सियासी जादूगर अशोक गहलोत ने पंडित भजन लाल शर्मा को उलझा ​दिया!

सियासत में अक्सर शब्दों का उपयोग भी हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। एक ही संबोधन कई बार दुश्मन को कमजोर करने का सबसे आसान और सटीक वार बन जाता है। शब्दों को बयानों में पिरोने का खेल कई बार कॅरियर बना देता है, तो कई मौकों पर राजनीति खत्म भी कर देता है। यही खेल इस समय राजस्थान की राजनीति में चल रहा है। 

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार-बार मौजूदा मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को “पंडित” कहकर पुकार रहे हैं। सतही तौर पर यह बात सामान्य लग सकती है, आखिर भजन लाल शर्मा ब्राह्मण समाज से आते हैं और उन्हें “पंडित” कहा जाना गलत भी नहीं है, लेकिन राजनीति में शब्द कभी इतने मासूम नहीं होते। गहलोत जैसे पुराने और मंजे हुए खिलाड़ी जब बार-बार एक ही शब्द दुहराते हैं, तो उसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक चाल जरूर होती है।

गहलोत अच्छी तरह जानते हैं कि राजस्थान की सियासत काफी हद तक जातीय आधार पर ही चलती है। यहां किसी भी पार्टी को सत्ता में आना है तो उसे तमाम जातियों का संतुलन साधना ही होता है। जाट, ब्राह्मण, राजपूत, मीणा, गुर्जर और मुस्लिम, ये वो बड़े वोटबैंक हैं जिनके इर्द-गिर्द पूरी राजनीति घूमती है। राजस्थान के मौजूदा हालात में सबसे बड़ा वोट बैंक जाट समाज है। जाटों के समर्थन बिना राजस्थान में सत्ता का ताज किसी के सिर नहीं सजता। यही कारण है कि गहलोत अपने हर बयान, हर इशारे में जाट समाज को साधने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, जाट समाज गहलोत से बीते 27 साल से नाराज है, जब वो 98 में पहली बार सीएम बने थे।

भजन लाल शर्मा की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वे जाट समाज से दूरी बनाए हुए हैं। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे भजन लाल शर्मा को जाट समाज से नफरत ही है। सीएम बनने के बाद उन्होंने जो अपने 12 ओएसडी नियुक्त किए, उनमें से 90 प्रतिशत ब्राह्मण समाज से हैं, बाकी बनिया हैं। जाट, गुर्जर, मीणा, मुस्लिम या राजपूत, किसी को भी जगह नहीं मिली। यही नहीं, हाल ही में नियुक्त किए आरपीएससी के 3 नए सदस्यों में भी एक भी जाट, गुर्जर, मीणा, मुस्लिम या राजपूत नहीं है। सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्या भजन लाल शर्मा प्रदेश के सीएम हैं या ब्राह्मण समाज के ही मुख्यमंत्री हैं? 

गहलोत इसी सवाल को हवा देने में लगे हैं। जब वे बार-बार सार्वजनिक मंचों से भजन लाल शर्मा को “पंडित” कहकर पुकारते हैं, तो असल में वे जाट, गुर्जर, मीणा और राजपूत समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि देखो राजस्थान का मुख्यमंत्री पंडित है, और वह तुम्हारा भला नहीं करने वाला है। राजनीति का यही महीन खेल है। इस तरह के शब्द सीधे तौर पर सियासी चोट नहीं करते, लेकिन मन में सवाल जरूर खड़ा कर देते हैं और अशोक गहलोत इसी खेल के माहिर खिलाड़ी हैं।

राजस्थान की राजनीति का इतिहास बताता है कि सबसे बड़ी आबादी होने के कारण जाट समाज जिस ओर जाता है, सत्ता उसी दल की होती है। 1998 का चुनाव कांग्रेस ने 153 सीटों के साथ इसलिए जीता कि परसराम मदेरणा को अघोषित तौर पर सीएम बनाने के लिए प्रोजेक्ट किया गया था। लेकिन सोनिया गांधी की पर्ची से तत्कालीन पीसीसी चीफ अशोक गहलोत को सीएम बना दिया, जिससे जाट कांग्रेस से बुरी तरह नाराज हो गए। साल 2003 में वसुंधरा राजे के राजस्थान में आने से पहले तक जाट समाज कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था, लेकिन राजे ने जाटों को भाजपा की तरफ मोड़ दिया। इसके बाद 2008, 2013 और 2018 तक जाट समाज भाजपा के साथ खड़ा रहा। 

2023 के चुनाव से कुछ ही महीने पहले सतीश पूनियां को बीजेपी अध्यक्ष पद से हटाने के कारण जाट भाजपा से नाराज हो गए। इस चुनाव में जाट समाज का वोट बिखर गया, लेकिन भजन लाल शर्मा की जाट विरोधी नीतियों के कारण अब हालात और भी बदत्तर होते जा रहे हैं। सीएम पद की दौड़ में जाट, मीणा समाज के नेताओं को किनारे कर दिल्ली की पर्ची से भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया और उसके बाद भजनलाल ने हर मोर्चे पर जाट, मीणा, गुर्जर, राजपूत समाज को लगातार नजरअंदाज किया गया। परिणाम यह हो रहा है कि भाजपा के प्रति इन समाजों की नाराज़गी दिन-ब-दिन बढ़ रही है।

यही वजह है जो अशोक गहलोत इस मौके को भुनाने की फिराक में हैं। वे जानते हैं कि कांग्रेस का कोर वोटर गुर्जर, मीणा, मुस्लिम और माली समाज है। अगर इसके साथ जाट समाज भी पहले की तरह कांग्रेस के पाले में आ गया तो सत्ता तक पहुंचना आसान हो जाएगा। इसी रणनीति के तहत अशोक गहलोत बार-बार भजन लाल शर्मा को “पंडित” कहकर इन चारों समाजों को यह एहसास कराना चाहते हैं कि भजनलाल शर्मा बनिया-ब्राह्मणों के ही मुख्यमंत्री हैं।

अब भजन लाल शर्मा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे गहलोत के इस सियासी हमले का कोई जवाब नहीं दे पा रहे। गहलोत बार-बार उन्हें पंडितजी कहकर पुकारते हैं, और भजन लाल शर्मा सिर्फ हंसकर टाल जाते हैं। वे यह नहीं समझ पा रहे कि इस शब्द में कितनी गहरी राजनीति छिपी हुई है। उनकी खामोशी और भी बड़ा संदेश देती है कि वे सचमुच सिर्फ बनिया-ब्राह्मणों तक सीमित हैं। राजस्थान के सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि भजन लाल शर्मा का असली संकट विपक्ष से नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के इन चार बड़े वोट बैंक वाले समाजों से है। भाजपा में राजपूत और जाट नेता पहले से ही असंतुष्ट चल रहे हैं। मीणा और गुर्जर नेता भी खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस थोड़ी सी रणनीति से काम ले ले, तो यह असंतोष कांग्रेस के पक्ष में बदल सकता है।

भजन लाल शर्मा के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार यही है कि उन्होंने अपने निर्णयों में जातिगत विविधता नहीं दिखाई। सीएम बनने के बाद उनके हर फैसले में ब्राह्मणवादी झुकाव साफ दिखाई देता है। चाहे वह ओएसडी की नियुक्ति हो, आरपीएससी सदस्यों की सूची हो, शिक्षकों के ट्रांसफर हो, चाहे सरकारी कार्यक्रमों में शामिल होने वाले चेहरों की बात हो, या समाजों के नेताओं से मिलने की बात हो, हर जगह सिर्फ ब्राह्मण-बनियों की झलक मिलती है। बाकी समाज उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। यही वह बिंदु है जिसे अशोक गहलोत सियासी तौर पर बार-बार उभार रहे हैं।

गहलोत यह भी जानते हैं कि भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला खुद भाजपा आलाकमान का था, लेकिन गहलोत यह लड़ाई भाजपा आलाकमान से नहीं, सीधे भजन लाल शर्मा से लड़ रहे हैं। क्योंकि जनता के बीच वही चेहरा है, और उनको निशाना बनाना आसान है। गहलोत की राजनीति का यही कमाल है, वे कभी सीधे पॉलिटिकल वार नहीं करते, हमेशा घुमाकर सियासी चोट करते हैं। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा इस जातीय असंतोष को संभाल पाएगी? क्या भजन लाल शर्मा अपनी छवि को “पंडित” से आगे निकाल पाएंगे? क्या वे यह दिखा पाएंगे कि वे पूरे राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं, न कि केवल ब्राह्मण-बनिया समाज के?

चुनाव अभी भी 3 साल दूर हैं, लेकिन हमेशा की तरह अशोक गहलोत ने अपनी चाल चल दी है। उन्होंने जाट, गुर्जर, मीणा, राजपूत समाज को यह एहसास कराने का बीज बो दिया है कि मौजूदा मुख्यमंत्री उनके नहीं हैं। अब यह भाजपा पर निर्भर करता है कि इस बीज को अंकुर बनने से रोक पाती है या नहीं। अगर भाजपा ने इसे हल्के में लिया तो यह जातीय असंतोष भाजपा को सत्ता से बाहर कर सकता है। राजस्थान की राजनीति में शब्द तलवार से ज्यादा गहरे वार करते हैं। गहलोत का “पंडितजी” वाला शब्द इसी सियासी तलवार की धार है। यह वार धीमा है, लेकिन असरदार है। यदि भाजपा ने समय रहते बाकी जातियों को साधकर इसका जवाब नहीं दिया, तो यह छोटा सा शब्द 3 साल में उनकी पूरी सत्ता को निगल सकता है।

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