नरेंद्र मोदी टक्कर दे पाएंगे प्रशांत किशोर?

पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मिलने के बाद भी कांग्रेस में शामिल नहीं हो सके राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आखिर अपना रास्ता तलाश लिया है।उन्होंने ने साफ किया है कि वह बिहार में 2 अक्टूबर से 3000 किलोमीटर की जन सुराज यात्रा निकालेंगे। उसके बाद जनता की राय, जरुरतों और राज्य की आवश्यकता के अनुसार तय करेंगे कि आगे क्या करना है? क्या पार्टी बनानी है या फिर किसी दूसरी पार्टी में शामिल होकर उसको सहारा देना है, ये सबकुछ उसके बाद ही तय किया जाएगा? इन दिनों प्रशांत किशोर के कई टीवी इंटरव्यू और अखबारों के साथ साक्षात्कार में इसी के इर्द—गिर्द सबकुछ प्रशांत किशोर कह रहे हैं। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 2012 से 2014 तक राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर साथ रहने वाले प्रशांत किशोर गहन रणनीति बनाने के कारण वर्तमान में भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाते हैं। उनका यह कहना कि "लोकतंत्र में असली मालिक जनता है, राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बहुत बना ली, अब समय आ गया है कि जनता के बीच जाकर अपनी बात रखी जाए। लोगों के बीच उनकी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकें और 'जन सुराज' की पथ पर अग्रसर हो सकें।" इसी से साफ हो जाता है कि वह आगे क्या करने जा रहे हैं? हालांकि, अपने हर इंटरव्यू में वह यही कहते हैं कि पार्टी बनेगी या नहीं बनेगी, ये सबकुछ बाद में तय होगा, किंतु उनकी इन्हीं बातों से साफ हो जाता है कि वह अब कुछ बड़ा करने जा रहे हैं, जो सियासी विकल्प होगा। बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा को लेकर राजनीति तेज जो गई है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने उनपर कटाक्ष करते हुए कहा है कि सारे देश में घूम लिए, कहीं जगह नहीं मिली तो लौटकर बिहार आ गये हैं। राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता ने कहा कि कि प्रशांत किशोर किसी गुप्त एजेंडे के तहत कार्य कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि वे कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। असल में प्रशांत किशोर वर्तमान सरकार के लिए हुए चुनाव के बाद कुछ समय के लिए जनता दल यू में रह चुके हैं, किंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मतभेद होने के बाद पार्टी छोड़ दी थी, जबकि प्रशांत किशोर का कहना है कि मुझे जनता दल यू से निकाला गया है। इससे पहले बीते दिनों प्रशांत किशोर ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने से इनकार कर दिया था। कांग्रेस पार्टी का उद्धार करने के लिए उन्होंने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्षा सोनिया गांधी के सामने करीब 600 स्लाइड का पावर पाइंट प्रजेंटेशन भी दिया था, लेकिन अंतिम समय में बात नहीं बन सकी और प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस करीब एक सप्ताह के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने उनके पक्ष और विपक्ष में खूब बयान दिए, लेकिन अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, दिग्विजय सिंह जैसे पुराने कांग्रेसियों ने राहत की सांस तब ली, जब उनको पता चला कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल नहीं हो रहे हैं। प्रशांत किशोर राजनीति में पीके के नाम से मशहूर हो चुके हैं। उनकी जन सुराज यात्रा डिजिटल तकनीक से लैस होगी और जनसंपर्क करने के नए और उन्नत तकनीक के साथ लॉन्च होगी। इतना सबकुछ करने के बाद भी वह कह रहे हैं कि नई पार्टी नहीं बनाने वाले है, लेकिन संभावना यह भी जताई जा रही है कि जन सुराज यात्रा के जरिए प्रशांत किशोर अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश कर रहे हैं और इसके बाद आने वाले 2 या 3 साल में नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर सकते हैं, क्योंकि वैसे भी अभी बिहार में विधानसभा चुनाव नवंबर—दिसंबर 2025 में हैं, जो काफी दूर हैं। 45 साल के प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में 1977 में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं, और पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। प्रशांत किशोर की पत्नी का नाम जाह्नवी दास है और वह पेशे से गुवाहाटी में डॉक्टर हैं। उनका एक बेटा है। प्रशांत किशोर साल 2012 से दो साल तक नरेंद्र मोदी के साथ रहे, लेकिन वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी को केंद्र की को सत्ता में लाने की वजह से चर्चा में आए थे, तब से उन्हें बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है। अब बात यह कहना जरुरी है कि प्रशांत किशोर कितने सक्सेज हो सकते हैं, या सक्सेज होना चाहिए? प्रशांत किशोर की बिहार में सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि बचे हुए करीब तीन साल में नीतिश कुमार की सरकार कैसा काम करती है? क्योंकि नीतिश कुमार नवंबर 2015 के चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन के मुख्यमंत्री बने थे, बाद में सीबीआई मुकदमा होने के कारण जुलाई 2017 में उनको आरजेडी का छोड़कर भाजपा के साथ जाना पड़ा। कहते हैं कि नीतिश कुमार भाजपा के साथ से खुश नहीं हैं, लेकिन एक मर्डर केस में फंसे होने के कारण उनको मजबूरन भाजपा के साथ गठबंधन में रहना पड़ रहा है। इसलिए वो चाहकर भी इस अलाइंस से बाहर नहीं निकल सकते। इस कार्यकाल से पहले नीतिश कुमार व भाजपा के बीच दो सरकारों का गठबंधन रहा है, लेकिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद नीतिश कुमार की टिप्पणी से दोनों दलों के बीच कुछ समय के लिए दरार पैदा हो गई थी। इन दिनों एक चर्चा यह भी है कि नीतिश कुमार राष्ट्रपति बनना चाहते हैं। हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि नीतिश कुमार के समर्थक उनको उपराष्ट्रपति पद तक देखकर भी खुश हैं। किंतु दिक्कत यह है कि जुलाई में होने वाले प्रेसिडेंट चुनाव में भाजपा किसको राष्ट्रपति का चेहरा बनाएगी, इस बात का अंदाजा खुद भाजपा के नेताओं तक को नहीं है। भाजपा वाले कहते हैं कि मोदी—शाह की जोड़ी वहां से सोचना शुरू करती है, जहां दूसरे दलों के लोग सोचना बंद कर देते हैं। यही कारण है कि जहां मीडिया और सियासी लोग दिमाग खपा रहे होते हैं, भाजपा का वहां से उम्मीदवार नहीं निकलता है। ऐसे में नीतिश कुमार क्या बनेंगे, बनेंगे या नहीं बनेंगे, अभी इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। बात प्रशांत किशोर की करें तो वह नरेंद्र मोदी के बाद जदयू, कांग्रेस टीएमसी, आप समेत कई दलों के साथ राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर काम करे चुके हैं। यह बात सही है कि राजनीतिक दलों के रणनीतिकार होने के कारण उनके पास सभी दलों की अच्छाई और बुराई, दोनों है। इसलिए शायद वह पार्टी बनाएंगे तो इन दलों की बुराई को छोड़कर ही आगे बढ़ेंगे। इन दिनों उनके इंटरव्यू देखकर सहज ही कोई अंदाजा लगा सकता है कि वह महात्मा गांधी की विचारधारा पर चलेंगे और भीमराव अंबेडरकर के संविधान को हमेशा आगे रखने वाले हैं। यह बात सही है कि चाहे टीवी का इंटरव्यू हो या अखबार का, हर जगह प्रशांत किशोर जिस चतुराई से जवाब देते हैं, वैसे जवाब आज भारत की राजनीति में अंगुलियों पर गिन लेने वाले नेता ही दे पाते हैं। इससे भी अच्छी बात यह है कि प्रशांत किशोर किसी नेता के बयान पर नकारात्मक टिप्पणी के जरिये प्रचारित नहीं होना चाहते हैं। वह नकारात्मक बयानों से बिलकुल बचकर निकल रहे हैं। इससे यह भी लगता है कि वह राजनीति का एक नया इतिहास लिखना चाहते हैं, जिसमें विकास की बात हो, ना कि थोथी और झूठी राजनीति के सहारे आगे बढ़ा जाए। अभी उन्होंने बिहार को फोकस किया है, जो जन्मभूमि होने के कारण स्वभाविक भी है, लेकिन महज 45 साल की उम्र में इतनी ​बढ़िया राजनीतिक समझ रखने वाले प्रशांत किशोर यदि राजनीति में आएंगे तो निश्चित तौर पर भारत की सियासत में एक नई धारा का प्रवाहित होगी, जिसमें आज की पढ़ी—लिखी और समझदार कही जाने वाली पीढ़ी भी बहना चाहेगी, जो सियासी गंदगी की वजह से दूर भागती जा रही है। कुछ लोगों का यह मानना है कि प्रशांत किशोर भाजपा के ही प्रोजेक्ट हैं। इस बात पर सहसा विश्वास इसलिए भी होता है, क्योंकि भाजपा कितने स्तर की राजनीति करती है, इस बात को भाजपा के ही कई नेता तक नहीं समझ पाते हैं। भाजपा—आरएसएस की रणनीति को समझने के लिए उनके साथ बरसों काम का अनुभव होना आवश्यक है। अन्यथा विपक्षी दल जहां तक सोच पाते हैं, उससे कहीं आगे भाजपा का शीर्ष स्तर सोचना शुरू करता है। विपक्षी दल आज के चुनाव लड़ रहे होते हैं और भाजपा इसी चुनाव में अगले चुनाव की तैयारी कर रही होती है। साल 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को खुद अन्ना हजारे ही गंदी नाली की गंदगी बोल चुके हैं। जिस उम्मीद से लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था, वह केवल फ्री योजनाओं में सिमटकर रह गई है। दिल्ली से लेकर पंजाब तक आप को सत्ता केवल मुफ्त की घोषणाओं के नाम पर मिली है। अब यह ट्रेक वह गुजरात, हिमाचल प्रदेश समेत सारे देश में अपनाना चाहती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज अच्छी बातें करके नई राजनीति का वादा करने वाले प्रशांत किशोर भी यदि सत्ता प्राप्ति के बाद दूसरे केजरीवाल बन गये तो क्या होगा? फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि कांग्रेस तो खुद ही खुद को खत्म करती जा रही है, आम आदमी पार्टी से अब कोई उम्मीद नहीं है, दूसरे दल अपने—अपने राज्यों से बाहर निकलना ही नहीं चाहते हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर जैसे जमीनी सच्चाई जानने वाले नेता यदि अपने दल के साथ मैदान में आते हैं, तो हो सकता है आने वाले बरसों में उनकी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे पाए। क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहु दलीय व्यवस्था होना जरुरी है और उससे भी ज्यादा जरुरी है बेहतर विकल्प, जो जनता की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करता दिखाई दे। प्रशांत किशोर की बातों से और उनकी कार्यशैली से ना केवल बिहार में, बल्कि पूरे देश में एक उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है। इसलिए लोकतंत्र में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति यही कह रहा है कि प्रशांत किशोर को पार्टी बनाकर मैदान में उतर जाना चाहिए, ताकि राजस्थान जैसे राज्य में भी एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा से अलग विकल्प देखने को मिले, जहां पर सत्ता की तरफ बढ़ने से पहले ही आरएलपी दम तोड़ती हुई नजर आ रही है।

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