जयशंकर का पीओके वापस लेने का ऐलान और पाकिस्तान में गृहयुद्ध शुरू

Ram Gopal Jat
पाकिस्तान में आज फिर वही हालात हैं, जो 1971 के दौरान हुआ करते थे। तब भी पाकिस्तान गृहयुद्ध से जूझ रहा था और आज भी वही हालात हो गये हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान के लॉंग मार्च के दौरान उनपर जानलेवा हमला और सेना के साथ आरपार की लड़ाई का ऐलान अब सैनिक शासन की तरफ जा रहा है। 70 के दशक में भारत की प्रधानमंत्री ​इंदिरा गांधी थीं, जिनको लोग आयरन लेडी के नाम से जानते हैं। निर्णय लेने की अचूक क्षमता इंदिरा गांधी में बताई जाती हैं। यही वजह रही है कि जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर अपनी मौत का आमंत्रण दिया तो भारतीय सेनाओं ने पूर्वी पाकिस्तान, यानी आज के बंग्लादेश को पाकिस्तान से अलग देश बना दिया।
आज इमरान खान पाकिस्तान के लोगों के लिये लड़ने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान में बलूचिस्तान आजादी का बिगुल फूंक रहा है, जो आज के करीब 40 साल पहले बंग्लादेश में हुआ करते थे। आज पाकिस्तान के सिंध, बलूच, पाक और गिलगिट बाल्टिस्तान अलग अलग चार देश बनने को आतुर हैं। सेना के कब्जे में पाकिस्तान का दम घुट रहा है। यही वजह है कि इमरान खान के साथ लॉंग मार्च में लाखों लोग सड़कों पर उतर आये हैं। आजादी मार्च के तहत इमरान खान तीन परिवारों की राजनीति से मुक्ति दिलाने का संकल्प लेकर चल रहे हैं, लेकिन एक दिन पहले ही उनपर जानलेवा हमला होने के बाद पाकिस्तान में हालात बैकाबू होने जैसी स्थिति हो गई है। पाकिस्तान में लोग सेना और सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। यह पहला मौका है, जब पाकिस्तान की जनता अपने ही देश की सेना के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है। लग रहा है कि जल्द ही पाकिस्तान गृहयुद्ध की चपेट में आ सकता है।
अब चलते हैं भारत में आठ साल पहले। याद कीजिये साल 2014 से पहले, और यहां तक की साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक भी भारत में विरोधी दलों ने भाजपा की यह कहकर खूब मजाक उड़ाई कि, 'मंदिर वहीं बनायेंगे, लेकिन तारीख नहीं बतायेंगे'...इसके बाद 5 अगस्त 2019 को वह समय भी आ गया, जब विपक्षी दलों की बोलती बंद हो गई, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया और आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। इसी तरह से जम्मू कश्मीर के मुख्य​मंख्यिों में फारुख अब्दुलाह और महबूबा मुफ्ती ने भाजपा और मोदी सरकार को खूब चेतावनी दी कि जीवन में कभी धारा 370 हट ही नहीं सकती। कांग्रेस के भी कई नेताओं ने इसको भाजपा को वोटबैंक के लिये जुमला ही करार दिया। एआईएमआईएम के प्रमुख और मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बने हुये असददूद्दीन औवेशी ने चैलेंज के साथ दावा किया था कि भारत की कोई भी सरकार आ जाये, लेकिन जम्मू कश्मीर से धारा 370 नहीं हट सकती। लेकिन 5 अगस्त 2020 को भाजपा की मोदी सरकार ने बकायदा संसद से ​कानून पारित कर धारा 370 को हटाया, बल्कि जम्मू कश्मीर राज्य का विघटन भी कर दिया।
राम मंदिर और धारा 370 की तरह ही भाजपा के मूल एजेंडे में शामिल तीन तलाक से लेकर सीएए का कानून भी बन गया और विपक्षी एकता कुछ नहीं कर पाई। इसी तरह से पीओके व अक्साई चिन वापस लेना भी भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है। भाजपा इनको भी बार बार अपने घोषणा पत्र में स्थान देती रही है, लेकिन अभी तक भी वापस नहीं लिये जा सके हैं। हालांकि, इतना जरुर हो गया है कि अब विरोधियों को भी यह लगने लगा है कि भाजपा एक—एक कर अपने सभी घोषणाओं को पूरा करेगी। यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार की गतिविधियों पर जितनी चिंता भारत के विपक्षी दलों की है, उससे कहीं अधिक चिंतित चीन व पाकिस्तान हैं। जुलाई में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि जब तक 1949 से पहले की स्थिति हासिल नहीं की जायेगी, तब तक सरकार चैन से नहीं बैठेगी।
उससे पहले आपको याद होगा, तब संसद में धारा 370 हटाने के लिये बहस चल रही थी, तब गृहमंत्री अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि जब वह जम्मू कश्मीर बोलते हैं, तब पीओके और अक्साई चिन भी उसी का हिस्सा होता है। पिछले दिनों कश्मीर में तैनात सेना के प्रवक्ता ने कहा है कि हमारी तैयारी पूरी है और रक्षामंत्री जब भी आदेश देंगे, सेना तुरंत गिलगिट बाल्टिस्तान में घुसने को तैयार बैठी है। उन्होंने कहा कि भारत की रक्षा सेनाएं सरकार के उस आदेश का इंतजार करती रहती है, जब पीओके के लिये होगा, उसके बाद एक पल भी इंतजार नहीं किया जायेगा। अब भारत के विदेश मंत्री, जो कि पिछले कुछ महीनों से विश्व मीडिया की सुर्खियों में हैं, सुब्रम्ण्यम जयशंकर ने चीन की ओर से आयोजित संघाई सम्मेलन में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग के सामने साफ किया कि उनको बेल्ट एण्ड रोड इनीशिएटिव मंजूर नहीं है। जयशंकर ने स्पष्ट कर दिया है कि यह योजना पीओके के अंदर से गुजर रही है, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, इसको पाकिस्तान चीन को देने का हकदार नहीं है।
भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर ने शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की एक मीटिंग में चीन को जमकर फटकार लगाई है। यह मीटिंग चीन की तरफ से ही आयोजित की गई थी। जयशंकर ने मीटिंग में चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, यानी CPEC के बहाने चीन पर हमला बोला है। उन्‍होंने कहा कि चीन के कनेक्टिविटी प्रोजेक्‍ट्स को भारत और बाकी देशों की अखंडता और सप्रंभुता का सम्‍मान करना चाहिए। यहां पर जयशंकर ने चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के फेवरिट बेल्‍ट एंड रोड इनीशिएटिव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा स्पष्ट रुप से उसी तरफ था। जयंशकर के बयान इसलिये काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जो मंच चीन के द्वारा सजाया गया और इसमें चीन खुद मेहमान बनकर बड़ी भूमिका निभा रहा है, उसमें भारत के विदेश मंत्री का इतना स्पष्ट शब्दों में चीन व पाकिस्तान को फटकार लगाना इस बात का सबूत है कि भारत इस मामले में अब अधिक कोताही नहीं बरतेगा और ना ही अब पीओके को लेकर अधिक देरी होने की गुंजाइश बची है।
जिस समय एससीओ की इस बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर चीन को फटकार लगा रहे थे, पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भी वहीं मौजूद थे। दरअसल, भारत हमेशा से ही सीपीईसी के तहत बीआरआई का विरोध करता आया है, क्‍योंकि यह पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर से होकर गुजरती है। भारत मानता है कि सीपीईसी और बीआरआई, दोनों ही उसकी संप्रभुता के खिलाफ हैं। एससीओ में शामिल कजाखस्‍तान, किर्गिस्‍तान, पाकिस्‍तान, रूस, तजाकिस्‍तान और उज्‍बेकिस्‍तान जैसे देशों ने बीआरआई को अपना समर्थन दिया है, लेकिन भारत इन देशों से अलग राय रखता है। चीन ने भारत के सामने भी इसमें शामिल होने का प्रस्‍ताव रखा है, लेकिन हर बार इसे खारिज कर दिया जाता है। भारत को इस परियोजना से कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि जहां से यह परियोजना गुजर रही है, भारत इसके उस स्थान को लेकर सहमत नहीं है। इस साल जुलाई में पाकिस्‍तान और चीन ने सीपीईसी में कुछ और देशों को शामिल होने के लिए प्रोत्‍साहित किया था। भारत ने उस समय भी दोनों देशों को फटकार लगाई थी।
भारत हमेशा से ही सीपीईसी के तहत आने वाले प्रोजेक्‍ट्स के लिए संवेदनशील रहा है। ये ऐसे प्रोजेक्‍ट्स हैं जो पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर के इलाकों से होकर गुजरते हैं। इन इलाकों पर भारत अपना अधिकार जताता आया है। दरअसल, साल 2013 में सीपीईसी को लॉन्‍च किया गया था। इसका मकसद पाकिस्‍तान में सड़क, रोड और ऊर्जा से जुड़े इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर का निर्माण करना था। ये सभी इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर पाकिस्‍तान के ग्‍वादर बंदरगाह को चीन के शिनज‍ियांग प्रांत से जोड़ते हैं, जिसकी शुरुआत ही पाकिस्तान में पीओके से होती है। सीपीईसी चीन की एक महत्‍वाकांक्षी परियोजना है, जिसपर चीन काफी मेहनत कर रहा है। भारत ने हमेशा से इसका विरोध किया है।
चीन सीपीईसी के तहत पाकिस्तान में 1124 मेगावॉट वाले पावर प्रोजेक्‍ट का निर्माण कर रहा है। करीब 46 अरब डॉलर सीपीईसी के इस प्रोजेक्‍ट को भारत के विरोध के बाद भी पीओके में झेलम नदी में तैयार किया जा रहा है। चीन ने इसी प्रोजेक्‍ट के तहत ही गिलगित-बाल्‍टीस्‍तान में एक मेगा डैम बनाने की भी तैयारी की है। भारत की तरफ से साल 2020 में इस तरह के प्रोजेक्‍ट्स को गैरकानूनी करार दिया गया था। भारत सरकार ने कहा था कि इन प्रोजेक्‍ट्स का पीओके में निर्माण होना गलत है और चीन को इस कदम को पीछे खींचना होगा। हालांकि, चीन अभी तक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अब सवाल यह उठता है​ कि भारत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कैसे वापस लेगा। क्या भारत की सेनाएं पाकिस्तान और चीन की संयुक्त सेनाओं से मुकाबला कर पायेंगी? दरअसल, जब भारत के द्वारा पीओके में आक्रमण किया जायेगा, तो स्वत: ही सीपीईसी परियोजना पर अटैक होगा और फिर उस हालत में चीन को तकलीफ होगी, जिसके बाद चीन की सेना भारत की सेनाओं पर आक्रमण करेगी। तो क्या भारत की सेना दोनों सेनाओं से लड़ पायेगी? यह सवाल सबके मन में उठता है और उठना भी चाहिये।
इसका जवाब यह है कि अंतराष्ट्रीय संधियों के तहत यदि भारत की सेना पाकिस्तान पर आक्रमण करती है, तो भी चीन उसके बचाव में नहीं आ सकता है। यदि चीन ने उस हालात में भारत पर आक्रमण किया तो भारत के मित्र देश भी चीन के उपर हमला कर सकते हैं। इसलिये चीन की परियोजना को नुकसान होने पर भी वह हमला करने से बचेगा। फिर भी यदि चीन की तानाशाही सरकार ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसको कई तरह के वैश्विक प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर सकते हैं। अकेले भारत ने ही यदि आयात बंद कर दिया तो उसे हर साल 125 अरब डॉलर का नुकसान होगा। जिससे उसके उद्योग बर्बाद हो जायेंगे और लोग बेरोजगार हो जायेंगे। यही वजह है कि भारत इस बात पर पूरी तरह से आश्वस्त है कि जब भी उचित तैयारी होगी, तभी पीओके वापस ले लिया जायेगा।
भारत में जिस तरह से राजनीति हावी रहती है, उससे ऐसा लगता है कि साल 2024 के आम चुनाव से कुछ समय पहले मोदी सरकार पीओके को वापस लेने का कदम उठा सकती है। बहरहाल, देश में चुनाव तो हैं, लेकिन ये चुनाव विधानसभाओं के हैं, और इन्हें जीतने के लिये इतनी बड़ी रिश्क लेने की जरुरत नहीं है। साल 2019 के चुनाव से पहले 28 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने पीओके में ही एयर स्ट्राइक की थी, जिससे पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हुआ था।
आज पाकिस्तान भारत में आतंकी भेजकर आतंक तो फैलाना चाहता है, लेकिन अब उसकी घर की लड़ाई इतनी व्यापक हो गई है कि वह चाहकर भी भारत के खिलाफ कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यदि पाकिस्तान में गृहयुद्ध हुआ, तो यह माना जा रहा है कि आजादी के लिये भारत एक बार फिर से पाकिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप करेगा और उसके साथ ही पीओके वापस लेगा, तो गिलगिट बाल्टिस्तान को भी अपने कब्जे में करने की सोच हो सकती है। उस स्थिति में चीन को रोकना चुनौती तो होगा, लेकिन द्विपक्षीय मामला बोलकर भारत भी चीन को चुप रख सकता है। वैसे भी चीन के भारत के साथ हित अधिक टकराते हैं। यदि सीपीईसी योजना को छोड़ दिया जाये, तो जितना फायदा चीन को भारत से है, उसका 10 फीसदी भी पाकिस्तान से नहीं है। ऐसे हालात में उसे यह निर्णय लेना होगा कि वह सीपीईसी को बर्बाद होने देता है, या भारत के साथ रिश्तों को खत्म करने का रिस्क उठा पाता है।

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