किरोड़ी-बेनीवाल में बड़ा नेता कौन?

पिछले दिनों सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा रद्द होने का श्रेय लेने की होड में मंत्री किरोड़ी लाल मीणा और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल आपस में भिड़ गए। टीवी डिबेट में किरोड़ी ने बेनीवाल को बहुत भला बुरा कहा, जिसके बाद देर शाम बेनीवाल ने भी किरोड़ी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। किरोड़ी ने गुस्से में वो सबकुछ कह दिया, जो शायद सार्वजनिक रूप से नहीं कहा जाना चाहिए, तो पलटवार करते हुए बेनीवाल ने भी किरोड़ी की जीवन कुंडली खोल डाली। देर रात तक मीडिया के माध्यम से दोनों तरफ वार-पलटवार चलते रहे, लेकिन सुबह होते-होते किरोड़ी को समझ आ गया कि यदि मामले को बढ़ाया गया तो हनुमान सारी सीमाएं लांघ जाएगा और इसका नुकसान उनको उठाना होगा। 

ऐसे में किरोड़ी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर अपनी गलती मानते हुए बेनीवाल से माफी मांग ली। इसके बाद बेनीवाल ने भी किरोड़ी को बड़ा भाई बोलकर मामले को शांत कर दिया। एक दूसरे की पोल खोलकर 24 घंटे से भी कम समय में दोनों ने एक दूजे को फिर से गले भी लगा लिया। इन दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक तालमेल करीब 12 साल से चल रहा है। राजस्थान की राजनीति में किरोड़ी और बेनीवाल ऐसे नाम हैं जिनकी गूंज सत्ता के गलियारों से लेकर गांव-ढाणी तक सुनाई देती है। दोनों नेताओं की राजनीतिक पृष्ठभूमि, संघर्ष, तेवर और जनता के लिए लड़ने का अंदाज काफी कुछ समान है। 

कितना भी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा हो, लेकिन दोनों सत्ता के आगे कभी झुके नहीं। यही वजह है कि इन्हें जनता का नेता और बेबाक सियासतदान कहा जाता है। दोनों का राजनीतिक क्षेत्र अभी तक पूर्व और पश्चिम है, जहां बड़े पैमाने पर इनके समर्थक मौजूद हैं। सवाल ये है कि आखिर इन दोनों में से राजस्थान की राजनीति का असली जननेता कौन है, दोनों में बेस्ट नेता कौन है? आज हम इसी पर बात करेंगे।

कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा 74 साल के हो गए हैं, उन्होंने अपनी सियासी पारी उस दौर में शुरू की थी, जब राजनीति पूरी तरह जमीनी मुद्दों पर आधारित हुआ करती थी। एक एमबीबीएस डॉक्टर होने के बावजूद उन्होंने अपनी सुरक्षित और सम्मानजनक नौकरी छोड़कर राजनीति का रास्ता चुना। किरोड़ी की सियासत छात्र राजनीति से शुरू हुई। उन्होंने 1985 का चुनाव महुआ विधानसभा सीट से जीता, लेकिन उनको पहचान सवाई माधोपुर में एक सीमेंट फैक्ट्री शुरू कराने के आंदोलन के कारण दिसंबर 1988 में मिली। यह प्रदर्शन इतना व्यापक हुआ कि उन्होंने जनता की आवाज को शासन तक पहुंचाकर सरकार एक पांव तक हिला डाला। इसके बाद वे 1989 में दौसा से सांसद चुने गए। 1998 में बामनवास विधानसभा सीट से चुनाव जीते। वर्ष 2003 के चुनाव में वे सवाई माधोपुर से चुनाव जीते और वसुंधरा राजे के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे। वर्ष 2003 से लेकर 2008 तक वे मंत्री रहे। इस दौरान गुर्जर आरक्षण आंदोलन को लेकर वसुंधरा राजे से उनके रिश्तों में खटास आ गई, जिसके कारण किरोड़ी ने भाजपा का दामन छोड़ दिया था और 2008 के विधानसभा चुनाव में चुनाव में वे टोडाभीम विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक बने। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा की पार्टी का दामन थामा। राजपा के टिकट पर 150 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे और चार सीटों पर जीत भी दर्ज की। 10 साल तक पार्टी से बाहर रहने के बाद 2018 में उनकी भाजपा में वापसी हुई। तीन बार सांसद, छह बार विधायक और दो बार मंत्री पद भी संभाल चुके हैं। यानी प्रशासनिक अनुभव और सत्ता में हिस्सेदारी, दोनों में उनका लंबा सफर रहा है।

दूसरी ओर 53 साल के हनुमान बेनीवाल का राजनीतिक सफर राजस्थान कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीतकर 1995 से शुरू हुआ। इसके अगले साल लॉ कॉलेज के अध्यक्ष बने और 1997 में राजस्थान विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीता। छात्रसंघ चुनाव जीतकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि उनमें नेतृत्व की क्षमता और भीड़ को अपने साथ जोड़ने का जबरदस्त हुनर है। उनके पिता रामदेव बेनीवाल 2 बार विधायक रहे थे। 1998 के विधानसभा चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद उनका निधन हो गया। उनकी जगह हनुमान बेनीवाल ने नामांकन पत्र दाखिल किया, लेकिन पर्चा खारिज कर दिया गया। इसके बाद 2003 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। उनको 2008 में बीजेपी ने टिकट दिया और खींवसर सीट से पहली बार विधायक बने, लेकिन एक साल के भीतर ही वसुंधरा राजे के साथ संबंध बिगड़ने के कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। इसके बाद भी बेनीवाल ने अपनी बेबाकी वाली धारा नहीं छोड़ी, जिसके कारण लगातार उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई। बेनीवाल 4 बार विधायक और 2 बार नागौर से सांसद बन चुके हैं। खास बात ये है कि उन्होंने पारंपरिक राजनीति से हटकर नई राह चुनी। भाजपा से अलग होकर 2018 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया और करीब 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर यह संदेश दिया कि वे किसी भी हद तक जनता की आवाज बन सकते हैं।

दोनों नेताओं में एक समानता ये भी है कि दोनों ने ही भाजपा की मुख्यधारा छोड़कर अपनी अलग राजनीतिक जमीन बनाने की कोशिश की। किरोड़ी लाल मीणा ने 2013 से पहले राष्ट्रीय जनवादी पार्टी की राजस्थान ईकाई बनाई। इसमें वे ज्यादा सफल नहीं हुए तो 2018 में वापस भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में पार्टी के प्रमुख चेहरों में गिने जाते हैं। दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल ने RLP बनाकर 2018 विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया और 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करके सांसद बने। इसके बाद 2024 में उन्होंने कांग्रेस से अलाइंस कर नागौर से दुबारा जीत हासिल की। इस तरह बेनीवाल परिस्थितियों के अनुसार मौके को भुनाने में माहिर नेता साबित हुए।

जनता के लिए लड़ने के हौसले की बात करें तो दोनों ही नेताओं ने बार-बार सड़कों पर उतरकर, धरना-प्रदर्शन और अनशन करके सरकारों को झुकने पर मजबूर किया। किरोड़ी लाल मीणा का अंदाज गंभीर और आक्रामक होता है। वे आंकड़ों और तथ्यों के साथ मुद्दा उठाते हैं और विधानसभा में सरकार को घेरने में माहिर माने जाते हैं। अशोक गहलोत सरकार के समय उन्होंने युवाओं, किसानों, बेरोजगारों के लिए कई रातें सड़कों पर बिताईं। उनके तेवर कई बार भाजपा की सरकार के लिए भी मुश्किल खड़ी कर देते हैं। यही वजह है कि उन्हें हमेशा "बागी नेता" कहा गया।

हनुमान बेनीवाल की खासियत यह है कि वे बेहद तेजतर्रार और सीधे-सपाट बोलने वाले नेता हैं। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही दलों की सरकारों पर खुलकर निशाना साधते रहे हैं। पश्चिमी राजस्थान उनकी सियासत की धुरी है, वहां उन्होंने किसानों और युवाओं की आवाज बनकर खुद को स्थापित किया है। बेनीवाल की राजनीति पूरी तरह जमीनी आंदोलनों से संचालित रही है। प्रदेश में लाखों युवाओं की सबसे बड़ी रैलियां करने के मामले में वे मोदी के बराबरी पर खड़े हैं। देर रात तक मीटिंग्स करना, युवाओं के साथ राय करना और रात को ही सरकार के खिलाफ बिगुल बजा देना हनुमान बेनीवाल की अपनी स्टाइल है। आमजन की लड़ाई में उन्होंने कई बार रात को एसपी और कलेक्टर के कार्यालय खुलवाकर मुद्दों का समाधान करने का काम किया है। जिस मुद्दे पर हनुमान अड़ जाते हैं, उसका समाधान करके ही उठते हैं। यही कारण है कि उन्हें "राजस्थान का चौधरी चरण सिंह" कहा जाने लगा है। सड़क से लेकर संसद तक बेनीवाल किसानों, युवाओं, गरीबों, बेरोजगारों और दलितों की आवाज बेबाकी से उठाते हैं।

अब सवाल ये उठता है कि दोनों नेताओं में से बेस्ट कौन है, बड़ा नेता कौन है? इस तुलना को समझने के लिए दोनों के अनुभव, संघर्ष, जनता से जुड़ाव और राजनीतिक भविष्य पर नजर डालनी होगी। किरोड़ी लाल मीणा का अनुभव चार दशक लंबा है। वे सत्ता के सभी पड़ाव देख चुके हैं—विधायक, सांसद और मंत्री बनकर सभी जगह का स्वाद चखा है। इस लिहाज से किरोड़ी लाल प्रशासन चलाने और नीति बनाने की गहरी समझ रखते हैं। उनका कद पूर्वी राजस्थान में बहुत बड़ा है और वहां वे 36 कौम की आवाज बनते हैं, जबकि मीडिया की नजर में "मीणा समाज के निर्विवाद नेता" के तौर पर देखे जाते हैं। इसलिए उनकी राजनीति कई बार सीमित होकर रह जाती है, क्योंकि मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा उनको एक क्षेत्रीय और जातीय समीकरण से बांध दिया जाता है।

दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल अपेक्षाकृत युवा हैं और पूरे राजस्थान में उनकी पकड़ बनाने की कोशिश जारी है। वे पश्चिमी राजस्थान में जबरदस्त लोकप्रिय हैं और युवाओं व किसानों के नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं। संकट आने पर हर जाति, वर्ग और क्षेत्र के मुद्दों पर हनुमान बेनीवाल रात को ही कूच करने के लिए सबसे पहले खड़े होते हैं। उनकी ऊर्जा और बेबाकी उन्हें भविष्य में बड़ा नेता बना सकती है। दो बार सांसद बनकर वे गठबंधन की राजनीति में माहिर साबित हुए हैं, जो आने वाले दौर में उनके लिए वरदान भी बन सकता है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या ये दोनों जननेता कहलाने के हकदार हैं? जननेता वही होता है जो जनता के मुद्दों को उठाए, चाहे वह सरकार में हो या विपक्ष में बैठा हो। इन दोनों नेताओं ने इस कसौटी को बार-बार साबित किया है। किरोड़ी लाल मीणा ने 40 साल से जनता के मुद्दों पर आवाज बुलंद रखी है, वहीं हनुमान बेनीवाल ने दो दशक की अपनी छोटी राजनीतिक यात्रा में ही किसानों और युवाओं का बड़ा नेता बनकर खुद को स्थापित किया है।

राजनीतिक भविष्य की बात करें तो किरोड़ी लाल मीणा का अनुभव उन्हें राजस्थान की राजनीति में स्थायी चेहरा बनाए रखेगा, लेकिन उनकी उम्र और लंबे सफर को देखते हुए अब वे धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में जाते नजर आ सकते हैं। जबकि हनुमान बेनीवाल का भविष्य और लंबा है। वे अभी अपेक्षाकृत युवा हैं और यदि वे अपनी सियासत को पूरे राजस्थान और फिर राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में कामयाब होते हैं, तो निश्चय ही वे राजस्थान के निर्विवाद सबसे बड़े जननेता बन सकते हैं।

निष्कर्ष यह है कि किरोड़ी लाल मीणा और हनुमान बेनीवाल दोनों ही अपने-अपने तरीके से राजस्थान की राजनीति के अनोखे चेहरे हैं। किरोड़ी लाल मीणा अनुभव, संघर्ष और गंभीरता का प्रतीक हैं, जबकि हनुमान बेनीवाल ऊर्जा, बेबाकी, संघर्ष और किसानों की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों में बेस्ट लीडर कौन है, इसका फैसला जनता ही करेगी, लेकिन इतना तय है कि दोनों ने जनता की लड़ाई लड़कर यह साबित कर दिया है कि वे सिर्फ नेता नहीं, बल्कि जननेता कहलाने के असली हकदार हैं।

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