वसुंधरा राजे शक्ति प्रदर्शन क्यों कर रही हैं?

Ram Gopal Jat
कांग्रेस के अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तरह राजस्थान भाजपा में भी अब दो खेमे खुलकर सामने आ चुके हैं। एक खेमा पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां के संगठन का है, तो दूसरा राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है, जो चुनाव नजदीक आने के साथ ही सक्रिय हो गया है। मोदी, शाह और नड्डा के कार्यक्रमों को छोड़ दें तो किसी भी सार्वजनिक सभा या प्रदर्शन में दोनों नेता एक साथ नजर नहीं आये हैं। जहां पर संगठन का कार्यक्रम होता है, वहां पर वसुंधरा राजे नहीं होती हैं, तो जहां पर वसुंधरा कार्यक्रम करती हैं, वहां पर सतीश पूनियां नहीं होते हैं।
पिछले दिनों वसुंधरा ने जन्मदिन से पहले सालासर बालाजी में शनिवार को अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने का प्रयास किया। वसुंधरा राजे की ओर से इस कार्यक्रम में पार्टी के 12 मौजूदा सासंद, 52 विधायक और 118 ​पूर्व विधायकों के जुटने का दावा किया जा रहा है। प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने भी जयपुर में प्रदर्शन के बाद सालासर पहुंचकर वसुंधरा को बधाई दी थी। हालांकि, पार्टी दो फाड़ रही, क्योंकि उसी दिन भाजपा युवा मोर्चा का सीएम आवास घेरने का कार्यक्रम था,​ इसलिये युवा मोर्चा की टीम के अलावा पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया, उपनेता राजेंद्र सिंह राठौड़ समेत बाकी नेता उसी में मौजूद रहे।
वसुंधरा ​राजे की सभा में जुटी भीड़ और विधायकों-नेताओं की संख्या से बीजेपी में सियासी चर्चाएं शुरू हो गई हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक विधानसभा चुनावों से पहले वसुंधरा राजे ने नया नरेटिव सेट कर दिया है। वसुंधरा राजे ने अपने भाषण से समर्थकों और लोगों को भी मेसेज दिया है। उन्होंने कहा कि वह संगठन के सिपाही के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन और अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में विचारधारा की मशाल लेकर आगे बढ़ रहीं हैं, उस मशाल को छोटी—मोटी आंधियां नहीं बुझा सकती हैं। राजे के इस बयान का सियासी संदेश बताता है कि वे जाे कुछ कर रही हैं, उसमें बीजेपी की केंद्रीय लीडरशिप का समर्थन भी उनके साथ है।
इसके पीछे समर्थकों और आम जनता को यही मैसेज माना जा रहा है, कि चाहे कितने भी नेता आएं या जायें, लेकिन वह राज्य में आलाकमान की अनुमति से ही सबकुछ कर रही हैं। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह से लेकर प्रमुख नेताओं और विधायकों के पहुंचने का भी अपना अलग सियासी संदेश है। इस जमावड़े से वसुंधरा ने अपना सियासी प्रभाव भी साबित करने का प्रयास किया है। सालासर में वसुंधरा राजे से मिलने बड़ी संख्या में समर्थक पहुंचे। राजे के गुट ने बताया कि एक लाख लोगों को बुलाने का लक्ष्य था, जो पूरा कर लिया गया है। हालांकि, संख्या कितनी थी, यह स्पष्ट नहीं हुआ है।
इससे पहले वसुंधरा राजे ने 2021 में भी भरतपुर में जन्मदिन मनाने के लिये इसी तरह से जोरदार तैयारी की थी, जिसमें भी एक लाख लोगों की भीड़ का दावा किया गया था। इसके बाद पिछले साल कोटा में भी जन्मदिन में भीड़ को बुलाकर वसुंधरा ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की थी। ऐसा नहीं है कि केवल वसुंधरा राजे ही जन्मदिन को शक्ति प्रदर्शन में बदलने का काम करती हैं। खुद पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने भी 2021 में इसी तरह से जयपुर में अपने आवास पर भीड़ जुटाकर खुद की ताकत दिखाने की कोशिश की थी। सत्ता का हिस्सा रहकर भी विपक्ष की तरह रहने वाले सचिन पायलट ने भी अपने जन्मदिन पर आधा जयपुर जाम कर दिया था।
इस कार्यक्रम के जरिये वसुंधरा राजे का चुनावी साल में फिर से सक्रिय होने से जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले चार विधानसभा चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड भी यही रहा है, जब वसुंधरा राजे चुनावी साल में मार्च-अप्रैल के आसपास लोगों से जुड़ना शुरू करती हैं। इस बार भी उन्होंने प्रदेशभर के कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारियों में जुट जाने का संकेत दे दिया है। साल 2003 में भी इसी समय वसुंधरा राजे पहली बार राज्य में सक्रिय हुई थीं। इसके बाद 2008 में सत्ता से बेदखल हो गईं और 2013 में भी इसी तरह से चुनाव से ठीक 6—7 महीने पहले अचानक सक्रिय होकर मैदान में आ गई थीं। हालांकि, पहली बार वह खुद प्रदेशाध्यक्ष थीं, तो दूसरी बार अरूण चतुर्वेदी जैसा कमजोर अध्यक्ष था। इस बार अध्यक्ष के रुप में ही वसुंधरा राजे के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। डॉ. सतीश पूनियां वसुंधरा की पसंद के नहीं हैं और वह उनका हटाना भी चाहती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है।
आप वसुंधरा राजे द्वारा सतीश पूनियां को नापसंद किये जाने का अंजादा इसी से लगा सकते हैं कि बीते साढे तीन साल में वह ना तो कभी सतीश पूनियां के कार्यक्रमों में नजर आईं और ना ही कभी उनका नाम लिया, जबकि संग​ठन मुखिया होने के नाते प्रादेशिक प्रोटोकॉल में सतीश पूनियां वसुंधरा राजे से बड़े हैं। हालांकि, वह खुद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, इसलिये देशव्यापी प्रोटोकॉल में सतीश पूनियां से बड़ी हैं, लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी राजस्थान की सभाओं में जब शामिल होते हैं तो अपने संबोधन में प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां का नाम लेते हैं। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह की जोधपुर में हुई सभा के दौरान तक वसुंधरा राजे ने अमित शाह के अलावा किसी नेता का नाम नहीं लिया था, जब उस कार्यक्रम में सतीश पूनियां, गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, कैलाश चौधरी जैसे नेता मौजूद थे।
वसुंधरा ने कहा है कि वह हर वर्ष जन्मदिन मनाती हैं और लोग उनको आर्शीवाद देने पहुंचते हैं, इसलिये इसको शक्ति प्रदर्शन के रुप में प्रचारित करना सही नहीं है, क्योंकि उनको शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है। मजेदार बात यह है कि वसुंधरा ने इससे पहले कभी ऐसा बयान नहीं दिया कि उन्हें शक्ति प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि वसुंधरा राजे अपना सियासी शक्ति प्रदर्शन क्यों कर रही हैं? असल बात यह है कि पहली बार वसुंधरा राजे सीएम फेस नहीं हैं। साल 2003 से लगातार चार बार वही सीएम का चेहरा रही हैं, लेकिन इस बार पार्टी ने साफ कह दिया कि 2023 के चुनाव में पार्टी किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनायेगी, बल्कि मोदी और कमल के निशान पर ही चुनाव लड़ेगी।
दूसरी बात यह है कि उनको संगठन में भी पहली बार ही चुनौती मिल रही है। 2003 से 2018 तक उनको कभी किसी तरह की चुनौती नहीं मिली, लेकिन अब वह दौर शुरू हो गया है, जब ना तो पार्टी उनको सीएम का चेहरा बना रही है, और ना ही पार्टी अध्यक्ष उनकी मुट्ठी में हैं। दो दशक में पहली बार वसुंधरा राजे यह महसूस कर रही हैं कि उनका स्थान छिन सकता है। ना केवल संगठन के स्तर पर सक्रियता और वसुंधरा की पहवाह किये बिना सभी काम सहज भाव से हो रहे हैं, बल्कि सत्ता के मुहाने पर खड़ी भाजपा ने सीएम फेस को लेकर जो बात कही है, वह भी वसुंधरा के खिलाफ जा रही है।
इस वजह से वसुंधरा राजे के पास अब केवल जनता का ही आसरा बचा है। कुछ सियासी लोगों का मानना है कि वसुंधरा राजे पहले अपनी जनता की ताकत दिखाने का प्रयास करेंगी, उसके बावजूद चुनाव से पहले उनको मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया तो वह अपनी अलग पार्टी बना सकती हैं। हालांकि, इसकी संभावना इसलिये कमजोर हो जाती है क्योंकि वसुंधरा राजे जैसी अनुभवी नेत्री जानती होंगी कि भाजपा से अलग होकर आजतक कोई सफल नहीं हो पाया है। कल्याण सिंह से लेकर उमा भारती जैसे अपने जमाने के दिग्गजों को भी अंतत: पार्टी में वापस लौटना पड़ा था।
इसी कारण वसुंधरा अब एक तरफ से तो जनता के द्वारा सतीश पूनियां को अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने का प्रयास कर रही हैं, दूसरी ओर नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा से यही उम्मीद लगाये बैठी हैं कि सबसे पोपुलर होने के कारण उनको ही सीएम का चेहरा बनाया जायेगा। यही वजह है कि वसुंधरा राजे अपने जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं।

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