चीनी जिनपिंग ने कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो को क्यों धमकाया?

Ram Gopal Jat
चीन लोकतांत्रिता के नाम पर दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह देश है। यह बात तो सभी जानते हैं, लेकिन वह इतना तानाशाह है कि एक लोकतांत्रिक देश कनाड़ा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को खुलेमाम धमकी दे सकता है, ऐसी किसी ने कल्पना नहीं की थी। किंतु चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऐसा किया है। जिनपिंग ने ना केवल धमकी दी है, बल्कि इसके साथ ही आगे के संबंधों को लेकर भी चेतावनी दी है। चीन की कथनी और करनी का फर्क भारत तो काफी समय से दुनिया के सामने लाता रहा है, लेकिन जी-20 की बैठक में इसबार खुलेआम चीन की गुंडागर्दी देखने को मिली। सोशल मीडिया पर शी जिनपिंग और जस्टिन ट्रूडो का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो से दादागीरी करते दिखाई दे रहे हैं।। वैसे चीन का यह रवैया नया नहीं है। भारत की गलवान घाटी से लेकर लद्दाख तक उसकी धोखाधड़ी दुनिया के सामने है। भारत नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते आठ साल में ड्रैगन की चाल को हर बार असफल किया था। भारत की सख्ती के कारण चीन को तो बैकफुट पर आना पड़ा, लेकिन चालबाज चीन छोटे देशों को धौंस दिखाने का कोई मौका नहीं चूकता है। कुछ ऐसा ही घटनाक्रम इंडोनेशिया में दिखा, जहां पर जिनपिंग कनाडा के सामने दादागीरी दिखाते दिखे हैं।
सवाल यह उठता हैथ् क आखिरी जिनपिंग और ट्रूडो के बीच ऐसा क्या हुआ, जो चीन के राष्ट्रपति को गुस्सा आ गया? दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जी-20 की बैठक के इतर जिनपिंग के साथ बैठक में कनाडा में चीनी हस्तक्षेप पर नाराजगी जता दी थी। कनाडा की पुलिस ने सोमवार को कहा था कि कनाडा की सबसे बड़ी बिजली बनाने वाली कंपनी हाइड्रोक्यूबिक में काम करने वाले एक कर्मचारी को चीन के लिए जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। शख्स पर आरोप था कि वह ट्रेड सीक्रेट को चोरी करने की कोशिश कर रहा था, ताकि चीन को फायदा हो सके। चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा कि हमारे बीच जो भी बातचीत हुई, उसे अखबार में लीक कर दिया जाता है, ये सही नहीं है। अगर आपकी तरफ से गंभीरता रहती तो बातचीत ऐसे बाहर नहीं होती। अगर आप सहमत होते तो हम आपसी रजामंदी से इसे बात सकते हैं, लेकिन ऐसा होना सही नहीं है। जब दोनों के बीच बातचीत खत्म हुई तो जिनपिंग ने धमकी भरे अंदाज में ट्रूडो को कहा कि ये सब ठीक है, लेकिन शर्तें पहले रहेंगी। मतलब यह है कि चीन जब किसी देश के साथ बात करता है, तो उसकी मर्जी के बिना सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
इसके बाद कनाड़ा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भी जिनपिंग के आरोपों पर ड्रैगन को जमकर सुना दिया। उन्होंने कहा कि कनाडा खुली बातचीत में भरोसा रखता है। कनाडा में हम स्वतंत्र, खुले और निष्पक्ष बातचीत में विश्वास करते हैं और आगे भी इसे जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि हम आगे भी साथ काम करते रहेंगे, लेकिन ऐसे मुद्दे आएंगे जिन पर भविष्य में हम सहमत नहीं होंगे। असल में जी-20 सम्मेलन के पहले दिन 15 नवंबर को चीनी शासन प्रमुख शी जिनपिंग और कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो की मुलाकात हुई थी। इसके बाद कनाडा के प्रधानमंत्री कार्यालय ने मीडिया को बताया कि ट्रूडो ने चीनी राष्ट्रपति के सामने कनाडा के चुनावों में चीनी दखल को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। साथ ही रूस-यूक्रेन संकट, उत्तर कोरिया के हालात और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी दोनों नेताओं के बीच बात हुई। चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग 10 मिनट की इस मुलाकात में हुई बातचीत को लेकर ही अपने समकक्ष ट्रूडो से शिकायत कर रहे थे। उनका कहना था कि इसे पब्लिक को नहीं बताना था।
दरअसल, चीन अपने पैसे और ताकत के दम पर दुनिया में ऐसी हरकतों को अंजाम देता है जो कई बार छिपी रह जाती हैं, लेकिन इसबार कनाडा ने खुलेआम उनकी हरकतों को बेपर्दा कर दिया है। चीन पर कोरोना से लेकर ऐसे तमाम आरोप लगे हैं, जिससे वो इनकार करता रहा है, लेकिन ट्रूडो के जवाब ने चीन की पोल खोलकर रख दी है। फिर भी विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि जिस तैश में आकर ड्रेगन के प्रेसिडेंट जिनपिंग ने कनाडा पीएम ट्रूडो को धमकाने की कोशिश की है, वो हैरान करने वाला था।
भारत के लद्दाख में संघर्ष के दौरान चीन को मोदी सरकार की ओर से उसी की भाषा में जवाब दिया था। आज भी LAC पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। भारत चीन से लगी सीमाओं पर निर्माण कार्य बढ़ा रहा है। भारत ने गलवान घाटी में संघर्ष के दौरान भी चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। भारतीय सेना के जवानों ने ड्रैगन की हर हरकत का करारा जवाब दिया था। उस दौरान भारत ने चीन के साथ ट्रेड को निलंबित करने से लेकर आपसी रिश्तों पर भी रोक लगा दी थी। जी-20 में नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग ने हाथ जरुर मिलाया, लेकिन अभी भी दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं। भारत की तरफ से सभी राजनीतिक रिश्तों को खत्म कर दिया गया है। हालांकि, चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग भारत आकर इनको बहाल करने का आग्रह कर चुके हैं, लेकिन भारत ने अभी कोई जवाब नहीं दिया है।
वैसे चीन की कनाडा को दी गई धमकी वाली आदत नई नहीं है। ताइवान को भी चीन लगातार धमकाता रहा है। हालांकि, अमेरिका अभी तक ताइवान के पक्ष में खड़ा है। ऐसे में चीन ताइवान पर हमला करने की हिमाकत नहीं कर पा रहा है। चीन काफी समय से ताइवान को अपना हिस्सा बताता है, जबकि वहां के लोग खुद को स्वतंत्र देश बताते हैं। ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन तो खुलेआम चीन की धमकी को धता बताती रही हैं। कुछ दिन पहले ही वेन ने कहा था कि ताइवान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की चीन की धमकी से कोई हल नहीं निकलने वाला और यह केवल दोनों पक्षों के बीच दूरियां ही बढ़ाएगी।
चीन की नीति विस्तारवादी रही है। उसने तिब्बत पर कब्जा कर रखा है। जबकि 1962 से ही भारत की 38000 वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प रखी है। इसी तरह से दूसरे पड़ोसी देशों के साथ उसके विवाद चल रहे हैं। वह भारत के हिमाचल प्रदेश समेत कई हिस्सों पर कब्जा करने की फिराक में रहता है। छोटे देशों को ऋण देकर वह अपने जाल में फंसाने का काम करता है, उसके बाद उनकी जमीन पर कब्जा करता है, या 99 साल की लीज के नाम पर हड़प लेता है। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को भी इसी तरह से हड़प लिया है। पाकिस्तान में निवेश के नाम पर सीपीईसी परियोजना पर काम चल रहा है, जो चीन को दो हिस्सों में बांटती हुई तीन किलोमीटर चौड़ी पट्टी चीन ने अपने कब्जे में ले रखी है।
यह योजना जहां से शुरू होती है, उस जगह पीओके पर भारत अपना अधिकार जताता है, जबकि पाकिस्तान इसी ड़र से चीन के साथ खड़ा है कि भारत कभी भी आक्रमण करके पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को अपने कब्जे में ले सकता है। कुल मिलाकर बात यही है कि रूस और पाकिस्तान को छोड़कर चीन का किसी भी देश से रिश्ता सामान्य नहीं है। जस्टिन ट्रूडो को दी गई धमकी से पूरा विश्व हैरान है, लेकिन अभी इसको लेकर दोनों देशों के बीच कोई और बात नहीं हुई है। माना जा रहा है कि तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद जिनपिंग पूरी तरह से तानाशाही पर उतर आये हैं। यही वजह है कि उन्होंने कनाडा जैसे सम्प्रभु देश के प्रमुख को भी धमकाने की हिमाकत की है। देखना यह होगा कि रूस यूक्रेन युद्ध से परेशान अमेरिका समेत यूरोप इसपर क्या प्रतिकिया देते हैं?

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