकी देश की तरह 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी थी। मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चला गया था, जिसके बाद परिसीमन पर रोक लगी हुई थी, लेकिन अब राज्य का पुर्नगठन करने के कारण और 2011 की जनगणना के अनुसार परिसीमन किया गया है। सीटें बढ़ाने के साथ ही सीटों का पुनर्निधारण भी किया गया है। कई सीटों का नाम बदला गया है, कुछ को लोकसभा के हिसाब से सेट किया गया है और कुछ सीटों को दूसरे जिलों में लगाया गया है। इसके साथ ही कश्मीर क्षेत्र से दो सीटें निर्वासित कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित रखी गई हैं, जिनपर केंद्र सरकार दो जनों को नियुक्ति करेगी, उसमें से भी एक महिला और एक पुरुष होगा। 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू में 44 फीसदी आबादी थी, जो 48 प्रतिशत सीटों के लिए वोट करेगी। और कश्मीर की 56 प्रतिशत आबादी 52 फीसदी सीटों के लिए वोट करेगी। जबकि अब तक 56 फीसदी कश्मीरी 55.4 प्रतिशत सीटों के लिए जनप्रतिनिधि चुनते थे और 43.8 प्रतिशत जम्मूवासी 44.5 प्रतिशत के लिए वोट करते थे। विपक्षी दलों ने इस परिसीमन को पूरी तरह से नकार दिया है। फारुख अब्दुलाह से लेकर महबूबा मुफ्ती ने भी साफ कर दिया है कि भाजपा ने अपने फायदे के लिए परिसीमन कराया है, जो उनको स्वीकार्य नहीं है। क्या वास्तव में इससे भाजपा को फायदा होगा? जम्मू कश्मीर में 23 दिसंबर 2014 को सम्पन्न हुए आखिरी विधानसभा चुनाव परिणाम में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कुछ समय के लिए 25 सीटों वाली भाजपा ने महबूबा के साथ मिलकर कुछ समय सरकार भी चलाई थी। उस वक्त नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 सीटें मिली थीं। बाद में बीजेपी ने हाथ खींच लिया तो सरकार गिर गई थी और राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उसके बाद 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 व 35ए को हटाकर दो राज्य बनाए गये थे। अब जिस तरह से सीटों का बंटवारा किया गया है, उससे साफ है कि जम्मू को 43, कश्मीर को 47 और 2 सीटें आरक्षित रखी गई हैं, उसमें भी सीधे तौर पर भाजपा को लाभ होगा। यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और हाल ही में 3 साल बाद आईएएस की सेवा में वापस लौटे शाह फैजल भी चुनाव से पहले भाजपा का मुखड़ा हो सकते हैं। गुलाम नबी आजाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबी दोस्ती जग जाहिर है, जबकि शाह फैजल को लेकर मैं एक वीडियो में आपको डिटैल से बता चुका हूं कि कैसे वह मोदी सरकार के लिए जम्मू कश्मीर में नए अमित शाह हो सकते हैं। कुल मिलाकर अब धीरे धीरे जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव की ओर जा रहा है। माना जा रहा है कि गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश के साथ जम्मू कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव करवाए जा सकते हैं।

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