दुनिया के तीस देशों पर राज करेगा भारत का यूपीआई तंत्र

Ram Gopal Jat
यह बात बिलकुल सही है कि भारत के रुपये के मुकाबले डॉलर करीब 82 रुपयों की उंचाई पर चला गया है, जो सबसे अधिक है। कहा जाता है कि भारत की आजादी के समय डॉलर और रुपया बराबर था। अधिक पुरानी बात नहीं हुई, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी करीब 45 रुपये के बराबर एक डॉलर था। मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्री कहा जाता है, लेकिन जितनी तेज प्रतिशत की कमी उनकी यूपीए सरकार में आई, उतनी कभी नहीं आई। नरेंद्र मोदी सरकार को लगभग आठ साल पूरे हो चुके हैं, जबकि मनमोहन सिंह की बराबरी करने में करीब दो साल का समय बचा है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के समय मई 2004 में एक डॉलर 45 रुपये के बराबर था। तो मई 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार के आखिरी दिनों में एक डॉलर करीब 61 रुपये के बराबर पहुंच गया था। हालांकि, उससे कुछ समय पहले सिंतंबर 2013 में यह 67 रुपये तक पहुंच चुका था।
आज की हालत किसी से छिपी नहीं है। महंगाई की गति मनमोहन सरकार से अधिक नहीं है, तो कुछ खास कम भी नहीं है। मोदी सरकार के समर्थक यह कहकर बचाव करते हैं कि मनमोहन सरकार काफी सब्सिडी देती थी, जबकि मोदी सरकार केवल जरुरतमंदों को ही अनुदान देती है, बाकि किसी को नहीं देती। लेकिन यह भी सच नहीं है। असल बात यह है कि मोदी सरकार ने भी उद्योगपतियों का मोटा कर्जा माफ करने का रिकॉर्ड बना लिया है। हालांकि, इस बीच राहत की बात यह है कि सरकार हर साल देश के करीब 14 करोड़ किसानों के खातों के 6000 रुपये भेजती है, तो देश के 80 करोड़ लोगों को दो साल से मुफ्त अनाज दे रही है। सिलेंडर की कीमतें जरुर एक हजार से उपर जा चुकी है, जबकि मनमोहन सरकार में भी बिना सब्सिडी के सिलेंडर करीब 1100 रुपये का ही था। यानी हर सिलेंडर पर लगभग 700 रुपये अनुदान दिया जा रहा था। आज सिलेंडर पर अनुदान बिलकुल ​बंद कर दिया गया है, तब भी सिलेंडर की कीमत 2014 से कम ही हैं। महंगाई को लेकर सरकार के अपने दावे हैं, तो विपक्ष का अपना राग है। लेकिन इतना तय है कि रुपये की गिरावट पर बहस जारी है।
सरकार का कहना है कि रुपया गिरा नहीं है, बल्कि डॉलर मजबूत हुआ है, जबकि विपक्ष का कहना है कि रुपया गिरा है, तभी डॉलर मजबूत हुआ है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। रुपये की गिरावट से डॉलर पर कोई खास असर नहीं होता है, क्योंकि उसकी तुलना दुनिया की अन्य मुद्राओं से की जाती है। यदि रुपया गिरता तो दुनिया के प्रमुख देशों की मुद्राएं भी छलांग लगातीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अधिकांश देशों की मुद्रा उसी हालत में है, जहां आठ साल पहले थी, या फिर कम हो गई हैं। इसका मतलब यह है कि रुपया गिरा नहीं है, डॉलर ही मजबूत हो रहा है। जैसे जैसे भारत का आयात बढ़ेगा, तो रुपया कमजोर होगा, और जैसे ही निर्यात बढ़ेगा, वैसे ही रुपया मजबूत होता चला जायेगा। रुपये की इस गिरावट और चढ़ाई के बीच भारती रिजर्व बैंक ने डिजीटल करेंसी लॉन्च कर दी है। इसको इसी सप्ताह के शुरू में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। पहले ही दिन करीब 50 ट्रांजेक्शन में लगलग पौने चार सौ करोड़ का लेनदेन हुआ है। इस सप्ताह के अंत तक आरबीआई इसके साप्ताहिक आंकड़े जारी करेगा।
माना जा रहा है कि डिजीटल करेंसी जारी करके भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। आरबीआई दुनिया के उन प्रमुख केंद्रीय बैंकों में शामिल हो गया है, जिनकी अपनी वर्चुअल करंसी है। आरबीआई ने डिजिटल रुपे का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है, लेकिन अभी इसे केवल होलसेल ट्रांजैक्शन के लिए लाया गया है। डिजिटल करंसी का रिटेल वर्जन भी एक महीने में लॉन्च हो जाएगा। यह भी पायलट प्रोजेक्ट होगा। फिलहाल जिन बैंकों को होलसेल ई-रुपे पायलट प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है, वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, ICICI बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक, IDFC फर्स्ट बैंक और HSBC शामिल हैं।
यह करेंसी अगले कुछ बरसों में भुगतान का प्रमुख माध्यम बनने वाला है। इसलिये यह समझना जरुरी है कि यह कैसे काम करती है Digital Rupee का मतलब है क्या? साथ ही यह भी जानना जरुरी है कि डिजीटल करेंसी और डिजीटल ट्रांजेक्शन में क्या अंतर है? डिजीटल रुपये की बात करें तो यह एक कैशलेस पेमेंट सिस्टम है। इसके तहत कार्ड, कैश, डिजिटल पेमेंट ऐप की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इसकी वही वैल्यू होगी, जो पेपर करंसी की है। क्यूआर कोड और SMS स्ट्रिंग पर आधारित है। RBI ने डिजिटल करंसी की दो कैटिगरी बनाई हैं। पहली होलसेल और दूसरी रिटेल। CBDC W, यानी Concept Note on Central Bank Digital Currency को होलसेल करंसी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। जबकि CBDC R, यानी Concept Note on Central Bank Digital Currency का उपयोग रिटेल करंसी के तौर पर होगा।
कुछ लोग इसकी तुलना प्राइवेट क्रिप्टोकरंसी करते हैं, लेकिन वास्तव में ये दोनों अलग अलग चीजें हैं। रिजर्व बैंक ने पहले बताया था कि प्राइवेट वर्चुअल करंसी धन से जुड़ी सदियों पुरानी धारणाओं पर खरी नहीं उतरतीं। वह न तो कमोडिटी हैं, न ही उनका कोई आंतरिक मूल्य है। डिजिटल करंसी सेंट्रलाइज्ड है, तो क्रिप्टोकरंसी डीसेंट्रलाइज्ड। क्रिप्टोकरंसी के प्रति किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती। उसका कोई जारीकर्ता भी नहीं है। डिजिटल करंसी इन सब खामियों से इतर मुकम्मल करंसी होगी, जिसका जारीकर्ता भी आरबीआई होगा। यानी भारत सरकार इसके लिये जिम्मेदार है। सवाल यह उठता है कि क्या सीबीडीसी के चलन में आने से बैंकों के कामकाज पर असर पड़ेगा? इसके चलन में आने से बैंकों के कामकाज पर बिल्कुल असर होगा। अगर सीबीडीसी की डिजाइन पुख्ता हुई और उसे सुरक्षित माना जाने लगा, तो लोग बैंकों में पैसा जमा करने से कतराने लगेंगे। डिजिटल करंसी होने की वजह से यह सेटलमेंट रिस्क भी घटाएगी। आपको जब ज़रूरत होगी, आप अपने पैसों का इस्तेमाल कर पाएंगे। बैंक की छुट्टी, हड़ताल या दूसरी किस्म की दिक्कतों से भी आपका ट्रांजैक्शन प्रभावित नहीं होगा। रिस्क-फ्री होने की सूरत में लोग बैंक से अपना डिपॉजिट शिफ्ट करने लगेंगे। इससे सरकार के ऊपर से गारंटी का बोझ कम होगा।
अगर लोग बैंक में पैसे जमा करना कम कर देंगे, तो बैंकों की कर्ज़ देने की क्षमता भी घट जाएगी, क्योंकि बैंकों का कर्ज़ धंधा काफी हद तक डिपॉजिट पर ही निर्भर रहता है। अब आपको यह समझना जरुरी है कि अभी भारत सरकार ने जो यूपीआई सिस्टम कर रखा है, उसमें और डिजीटल करंसी में अंतर कैसे रहेगा। आरबीआई के अधिकारियों के अनुसार यूपीआई जैसे डिजिटल पेमेंट सिस्टम से वर्चुअल करंसी काफी बेहतर होगी।। डिजिटल करंसी के चलन में आने के बाद इंडियन एक्सपोर्टर बिचौलिये की मदद लिए बिना किसी अमेरिकी एक्सपोर्टर को रियल टाइम में डिजिटल डॉलर का भुगतान कर सकेंगे, इससे बिचोलियों का कमिशन खत्म होगा और समय पर आयात—निर्यात का भुगतान हो सकेगा। इससे उत्पादन की लागत भी कम होगी।
अब यदि हम यूपीआई सिस्टम की बात करें तो भारत में UPI, BHIM और RuPay ऑनलाइन लेन-देन का बड़ा माध्यम बन चुका है। देश की बड़ी आबादी ऑनलाइन पेमेंट के लिए इन तीन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे भारत के ये प्रसिद्ध ऑनलाइन ट्रांन्जैक्शन के ये प्लेटफॉर्म देश से भारत अन्य देशों में पहुँच रहे हैं। भारत UPI, BHIM और RuPay को अन्य देशों में पहुँचाने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों से बात हो चुकी है। UPI, BHIM और नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया फिलहाल सभी देशों के सिस्टम के हिसाब से काम कर रहे हैं। अब तक UPI, BHIM भारत के कई पड़ोसी देशों में पहुँच चुका है।
भारत के सिस्टम से उन सभी देशों में इंटरऑपरेबिलिटी ही भारतीय विशेषज्ञता को बढ़ावा देगी। दरअसल, हाल ही में हुए एक ईवेंट के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ Maryland के एक भारतीय विद्यार्थी, जो यूनाइटेड स्टेट्स में भी यूपीआई को चाहता है, उसके सवाल करने पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब दिया की “हम फिलहाल एक साथ विभिन्न देशों पर काम कर रहे हैं।” बता दें की 2021 में भूटान यूपीआई को अपने देश में अपनाने वाला पहला देश भूटान बना था, जिसके बाद इस लिस्ट में इस साल फरवरी में नेपाल भी शामिल हो गया है। इतना ही नहीं UAE और सिंगापुर में भी यूपीआई और RuPay मान्य है। भारत सरकार की रिपोर्ट की माने तो नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया 30 देशों में UPI, BHIM और RuPay कार्ड को पहुंचाने का काम पूरा हो चुका है।
यह भी कहा जा रहा है कि जल्द ही इसमें अन्य देश भी शामिल हो सकते हैं। असल में भारत के पास जो यूपीआई, भीम और रुपे कार्ड का तंत्र है, ऐसा अमेरिका, जापान, चीन जैसे विकसित कहे जाने वाले देशों के पास भी नहीं है। माना जा रहा है कि भारत सरकार की यह पहल दुनिया में एक नई क्रांति को जन्म दे चुकी है, जिसमें जुड़ने वाले देशों की संख्या अगले एक साल में 100 से अधिक हो सकती है। आपको यह भी जानकार आश्चर्य होगा कि भारत सरकार ने यह सुविधा दुनिया के लिये बिलकुल निशुल्क रखी है। यूपीआई ही नहीं, बल्कि भारत का आधार कार्ड भी दुनिया के लिये एक अजूबे से कम नहीं है। इसकी भी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। कई देशों से भारत से इस सिस्टम की मांग की है। भारत सरकार ने भी कुछ देशों को यह सिस्टम देने का काम किया है। अमेरिका ने भी भारत के आधार को अपने यहां पर लागू करने की इच्छा जाहिर की है।
यह भी माना जा रहा है कि जैसे जैसे भारत का यूपीआई सिस्टम और वर्चुअल करेंसी अपनी गति से काम करने लगेगी, तब डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूती भी मिलेगी। साथ ही निर्यात आयात में तेजी आने के कारण भी रुपया मजबूत होगा। इसलिये यदि आने वाले कुछ बरसों में रुपया फिर से डॉलर से प्रतियोगिता करने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

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