श्रीलंका के बाद पाकिस्तान भी कंगाली की राह पर

एक ओर जहां भारत का पिछले साल निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है और आत्म निर्भर भारत व मैक ​इन इंडिया जैसे अभियानों से अर्थव्यवस्था मजबूत होती जा रही है, वहीं भारत के तीन पड़ौसी देश कंगाल हो चुके हैं या होने की कागार पर खड़े हैं। हिंद महासागर में बसा श्रीलंका कंगाल हो चुका है, चीन व भारत के बीच वाला नेपाल आर्थिक तौर पर कराह रहा है और पश्चिमी में स्थि​त तीसरा पाकिस्तान भी विदेशी सहायता के लिए दौड़—धूप कर रहा है, जिसको आईएमएफ, चीन, अमेरिका ने सहायता देने से इनकार कर दिया है। आइए जानते हैं पाकिस्तान की ऐसी हालत क्यों है कि उसे चीन जैसा खास मित्र और अमेरिका जैसा पुराना साथी कर्ज क्यों नहीं दे रहे हैं। आखिरी क्यों पाकिस्तान को बार बार यूएई और दूसरे इस्लामिक देशों के आगे हाथ फैलाने पड़ रहे हैं? बीते कुछ बरसों से लगातार गिरती अर्थव्यस्था के बीच पाकिस्तान में भी महंगाई चरम पर है, जिससे आम जनता को रोजमर्रा की जरूरी चीजों के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। पिछले लगभग 70 साल में पाकिस्तान में महंगाई अपने रिकॉर्ड स्तर पर है। हमारे पड़ोसी देश में महंगाई की दर 13.4% चल रही है। पाक में पेट्रोल और डीजल के दामों अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, तो एक किलोग्राम आटे का दाम लगभग 100 रुपए हो गया है। लोगों को एक लीटर दूध के लिए करीब 150 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं। पाकिस्तान में खाने की चीजों की मंहगाई दर 17% से अधिक है। पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में पिछले 6 महीने के दौरान लगभग 28.6% का इजाफा हुआ है। सामने आया है कि पाकिस्तान में गिरती अर्थव्यवस्था के बीच अप्रैल के महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, सीपीआई द्वारा मापी गई दो साल की उच्च मुद्रास्फीति 13.37 प्रतिशत दर्ज की गई। इस हालत में पाकिस्तान श्रीलंका में बनी हालत पर निकल पड़ा है। उसको अमेरिका और चीन से भी मदद नहीं मिल पा रही। पाकिस्तान चीन को अपना सबसे खास मानता है। पाकिस्तान में बने बुरे आर्थिक हालात को देखते हुए चीन ने 19 हजार करोड़ रुपए की मदद का वादा भी किया, लेकिन यह राशि अभी तक पाक को नहीं है और अब चीन ने मदद देने से इनकार कर दिया है। कर्ज की मोहलत बढ़ाने को लेकर पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सऊदी अरब के सामने गुहार लगा चुके हैं। अपनी पहली विदेश यात्रा पर शहबाद ने कर्ज की मोहलत बढ़ाने और नए कर्ज की गुहार लेकर गए सउदी अरब से अपील की थी। इससे पहले नवंबर 2021 में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 50 हजार करोड़ हो गया था, तब भी तत्कालीन इमरान खान सरकार को सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 6 महीने के लिए आर्थिक मदद दी थी। पाकिस्तान के अखबार डॉन की ताजा रिपोर्ट ने जानकारी दी है कि पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो, पीबीएस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति 1.6 प्रतिशत तक बढ़ गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति बढ़कर 1.63 प्रतिशत हो गई। शहरी क्षेत्रों में खाद्य मुद्रास्फीति में 15.98 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 18.23 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। पाक वित्त मंत्रालय के अनुसार अन्य देशों से आयातित वस्तुओं जैसे कच्चे तेल, खाद्य तेल और दालों की दर में वृद्धि के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में मुद्रास्फीति इतनी हुई है। इस बीच पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने देश की इस हालत के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार, यानी पिछले महीने ही सत्ता से बाहर हुई इमरान खान की सरकार ने देश के चार साल बर्बाद किए हैं। जुलाई 2021 में एसबीपी के पास विदेशी मुद्रा भंडार 17.8 बिलियन अमरीकी डॉलर था। पॉलिसी रिसर्च ग्रुप के अनुसार करीब 6 बिलियन अमरीकी डॉलर प्रवाह के बावजूद चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बढ़ाया जा सका है। पाकिस्तान फिलहाल वित्तीय चुनौतियों से जूझ रहा है, क्योंकि देश का व्यापार घाटा उच्च स्तर पर बढ़ रहा है। मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ रही है और सरकार को आईएमएफ की कुछ मांगों को पूरा करने के लिए करों में बढ़ोतरी के लिए वित्त वर्ष के बीच में ही मिनी बजट लाना पड़ा। पाकिस्तान का चालू खाता घाटा, सीएडी और विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे गिर रहा है। इसके बावजूद कि उसने पहली छमाही, यानी जुलाई-दिसंबर में सउदी अरब से 3 बिलियन अमरीकी डॉलर, आईएमएफ से 2 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक और अंतर्राष्ट्रीय यूरोबॉन्ड के जरिए 1 बिलियन अमरीकी डॉलर का उधार लिया है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के पास 31 दिसंबर 2021 तक 17.6 बिलियन अमरीकी डॉलर ही विदेशी मुद्रा भंडार था। यानी देखा जाए तो यदि आईएमएफ, चीन, अमेरिका या सउदी सरकार ने पाकिस्तान को मदद नहीं दी तो वह कभी भी खुद को श्रीलंका की तरह कंगाल घोषित कर सकता है, जहां की करीब 22 करोड़ आबादी के लिए बहुत बुरी खबर होगी। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री ने कुर्सी छोड़ने से पहले अमेरिका पर सीधे तौर पर उसकी सरकार गिराने के आरोप लगाए थे, वही अमेरिका भी पाकिस्तान को मदद नहीं कर रहा है। दूसरी ओर पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान का सबसे घनिष्ट मित्र बन चुका चीन भले ही सीपीईसी के जरिए बड़े आर्थिक निवेश की बात कह रहा हो, लेकिन उसने भी अब इंवेस्ट की गति काफी कम कर दी है, जिसके कारण पाकिस्तान में रोजमर्रा की चीजों के भाव बढ़ रहे हैं और बेरोजगारी चरम पर चली गई है। इससे पहले करीब एक माह पूर्व ही भारत के दक्षिण सागर में बसे खूबसूरत देश श्रीलंका में भी विदेशी मुद्रा भण्डार खत्म होने के बाद वहां की सरकार ने विदेशी कर्ज लौटाने या उसका ब्याज देने से मना ​कर दिया था। श्रीलंका की गोटबाया राजपक्षे सरकार कहा चुकी है कि किसी को यदि उधार दिया हुआ वापस लेना है तो श्रीलंकाई रुपयों में ही दिया जा सकता है, किसी को डॉलर में भुगतान नहीं किया जाएगा। इधर, भारत चीन के बीच में बसे नेपाल पर भी कंगाल होने का सायां मंडरा रहा है। कहने का मतलब यह है कि भारत के तीन तरफ बसे तीन पड़ौसी देशों की आर्थिक हालत खराब है और ऐसे में दुनिया की नजर तेजी से विकास करती भारतीय अर्थव्यवस्था पर है, जिसके उपर भी साल 2008 में इसी तरह का खतरा मंडराने लगा था, जब भारत सरकार ने कच्चे तेल के बढ़ते दामों को थामने के लिए तेल बॉण्ड जारी किए थे। आज भारत की विकास दर दुनिया के टॉप देशों में है, तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 650 अरब डॉलर के साथ लगातार रिकॉर्ड स्तर पर चल रहा है। हालांकि अभी रूस व यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर में छाई महंगाई का असर भारत पर भी पड़ रहा है। आर्थिक जानकारों के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस युद्ध के कारण बढ़ रही वैश्विक महंगाई के कारण 9 से 10 अरब डॉलर तक घट सकता है। फिर भी भारत का निर्यात नई उंचाइयों को छूने के कारण अर्थव्यवस्था का इसका अधिक कोई असर नहीं पड़ने वाला है। भारत ने पिछले वित्त वर्ष 2021—22 में 410 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है, फिर भी भारत को करीब 110 बिलियन डॉलर का निर्यात घाटा है। किंतु सर्विस सेक्टर मजबूत होने से भारत कुल मिलाकर विदेशी व्यापार के मामले में फायदे में ही रहता है। कहने का मतलब यह है प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी को आंख दिखाने वाला कोई देश बच नहीं पाया है। पहले साल 2017 में चीन से मित्रता के लिए गोटबाया राजपक्षे ने मोदी की सलाह का दरकिनार किया था। उसके बाद नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आंख दिखाई। इसी तरह से साल 2014 में में सत्ता में आने के बाद 4 साल तक लगातार मोदी ने पाकिस्तान की दो सरकारों को हाथ मिलाकर विकास में भागीदार बनने का प्रस्ताव दिया था, जो उन्होंने आतंकी हमलों के द्वारा धवस्त कर दिए। इस वक्त श्रीलंका कंगाल है तो नेपाल व पाकिस्तान कंगाली के मुहाने पर खड़े हैं। ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि जो भी मोदी को आंख दिखाता है, वह बर्बाद हो जाता है।

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