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पीएम मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की हेकडी निकाली

भारत में अप्रैल 2022 में पेट्रोल और डीजल की बिक्री में वृद्धि नरम रही। घरेलू रसोई गैस एलपीजी की खपत भी घटी है। ईंधन के दाम रिकॉर्ड ऊंचे स्तर पर पहुंचने की वजह से मांग प्रभावित हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च, 2022 की तुलना में अप्रैल, 2022 में पेट्रोल की बिक्री में वृद्धि 2.1 फीसदी रही, जबकि डीजल की मांग लगभग सपाट रही। रसोई गैस एलपीजी की खपत में भी अप्रैल में 9.1 फीसदी की गिरावट आई। पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतें करीब साढ़े चार महीने तक स्थिर रखने के बाद 22 मार्च को पहली बार बढ़ाई थीं। उसके बाद छह अप्रैल तक 16 दिन में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कुल 10-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी गई। भारत अपनी जरुरतों को करीब 85 फीसदी कच्चा तेल सउदी अरब और अन्य रूस जैसे देशों से क्रय करता है, इसमें से रूस से करीब 3 फीसदी आयात करता है। दुनियाभर में तेल के दामों में तेजी से वृद्धि हुई है। ना केवल इंधन महंगा हो रहा है, बल्कि खाने के सामानों की कीमतों में भी बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले ही डेनमार्क में कहा है कि युद्ध तुरंत खत्म होना चाहिए, दोनों देशों को आपस में बैठकर बात करनी चाहिए, क्योंकि कच्चे तेल, गैस से लेकर खाने पीने की चीजों भी महंगी हो रही है, जिसके कारण दुनिया के गरीब देशों के विकास पर विपरीत असर पड़ रहा है। इस बीच यूरोपीयन यूनियन के कई देशों ने कहा कि इस साल के अंत तक रूस से कच्चा तेल व गैस आयात बंद करने का काम किया जाएगा। वर्तमान में जर्मनी और फ्रांस अपनी जरुरतों का करीब 40 से 50 फीसदी कच्चा तेल व गैस रूस से आयात करते हैं। भारत—नोर्डिक का दूसरा सम्मेलन समाप्त हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिन और तीन रात की यात्रा बुधवार रात को समाप्त हो गई। इस दौरान भारत के आईसलेंड, नीदरलेंड, स्वीडन, डेनमार्क और नार्वे के साथ कई स्तर पर समझौते हुए हैं। टैक्नॉलोजी से लेकर ग्रीन एनर्जी तक भारत ने यूरोप के इन देशों के साथ समझौते हुए हैं। यूरोप के लगभग सभी देश भारत के साथ मुक्त व्यापार करना चाहते हैं। फ्री ट्रेड को लेकर पिछले दिनों ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी भारत में आकर समझौते को इस साल के अक्टूबर तक धरातल पर उतारने की उम्मीद जताई है। इस बीच पीएम मोदी की यूरोप यात्रा समाप्ति के साथ ही अमेरिका का सपना भी टूट गया। अमेरिका चाहता था कि यूरोप के ये देश भारत के उपर दबाव बनाएं, ताकि रूस के मामले में भारत निंदा करे। पहले दिन डेनमार्क की प्रधानमंत्री फ्रेडरिक्शन ने भारत से रूस मामले में दबाव बनाने की उम्मीद जताई जरुर, लेकिन किसी भी देश ने भारत से यह नहीं कहा कि रूस को निर्देशित करें, ताकि वह यूक्रेन से बाहर निकल जाए। इस बीच फ्रांस के राष्ट्रपति मैंक्रो ने भी मोदी से मुलाकात की ओर दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। मैंक्रो को भारत आने का न्योता देकर भारत ने साफ किया कि वह रूस या किसी अन्य देश के संबंधों को अपने द्विपक्षीय संबंधों पर असर नहीं पड़ने देंगे। वैसे तो अमेरिका हमेशा ही भारत को दबाव में लेकर रूस के खिलाफ निंदा करवाना चाहता है, लेकिन खुद अमेरिका ही अब घिर गया है। पहले भारत को कच्चा तेल व गैस का आयात बंद करने की हिदायत देने वाले यूरोप को भारत ने यह कहकर जवाब दिया कि जितना तेल ये देश रूस से एक दिन में खरीद करते हैं, उतना तेल भारत एक माह में जाकर खरीदता है, अत: पहले ये देश रूस से आयात बंद करें और फिर भारत को इस मामले में आरोपित करने की सोचें। अब एक नई रिपोर्ट ने अमेरिका की पोल खोलकर रख दी है। इस बीच अब थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने इस युद्ध के दौरान ही भारत की तुलना में रूस से कहीं ज्यादा ईंधन खरीदा है। रिपोर्ट के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध अमेरिका के लिए आपदा में अवसर लेकर आया है। इससे पहले भी कई बार ये बात सामने आई है कि अमेरिकी कारोबारी जमकर चांदी कूट रहे हैं। हालांकि, अमेरिका हमेशा ही बाहरी तौर पर रूस को लेकर सख्त रुख दिखाता रहा है। अमेरिका ने कई बार अन्य देशों को रूस के साथ व्यापार नहीं करने की हिदायत दी है। युद्ध के दौरान अमेरिका के दबाव में दुनिया के कई देशों ने रूस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं, लेकिन CREA की इस रिपोर्ट ने अमेरिका की हकित एक बार फिर से दुनिया के सामने लाकर रख दी है। सीआरईए ने अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत के बाद से अमेरिका ने भारत से कहीं ज्यादा कच्चा तेल रूस से आयात किया है। इस वक्त रूस से तेल खरीदने वाली लिस्ट में भारत 20वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका को इसी लिस्ट में 18वें नंबर पर रखा गया है। इससे पहले जब रूस ने भारत को सस्ते में कच्चा तेल खरीदने का ऑफर दिया था, तब अमेरिका भारत पर भड़क उठा था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन का कहना था कि युद्ध के समय भारत का यह रवैया ठीक नहीं, जबकि इसके उलट अमेरिका खुद जमकर पैसा कमा रहा है। पहले भी रिपोर्ट आई है कि हथियारों की बिक्री करके अमेरिका इस जंगी आपदा में अवसर तलाश रहा है। वैसे भी चाहे अफगानिस्तान, इराक, इरान या अन्य किसी भी देश में सैन्य अभियान शुरू करना हो या दो देशों के बीच होने वाले युद्ध के दौरान हथियार बेचने का मामला हो, हर बार दो देशों को आपस में लड़ाने और इसका फायदा उठाते हुए अमेरिका पर अपने हथियारों का जखीरा बेचने के लिए बाजार बनाने के आरोप लगते रहे हैं। यूक्रेन व रूस युद्ध में भी यही बात सामने आई है। एक ओर तो अमेरिका लगातार रूस के तेल व गैस खरीद रहा है, तो दूसरी तरफ उसके खिलाफ लड़ने वाले यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियार बेच रहा है। इससे पता चलता है कि अमेरिका कहता कुछ और है, तो करता कुछ और। वैसे भी अपने हितों को अमेरिका हमेशा आगे रखता है, चाहे उसको इसके लिए कितने भी देशों को बर्बाद क्यों ना करना पड़े, सभ्यताएं नष्ट करनी पड़े। किंतु रूस व यूक्रेन मामले में उसने भारत के सामने मुंह की खाई है, जिससे तिलमिलाया हुआ है और भारत के खिलाफ साजिशें करने का काम कर रहा है। अब यह तो मोदी सरकार की रणनीति पर निर्भर करता है कि अब तक अमेरिका को दुनिया के सामने आइना दिखाया गया है, उसी ​तरह से आगे की रणनीति रहेगी या फिर दुनिया की महाशक्ति के सामने आंख से आंख मिलाकर बात करने की हिम्मत जारी रहेगी।

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