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सचिन पायलट से माफ़ी माँगेंगे अशोक गहलोत?

राजस्थान की राजनीति में जुलाई 2020 का महीना ऐसा था, जिसने कांग्रेस सरकार की नींव और राजस्थान की राजनीति को हिलाकर रख दिया था। उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके ही डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सत्ता का टकराव चरम पर पहुंच गया था। 12 जुलाई 2020 को जब यह ख़बर आई कि सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर में चले गए हैं और गहलोत सरकार पर संकट गहराने लगा है, तब पूरे घटनाक्रम ने तूफ़ानी मोड़ ले लिया।

अशोक गहलोत ने 13 जुलाई को मीडिया के सामने पायलट के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी। साथ ही सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया, और पीसीसी चीफ के पद से भी हटा दिया गया। गहलोत ने कहा कि भाजपा सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के साथ मिलकर उनकी सरकार गिराने की साज़िश कर रही है। गहलोत ने पत्रकारों को बार-बार कहा कि “सत्ता की भूखे” पायलट भाजपा की गोद में बैठ गए हैं। उन्होंने अपने ही डिप्टी सीएम को “निकम्मा”, “नाकारा” और गद्दार तक कह डाला। यह भाषा राजस्थान की राजनीति में पहली बार सुनाई दे रही थी, क्योंकि एक मुख्यमंत्री अपने ही डिप्टी पर इस तरह सार्वजनिक हमले कर रहा था। 15 जुलाई 2020 को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने सचिन पायलट और उनके गुट के 18 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस जारी कर दिया। सत्ताधारी कांग्रेस के 19 विधायकों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों और भाजपा के साथ मिलकर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप लगाए गए। विधानसभा अध्यक्ष के ये नोटिस मानो अशोक गहलोत के आरोपों पर आधिकारिक मुहर थी।

लेकिन पायलट गुट चुप नहीं बैठा। 17 जुलाई 2020 को सचिन पायलट और उनके साथियों ने राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने कहा कि यह नोटिस पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध हैं और केवल असहमति जताने को “अशोक गहलोत द्वारा षडयंत्र” किया जा रहा है। सचिन पायलट को राहत देते हुए 21 जुलाई को हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर रोक लगा दी। इस रोक के बाद साफ़ हो गया कि मामला लंबा चलेगा। इस बीच अशोक गहलोत ने रोज़ाना मीडिया में बयानबाज़ी की। कभी उन्होंने कहा कि पायलट भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं, कभी उन्हें गद्दार कहा, कभी उन्हें कांग्रेस के लिए खतरा बताया। गहलोत ने यहां तक कह दिया कि पायलट और उनका गुट भाजपा नेताओं के संपर्क में है और 10, 20, 30, 40 करोड़ में सौदेबाज़ी कर रहा है, लेकिन गहलोत के पास इन आरोपों का कोई सबूत नहीं था? सवाल यह उठता है कि भाजपा से सचिन पायलट की कोई डील साबित हुई? क्या पायलट ने कभी सरकार गिराने का प्रयास किया?

असलियत यह है कि इन पांच सालों में कभी भी ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया। सत्ता से बाहर होने के बाद मुख्यमंत्री के ही एक ओएसडी लोकेश शर्मा ने खुलासा करते हुए कहा कि सचिन पायलट को बदनाम करने के लिए खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ही साजिश रची थी। फिर भी कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाया गया कि पायलट को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। गहलोत की बयानबाज़ी और मीडिया ट्रायल ने पायलट और उनके विधायकों को गद्दार की छवि में ढालने का पूरा प्रयास किया गया। उस समय जनता तक यही संदेश गया कि सचिन पायलट भाजपा से मिलकर कांग्रेस सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं। गहलोत की इस साजिश के कारण 34 दिन तक सरकार होटलों में कैद रही, जनता अपने स्तर पर कोरोना जैसी महामारी से लड़ती रही। अगस्त 2020 में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के हस्तक्षेप से पायलट की गहलोत सरकार के समर्थन में विधानसभा में वापसी करवाई गई, लेकिन वापसी का मतलब यह नहीं था कि उन पर लगे दाग़ मिट गए? पांच साल तक यह दाग़ उनके साथ चिपका रहा। अब, 14 सितम्बर को राजस्थान हाईकोर्ट ने साफ़ कर दिया कि सचिन पायलट और उनके साथियों ने कोई भी असंवैधानिक कदम नहीं उठाया था। हाईकोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा कि यह मामला पार्टी के अंदरूनी मतभेद का था, इसे “दल-बदल” या “षड्यंत्र” नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने अहम निर्णय देते हुए सचिन पायलट समेत सभी 19 विधायकों को क्लीन चिट दे दी, साथ ही भरत मालानी और अशोक सिंह को भी बरी कर दिया। 

अब सबसे बड़ा सवाल यह है, जब अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि पायलट निर्दोष थे, तो पाँच साल पहले गहलोत ने जो षड्यंत्र की कहानी गढ़ी थी, उसका हिसाब कौन देगा? क्या अशोक गहलोत अब जनता के सामने आकर कहेंगे कि उन्होंने सत्ता बचाने के लिए झूठ बोला था? क्या गहलोत यह स्वीकार करेंगे कि उन्होंने अपने ही डिप्टी सीएम और युवा नेताओं को गद्दार की तरह पेश किया? क्या मीडिया, जिसने गहलोत की कहानी को सच मानकर पायलट की छवि खराब की, अब माफी मांगेगा? सबसे अहम सवाल, क्या सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की राजनीतिक और सामाजिक छवि को हुए नुकसान की भरपाई संभव है?

पाँच साल तक पायलट और उनके साथियों को गद्दार कहा गया, उनके करियर पर दाग़ लगाने का प्रयास किया गया, जनता के सामने छवि खराब कर पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल खड़े किए गए। क्या गहलोत और कांग्रेस यह समझेंगे कि राजनीति में यह केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि इंसानों की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा का सवाल भी है? गहलोत ने आरोप लगाया था कि भाजपा राज्य की सरकार गिराना चाहती है, लेकिन सवाल यह है कि अगर भाजपा इतनी ताक़तवर थी, तो पाँच साल में सरकार क्यों नहीं गिरा सकी? क्या यह साबित नहीं होता कि यह कहानी महज़ एक डर का माहौल बनाने और अपने पॉलिटिकल कॉम्पि​टीटर सचिन पायलट की राजनीतिक हत्या करने की चाल थी? इतिहास गवाह है कि जिस तरह इंदिरा गांधी के समय में सत्ता बचाने के लिए विरोधियों को गद्दार कहा जाता था, उसी तर्ज़ पर अशोक गहलोत ने भी सचिन पायलट पर झूठे आरोप लगाए, लेकिन अंतर यह है कि अब अदालतें इन झूठों को काट रही हैं और सच्चाई सामने आ रही है।

अब अशोक गहलोत को जवाब देना होगा। उन्होंने सचिन पायलट जैसे युवा और लोकप्रिय नेता की राजनीतिक छवि को नष्ट करने का प्रयास किया? यह सब केवल इसलिए हुआ, क्योंकि सचिन पायलट खुद डिप्टी सीएम रहते अशोक गहलोत की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे थे? अगर पार्टी में असहमति जताना गद्दारी है, तो फिर लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाता है? पायलट ने कभी यह नहीं कहा था कि वे भाजपा में जा रहे हैं। उन्होंने केवल कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की कार्यशैली और उनके नेतृत्व के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। क्या पार्टी में असहमति रखने वाले हर नेता को गद्दार कहकर बाहर कर दिया जाएगा?

यह बात सच है कि जब दिसंबर 2018 में अशोक गहलोत को सीएम बनाया गया था, तब सचिन पायलट से यह वादा किया गया था कि यदि मई 2019 के लोकसभा चुनाव में अशोक गहलोत कांग्रेस के लिए कम से कम 10 सीटों पर जीत नहीं दिला पाएंगे तो उनको हटाकर सचिन पायलट को सीएम बना दिया जाएगा। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार दूसरी बार 0 पर सिमट गई। तब पायलट ने अपने आलाकमान को याद दिलाया कि अपना वादा पूरा करना चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष पद से तब राहुल गांधी हट चुके थे, कमान सोनिया गांधी के हाथ में थी, जो अशोक गहलोत को हटाकर पालयट को प्रदेश की कमान सौंपने का फैसला नहीं ले पा रही थीं। पायलट कैंप ने कांग्रेस आलाकमान को लगातार एक साल तक अपना वादा याद दिलाया। इसकी सूचना अशोक गहलोत तक थी, जिसके चलते सचिन पायलट और उनके साथी मंत्रियों की फाइलें सीएमआर में जाने लगीं, सभी फाइलों को रोक दिया गया। पायलट कैंप के मंत्रियों और विधायकों के काम बंद कर दिए गए। जब चारों ओर से निराशा हाथ लगी, तब पायलट ने अपने साथियों को गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहा। उनके कई साथी बीच में ही गहलोत के खेमे में चले गए। कुछ की कुंडली गहलोत ने अपने हाथ में ले ली, जो डर के मारे पायलट के साथ नहीं जा पाए। कई विधायकों ने लालच में पायलट का साथ छोड़कर गहलोत का दामन थाम लिया। कुछ विधायकों को प्रशासन ने मानेसर जाने से पहले ही पकड़कर गहलोत के सामने पेश कर दिया। यहां तक कि निर्दलीय और कुछ दूसरे दलों के विधायकों तक को प्रशासन ने डराया और गहलोत का साथ देने का दबाव बनाया। अंतत: पायलट समेत कुल 19 विधायक ही बगावत कर पाए। हालांकि, इससे भी सरकार गिर नहीं रही थी, लेकिन गहलोत को कांग्रेस आलाकमान के सामने पायलट को गद्दार साबित करने का अवसर मिल गया। उन्होंने अपने सभी मंत्रियों, विधायकों को 7 स्टार होटलों में ऐशो आराम के लिए बाड़ेबंदी कर दी। जनता कोरोना की महामारी से जूझ रही थी और गहलोत सरकार होटलों में ऐश कर रही थी।

अब जबकि हाईकोर्ट ने सचिन पायलट को निर्दोष करार दे दिया है, तो जनता को भी यह समझना होगा कि किस तरह सत्ता बचाने के लिए हमेशा अशोक गहलोत झूठ और प्रोपेगेंडा का सहारा लेते हैं। गहलोत द्वारा पायलट के खिलाफ पांच साल तक एक झूठी कहानी गढ़ी गई, लेकिन झूठी कहानी गढ़ने के कारण अब खुद अशोक गहलोत की साख पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। क्या अब कांग्रेस पार्टी सार्वजनिक रूप से स्वीकार करेगी कि अशोक गहलोत का यह एक राजनीतिक षड्यंत्र था? क्या पायलट और उनके साथियों की जो प्रतिष्ठा पाँच साल तक दांव पर लगी रही, उसकी कभी भी, किसी भी तरह से राजनीतिक भरपाई हो पाएगी? या फिर यह मामला भी राजनीति की भीड़ में दब जाएगा, लोग भूल जाएंगे कि एक मुख्यमंत्री ने सत्ता बचाने के लिए अपने ही साथी को गद्दार बना दिया था?

यह कहानी केवल सचिन पायलट और अशोक गहलोत की नहीं है। यह कहानी लोकतंत्र में सत्ता की भूख, झूठे आरोपों और राजनीतिक चालबाज़ी की है। वास्तव में देखा जाए तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब अशोक गहलोत के पुराने कारनामों पर पर्दा हटाने का समय है। उन्होंने दूसरे कार्यकाल में भी अपने ही दो मंत्रियों महिपाल मदेरणा और बाबूलाल नागर को जेल भेज दिया था। बाद में नागर बरी हो गए और मदेरणा दुनिया छोड़कर जा चुके हैं। यही वजह है आज राजस्थान की जनता पूछ रही है, अशोक गहलोत की उन साज़िशों का हिसाब कौन करेगा?

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