इसलिए भाजपा बढ़ रही है और कांग्रेस घट रही है

पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दो वीडियो वायरल हुए थे। कहते हैं कि भाजपा आईटी सेल ने इनको वायरल किया था। इनमें से एक में राहुल गांधी किसी महिला के साथ खड़े हैं और कुछ बात करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि दूसरे में अपने मोबाइल फोन में कुछ टाइप कर रहे हैं। महज 22 सैकेंड के इन दोनों वीडियो के वायरल होने पर कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर सफाई देनी पड़ी। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने साफ किया कि वीडियो में नेपाल में चीन की राजदूत नहीं हैं, जिनके उपर विषकन्या होने के आरोप लगते रहते हैं, बल्कि एक महिला पत्रकार हैं, जिनकी शादी में राहुल गांधी काठमांडू गये हुए थे। वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। लोग कमेंट्स करते ही हैं और सोशल मीडिया है भी खुली डिबैट के लिए, ताकि सबकी भावनाएं सामने आ सकें। हालांकि, कभी कभी यही सोशल मीडिया किसी की छवि धूमिल तक कर देता है, जिसका प्रभावित व्यक्ति को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ता है। किंतु सवाल यह उठता है कि इस तरह से हर बार केवल राहुल गांधी ही क्यों टारगेट किए जाते हैं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष या पूर्व अध्यक्ष इस तरह से उल्टा—सीधा करते हुए ट्रोल क्यों नहीं होते हैं? क्या कांग्रेस की आईटी सेल कमजोर है, या फिर भाजपा इस तरह के वीडियो दबा देती है। कई बार कांग्रेस व अन्य दलों की ओर से आरोप लगे हैं कि भाजपा की केंद्र सरकार सोशल मीडिया कंपनियों को अपने हिसाब से इंफ्लूएंस के लिए काम में लेती है। इस बात का सबूत अभी तक नहीं मिला है, लेकिन जो मिला है, उसके अनुसार तो राहुल गांधी खुद ही इस तरह से ट्रोल होने के लिए जिम्मेदार हैं। कभी उपाध्यक्ष रहते हुए राजस्थान में मंथन के दौरान अपनी ही यूपीए सरकार द्वारा ड्राफ्ट भूमि अधिग्रहण बिल को सबके सामने फाड़कर फैंकने को लेकर घिरे राहुल गांधी को कवि कुमार विश्वास ने पप्पू नाम दिया था। बाद में वर्तमान कांग्रेसी नवजोत सिंह सिद्धू ने इस नाम को खूब उछाला और इतना प्रसिद्ध कर दिया कि कांग्रेस इससे पूरी तरह से बैकफुट पर आ चुकी है। आज जिन लोगों के नाम पप्पू हैं, उनको शर्मिंदा होना पड़ता है। कभी लोग प्यार से अपने बच्चों को पप्पू कह देते थे, लेकिन पिछले एक दशक में महौल ऐसा बदला है कि लोगों ने अपने बच्चों के नाम पप्पू रखना ही बंद कर दिया है। खैर! बात राहुल गांधी के वीडियो वायरल होने की करें तो वैसे तो राहुल भाजपा के टारगेट पर रहते ही हैं, लेकिन साथ ही उनकी हरकतें भी कैमरा फ्रेंडली हो गई हैं, मतलब वह हमेशा क साधारण बच्चे की तरह बर्ताव करते हैं। सबसे पुरानी पार्टी का पूर्व अध्यक्ष यदि ऐसे करेगा, तो लोग ट्रोल तो करेंगे ही ना। मई 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद जिस तरह से राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया और किसी गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने पर अड़े, उसके बाद लोगों ने रणछोड़दास तक कह दिया। हालांकि, जुलाई में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है और एक बार फिर से राहुल गांधी से अध्यक्ष बनते हुए नजर आ रहे हैं। शायद यही कारण है कि भाजपा ने उनको अभी से लक्ष्य पर ले लिया है, ताकि बाद में किसी भी चुनाव के समय ट्रोल करने में सहजता रहे। इस बात को या तो कांग्रेस नहीं समझ रही है, या फिर राहुल गांधी भी इतने योग्य हैं कि उनके किए हुए पर कांग्रेस पर्दा नहीं डाल पाती है। इधर, भाजपा की बात की जाए तो करीब डेढ साल पहले तक पार्टी अध्यक्ष अमित शाह थे, जो राजनीति के चाण्क्य कहे जाते हैं, और उसके बाद से जेपी नड्डा पार्टी को संभाल रहे हैं। खास बात देखिए, पिछले साल ही पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए हैं और उसको हारने के तुंरत बाद ही भाजपा ने कहा कि वह टीएमसी की ममता बनर्जी वाली सरकार को गलत काम नहीं करने देंगे, पूरी पांच साल विपक्षी कठोर भूमिका अपनाई जाएगी। दो दिन से गृहमंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल में हैं और रैलियां ऐसे कर रहे हैं, मानो चुनाव नजदीक हों। इससे पहले पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के दूसरे दिन जहां सभी विपक्षी दल चुनाव जीतने की खुशी और हारने का दुख मना रहे थे, उसी दिन सुबह सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के अहमदाबाद में रॉड शॉ कर रहे थे। मतलब यह है कि भाजपा ने साफ किया कि भले पांच में से चार राज्यों में चुनाव जीत गये हों, लेकिन वे आराम नहीं करेंगे, बल्कि अगले चुनाव की तैयारी करेंगे। अब इस साल के अंत तक गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और जम्मू कश्मीर में भी चुनाव होने की संभावना है। उससे पहले जहां विपक्षी दल आराम फरमा रहे हैं, तो भाजपा फुल चुनावी मोड में आ चुकी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अगले साल के दिसंबर में चुनाव हैं, लेकिन भाजपा इन राज्यों में भी अभियान शुरू कर चुकी है। मतलब साफ है कि भाजपा जीत से और हार से बैठने वाली नहीं है, उसको तो बस चुनाव में पूरी ताकत से जाना है। पंजाब में हारने के बाद भाजपा को पता है​ उससे सटे हुए हरियाणा और राजस्थान में भी विपरीत असर होने वाला है, तो 10 व 11 को पंजाब के करीबी श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में जेपी नड्डा कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करने जा रहे हैं। इसी अवसर पर श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में जहां फिजिकली जिला कार्यालयों का उद्घाटन करेंगे तो बाकी 13 जिलों में वर्चुवली उद्घाटन करने वाले हैं। एक तरफ जहां कांग्रेस अपना प्रदेश कार्यालय नहीं बना पा रही है, तो भाजपा ने हर जिले में कार्यालय बना लिए हैं। राजस्थान में तीन जिला कार्यालयों का उद्घाटन पहले किया जा चुका है, तो 15 का अब होने जा रहा है। मतलब यह है कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया के नेतृत्व मे ना केवल संगठन मजबूत हो रहा है, वरन सभी जिलों में कार्यालय भी बनकर तैयार हो रहे हैं। भाजपा की यह तैयारी दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव और मई 2024 के लोकसभा चुनाव की है। पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में टारगेट तय कर रखा है, जहां पर मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा युवा नेता भाजपा में जा चुका है, तो राजस्थान में भी सचिन पायलट को सही जगह काम नहीं लेकर पार्टी उनका समय खराब कर रही है। यदि समय रहते पार्टी ने पायलट को राज्य की कमान नहीं सौंपी तो पार्टी 2023 के चुनाव में इतिहास की सबसे बुरी हार देखने वाली है। पार्टी में जमे हुए नेता युवाओं को, मेहनती लोगों को आगे आने ही नहीं देना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके चिकित्सा मंत्री सीएम पद के लिए लड़ रहे हैं, तो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अदावत जग जाहिर हो चुकी है। ऐसे ही कांग्रेस की युवा रीढ रहे जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत में सहायक बन चुके हैं, जो थक हारकर कांग्रेस छोड़ गये थे। कहने का मतलब यह है​ कि जहां एक ओर राहुल गांधी और पार्टी के शीर्ष नेता चुनाव खत्म होने के साथ ही छुट्टियों पर चले जाते हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा में प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आखिरी बार कब छु​ट्टी ली थी, ये शायद उनको भी पता नहीं होगा। इसी से पता चलता है कि भाजपा लगातार जीतती क्यों है और कांग्रेस हारती क्यों है? इतने के बाद भी कांग्रेस के नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि भाजपा की रणनीति उनसे पांच साल आगे चलती है। इधर, कल ही जन्मी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को दिल्ली व पंजाब से बुरी तरह से हराकर बाहर कर दिया है, तो उसकी नजर गुजरात, हिमाचल प्रदेश पर है, जहां पर भाजपा सत्ता में है। गुजरात में तो भाजपा बीते 27 साल से राज कर रही है,​ फिर भी कांग्रेस उसको सत्ता से बाहर करती नजर नहीं आ रही है, बल्कि आम आदमी पार्टी ही विपक्षी दल बनती दिखाई दे रही है, जैसे पिछली बार पंजाब में बनी थी। हालांकि, आम आदमी पार्टी का जीतने का कारण उसकी फ्री घोषाणाएं हैं, लेकिन जिस तरह से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बिहार से अपना दल बनाकर चुनाव में उतरने का ऐलान कर चुके हैं, उसके बाद लग रहा है कि कांग्रेस अब बिहार का सपना भी पूरी तरह से छोड़ने वाली है। क्योंकि वहां पर जेडीयू—भाजपा का गठबंधन सत्ता से बाहर होगा तो प्रशांत किशोर एक नई उम्मीद बनकर सामने आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए अपने आप ही देशभर में स्थान खत्म होते जा रहे हैं। बावजूद इसके कांग्रेस आलाकमान यह मानने को तैयार नहीं है कि युवा व मेहनती नेताओं को लगातार दबाने और गांधी परिवार के कारण ही कांग्रेस गर्त में जा रही है।

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