Ram Gopal Jat
चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति के चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई खत्म हो रहा है। चुनाव आयोग के मुताबिक अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 15 जुलाई को नामांकन दाखिल किए जाएंगे, 18 जुलाई को मतदान होगा, जबकि 21 जुलाई को मतगणना होगी। मतगणना में जीत के साथ ही देश को नया राष्ट्रपति मिल जायेगा। भाजपा संख्याबल के आधार पर अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाने की ताकत रखती है, केवल उसको 10 हजार वोट्स की कमी पड़ रही है, जिसकी भरपाई उडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंद्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी कर सकते हैं। हालांकि, दोनों ने ही भाजपा को कहा है कि पहले उम्मीवार का नाम तय करे, उसके बाद वो यह तय करेंगे कि भाजपा के उम्मीदवार को वोट देना है या नहीं।
इधर, भाजपा सर्वसम्मत्ति से उम्मीदवार तय करने में जुटी है। भाजपा ने इसको लेकर राजस्थान के जोधपुर से सांसद और जल शक्तिमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के संयोजन में एक टीम का गठन कर दिया है। पार्टी अपने एनडीए के सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने के अलावा दूसरे दलों से भी सहमति लेने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ विपक्ष की ओर से कांग्रेस के बजाये ममता बनर्जी विपक्ष का राष्ट्रपति प्रत्याशी तय करने में जुटी हुई हैं। क्योंकि कांग्रेस इन दिनों राहुल गांधी को ईडी से बचाने के लिये आंदोलन कर रही है। ममता ने पहले राकपां के अध्यक्ष शरद पवार को प्रत्याशी बनाना चाहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुला को कहा, जिन्होंने ने भी दो दिन बाद मना कर दिया। इसके बाद तीसरे प्रत्याशी के तौर पर गोपालकृष्ण गांधी को कहा, लेकिन उन्होंने भी इनकार कर दिया है। ममता अब वह चौथे व्यक्ति की तलाश में हैं।
भाजपा की ओर से वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा चौंकाने वाला नाम सामने ला सकते हैं, जिस तरह पिछली बार अचानक से रामनाथ कोविंद का नाम सामने आया था। किंतु फिर भी तीन चार नामों पर चर्चा जोरों पर चल रही है। इनमें भाजपा के नेता और पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन का भी चर्चा में है। भाजपा के पास शाहनवाज हुसैन और मुक्तार अब्बास नकवी ही दो मुस्लिम लीडर हैं, जो मंत्री पदों से लेकर पार्टी के महासचिव और प्रवक्ताओं के पदों पर रहे हैं। दोनों ही नेता अटल बिहारी वाजयेपी से लेकर मोदी तक भाजपा की मुख्य मुस्लिम धुरी के नेता रहे हैं। शाहनवाज हुसैन जहां बिहार सरकार में मंत्री हैं, तो मुक्तार अब्बास नकवी केंद्र में मंत्री हैं। ऐसे में इनके राष्ट्रपति—उपराष्ट्रपति बनने के जितने चांस है, उतने ही नहीं बनने के हैं।
इनके अलावा एक और नाम सबसे अधिक चर्चा में है, जो भी मुस्लिम ही हैं। भाजपा की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिये केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान को लेकर भी बहुत अधिक चर्चा है। आरिफ खान चार बार सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री रहे हैं। वह कभी राजीव गांधी सरकार में मंत्री थे। बाद में शाहबानो केस को लेकर कांग्रेस के साथ मतभेद होने के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी। लंबे समय तक राजनीति से दूर रहे। पिछले साल ही नरेंद्र मोदी सरकार ने उनको केरल का राज्यपाल बनाया है। राष्ट्रवादी और प्रगतिशील मुस्लिम चेहरे के तौर पर उनकी पहचान है। भाजपा की रीति—नीति और विचार में आरिफ खान बिलकुल फिट बैठते हैं। इन दिनों भाजपा के नूपुर शर्मा मामले को लेकर जिस तरह से खाड़ी देशों के द्वारा एक एजेंडा चलाने का काम किया गया, उसके बाद उनकी दावेदारी और मजबूत हो गई है। भाजपा उनको राष्ट्रपति बनाकर मुस्लिम विरोधी होने का दाग भी धो सकती है। हालांकि, इससे पहले एपीजे अब्दुल कलाम को भी भाजपा ने ही राष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था।
इसके बाद एक और मुस्लिम नाम राष्ट्रपति के लिये तेजी से उभर रहा है, जो हैं कांग्रेस के दिग्गत नेता गुलाम नबी आजाद। भाजपा के द्वारा जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले एक ऐसे नेता को शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंचाना चाहती है, जिसकी वजह से कश्मीर में शांति बहाली में मदद मिल सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे, तब गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। छात्र राजनीति से केंद्रीय मंत्री पद तक पहुंचे आजाद नरेंद्र मोदी के मित्र माने जाते हैं। कुछ माह पूूर्व जब आजाद का राज्यसभा कार्यकाल खत्म हो रहा था, तब प्रधानमंत्री मोदी आजाद के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुये भावुक हो गये थे। मोदी ने साफ कहा था कि भले ही कांग्रेस के द्वारा गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा से फ्री कर दिया गया हो, लेकिन वह उनको फ्री नहीं होने देंगे।
मोदी के द्वारा आजाद की इस तरह से प्रशंसा करने के कारण साफ समझ आ गया था कि मोदी द्वारा उनको किसी संवैधानिक पद पर बिठाया जा सकता है। अब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में यह बात फिर से चर्चा में आ गई है कि क्या भाजपा गुलाम नबी आजाद को राष्ट्रपति बना सकती है। आप सोच रहे होंगे कि क्या भाजपा के पास दिग्गज नेताओं की कमी है, जो कांग्रेस के नेता को राष्ट्रपति बनायेगी? ऐसे ही कई सवाल हैं, जो चर्चा में हैं। इन सब सवालों के जवाब ढूंढ़ना कोई कठिन काम नहीं है। आइए बिंदूवार सभी सवालों के जवाब जानने का प्रयास करते हैं, कि आखिर भाजपा गुलाम नबी पर दावं क्यों खेल सकती है?
पहली बात तो यह है कि भाजपा में ऐसे मुस्लिम नेताओं की कमी है, जिनकी राष्ट्रव्यापी छवि हो और उनसे देश का बड़ा मुस्लिम वर्ग प्रभावित होता हो। इसलिये भाजपा गुलाम नबी आजाद और आरिफ मोहम्मद खान में से किसी एक पर दावं खेल सकती है। दूसरी बात यह है कि जिस तरह से देश में भाजपा का एक भी लोकप्रिय लोकसभा सांसद मुस्लिम नहीं है और किसी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं है, उसकी पूर्ति भी इसके जरिये की जा सकती है। सबसे अहम बात यह है कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद जिस तरह से मोदी सरकार के खिलाफ एक नैरेटिव बनाया गया है, उसके बाद गुलाम नबी को यदि राष्ट्रपति बनाया जाता है तो कश्मीर में एक अच्छा संदेश जायेगा, जिसका फायदा भी भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। यह एक ऐसा विषय है, जिसपर कश्मीर के लोग भी गर्व करेंगे। क्योंकि गुलाम नबी की पॉलिटिक्स कश्मीर में कॉलेज की राजनीति से हुई, बाद में वह मुख्यमंत्री भी बने। यूपीए के शासनकाल में मनमोहन सरकार में मंत्री रहे हैं। ऐसे में देखा जाये तो गुलाम नबी कश्मीर के बड़े नेता हैं।
एक अहम कारण यह भी है कि गुलाम नबी कांगेसी हैं, और कांग्रेस के अलाइंस वाले जितने भी दल हैं, वो भी उनके नाम का विरोध नहीं कर पायेंगे। इसका यह भी लाभ होगा कि देश में भाजपा के खिलाफ मुस्लिम विरोधी होने का लगा हुआ ठप्पा भी मिट जायेगा। हालांकि, फिर भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो सीधे तौर पर भाजपा, संघ, मोदी के नाम से नफरत रखते हैं, उनको किसी लाभ या नुकसान से लेना देना नहीं है। फिर भी सॉफ्ट मुस्लिम तबके को साधने का काम किया जा सकता है। इसके लिये ही भाजपा में तीन—चार मुस्लिम नामों पर चर्चा चल रही है। गुलाम नबी आजाद पिछले साल से कांग्रेस के उन जी23 नेताओं में शामिल हैं, जो पार्टी में बड़ा बदलाव किये जाने के पक्षधर रहे हैं। जम्मू कश्मीर में आयोजित एक रैली में उन्होंने साफ कहा था कि जिस ढर्रे पर कांग्रेस अभी है, उससे किसी भी सूरत में दिखाई नहीं देता है कि पार्टी कभी 300 सीटों पर पहुंच भी सकती है। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाये जाने वाले नेताओं के साथ अपनी आवाज बुलंद की थी।
यदि गुलाम नबी आजाद को प्रेसिडेंट बनाया जाता है तो हाल ही में जिन खाड़ी देशों ने मोदी सरकार और भाजपा को मुस्लिम विरोधी बोलकर हल्ला मचाया था, उनके भी मुंह पर करारा तमाचा लगेगा। साथ ही पाकिस्तान जैसे देश, जो लगातार कश्मीर पर अत्याचार करने का ढोंग दुनिया के सामने दिखाते रहते हैं, उनको भी मुंह की खानी पड़ेगी।
भोगौलिक रुप से कश्मीर भारत के सिर का मुकुट है और इसी प्रांत से कोई नेता देश के संवैधानिक पद के शिखर पर पहुंचता है तो देश दुनिया में अच्छा मैसेज जायेगा। इन सब बीच गुलाम नबी आजाद के सभी राजनीतिक दलों में मित्र हैं, इसलिये इस बात की संभावना भी है कि उनके नाम से ही पक्ष और विपक्ष एक होकर राष्ट्रपति का निर्विरोध चुनाव करे। यदि भाजपा के द्वारा कांग्रेस के व्यक्ति को चुना जाता है, तो राजनीतिक तौर पर भी देश दुनिया में भारत की राजनीकि का अच्छा संदेश जायेगा।
राष्ट्रपति उम्मीदवार भले कोई भी बने, लेकिन इतना तय है कि इस बार भाजपा एक मुस्लिम चेहरे को इन दो टॉप पदों के लिये जरुर चुनेगी। सबसे ज्यादा संभावना तो यह है कि इस बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिये एक मुस्लिम और एक आदिवासी चेहरे पर दावं लगाया जायेगा। इससे मोदी सरकार के लिये एक पंत दो काज वाली कहावत चरित्रार्थ हो जायेगी। भाजपा से मुस्लिम—दलित—आदिवासी नाराजगी को लेकर नैरेटिव सेट करने का प्रयास करने वालों को भी मुंह की खानी पड़ेगी।
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