मोदी लगेंगे पुतिन से गले और जिनपिंग से मिलायेंगे हाथ तो अमेरिका को लगेगी मिर्ची

Ram Gopal Jat
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समरकंद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान पहुंच चुके हैं। मोदी एससीओ परिषद के राष्ट्र प्रमुखों की होने वाली 22वीं बैठक में भाग लेंगे। इस दौरान सबकी निगाहें पीएम मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात पर टिकी हैं। अमेरिका समेत पूरा पश्चिमी जगत इस सम्मेलन पर निगाहें गढ़ाए हुये है। इस समिट में प्रधानमंत्री मोदी जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से गले लगेंगे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हाथ मिलायेंगे तो यह तय है कि अमेरिका समेत पश्चिमी जगत को मिर्ची लगेगी।
रूस यूक्रेन युद्ध के कारण जब पूरा विश्व दो धड़ों में बंटा हुआ है, तब भारत ही दुनिया का एकमात्र शक्तिशाली देश है, जो दोनों के ही पक्ष में नहीं खड़ा है। भारत ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को कायम रखते हुये युद्ध को गैर जिम्मेदार ठहराया है, जबकि अपने कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुये भारत ने रूस से कच्चा तेल, कोयला जैसे उत्पाद सस्ते दामों पर खरीदकर अरबों डॉलर की बचत भी की है। इस दौरान रूस ने भारत से संबंध मजबूत रखने के लिये समय से पहले सुरक्षा उपकरण भी दिये हैं। हालांकि, भारत ने सुरक्षा परिषद में भी रूस के पक्ष में वोट नहीं दिया है, लेकिन अनुपस्थित रहकर परोक्ष तौर पर रूस की मदद की है। बीते सात महीनों में अमेरिका बार बार भारत को रूस की मदद करने से रोकने के प्रयास करता रहा, लेकिन भारत ने एक नहीं सुनी और अपने पुराने मित्र रूस की हर संभव मदद करता रहा है। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका समेत तमाम नाटो देशों की ओर से लगाये गये पूर्ण प्रतिबंध बेअसर साबित हो गये और रूस की मुद्रा रुबल में जोरदार सुधार कर डॉलर को भी पीछे छोड़ दिया। अमेरिका ने भारत को हर स्तर पर रूस से रिश्ते खत्म करने को कहा, लेकिन भारत ने रणनीतिक तौर पर हर मंच पर साफ किया कि वह अपने फायदे के लिये सभी वो काम करेगा, जो उसको करने हैं, क्योंकि अमेरिका समेत नाटो देश भी अपने फायदे के लिये आजतक यही करते आये हैं।
भारत के विदेश मंत्री सुब्रम्ण्यम जयशंकर ने देश और विदेश के प्रत्येक मंच पर जोरदार तरीके से कहा कि भारत वही करेगा, जो उसको अपने नागरिकों के हितों में करना है। पिछले दिनों जब जयशंकर ने मोदी के 20 साल के राजनीतिक जीवन पर लिखी पुस्तक के एक कार्यक्रम में गुजरात में बोल रहे थे, तब उन्होंने महाभारत और चाण्क्य नीति के बारे में जिक्र किया और यह भी कहा कि उन्होंने इस पुस्तक में एक अध्याय महाभारत से प्रेरित होकर लिखा है। इसके साथ ही यह भी कहा कि दुनिया में जब भी लोग रणनीति की बात करते हैं, तब विदेश विद्वानों की ही बात करते हैं, लेकिन हजारों साल पहले रचित महाभारत में रणनीति के सभी सार मौजूद हैं, जिनको पढ़ना और समझना होगा। भारत को अपने रणनीतिक ग्रंथों के बारे में जानना होगा और दुनिया को इनके बारे में बताना होगा। जयशंकर की बातों से साफ हो गया है कि भारत अब पुरानी रणनीति को पूरी तरह से छोड़ चुका है।
यही वजह है कि जयशंकर जहां भारत सरकार की विदेश नीति को मजबूत करने में लगे हैं, तो मोदी ने उनको पूरी तरह से इस बात की छूट दे रखी है कि देशहित में जो भी करेंगे, उसका समर्थन जारी रहेगा। जयशंकर जिस अंदाज में भारत की भूमिका विदेशों में निभा रहे हैं, वह सबको चकित करने वाली है। जयशंकर इस वक्त काम के हिसाब से मोदी मंत्रीमंडल के नोरत्नों में एक बन चुके हैं। अपने लंबे विदशी अनुभव और सरकार की बदलती रणनीति का ही परिणाम है कि जयशंकर ने रूस यूक्रेन युद्ध और चीन ताइवान विवाद के बीच भारत का पक्ष ना केवल मजबूती से रखा है, बल्कि साथ ही इन बड़े देशों को दिखा दिया है कि आने वाला समय भारत का है और भारत को पूछे बिना दुनिया अब बड़े फैसले नहीं ले पायेगी। भले ही आज भी चीन सुरक्षा परिषद में भारत को स्थाई सदस्यता देने में रोडे अटका रहा है, लेकिन आने वाले समय में उसको भी भारत का साथ देना होगा। जयशंकर का यह कहना कि भारत की तत्कालीन सरकारों ने 1974 से 1998 के काल में कार्यों को लटकाने का जो काम किया है, उसके चलते भारत को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है, लेकिन बीते आठ साल में उन भूलों को सुधारने का प्रयास किया है और अब भारत सही दिशा में चल रहा है।
इस समय भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, तो साथ ही जीडीपी विकास की दर भी दुनिया में सर्वाधिक होना इस बात का प्रमाण है कि भारत की सरकार तेजी से पॉलिसी सुधार और विकास के काम कर रही है। अगले एक साल तक भारत ना केवल जी20 का अध्यक्ष होगा, बल्कि एससीओ जैसे बड़े आयो​जनों की अध्यक्षता भी होगी। क्वाड को अमेरिका ने 2021 में होस्ट किया था, तो 2022 में जापान ने इसकी मेजबानी की है, अब 2023 में भारत या ओस्ट्रेलिया में से एक इसकी मेजबानी करेगा। भारत को यूएन में स्थाई सीट के लिये पांच में चार स्थाई सदस्यों का समर्थन है, जबकि दुनिया के छोटे बड़े, तकरीबन सभी देश भारत को स्थाई सदस्य बनाने के पक्ष में हैं।
रूस और चीन लंबे समय से नैसर्गिक मित्र हैं, लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान चीन रूस से बड़ा हो चुका है। ऐसे में भारत ने रूस को यह समझाने का प्रयास किया है कि उसको अकेला नहीं पड़ने दिया जायेगा, क्योंकि भारत ने अमेरिका और नाटो देशों को बराबरी दिखाकर साबित कर दिया है कि वह आज की तारीख में दुनिया की कम से कम तीसरी सबसे बड़ी ताकत बन चुका है। अब एशिया में ही चीन और भारत के रुप में दो शक्तिशाली देश हैं, जो एकसाथ होने पर अमेरिका व नाटो को मात दे सकते हैं। हालांकि, भारत और चीन के बीच संबंध अच्छे नहीं है, लेकिन रूस को यह समझना होगा कि उसको चीन का अधिक पिछलग्गू बनने की जरुरत नहीं है, उसे आवश्यकता होने पर भारत खुलकर साथ दे सकता है।
जी20 समिट में भी भारत ने केवल उज्बेकिस्तान और रूस के साथ ही द्विपक्षीय मीटिंग करना तय किया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इस सम्मेलन में हाथ मिलायेंगे, लेकिन भारत की चीन के साथ ही द्विपक्षीय बैठक नहीं होना इस बात का प्रणाम है कि भारत अब चीन को अधिक तवज्जो नहीं देगा, जिससे चीन को लगे कि भारत उससे छोटा है, लेकिन ना कमजोर है और ना ही डरने वाला है। भारत ने डोकलाम और लद्दाख विवाद के बाद चीन से राजनीतिक रिश्ते तोड़ रखे हैं, जिसके कारण वह भारत में अपना निर्यात भी नहीं बढ़ा पा रहा है, उपर से भारत सरकार की चीनी कंपनियों को लेकर सख्ती के चलते चीन के सपने धराशाही होते हुये दिखाई दे रहे हैं।
यही वजह है कि एक ओर जहां व्लादिमिर पुतिन से द्विपक्षीय रिश्तों की मीटिंग कर प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका समेत पश्चिमी दुनिया को दिखायेंगे कि वह मित्रता को सबसे आगे रखता है, तो साथ ही यह भी दिखा रहे हैं कि उसे अपने देशवासियों के हितों में जिससे भी कारोबार करना होगा, वह करते रहेंगे। इसलिये भविष्य में यदि रूस को भारत की जरुरत पड़ी तो वह फिर से तैयार रहेगा। क्योंकि भारत अभी तक 1971 की पाकिस्तान से वह जंग नहीं भूला है, जब अमेरिका व ब्रिटेन के जंगी जहाज समुद्र में भारत के खिलाफ कोहराम मचाने उतरे थे, जिनको रूसी पनडुब्बियों ने ही खदेड़ दिया था। इसलिये भारत ना केवल रूस का पुराना मित्र है, बल्कि अहम व्यापारिक साझेदार भी है, जिसको भारत कभी नहीं छोड़ना चाहेगा। अब इसके कारण अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को तकलीफ हो तो होती रहे।
आने वाले 8—10 साल में भारत ना केवल तेजी से विकास करेगा, बल्कि भारत सरकार की रणनीति के अनुसार अगले 25 साल में भारत को पूर्ण विकसित बनाने का जो लक्ष्य रखा है, उसको भी पूरा कर लेगा। उस समय दुनिया में अमेरिका व चीन की तरह भारत भी दुनिया का सर्वाधिक शक्तिशाली देश बन चुका होगा। इस बात की तैयारी भारत सरकार कर भी रही है और दिखा भी रही है कि भारत को हल्के में लेना अब विश्व समुदाय के लिये शुभ सकेंत नहीं होंगे।

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