मोदी के हिंदू राष्ट्र को इस्लामिक देश बनाने के पीछे तार्किक कारण हैं

Ram Gopal Jat
जब से मोदी सत्ता में आये हैं, तब से हिंदूओं का एक बड़ा वर्ग भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार इस दिशा में बढ़ती दिखाई नहीं दे रही है। वजह यह नहीं है कि जनसंख्या की कमी है, बल्कि असली कारण संविधान में जोड़ा गया वह शब्द है, जो इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय 42वें संवैधानिक संशोधन में जोड़ दिया था। अखंड़ भारत में से 13 देश अलग हो चुके हैं, जबकि 8 राज्यों में हिंदूओं की घटती संख्या ने चिंता पैदा कर दी है। साथ ही कुछ राज्य में बढ़ती आबादी से उत्साहित मुस्लिम तबका भारत को इस्लामिक देश बनाने के मिशन में जुटा हुआ है। आजादी से लेकर अब तक के धार्मिक गणित पर भी गौर करें तो यह अभियान काफी हद तक सफल होता दिखाई देता है।
1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, तब इस्लामिक मुल्क बने पाकिस्तान में 12.9% हिंदू अल्पसंख्यक रह गए थे। समय बदला, हालात बदले और 75 साल में हिंदू अल्पसंख्यकों की आबादी भी बदल गई। पिछले 75 साल में हिंदू आबादी की पाकिस्तान में कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी 12.9% से 2.14% हो चुकी है। हालांकि, यह पाकिस्तान सरकार के अधिकारिक आंकड़े हैं, जबकि वास्तव में पाकिस्तान की करीब 22 करोड़ जनसंख्या में केवल 70 लाख हिंदू बचे हैं। पाकिस्तान ने आजादी के समय से खुद को मुस्लिम देश घोषित कर रखा है। इसके चलते वहां पर मुसलमानों को कई तरह के फायदे मिलते हैं, जबकि हिंदूओं पर प्रतिबंध लगाये जाते हैं। उपर से कट्टरपंथियों द्वारा हिंदूओं को लगातार कन्वर्ट करने का अभियान चलाया हुआ है। आये दिन पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों को उठाकर ले जाने, उनका धर्म बदलने और निकाह करने के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन पाकिस्तानी सरकार कभी हिंदूओं को सुरक्षा नहीं देती है, जिसके कारण वहां का अल्पसंख्यक हिंदू या तो मुस्लिम बन जाता है या वह भारत में पलायन कर जाता है।
दूसरा देश है बंग्लादेश, जहां पर वर्ष 1901 में 66.1 फीसदी मुस्लिम और 33 फीसदी हिंदू थे। आजादी के समय 1947 में भी बंग्लादेश में 32 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी। यह जनसंख्या लगातार घटती चली गई और जब बंग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करवाया गया, तब भी यहां पर हिंदूओं की जनसंख्या करीब 15 प्रतिशत थी। बाद में 7 जून 1988 को बंग्लादेश ने खुद को मुस्लिम देश घोषित कर दिया। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक इस देश की कुल जनसंख्या में केवल 8 फीसदी हिंदू बचे थे, जो वर्तमान में लगभग 5 फीसदी हो चुके हैं। यानी कुल मिलाकर देखा जाये तो बंग्लादेश में हिंदूओं की जनसंख्या बीते 11 दशक में 33 प्रतिशत से घटकर 5 प्रतिशत पहुंच गई है। बंग्लादेश में हिंदूओं के घटने का सिलसिला वैसे तो स्वतंत्रता के समय ही शुरू हो गया था, लेकिन जब बंग्लादेश का मुक्ति आंदोलन चला, तब पाकिस्तान सेना ने हिंदूओं का सफाया कर दिया। कहा जाता है कि गांव के गांव जला दिये गये, हिंदूओं को कन्वर्ट किया गया। उस संग्राम के समय 30 लाख से अधिक हिंदूओं को मारा गया या धर्म बदलवा दिया गया था। यह सिलसिला आजाद बंग्लादेश में भी जारी रहा।
तीसरा देश है अफगानिस्तान, जहां पर आज हिंदू समाप्ता हो चुका है। 1400 साल पहले इस्लाम के आने से पहले अफगानिस्तान भी हिंदू बाहुल्य था। जहां पर बोद्ध धर्म के अनुयायी भी रहते थे, लेकिन उसके बाद धीरे धीरे इस्लाम का प्रभाव बढ़ने लगा। बाबर जैसे आक्रांता अफगानिस्तान से ही भारत आये थे। आजादी के समय तक भी अफगानिस्तान में करीब 3 फीसदी आबादी बताई गई है, किंतु आज की तारीख में तालिबानी शासन है और पिछले दिनों अफगानिस्तान में बचे हुये 143 हिंदू भी भारत आ चुके हैं। अब अफगानिस्तान पूरी तरह से हिंदू मुक्त हो चुका है। यानी अखंड भारत का एक देश अब पूर्ण इस्लामिक हो गया है। इसी राह पर पाकिस्तान और बंग्लादेश चल रहे हैं, जहां पर बचे हुये हिंदूओं पर अत्याचार कर उनको मुस्लिम बनाने की कोशिश चल रही है।
अखण्ड भारत में आज के अफगानिस्तान, पाकिस्तान , तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, फिलीपीन्स, थाईलैण्ड, दक्षिण वियतनाम, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया आदि में सम्मिलित थे। इनमें से केवल भारत में ही हिंदू बहुसंख्यक बचे हैं। अन्य किसी अन्य देश में हिंदू या तो हैं ही नहीं, या फिर अत्यंत कम संख्या में हैं। आज दुनिया में करीब 180 करोड़ मुस्लिम बताये जाते हैं, जो सबसे अधिक एशिया महाद्वीप में उस जगह पाये जाते हैं, जहां का सबसे बड़ा भूभाग कभी अखंड़ भारत का हिस्सा था, जबकि हिंदूओं की संख्या करीब 100 करोड़ के आसपास रह गई है। मतलब साफ है कि महज 1400 साल पहले सामने आये एक मजहब ने दुनिया के अधिकांश हिंदूओं को ही कन्वर्ट करने का काम किया है।
बात यदि भारत की करें तो आजादी के समय भारत में करीब 87 प्रतिशत हिंदू निवास करता था। बंटावारे के बाद भी भारत में करीब 6 फीसदी मुसलमान बच गये थे, जो आज बढ़कर 14 प्रतिशत से ज्यादा हो गये हैं, जबकि 87 प्रशित हिंदू घटकर 79 फीसदी रह गये हैं। एक अनुमान के अनुसार 2050 तक मुस्लिम आबादी 30 फीसदी हो जायेगी और तब हिंदूओं की संख्या 60 प्रतिशत से भी कम जो जायेगी। भारत के आज 8 राज्य ऐसे हैं, जहां पर हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। वैसे तो संविधान में कहीं पर भी पंथ निरपेक्ष या धर्म निरपेक्ष शब्द का उल्लेख नहीं था, लेकिन संविधान सभा की विचारधारा के अलग आपातकाल के दौरान 1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े गए। और भारत 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' से 'संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' बन गया। मतलब साफ है कि दुनिया के एकमात्र हिंदू राष्ट्र को पहले धर्म निरपेक्ष बनाया गया और अब मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा 2047 तक मुस्लिम देश बनाने की मुहीम चलाई जा रही है।
पिछले दिनों बिहार में पकड़े गये पूर्व थानेदार और पीएफआई से जुड़े मौलवियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि अगले 25 साल में भारत को मुस्लिम देश बनाने के लिये काम किया जा रहा है। एजेंसियां जांच करने में जुटी हैं, लेकिन उनके हाथ बंधे हुये हैं धर्म निरपेक्ष बना दिये गये संविधान से, जिसके चलते एजेंसियां कभी भी धर्म के आधार पर जांच नहीं कर सकती। पीएफआई वही मुस्लिम संस्था है, जो कभी सिमी हुआ करती थी। यूपीए सरकार में सिमी को बैन किया गया तो सारे सदस्य पीएफआई में शामिल हो गये। पीएफआई भारत में मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था है, लेकिन इसके जैसी और भी कई संस्थाएं हैं, जो इस्लाम के प्रचार में जुटी हुई हैं। इन सबका भारत को इस्लामिक देश बनाना ही एकमात्र मकसद है।
हिंदूओं की घटती संख्या और बढ़ती मुस्लिम आबादी पर​ चिंता तो हर कोई करता है, लेकिन इसके समाधन पर चुप हो जाते हैं। सबसे पहले हम बढ़ते मुस्लिम और घटते हिंदू के कारणों को समझने का प्रयास करते हैं। असल में हिंदूओं में एक सोच विकसित हो चुकी है कि बच्चे कम से कम पैदा करने चाहिये। मसलन जो सरकारी कर्मचारी है, उसके दो से ज्यादा होते ही नौकरी जाने का खतरा है, ठीक ऐसे ही 2 बच्चों के अधिक होने पर सरकारी मिलती ही नहीं है। अब आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि सरकारी नौकरी के पीछे भागने वालों में हिंदू ही प्रमुख हैं, मुस्लिम या तो होता ही कम पढ़ा लिखा है, या फिर वह पढ़कर भी वह अपनी काबिलियत के दम पर अपना काम करने में भरोसा करता है। वह किसी भी काम को छोटा नहीं समझता है।
आज पंचर निकालने से लेकर गहने बनाने जैसे कामों पर मुस्लिम समाज अपना कब्जा चुका है। हिंदूओं के परंपरागत सभी कार्यों को बीते तीन दशक से मुस्लिम कर रहा है, जबकि हिंदू थोड़ा सा पढ़ने के बाद सरकारी नौकरी के सपने देखने लगता है। सामान्यत: हिंदूओं के बच्चे जहां 30—35 साल तक सरकारी नौकरी की तैयारी में गवां देते हैं, तो मुस्लिम अपने बच्चों को अधिकतम 20 साल के होने तक पैरों पर खड़ा होना सिखा देते हैं। नौकरी नहीं मिलने तक हिंदू शादी नहीं करता, जिसके कारण 35 साल बाद बच्चे पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है, तो इस उम्र के बाद महिलाओं में कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं, जिससे बच्चे पैदा करने की इच्छाशक्ति भी खत्म हो जाती है। मुस्लिम अपने बच्चों की 20 साल के होने तक शादी कर चुके होते हैं, जो 25—28 साल का होने तक 5—6 बच्चों को बाप बन चुका होता है।
ऐसे में हिंदू जहां सरकारी नौकरी करते हुये एक या अधिकतम दो बच्चों पर फोकस कर रहा है, वहीं मुस्लिम समाज अपने बच्चों को हाथ का कारीगर बन रहा है और अल्लाह की देन मानकर 5—6 बच्चे पैदा करना धर्म समझता है। इसलिये जब भी जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात की जाती है, तो सबसे पहले मुस्लिम धर्मगुरू या फिर इसी समुदाय से आने वाले नेता भड़क उठते हैं। मौलवी अक्सर यही शिक्षा देते हैं कि बच्चे पैदा होना खुदा के हाथ में है, आदमी के हाथ केवल उनको पालना ही है, इसलिये मुसलमानों में नसंबदी कराने से भी परहेज किया जाता है।
अब आप एक गणित के जरिये घटती हिंदू और बढ़ती मुस्लिम आबादी को समझिये। मान लिजिये आज भारत में 100 करोड़ हिंदू हैं, जबकि 20 करोड़ मुस्लिम रहते हैं। हिंदूओं में बच्चे पैदा करने की दर अधिकतम दो है, जबकि मुसलमानों में यह दर करीब 5 से भी अधिक है। बच्चे पैदा करने की क्षमता वाले हिंदूओं की संख्या 25 करोड़ भी मानी जाये तो 20 साल बाद हिंदू 125 करोड़ होंगे, जबकि आबादी बढ़ाने वाले मुसलमानों की तादात 5 करोड़ मानें तो ये 20 साल बाद भारत में 50 करोड़ मुस्लिम होंगे। उसके अगले 20 साल में हिंदू 26 करोड़ बढ़ेंगे तो मुसलमानों की संख्या 100 करोड़ के उपर चली जायेगी। यदि इसको घटती संख्या के हिसाब से भी मानें तो आने वाले 40 साल में हिंदू आबादी 125 से 130 करोड़ होगी, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़कर करीब 80 करोड़ हो जायेगी।
हिंदू आधी उम्र तो सरकारी नौकरी की तैयारी करने में ही निकाल देता है, और मुसलमान अक्सर सरकारी नौकरी के पीछे नहीं भागता, वह सही समय पर शादी करना जरुरी समझता है। भारत में एक मुस्लिम के लिये धर्म की मान्यताएं पहले हैं, देश की जरुरतें दूसरे स्थान पर आती हैं। मुस्लिम आदमी अक्सर बच्चे पैदा करने को ही अपना धर्म मानता है, जब​कि हिंदूओं के लिये बच्चे होना एक वारिश की आवश्यकता से अधिक कुछ नहीं है। इसलिये हिंदू एक वारिश होते ही नसबंदी कराने में रुचि रखता है, तो मुस्लिम औरतें अपने फिगर को मैंटेन करने के बजाये अपने धर्म को बढ़ाने पर ध्यान देती हैं। मुस्लिम कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं समझता है, जिस काम के करने से पैसा मिलता है, वह काम करने में उसको शर्म नहीं आती है, ज​बकि हिंदूओं की जातिप्रथा ने भी उनको कर्मक्षेत्र में कमजोर कर दिया है।
हिंदूओं में अक्सर जाति के आधार पर काम—धंधा करने को प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि मुसलमानों में उस क्षेत्र को अपनाया जाता है, जहां से पैसा मिलता है। आज की तारीख में पंक्चर निकालने से लेकर बाल काटने, आभूषण बनाने लेकर कपड़े सिलने समेत जितने भी हाथ के कारीगर हैं, सभी क्षेत्र में मुसलमान मिलेंगे, जबकि हिंदू या तो सरकारी नौकरी करता पाया जाता है, फिर मोटा पैसा लगातार काम—धंधा शुरू करता है, जिसमें अक्सर डूबने का खतरा रहता है। यही कारण है कि हिंदूओं में जहां सरकारी नौकरी के कारण कम बच्चे पैदा करने की प्रतृत्ति बनती जा रही है तो काम धंधे के तनाव में वह समाज के दायित्व को निभाने में भी विफल रहता है। दूसरी ओर मुस्लिम व्यक्ति धर्म को पहले स्थान पर रखते हुये मौलवियों के कहे मुताबिक आधा दर्जन बच्चे पैदा करता है और कोई भी काम धंध करके उनका पालन पोषण करता है।
इन कारणों के अलावा हिंदुओं में राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का भी बोध होता है। देश की समस्याओं में हिंदू अक्सर अपना समय और धन व्यय करता है। इसलिये बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिये सबसे पहले हिंदू ही आगे आता है। दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं, फिर भी इस्लाम के मानने वालों में इसकी संख्या बढ़ाने में रुचि रहती है, जबकि हिंदू के लिये भारत को ही समृद्ध बनाना पहला और आखिरी उद्देश्य है। हिंदूओं को मंदिरों में कभी भी जनसंख्या बढ़ाने की सीख नहीं दी जाती, जबकि भारत की मस्जिदों और मदरसों में ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा कर भारत को इस्लामिक देश बनाने की तकरीरें दी जाती हैं। यही कारण है कि हिंदू देशहित में कम बच्चे पैदा कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम धर्महित में अधिक बच्चे पैदा कर आबादी बढ़ा रहे हैं।
पिछली कुछ सदियों में अखंड़ भारत के 13 देश टूटकर अलग हो चुके हैं, जिसमें से अधिकांश केवल मुस्लिम देश बने हैं। जबकि भारत के 8 राज्य हिंदू विहीन होने की कगार पर खड़े हैं, जिनके टूटने का खतरा भी उत्पन्न होने लगा है। ऐसे में यदि ये कहें​ कि आने वाले समय में पर्याप्त जनसंख्या के अभाव में हिंदूओं से भारत का कोई भूभाग छिनने का खतरा बन सकता है, तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिये।

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