मोदी के राष्ट्रवादी मिशन में रोड़ा बन रहा है अमेरिका!

सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रवादी संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पिछले दिनों एक बयान दिया था, जो काफी चर्चा में रहा था। भागवत ने कहा था कि आने वाले 10 से 15 साल में अखंड़ भारत का सपना साकार हो जाएगा, इसके लिए भारत किसी के खिलाफ हिंसात्मक अभियान नहीं चलाएगा, किंतु ये दुनिया शक्ति की भाषा ही समझती है, इसलिए भारत एक हाथ में छड़ी रखते हुए अखंड़ भारत का सपना साकार करेगा। मोहन भागवत के बयान को लेकर देश—दुनिया में खूब चर्चा हुई थी। भारत से लेकर अमेरिका तक आरएसएस प्रमुख के बयान का एक वर्ग ने समर्थन और दूसरे ने जमकर आलोचना की। जो इस बयान के भाव को समझ नहीं सके, उन्होंने इसको भारत की विस्तारवादी नीति तक कह दिया, जबकि भारत ने आज दिन तक किसी भी देश के खिलाफ एक बार भी विस्तारवादी नीति के तहत कदम नहीं उठाया। किंतु आलोचना करने वालों के मस्तिष्क का स्तर अलग होता है और बयान देने वाले के बयान का भाग दूसरा होता है। जिन्होंने उस बयान की गहराई समझी, उन्होंने प्रशांसा की, तो जो हमेशा आलोचना ही करना जानते हैं, उन्होंने बयान को अपने हिसाब से लेकर आरएसएस को फासिस्ट संगठन भी करार दिया। यह अपनी अपनी समझ का नजीता था, लेकिन बयान को लेकर दुनियाभर में खूब चर्चा हुई, एक नई बहस को जन्म दे दिया। बहुत सारे लोगों ने इसको ख्याली पुलाव करार दिया, जबकि आरएसएस की कार्यप्रणाली, लक्ष्य आधारित सोच और साथ में भाजपा द्वारा समयबद्ध तरीके से किए जा रहे कार्यों को देखते हुए ना केवल समर्थकों को भागवत के इस बयान पर विश्वास है, बल्कि मोदी सरकार द्वारा धारा 370 हटाने, राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रसस्त करने के बाद विरोधियों को भी भरोसा हो गया है कि आरएसएस प्रमुख ने बयान कुछ सोचकर ही दिया होगा। रूस व यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका प्रमुख होती जा रही है। अमेरिका इस बात को जान चुका है कि जब तक भारत इसमें मध्यस्थता नहीं करेगा, तब तक युद्ध की समाप्ति असंभव है। ऐसे में अमेरिका भारत के साथ कई तरह की रणनीति अपना रहा है। अब तक देखा जाए तो अमेरिका की हर रणनीति भारत की रणनीति के आगे फैल साबित हो रही है, क्योंकि सभी मामले ऐसे हैं, जिनसे भारत टक्कर ले सकता है और उनको अपने स्तर पर ही समाप्त भी कर सकता है। कई बार युद्ध सीधे के बजाए, पर्दे के पीछे से अधिक घातक साबित होते हैं। कहते हैं कि किसी को बर्बाद करना हो तो उसके परिवार में फूट डाल दो, किसी के पिता को बर्बाद करना हो तो उसकी संतान को बगावत पर उतार दो, किसी को शीतयुद्ध में मात देनी हो तो उसके चारों और दुश्मनों की संख्या बढ़ा दो। ऐसे ही कुछ हथियार अमेरिका समेत दादागिरी करने वाले देशों के द्वारा आजमाए जाते हैं, जिनमें सामने से युद्ध नहीं होते, बल्कि परोक्ष अधिक होते हैं। कहावत भी है, सबसे ताकतवर आदमी हमेशा अपनी संतान के आगे हार जाता है। भारत पर यह कहावत फिट बैठ सकती है। भारत को अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने, हथियार सप्लाई करने, मोटा निवेश करने से लेकर चीन का डर और क्वाड से बाहर करने की रणनीति से हराने का प्रयास किया, लेकिन उसकी पार नहीं पड़ी। अब अमेरिका ने नई चाल चली है। अमेरिका को पता है कि भारत में कम्यूनल दंगे कराना बहुत आसान है, लेकिन मोदी सरकार की सूझबूझ के कारण ऐसा हो नहीं पा रहा है। ऐसे में अमेरिका ने दूसरी चाल चली और यह चाल काफी हद तक सफल भी रही है। भारत के बाद सिख कौम सबसे ज्यादा कनाडा और फिर अमेरिका में रहती है। वैसे तो इंदिरा गांधी के जमाने से ही पंजाब को खालिस्तान के रुप में अलग देश बनाने की कोशिशें भिंडरेवाला और उसके समर्थकों ने की है, लेकिन पार नहीं पड़ रही है। तीन कृषि कानूनों के बाद दिल्ली की सिंधु बॉर्डर पर पंजाब के किसानों ने 13 महीनों तक डेरा डाले रखा था। उस दौरान कई ऐसी चीजें सामने आईं जो सीधे तौर पर आंदोलन के पीछे खालिस्तान समर्थकों का हाथ सामने आया। सरकार को बिना किसी हिंसा के 13 महीनें बाद तीनों कानून वापस लेने पड़े। उस आंदोलन को वैसे तो विपक्षी दलों ने किसानों की जीत के तौर पर प्रचारित किया, लेकिन असल बात यह थी कि मोदी सरकार को मिली इंटेलिजेंस की गंभीर सूचनाओं के कारण सरकार पीछे हटी थी। इसका खुलासा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले दिए गए एक टीवी इंटरव्यू में किया गया, हालांकि उन्होंने इसकी वजह नहीं बताई, लेकिन उन्होंने इतना कहकर साफ कर दिया कि उस आंदोलन के पीछे बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय साजिश थी, जिसके कारण सरकार ने कदम पीछे हटाये। मोदी ने यह भी बताया कि समय आने पर इसके बारे में बात की जाएगी। मोदी के इस छोटे, किंतु बेहद चिंताजनक बयान को देश को तोड़ने की साजिश के तौर पर देखा गया। बाद में यह भी सामने आया कि किसान आंदोलन तो महज एक बहाना था, असल वजह तो देश के खिलाफ थी। यह भी कहा जाता है कि उस आंदोलन को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के द्वारा बढ़ावा देकर शुरू करवाया गया था, लेकिन बाद में मामला उनके हाथ से निकल गया और पूरे मूवमेंट को खालिस्तानियों ने हाईजैक कर लिया। इसकी पूरी जानकारी खुद कैप्टन ने मोदी सरकार को दी, तब सरकार ने आंदोलन वापस लिया और पहली बार ऐसा हुआ कि सरकार किसी कानून को वापस लेकर पीछे हटी। पिछले दिनों पंजाब के पटियाला में खालिस्तानी समर्थकों ने एक देवी मंदिर पर हमला किया और हिंदू संगठन पर पत्थर फैंके। इसके पीछे भी साफ तौर पर पंजाब में खालिस्तानी समर्थकों की भूमिका रही। पंजाब में एक संगठन है सिख फॉर जस्टिस, यही संगठन अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में बसे सिख समुदाय के साथ कनेक्ट रहता है और वहीं से संचालित होता है, जिसका मकसद पंजाब को खालिस्तान नाम से अलग देश बनाना है। ताजा मामला अमेरिका के कनेक्टिक्ट राज्य का है, जहां पर 29 अप्रैल को राज्य सरकार ने सिख स्वतंत्रता दिवस को मान्यता दी है। इसको लेकर बकायदा सरकार ने एक प्रमाण पत्र जारी किया, जिसके बाद भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है। अमेरिकी सरकार से इसको लेकर एतराज जताया गया है। भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह ने जो बाइडन सरकार के समक्ष ऐतराज जताया है और कहा है कि दो देशों के संबंधों में यह स्वीकार्य नहीं है। भारत व अमेरिका के संबंध अच्छे हैं, लेकिन इसके दम पर भारत में खालिस्तानी समर्थकों को अमेरिका सपोर्ट नहीं कर सकता। असल में सिख फॉर जस्टिस संगठन की ओर से 36 साल से 29 अप्रैल को सिख इंडेपेंडेंस डे के तौर पर मनाया जाता है। इसको लेकर अमेरिका के किसी राज्य ने पहली बार मान्यता दी है, जिसपर भारत की ओर से एतराज किया गया है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब अमेरिका ने इस गतिविधि को स्वीकार कर अलग सिख देश की मान्यता को प्रमाणित किया है। वास्तव में यह मामला इतना आसान नहीं है, जितना दिखाई दे रहा है। वास्तविकता यह है कि इसके पीछे भी अमेरिका द्वारा भारत को रूस के खिलाफ खड़ा के लिए बनाया जाने वाला दबाव ही है। अमेरिका किसी भी हथकंड़े से भारत को दबाव में लेना चाहता है। जब भारत पर बाहरी दबाव काम नहीं कर रहे थे, तब अमेरिका ने अपने एक छोटे राज्य कनेक्टिकट के द्वारा ऐसी छोटी हरकत करवाई गई, ताकि भारत की दुखती रग पर हाथ रखकर भी अमेरिका ब्लैकमेल कर सकता है। भारत सरकार ने इसको ज्यादा तवज्जो नहीं देकर यह बता दिया कि बात ध्यान में तो है, लेकिन अमेरिका यह नहीं सोचे कि उसने कोई बड़ा तीर मार लिया है। प्रधानमंत्री मोदी पंजाब चुनाव से पहले और बाद में भी बार बार सिख समुदाय के डेलिगेशन से क्यों मिल रहे हैं? आखिर चार—पांच बार मोदी ने पीएम आवास पर सिख समाज के धार्मिक व राजनीतिक नेताओं से मुलाकात क्यों ​की हैं? अधिकांश को यह लगता है कि मोदी पंजाब चुनाव जीतने के लिए सिख समुदाय के डेलिगेशन से मिल रहे हैं, लेकिन हकिकत यह है कि मोदी तो आज चुनाव के काफी समय बाद भी सिख समुदाय के लोगों से मिलकर अपनी आत्मीयता दिखा रहे हैं। पिछले दिनों मोदी ने गुरु तेगबहादुर के 400वें प्रकाश पर्व को लालकिले से मनाया और पूरे विश्व में सिख समुदाय को यह संदेश दिया कि सिख समुदाय भारत की आत्मा है। फिर भी कुछ स्वार्थी तत्वों के दम पर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देश भारत में खालिस्तानी समर्थकों को उकसाते रहते हैं। यह अमेरिका का नया हथियार है, अब देखना होगा कि हर मुद्दे पर अमेरिका को आइना दिखाने वाली मोदी सरकार इस मामले को किस रणनीति से निपटाती है?

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