बाजार से कैसे गायब हो गये 2000 के नोट?

Ram Gopal Jat
देश में नोटबंदी को 6 साल हो चुके हैं। राजनीतिक हलकों में इसका हल्ला आज भी मचाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में भी इसकी एक याचिका पर सुनवाई हो रही है। हालांकि, इतने लंबे समय बाद भी एक मुद्दा खत्म नहीं होना, कहीं ना कहीं इस देश के संविधान और लोकतंत्र पर सवाल जरुर उठाता है। और सबसे अधिक सवाल उठ रहे हैं, उसी न्याय के मंदिर पर जिसमें भारत के आम लोगों के करीब 3 करोड़ मुकदमे लंबित हैं, लेकिन न्यायपालिका को सुनवाई करने के बजाये आज हम राजनीतिज्ञों जैसी की बयानबाजी करते देख रहे हैं। देश में अमीरों की संख्या बढ़ रही है, नोटों की संख्या घट रही है और अधिकारों के लिये संसद व न्यायपालिका में टकराव हो रहा है। इन तीन मुद्दों को समझने इसलिये भी जरुरी है, क्योंकि इनके इर्द गिर्द ही आज भारत का पूरा तंत्र घूम रहा है। सबसे पहले बात करते हैं न्यायपालिका के अधिकारों की, जो कथित तौर पर सरकार कम करना चाहती है। कॉलेजियम सिस्टम में बदलाव को लेकर बहुत सवाल उठे, लेकिन जिस त्वरित तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले इस कॉलेजियम को बदलने वाले कानून को खत्म करते देखा गया, उससे यह भी साफ हो गया है कि भारत में संविधान की ठंडी छाया के पीछे छिपकर न्याय करने की हूंकार भरने वाले अपनी हैशियत में किसी तरह की छेडछाड बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं।
हमारे संविधान में स्पष्ट बताया गया है कि कानून बनाने का काम संसद का है, उसको लागू करने का काम कार्यपालिका करेगी, और उन कानूनों के अनुसार न्याय करने का काम न्यायपालिका को करना है। किंतु जिस तरह के हालात कॉलेजियम को लेकर बने, वह अपने आप में संविधान पर सवाल खड़े करता है। क्या न्याय करने वाले अपने अधिकारों को लेकर असुरक्षित हैं, या सरकार उनको परोक्ष रुप से अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रही है, जिससे न्यायपालिका छुटकारा पाना चाहती है? क्या कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट की फैसले पर टिप्पणी करने का अधिकार रखते हैं? क्या सरकार इतनी पंगू हो गई है कि कोर्ट उसके बनाये कानून को एक झटके में खारिज कर रहा है? यह बात सही है कि जो कानून संसद से बनाये जाते हैं, उनकी विवेचना न्यायपालिका कर सकती है, लेकिन क्या उन कानूनों को खत्म भी कर सकती है, जिनको संसद में बैठे जनता के प्रतिनिधि एक लंबी बहस और पूरी प्रक्रिया से बनाते हैं? आपको याद होगा, कुछ समय पहले कॉलेजियम सिस्टम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग लाया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इतनी तेज गति से खारिज किया, जैसे जजों की बुलेट ट्रेन छूट रही हो।
वैसे तो कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है। यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए अस्तित्व में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक फोरम जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश दूसरी बार भेजने पर सरकार के लिए मानना जरूरी होता है। कॉलेजियम की स्थापना सुप्रीम कोर्ट के 5 सबसे सीनियर जजों से मिलकर की जाती है। सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। इसके अलावा उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्‍नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। यानी कोर्ट ही कोर्ट के नियम कायदे कानून बनाने और मिटाने वाला है, उसके उपर कोई नहीं है, जबकि संविधान में राष्ट्रपति को तीनों पिलर्स के उपर बताया गया है। जजों द्वारा अपने ट्रांसफर, नियुक्ति समेत सभी अधिकार अपने पास रखने के कारण उसकी तानाशाही होने का डर है, इसलिये UPA सरकार ने 15 अगस्त 2014 को कॉलेजियम सिस्टम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त‍ि आयोग, एनजेएसी का गठन किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को असंवैधानिक करार दे दिया। इस प्रकार वर्तमान में भी जजों की नियुक्ति और तबादलों का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम ही करता है।
NJAC में जिन 2 हस्तियों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमेटी करती। इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी। ऊपर दी गयी पूरी जानकारी के आधार पर यह बात स्पष्ट हो गया है कि देश की मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था “पहलवान का लड़का पहलवान” बनाने की तर्ज पर “जज का लड़का जज” बनाने की जिद करके बैठी है। भले ही इन जजों से ज्यादा काबिल जज न्यायालयों में मौजूद हों। यह प्रथा भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के लिए स्वास्थ्यकर नही है। कॉलेजियम सिस्टम का कोई संवैधानिक दर्जा नही है, इसलिए सरकार को इसको पलटने के लिए कोई कानून लाना चाहिए, ताकि भारत की न्याय व्यवस्था में काबिज कुछ घरानों का एकाधिकार ख़त्म हो जाये। इस सिस्टम को लेकर सवाल तो खूब उठ रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कतई नहीं चाहता है कि उसके अधिकारों को कम करने वाला कोई कानून बने। यही वजह है कि एक बार फिर से सरकार और शीर्ष कोर्ट में ठन गई है। इस बार सुर्खियों में हैं कानून मंत्री किरण रिजिजू, जिन्होंने पिछले दिनों ही कहा था कि जब मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जांच यदि सुप्रीम कोर्ट कर सकता है, तो फिर कॉलेजियम से नियुक्त जजों की भी जांच होनी चाहिये। इसके बाद से ही सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने टिप्पणी की है। इसके साथ ही उनसे मिले हुये खास और बड़े कहे जाने वाले वकीलों ने भी कॉलेजियम का समर्थन किया है। साथ ही कानून मंत्री पर आरोप लगाया है कि उन्होंने लक्ष्मण रेखा लांघी है।
इससे पहले संसद में बने कानून NJAC का गठन 6 सदस्यों की सहायता से किया जाना था, जिसका प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बनाया जाना था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठ जजों, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ीं 2 जानी-मानी हस्तियों को सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी। इसी तरह से एक अन्य मामला भी सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिसको लेकर मोदी सरकार सवालों में है। आपको याद होगा साल 2016 की नोटबंदी, जब एक झटके में आधी रात को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिये गये थे। लोगों ने पूरे-पूरे दिन लाइन में लगकर पुराने नोट बैंक में जमा करवाये थे। उसकी एवज में मार्केट में 2000 रुपए का नोट लाया गया था, लेकिन इतना महंगा नोट भारतीयों की जेब में ज्यादा दिन टिक नहीं पाया और अब नाम मात्र के प्रचलन में बचा है। स्थिति यह है कि मूल्यवान नोटों में 2000 के नोट की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम रह गई है। लोगों को ना तो बैंक में यह नोट मिल रहा है और ना ही बाजार में है। रिजर्व बैंक ने 2000 के नोट के भविष्य के बारे में भी लोगों को अलर्ट कर दिया है। हाल ही में जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक मौजूद समय में 2000 के नोट की हिस्सेदारी महज 1.6 प्रतिशत से भी कम रह गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 के अंत में चलन में शामिल 2000 रुपये के मूल्यवर्ग वाले नोटों की संख्या 274 करोड़ थी। यह आंकड़ा चलन में कुल करेंसी नोटों की संख्या का 2.4 प्रतिशत था। इसके बाद मार्च 2021 तक चलन में शामिल 2000 के नोटों की संख्या घटकर 245 करोड़ या दो प्रतिशत रह गई। पिछले वित्त वर्ष के अंत में यह आंकड़ा 214 करोड़ या 1.6 प्रतिशत तक रह गया है, जो चौकाने वाला है। यदि मूल्य के संदर्भ में बात करें तो मार्च 2020 में 2000 रुपये के नोट का कुल मूल्य, सभी मूल्यवर्ग के नोटों के कुल मूल्य का 22.6 प्रतिशत था।
जानकारी में आया है कि आरबीआई ने 2,000 रुपये के नए नोटों की छपाई बंद कर दी है, क्योंकि ये उच्च मूल्य के नोट बैंकों में वापस नहीं आ रहे हैं। एटीएम में भी लोगों को पहले की तरह 2,000 रुपये के नोट नहीं मिल रहे हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि इन नोटों की कीमत अधिक होने के कारण काले धन के रूप में जमा किया गया हो। हालांकि, ये आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन ऐसी आशंका केंद्र सरकार ने भी जताई है। बताया जा रहा है कि 500 का नोट ही इस समय सबसे ज्यादा चलन में है, क्योंकि 2000 का नोट बहुत ज्यादा हो जाता है। इसलिए दुकानदार भी इसे लेने से बचते हैं। इस चर्चित नोटबंदी को भले ही 6 साल से अधिक हो गये हों, लेकिन कोर्ट सरकार से जानना चाहता है कि नोटबंदी क्यों की गई और क्या सरकार ने इसके लिये आरबीआई को भरोसे में लिया था? जब कोर्ट बार बार बार संसद के काम में हस्तक्षेप करता है, तो फिर इससे संविधान सवालों के घेरे में आ जाता है। असल में संविधान में सभी को अलग अलग अधिकार और कर्तव्य बताये हैं, लेकिन कभी कभी न्यायपालिका अपने सीमाओं से बाहर जाकर सुनवाई करती है, जिसके कारण न्यायपालिका और संसद में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा है भारत में बढ़ते धनवानों की संख्या और उसके साथ ही देश छोड़ने वाले अमीरों की बढ़ती तादात, जो भारत को दुनिया में टॉप तीन में शामिल कर रही है। इस वर्ष की भी बात करें तो भारत के अमीरों की संपत्ति में बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है। देश के सबसे धनवान गौतम अडानी की संपत्ति इस साल 12.11 लाख करोड़ हो गई है। अडानी की संपत्ति पिछली एक साल में दोगुनी हो गई है। दूसरे नंबर पर हैं मुकेश अंबानी, जिनकी संपत्ति इस साल 5 बिलियन डॉलर की कमी के साथ 7.10 लाख करोड़ रुपये है। इसी तरह से तीसरे नंबर पर राधाकिशन दमानी हैं, जिनकी संपत्ति 2.22 लाख करोड़ रुपये हैं। हालांकि, अडानी एंटरप्राइजेज के उपर देश दुनिया में इससे भी अधिक लोन बताया जाता है। इसके बावजूद अडानी को ना केवल भारत के बैंक लोन दे रहे हैं, बल्कि विदेश में भी खूब ऋण मिल रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार के नजदीकी होने के कारण अडानी को कोई भी बैंक लोन देने से इनकार नहीं कर रहा है। यही वजह है कि अडानी ग्रुप के शेयरों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना के बाद जैसे-जैसे दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं खुली हैं, करोड़पतियों के पलायन का रुझान फिर से बढ़ गया है। यह हर देश से हर साल होता है। इस बार रूस, चीन और भारत से अपना मुल्क छोड़कर दूसरे देश में शिफ्ट कर जाने वाले धनाढ्यों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ी है।
फिर भी इस अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड में भारत के लिए यह जितना चिंताजनक है, उससे कहीं ज्यादा इसमें सकारात्मक पहलू भी छिपा हुआ है। क्योंकि इस दौरान भारत में करोड़पतियों की तादात तेजी से बढ़ी है। कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनकी अर्थव्यस्था मजबूत स्थिति में होने की वजह से वहां पहुंचने वाले करोड़पतियों की तादाद अधिक है। करोड़पतियों के पलायन में तीन देश सबसे आगे हैं। ग्लोबल कंसल्टेंट हेनली एंड पार्टनर्स ने हालिया रिपोर्ट आई है, जिसके मुताबिक साल 2022 में अबतक रूस, चीन और भारत में करोड़पतियों की संख्या सबसे ज्यादा कमी आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों में चीन से 15,000, रूस से 10,000, और भारत से 8,000 करोड़पतियों की संख्या घटी है या वह अपने देश से पलायन कर गए हैं। पहले कोविड-19 महामारी की वजह से कुछ समय के लिए करोड़पतियों के प्रवास करने की संख्या घट गई थी। लेकिन, हाई नेटवर्थ वाले लोगों का एक बार फिर से देश से बाहर निकलना तेज हो गया है। हाई नेटवर्थ वाले लोग उन्हें माना जाता है, जिनकी संपत्ति 1 मिलनियन डॉलर या उससे अधिक की हो। भारत से जितने करोड़पति निकलते हैं, उससे ज्यादा पैदा होते हैं।
लेकिन, करोड़पतियों के भारत से बाहर निकलने के बारे में रिपोर्ट में एक बहुत ही सकारात्मक बात भी बताई गई है। इसके मुताबिक करोड़पतियों के देश छोड़ने की घटना भारत के संबंध में चिंताजनक इसलिए नहीं है, क्योंकि यहां से जितने करोड़पतियों का प्रवास होता है, उससे कहीं बड़ी संख्या में यहां करोड़पति पैदा होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 'धनाढ्य लोगों के भारत वापस लौटने का भी ट्रेंड है और जब एक बार देश में जीवन स्तर बेहतर होता है, तो हमें उम्मीद है कि संपत्तिशाली लोग और ज्यादा संख्या में वापस लौटेंगे।' इस रिपोर्ट में भारत के संबंध में एक और सकारात्मक बात ये है कि 2031 तक भारत में संपत्तिशाली लोगों की जनसंख्या में 80 फीसदी तक बढ़ोतरी होगी, इसके चलते भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ते वेल्थ-मार्केट के रूप में उभरेगा। चीन के बारे में कहा गया है कि कई बड़े देशों जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका में हुआवेई 5जी पर पाबंदी लगने से इसे बहुत बड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 'हुआवेई चीन के हाई-टेक क्षेत्र में ताज की तरह थी और अगर वैश्विक रूप से इसपर प्रतिबंध नहीं होता तो यह विश्व की सबसे बड़ी टेक कंपनी के रूप में उभर सकती थी। यही नहीं चीन के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ लगातार बिगड़ते संबंध की वजह से उसकी चिंता लंबी अवधि के लिए बढ़ गई है।'
रिपोर्ट में 2022 में जिन और देशों का नाम करोड़पतियों के पलायन की अधिक संख्या के लिए लिया गया है, उनमें हॉन्ग कॉन्ग, यूक्रेन, ब्राजील, मैक्सिको, यूके, सऊदी अरब और इंडोनशिया भी शामिल है। किसी देश की अर्थव्यस्था को समझने के लिए धनाढ्य लोगों के पलायन को बहुत बड़ा पैमाना माना जाता है। संपत्तिशाली लोगों के पलायन को देश के भविष्य को लेकर बहुत बड़ा संकेत समझा जा सकता है। जिन देशों की ओर ऐसे संपत्तिशाली लोग अपने परिवारों के साथ आकर्षित होते हैं, वहां अपराध दर कम होता है, टैक्स रेट प्रतियोगी होते हैं, और कारोबार का बेहतर अवसर उपलब्ध होता है। तभी कोई व्यक्ति अपने देश से उनकी ओर शिफ्ट करने की सोच सकता है। पलायन का ट्रेंड पिछले एक दशक में करोड़पतियों के पलायन का ट्रेंड बढ़ गया था। लेकिन, कोरोना की वजह से 2020 में यह अचानक से घट गया। साल 2020 और 2021 के लिए ऐसे पलायन करने वाले करोड़पतियों के सही आंकड़े जुटाना भी बहुत कठिन है। लेकिन, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएं पटरी पर लौटने लगी हैं, करोड़पतियों के पलायन का यह ट्रेंड फिर से शुरू हो गया है।
यूएई करोड़पतियों का नंबर वन डेस्टेनेशन बन गया है, लेकिन अब वह पीछे छूटता जा रहा है। अगर यूक्रेन का उदाहरण लें तो इस साल के अंत तक देश के 42 फीसदी संपत्तिशाली लोगों के देश छोड़ देने के आसार हैं। इसकी मुख्य वजह उसपर हुआ रूसी हमला है। किंतु 2022 में अबतक संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, इजरायल, पुर्तगाल, कनाडा, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ग्रीस और स्विटजरलैंड में करोड़पतियों की आवक बढ़ी है। उदाहरण के लिए इस साल अकेले ऑस्ट्रेलिया में 3500 करोड़पति चीन, रूस और भारत जैसे देशों से पलायन कर पहुंचे हैं। इसके अलावा बड़ी तादाद में दुनियाभर के करोड़पति माल्टा, मॉरीशस और मोनाको भी शिफ्ट हो रहे हैं। साल 2022 में सबसे ज्यादा करोड़पतियों के यूएई शिफ्ट करने की संभावना जताई गई है। यह संख्या करीब 4000 है, इनमें से सबसे अधिक रूस, भारत, अफ्रीका और मध्यपूर्व के लोग हैं। भारत के दूसरे सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी ने अपने तीनों बच्चों के लिये दुबई में बंगले खरीद लिये हैं। माना जा रहा है कि अब ये लोग भी जल्द ही वहां की नागरिकता ले लेंगे, या स्थाई रुप से वहीं रहेंगे, भारत में इनका केवल कारोबार होगा।

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