जयपुर: राजस्थान की राजधानी जयपुर में BRTS (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) कॉरिडोर को लेकर एक बड़ा प्रशासनिक फेलियर सामने आया है। साल 2008 में शुरू हुई यह महत्वाकांक्षी परियोजना अब 309 करोड़ रुपये की बर्बादी बनकर रह गई है।
कैसे शुरू हुआ था प्रोजेक्ट?
वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने अजमेर रोड, सीकर रोड और न्यू सांगानेर रोड पर बीआरटीएस कॉरिडोर के निर्माण की योजना बनाई थी। परियोजना का उद्देश्य जयपुर में ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर बनाना और सार्वजनिक परिवहन को गति देना था। करीब 2 से 3 वर्षों में कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया, जिस पर लगभग 269 करोड़ रुपये का खर्च आया।
क्यों बना सिरदर्द?
कॉरिडोर शुरू होते ही यातायात में उल्टा भारी अव्यवस्था फैल गई। न केवल आमजन को ट्रैफिक जाम झेलना पड़ा, बल्कि कई हादसे भी बढ़ने लगे। स्थानीय नागरिकों और विशेषज्ञों की शिकायतें सामने आने लगीं कि बीआरटीएस कॉरिडोर जयपुर जैसे पुराने शहर के ट्रैफिक सिस्टम के लिए उपयुक्त नहीं था।
हटाने का फैसला और नई लागत
2018 में कांग्रेस सरकार आने के बाद यातायात मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने ऐलान किया था कि एक महीने में बीआरटीएस कॉरिडोर हटा दिया जाएगा। लेकिन पाँच साल बीतने के बावजूद काम आगे नहीं बढ़ा। अब, डेढ़ साल बाद, आखिरकार प्रशासन ने कॉरिडोर हटाने का निर्णय लिया है।
कॉरिडोर को हटाने पर करीब 40 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए जाएंगे। इस तरह से कुल मिलाकर 309 करोड़ रुपये जनता के खून-पसीने की कमाई बर्बाद हो चुकी है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
बीआरटीएस प्रोजेक्ट पर अब राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। विपक्ष इसे 'योजना बनाने में जल्दबाजी और जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता' का नतीजा बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष पिछली सरकारों पर ठीकरा फोड़ रहा है।
जनता के सवाल
सबसे बड़ा सवाल अब यही है —
• क्या इस बर्बादी की जिम्मेदारी तय होगी?
• और क्या भविष्य में ऐसी योजनाओं के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनेगी?
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