मोदी जब पुतिन से गले मिले तो देखते रह गये जिनपिंग और शरीफ

Ram Gopal Jat
संघाई शिखर सम्मेलन में भारत ने एक बार फिर अपनी धाक जमाई है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के बीच बातचीत को दूर बैठकर देख रहा था, तो इसी सम्मेलन में मौजूद दूसरे सबसे ताकतवर देश चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी मोदी—पुतिन को केवल मूक दर्शक बनकर देखने को मजबूर थे। कोरोना काल और रूस यूक्रेन युद्ध के साथ ही ताइवान को लेकर अमेरिका चीन में तनाव के बाद यह पहला अवसर था, जब भारत, चीन, रूस जैसे बड़े देश एक मंच पर थे। बीते सात महीनों में रूस द्वारा यूक्रेन पर चढ़ाई करने के बाद पहली बार भारत के पीएम मोदी की रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात का भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनियाभर को इंतजार था। खासकर यूक्रेन को अपेक्षा थी कि भारत इस मौके पर रूस को युद्ध बंद करने को कहेगा, और भारत ने ऐसा किया भी।
प्रधानमंत्री मोदी की पुतिन के साथ एक घंटे की मुलाकात के दौरान कई मुद्दों पर बातचीत हुई। जो वीडियो जारी किया गया, उसमें पीएम मोदी ने पुतिन से दुनियाभर में खाद्दान संकट, उर्जा, ​फर्टिलाइजर, युद्ध के दौरान भारत के करीब 20 हजार स्टूडेंट्स को यूक्रेन से बाहर निकालने के लिये रूस व यूक्रेन को धन्यवाद देना, और रूस को इस युग में युद्ध के बजाये डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी और डॉयलॉग का रास्ता अपनाने की सलाह के साथ ही रूस के साथ पुरानी मित्रता का जिक्र किया, तो साथ ही खुद मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री बनने और पुतिन के रूस के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार हुई मुलाकात का जिक्र भी किया। मोदी ने पुतिन से कहा कि भारत की दशकों पुरानी दोस्ती परवान चढ़ रही है। इन सभी विषयों पर मोदी ने पुतिन की तारीफ भी की और रूस के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी जताई।
मोदी की इन बातों में कई गूढ़ रहस्य छिपे थे। मोदी हिंदी में जिस धारा परवाह तरीके से पुतिन के साथ बातचीत कर रहे थे, उससे दुनिया में यह भी संदेश गया है कि भारत अब इंग्लिश फोबिया से ग्रसित नहीं है, उसको अपनी भाषा में ही बात करना और अपना मैसेज दुनिया को देना सीख लिया है। पुतिन ने मोदी की बातचीत को भले ही ट्रांसलेटर के द्वारा समझा हो, लेकिन अमेरिका व चीन जैसे देशों ने जरुर यह समझ लिया है कि भारत फिलहाल किसी भी सूरत में रूस के साथ संबंध तोड़ने या कम नहीं करने वाला है। अमेरिका बीते सात महीनों से इस प्रयास में रहा है कि भारत इस युद्ध का जिम्मेदार रूस को ठहराकर उससे मित्रता खत्म कर ले। इधर, चीन का प्रयास यही रहता है कि भारत कमजोर हो, ताकि वह अपने खतरनाक विस्तारवादी मंसूबों को पूरा कर सके।
मोटे तौर पर मोदी की बातों को सरल शब्दों में समझा जाये तो फूड सिक्योरिटी, फर्टिलाइजर सप्लाई और फ्यूल सप्लाई को लेकर बहुत बड़ी बात कही है। मोदी ने दुनियाभर में खाद्दान संकट के समय भारत द्वारा सप्लाई किये जाने का जिक्र किया है, साथ ही रूस व यूक्रन द्वारा दुनिया को गेंहू की उपलब्धता नहीं होने पर चिंता जताई है। मोदी ने साफ किया है कि युद्ध भले ही दो देशों के बीच हो रहा हो, लेकिन खाद्दान संकट पूरे विश्व में है और इसका समाधान तुरंत निकाला जाना चाहिये। उन्होंने उम्मीद जताई है कि विश्व की इस समस्या और भारत की चिंता को रूस समझेगा और इसका समाधान करने पर विचार जरुर करेगा।
दूसरी बात मोदी ने अपने हजारों स्टूडेंट्स की सकुशल देश वापसी पर रूस और यूक्रेन को धन्यवाद देकर दुनिया को बता दिया है कि जो भी देश उनको मदद करेगा, उसका अहसान वह भूलेगा नहीं। इस मामले में बड़ी ही चतुराई से मोदी ने रूस के साथ यूक्रेन की तारीफ कर अमेरिका समेत विश्व को यह बता दिया है कि वह आंख मीचकर रूस के साथ नहीं खड़ा है, बल्कि जो भी देश भारत के साथ दोस्ती रखना चाहेगा, उसको पूरी ईमानदारी से वफादारी का इनाम भी मिलेगा। इस एक वाक्य के जरिये मोदी ने रूस को भी परोक्ष मैसेज दिया है कि भले ही उसने युद्ध रोककर उनके विद्यार्थियों को बाहर निकालने में मदद की हो, लेकिन इस अभियान में यूक्रेन का भी अहम योगदान रहा है, जहां भारत के हजारों स्टूडेंट्स फंसे थे।
मोदी की तीसरी महत्वपूर्ण बात युद्ध को लेकर रही, जिसका भारत ने कभी समर्थन नहीं किया है। हालांकि, मोदी ने रूस का यह अहसास भी करवाया है कि नाटो में यूक्रेन के शामिल होने से रूस को जो संभावित नुकसान हो सकता है, उसको लेकर वह रूस की चिंता को जानता है, लेकिन फिर भी युद्ध इस युग में पहला विकल्प नहीं हो सकता। मोदी ने रूस समेत पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है कि युद्ध के बजाये डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी और डॉयलॉग के जरिये सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। मोदी की डेमोक्रेसी में ना केवल रूस के लिये मैसेज है, बल्कि तानाशाह चीन और हमेशा सेना के बल पर शासन का तख्ता पलट करने वाले पाकिस्तान के लिये भी बहुत बड़ी बात छिपी हुई है। मोदी ने साफ कर दिया कि दुनिया तानाशाही से नहीं, बल्कि लोकतंत्र से चलनी चाहिये, ताकि लोगों को स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार मिले।
डिप्लोमेसी की बात के माध्यम से मोदी ने रूस को कहा है कि वह यूक्रेन के साथ रणनीतिक और कूटनीतिक संबंधों से विवाद को सुलझा सकता है। मोदी ने डिप्लोमेसी की बात के जरिये भी चीन, अमेरिका, पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को यही समझाने का प्रयास किया है कि भारत भविष्य में सबसे अधिक जोर इसी पर देने वाला है और भारत के लिये युद्ध हमेशा विकल्प अंतिम ही होगा। रूस के माध्यम से मोदी ने पूरे विश्व को डिप्लोमेसी का संदेश देकर विदेश मंत्री सुब्रम्ण्यम जयशंकर की उस बात पर मुहर लगा दी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि दुनिया में रणनीति का बहुत महत्व है और भारत को महाभारत से रणनीति सीखने और दुनिया को सिखाने की जरुरत है। आज दुनिया में सैनिक युद्ध से ज्यादा रणनीतिक युद्ध पर जोर दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरी बात डॉयलॉग की कही है। जब तक संवाद की भाषा चलती रहे, तब तक किसी और भाषा की जरुरत नहीं होती है। संवाद ऐसी प्रक्रिया है, जो बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकती है। ऐसे में मोदी ने रूस को प्रत्यक्ष रुप से और पाकिस्तान जैसे देशों को परोक्ष तौर पर यही समझाने का प्रयास किया है कि संवाद बंद नहीं होना चाहिये। डॉयलॉग के माध्यम से दुनिया के बड़े विवादों को समाधान निकाला जा सकता है। भारत बीते आठ साल से संवाद की भाषा के जरिये ही दुनिया के कई देशों के साथ मधुर संबंध स्थपित कर चुका है। हालांकि, पडोसी देश चीन और पाकिस्तान आज भी संवाद के बजाये सैनिक युद्ध की भाषा को अधिक महत्व देते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने रूस को संवाद का रास्ता दिखाकर विश्व के सभी देशों को शांति का संदेश दिया है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को कहा है कि जब वह पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मुलाकात की थी और दो दशक के दौरान भारत रूस के साथ ही उनकी व्यवक्तिगत मित्रता भी परवान चढ़ी है। मोदी ने पुतिन से यह बात कहकर दोनों देशों के लंबे संबंधों और भारत की नजर में रूस के महत्व को समझाने का प्रयास किया है, तो परोक्ष रुप से अमेरिका जैसे देशों को यह संदेश भी दे दिया है कि रूस के साथ उनके कितने गहरे और पुराने संबंध हैं, जिनको तोड़ना इतना आसान नहीं है।
कुल मिलाकर भारत ने एससीओ सम्मेलन में वह सबकुछ किया है, जो एक बड़े और जिम्मेदार देश को करना चाहिये। यहां तक कि पाकिस्तान की वजह से भारत का दुश्मन बने तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात कर सभी विवादों को बातचीत के जरिये सुलझाने का प्रयास भी अपनी ओर से किया है। किंतु सबसे बड़ी बात यह है कि इस मौके पर भी भारत ने चीन व पाकिस्तान को साफ कर दिया है कि जब तक सीमा विवाद करते रहेंगे, तब तक उनके साथ बात नहीं की जायेगी। क्योंकि इसी सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी मौजूद थे, लेकिन भारत ने उनके साथ बात करने में कोई रुचि नहीं दिखाकर साबित कर दिया है कि अब इनको ही आगे बढ़कर भारत से संबंध सुधाराने की पहल करनी होगी।

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