मोदी—पुतिन की दोस्ती से तिलमिलाया अमेरिका

भारत से एक तरफा सहयोग नहीं पाने से निराशा झेल रहे अमेरिका ने नई चाल चली है। उसने भारत पर दबाव बनाने के लिए एशिया महाद्वीप के बड़े संगठन से बाहर करने की नौटंकी शुरू कर दी है। अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि रूस—यूक्रेन युद्ध के मामले में अमेरिका और यूरोप का साथ नहीं देने की भारत को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अमेरिकी मीडिया की खबर के अनुसार अमेरिका भारत को क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग, यानी क्वाड से बाहर करने की योजना बना रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत की जगह इस संगठन में दक्षिण कोरिया को लिया जाए, जिसके लिए साउथ कोरिया लंबे समय से प्रयास कर रहा है। भारत के साथ रूस के संबंधों के कारण अमेरिका खुश नहीं है। यही कारण है​ कि भारत को छोड़कर दक्षिण कोरिया से अमेरिका की दोस्ती बढ़ने लगी है। चीन के एशिया टाइम्स से ऐसी खबर आई है, जो भारत के लिए चिंताजनक बताई जा रही है। चीन पर लगाम लगाने के लिए 2004 में बनाए गये क्वाड में भारत की जगह दक्षिण कोरिया विकल्प बन सकता है। असल में दक्षिण कोरिया हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका के साथ आगे बढ़ने के लिए ज्यादा हाथ पैर मार रहा है। इसके पीछे की वजह हैं दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति यून सुक येओल। दक्षिण कोरिया को पता है​ कि रूस यूक्रेन युद्ध में भारत द्वारा रूस की निंदा नहीं करने के कारण अमेरिका नाराज है, जिसको फायदा उठाने के लिए जोर लगाया जा रहा है। पिछले महीने अमेरिकी डिप्टी एनएसए ने दलीप सिंह ने भारत में आकर रूस को लेकर असंतुष्टि जाहिर करते हुए चीन का डर दिखाया था। दलीप सिंह ने कहा था कि जब चीन के द्वारा भारत पर आक्रमण किया जाएगा, तब रूस उसका साथ नहीं देगा, जिसके जवाब में भारत ने कहा था कि उसको ना रूस की सहायता चाहिय और ना ही चीन का डर है, और वैसे भी कभी अमेरिका ने चीन के खिलाफ भारत का साथ दिया भी नहीं है। रूस लगातार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने पर जोर दे रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इसी मामले को लेकर भारत से तनाव की स्थिति में नजर आ रहे हैं। क्योंकि जो बाइडन आधा दर्जन बार बार ये प्रयास कर चुके हैं कि भारत किसी भी तरह से रूस का साथ छोड़कर उसका साथ दे, लेकिन भारत कई बार स्पष्ट किया है कि वह अपने हितों के साथ समझौता नहीं करेगा, बल्कि गुट निरपेक्ष नीति के तहत अपने वैश्विक संबंध बनाए रखेगा। अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत कई नेताओं के साथ मुलाकात के बाद भारत को रूस के साथ संबंधों को लेकर चेतावनी दी है। उसने कहा क‍ि इससे रूस के खिलाफ अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंध कमजोर हो जाएंगे, वह भी तब, जब अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षामंत्री ने अपनी यूक्रेन यात्रा के दौरान साफ कर दिया था कि उनकी वर्तमान रणनीति रूस को पूरी तरह से घेरेबंदी करने की है। भारत ने साफ कह दिया है कि अमेरिका के साथ दोस्‍ती जरूरी है, लेकिन वह रूस को नहीं छोड़ सकता है। इससे नाराज बाइडन ने भारत के मानवाधिकार और लोकतंत्र को लेकर निशाना साधा था। रूस को लेकर अमेरिका और भारत के बीच संबंधों में आई तल्‍खी से क्‍वॉड के अंदर भारत के विकल्‍प का रास्‍ता बनता जा रहा है। दक्षिण कोरिया इस जगह को लेने के लिए आतुर नजर आ रहा है, जो एक लोकतांत्रिक देश है और बड़े पैमाने पर हथियारों का निर्यात करता है। इसके अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्‍यवस्‍था बनाए रखने में अमेरिका का घनिष्‍ठ सहयोगी है। आने वाले समय में दक्षिण कोरिया क्‍वॉड प्‍लस और जी-7 प्‍लस के रूप और ज्‍यादा प्रभावी भूमिका हासिल करने की कोशिश करेगा। दक्षिण कोरिया के राष्‍ट्रपति यून ने ऐलान किया है कि उनका देश विस्‍तारित क्‍वॉड का सदस्‍य बनने के लिए तैयार है। हालांकि, यह तय है कि दक्षिण कोरिया के क्‍वॉड में आने के बाद भी भारत जो दुनिया का दूसरा सबसे ज्‍यादा आबादी वाला देश है, पश्चिमी देशों के लिए भविष्‍य के लिहाज से रणनीतिक केंद्र बना रहेगा। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ हाल ही में बातचीत के दौरान बाइडन ने व्‍यापक रणनीतिक भागीदारी बनाने का प्रण लिया था। इस तरह से उन्‍होंने दोनों ही देशों के बीच संबंधों में आई तल्‍खी को खत्‍म करने की कोशिश की थी। दक्षिण कोरिया के राष्‍ट्रपति ने यह भी संकेत दिया है कि वह अमेरिका की हवाई रक्षा प्रणाली थाड को भी अपने यहां लगाने के लिए तैयार हैं। इस तरह से देखा जाए तो अमेरिका ने रूस से संबंध तोड़ने के लिए अपने सभी हथियार आजमा लिए हैं, अब वह क्वॉड वाला हथियार आजमाना चाहता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी मीडिया के द्वारा ये खबरें प्रसारित करवाई जा रही है कि अमेरिका क्वाड में भारत की जगह दक्षिण कोरिया को लेना चाहता है। दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति हिंद प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण कोरिया के रुख में बदलाव करने के बारे में सोच रहे हैं। माना जा रहा है​ कि रूस को लेकर अमेरिका और भारत के बीच जो मतभेद पनप रहा है, उसका फायदा उठाने के लिए दक्षिण कोरिया आगे आ रहा है। असल में क्वाड अमेरिका, आस्ट्रेलिया, भारत व जापान नामक चार देशों का समूह है। इन चारों देशों के बीच 2004 में आई सुनामी के बाद 2007 में समुद्री सहयोग शुरू हुआ था। पहले चीन के दबाव की वजह से आस्ट्रेलिया इस ग्रुप में नहीं था, लेकिन बाद में वह भी शामिल हो गया। वर्ष 2017 में जब चीन का खतरा बढ़ा और वह दादागिरी पर उतर आया, तो इन चारों देशों ने मिलकर फिर से क्वाड को जिंदा कर लिया और इसका विस्तार किया। इसके तहत हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के देशों ने समुद्र में फ्री ट्रेड को बढावा दिया। क्वाड का मुख्य उद्देश्य इंडो—पेसेफिक रीजन में समुद्री रास्तों पर किसी भी देश की तानाशाही को रोकना है। इसमें असल तो चीन की दादागिरी को रोकना अहम है। बीते सालों में क्वाड एक ताकतवर क्षेत्रीय संगठन बनकर उभरा है, जो एशिया—प्रशांत क्षेत्र में लगातार अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटे चीन पर नकेल कसने में सफल रहा है। किंतु इस वक्त रूस के खिलाफ अमेरिकी मर्जी के मुताबिक भारत द्वारा निंदा प्रस्ताव पास नहीं किए जाने के कारण स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही हैं। दक्षिण कोरिया के क्वाड में शामिल होने से भारत के इससे बाहर निकलने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि भारत तो वैसे भी चीन से मुकाबला करने का आदी हो चुका है, लेकिन इंडो—पेसेफिक रीजन में अमेरिका की भारत के बिना पार नहीं पड़ने वाली है। इसलिए भले ही अमेरिकी मीडिया भारत को क्वाड से बाहर करने की खबरें प्रसारित कर रहा हो, लेकिन हकिकत यह है​ कि ना तो अमेरिका इस समूह में से भारत को बाहर कर सकता है और ना ही यह समूह भारत के बिना प्रभावी रुप से जिंदा रह सकता है। असल बात तो यह भी है​ कि रूस—यूक्रेन युद्ध के मामले में अमेरिका विश्व समुदाय के समक्ष की बुरी तरह से फजीती हुई है, जिसके कारण वह तिलमिलाया हुआ है। अब तक अमेरिका जहां भी प्रत्यक्ष या परोक्ष अभियान चलाता था, वहां से जीतकर ही निकलता था, लेकिन पहली बार उसको मुंह की खानी पड़ रही है, जिसके कारण वह बुरी तरह से झल्ला उठा है। उसने भारत को साम, दाम, दण्ड, भेद समेत सभी रणनीतिक दांव से अपने पाले में लेने के प्रयास कर लिए, लेकिन जो बाइडन को हर बार करारी मात खानी पड़ी है। हालात, इस कदर हो गये हैं कि उसको यूरोप के छोटे देशों के सहारे भारत को अपनी ओर मोडने की उम्मीद है, जबकि भारत ने दुनिया को साफ मैसेज दिया है​ कि वह किसी की परवाह करने वाला नहीं है। अमेरिका की सभी चालें फैल होने के कारण अब समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे? ऐसे में वह क्वाड से भारत को बाहर करने की धमकी भरी खबरें प्रसारित करने का काम भी करने लगा है। जो बाइडन प्रशासन की रणनीतिक कमजोरी को इससे समझ सकते हैं कि अमेरिका का डिप्टी एनएसस दलीप सिंह भारत आकर चीन के डर की धमकी देकर जाता है, जिसको शायद यह पता नहीं है कि भारत इस डर का मुंह तोड़ जवाब देते हुए ही बड़ा हुआ है। कभी प्रतिबंधों का डर दिखाने, रूस की जगह खुद भारत को हथियार सप्लाई का वादा करने, रूस की जगह सभी तरह के संसाधन उपलब्ध करवाने, चीन का डर दिखाकर अपनी ओर मोडने, फिर अचानक से टू प्लस टू की मीटिंग कर करीब 3 लाख करोड़ का निवेश करने जैसे कार्यों से भारत को अपने पाले में लेने में विफल रहने वाले दुनिया की महाशक्ति अमेरिका ने क्वाड में भारत को अलग करने की खबरों का एक और दुष्चक्र चलने का प्रयास किया है। पिछले दिनों ही भारत ने यूएन में दक्षिण अफ्रीकी देश और भारत को भी स्थाई सदस्यों की तरह वीटो पावर देने की मांग उठाई है। साथ ही यह भी कहा है कि यदि हमें ​वीटो पावर नहीं दिया जाता है, तो फिर सभी के वोट की ताकत बराबर की जाए, ताकि विश्व को लगे कि उनके साथ बराबर का बर्ताव हो रहा है। इस तरह से यूएन में एक तरफा ताकत हासिल करने वाले स्थाई देशों को भारत ने आइना दिखाया है, तो अमेरिका भारत को क्वाड से अलग करने का विफल प्रयास कर रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही बर्लिन में फिर कहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध से मानवता को नुकसान हो रहा है। खाद्दान से लेकर तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हो रही है। इस युद्ध से कोई नहीं जीतेगा, इससे केवल मानवीय क्षति हो रही है। इस युद्ध के कारण विकासशील देशों व गरीब राष्ट्रों का विकास बाधित हो रहा है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज ने पुतिन से तुंरत युद्ध बंद करने की मांग की है, किंतु इसी मौके पर बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से युद्ध बंद करने की अपील नहीं की है। इससे साफ है कि भारत इस युद्ध के खिलाफ है, लेकिन वह कभी भी रूस की निंदा नहीं करेगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका, भारत को क्वाड से अलग कर पाता है, या फिर अपनी जिद पर आए रूस के आगे महाशक्ति परोक्ष रुप से घुटने टैक देता है।

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