चीनी हरकत के बीच विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका क्यों जा रहे हैं?

Ram Gopal Jat
अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, यानी एलएसी पर भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प में कई जवानों के घायल होने की खबर है। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि चीनी सैनिकों की तरफ से अचानक हुए इस हमले का भारतीय जवानों द्वारा मुहंतोड़ जवाब दिया गया। इस झड़प में जहां भारत की तरफ से 20 सैनिक जख्मी हुए, तो चीन के घायल सैनिकों का आंकड़ा लगभग तीन गुणा बताया जा रहा है। यह घटना 9 दिसंबर की बताई जाती है, जिसका खुलासा एक दिन पहले ही हुआ है। चीन की इस हरकत की वजह क्या है और क्यों बार बार वह इस तरह से नियंत्रण रेखा पर ऐसा कर रहा है? इसको पूरा समझने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लीजिये कि इस घटना के बाद भारत और चीन के बीच ग्वांग क्या कुछ हुआ है? घटना को लेकर संसद में विपक्ष ने हंगामा किया है। विपक्षी सांसदों का कहना है कि सरकार ने संसद सत्र चलने के दौरान इस मुद्दे को छुपाने का प्रयास किया है, जो गलत है। हालांकि, इस मसले पर सरकार की ओर से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पूरी जानकारी दी है। उन्होंने सेना के शौर्य की तारीफ की है और बताया है कि हमारे एक भी सैनिक को गंभीर चोट नहीं आई है, जबकि चीनी सेना को वापस भगा दिया गया है।
इधर अरुणाचल ईस्ट से भाजपा सांसद तापिर गाओ ने कहा है कि भारतीय सैनिक अपनी जमीन से एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। मुझे पता चला है कि भारतीय सेना के कुछ जवानों को चोटें आई हैं, लेकिन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को ज्यादा नुकसान हुआ है। भारतीय सैनिक अपनी जमीन से एक इंच नहीं हटेंगे। चीनी सैनिकों की यह हरकत निंदनीय है। मैकमोहन रेख पर बार-बार ऐसी घटनाएं होना भारत-चीन के रिश्तों के लिए खराब बात है। पीएलए ने जो काम किया ये बहुत गलत है, क्योंकि भारतीय सैनिक बॉर्डर पर जमे हैं। चीन चाहे जितनी भी कोशिश करे, भारत के जवान उनकी हर हरकत का जवाब देंगे। तवांग में भारतीय सेना, आईटीबीपी सब जुड़ गए हैं। फिलहाल हालात संवेदनशील, लेकिन सामान्य हैं। जो कुछ भी घटना हुई, वह ठीक नहीं है। ये नहीं हो सकता कि भारत के जवान चीन के चार फुट वालों से मार खाएंगे। भारतीय सेना वहां मुस्तैद है। सेना ने इस घटना की पुष्टि की है, लेकिन किसी तरह का ब्योरा साझा नहीं किया। सेना के मुताबिक एलएसी पर इस जगह भी सीमा रेखा को लेकर विवाद है और गश्त के दौरान अक्सर तनातनी हो जाती है। एलएसी पर चीन की पीएलए के सैनिकों का जमावड़ा 9 दिसंबर को देखा गया था। भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और दृढ़ता से उन्हें आगे बढ़ने से रोका। इसके बाद हुई झड़प में दोनों पक्षों के सैनिकों को चोटें आईं। झड़प के तत्काल बाद दोनों पक्ष अपने इलाकों में लौट गए।
घटना के बाद भारत के स्थानीय कमांडर ने चीनी पक्ष के कमांडर के साथ फ्लैग मीटिंग की और पहले से तय व्यवस्था के तहत शांति और स्थिरता कायम करने पर चर्चा की। तवांग में एलएसी के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां दोनों ही पक्ष अपना दावा करते हैं और यहां दोनों देशों के सैनिक गश्त करते हैं। यहां पर यह ट्रेंड 2006 से चल रहा है। तवांग में आमने-सामने के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को करारा जवाब दिया। घायल चीनी सैनिकों की संख्या भारतीय सैनिकों की तुलना में कहीं अधिक है। इस झड़प में 20 भारतीय जवान घायल हुए हैं, जिन्हें इलाज के लिए गुवाहाटी लाया गया है। चीन के लगभग 600 सैनिक साथ पूरी तरह से तैयार होकर आए थे, लेकिन उन्हें भारतीय पक्ष से मुस्तैदी की उम्मीद नहीं थी। दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर में एलएसी से लगे कुछ क्षेत्रों पर भारत और चीन दोनों अपना-अपना दावा करते हैं। ऐसे में 2006 से इस तरह के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं।
यह समझना जरुरी है कि आखिर चीन द्वारा तवांग में ही हमला क्यों किया जाता है? दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा के करीब तवांग कस्बा करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद है। यह जगह रणनीतिक तौर पर बेहद मायने रखती है। तवांग से पूरे अरुणाचल प्रदेश पर नजर रखी जा सकती है। इसी वजह से चीन इसे हथियाने की साजिश रचता रहता है। 1962 के युद्ध में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, संघर्ष विराम के बाद वह पीछे हट गया था, क्योंकि तवांग मैकमोहन लाइन या LAC के अंदर पड़ता है। तवांग पर चीन की बुरी नीयत की दूसरी वजह यह है कि भारत-चीन के बीच बनी LAC क्रॉस करने के दो सबसे अहम पॉइंट्स में से तवांग एक है। पहला पॉइंट चंबा घाटी है, जो नेपाल और तिब्बत के बॉर्डर पर है। दूसरी जगह तवांग है, जो चीन और भूटान के जंक्शन पर है। यहां से चीन के लिए पूरे तिब्बत पर नजर रखना बेहद आसान होगा। तवांग को लेकर चीन के विरोध की तीसरी बड़ी वजह है तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा। दरअसल, साल 1959 में तिब्बत से निकलने के बाद दलाई लामा ने तवांग में ही कुछ दिन बिताए थे। यहां एक बड़ा बौद्ध मठ भी मौजूद है। इस लिहाज से चीन तवांग पर कब्जे को अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई मानता है।
इससे पहले 2016 में डोकलाम और 2020 में चीनी सेना ने लद्दाख के गलवान घाटी में ऐसी ही हरकत की थी, जिसमें कई जवान शहीद हो गये थे। बाद में दोनों और से करीब 18 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन उसके बाद से भारत ने चीन के साथ कारोबार को छोड़कर सभी रिश्ते तोड़ रखे हैं। यहां तक कि चीन के विदेश मंत्री भी भारत आते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे नहीं मिलते हैं, उनको विदेश मंत्री जयशंकर तक ही सीमित रखा जाता है। पिछले दिनों बाली में आयोजित जी20 में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच केवल राम श्यामा तक ही मामला रहा था, उससे आगे कोई बातचीत नहीं हुई। दरअसल, तीसरी बार राष्ट्रपति चुने गये जिनपिंग अपनी नीति को तीखी करने का प्रयास कर रहे हैं। वह लंबे समय से इस इंतजार में है कि भारत के साथ कोई झडप हो, ताकि भारत की विकास यात्रा को बाधित किया जा सके। भारत को इस बात की अच्छे से जानकारी है कि यदि चीन के साथ कोई युद्ध जैसी झडप हुई तो विदेशी निवेश प्रभावित होगा, जिसका चीन को इंतजार है। भारत शांति से विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिये काम कर रहा है। कोरोना काल में चीन के काफी उद्योग भारत में शिफ्ट हुये हैं, जो चीन के लिये चिंता का विषय है। साथ ही भारत जिस तेजी से मैन्यूफेक्चरिंग हब बन रहा है, वह भी चीन की इकॉनोमी के लिये ठीक नहीं है।
चीन से बड़े पैमाने पर भारत को निर्यात होता है, जिसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था गतिशील बनी हुई है। किंतु कोरोना के कारण और उसकी गलवान—डोकलाम जैसी हरकतों के बाद बड़े पैमाने पर चीनी सामानों का भारत में बहिष्कार हुआ है। इसके कारण जिस तेजी से चीन से भारत को निर्यात होता था, उसकी गति में कमी आई है। चीन में जारी आंदोलन के कारण वहां पर एप्पल के लिये आईफोन बनाने वाली फॉक्सकॉन भी भारत में अपना कारोबार बढ़ा रही है। इस वक्त फॉक्सकॉन का सबसे बड़ा कारखाना चीन के जेंगझाउ प्रांत में है, जिसमें दो लाख कर्मचारी काम करते हैं। यहां पर कोविड के कारण कर्मचारी भाग रहे हैं। जबकि भारत सरकार की सुविधाओं के कारण फॉक्सकॉन भारत में कारोबार को विस्तार दे रही है। टेस्ला जैसी कंपनी ने भी भारत में उत्पादन शुरू करने के लिये रुचि दिखाई है। दुनिया के कई कारोबारी चीन से निकलकर भारत में पहुंच चुके हैं। इसी तरह से आंदोलन के कारण चीन की पिछले कुछ समय में काफी बदनामी हुई है। चीन में काफी समय से छात्रा आंदोलन चल रहे हैं, जिससे ध्यान हटाने के लिये चीन भारत सीमा पर इस तरह की हरकत करता रहता है। कारोबार प्रभावित होता है, तो वह भारत की तरफ रुख करता है। क्योंकि दुनिया में सबसे सस्ती लेबर या तो चीन में मिलती है, या फिर भारत में। इस वजह से जो उद्योग चीन से निकलेगा, वह भारत में आयेगा। यही वजह है कि ड्रेगन अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिये भारत में अशांति फैलाना चाहता है, ताकि ग्लोबल इंड्रस्टीज को लगे कि भारत में भी शांति नहीं है। वैश्विक निवेश को रोकने के लिये चीन इस तरह की हरकत कर सकता है।
संख्याबल के हिसाब से चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। भारत की सेना दूसरी सबसे बड़ी है। आबादी के जिहाज से देखा जाये तो चीन पहले और भारत दूसरे नंबर पर आता है। इतनी बड़ी सेना को शांतिपूर्वक पालने से देश को भी जवाब देना होता है। यह भी एक कारण है कि चीन द्वारा भारत, जापान, ताइवान जैसे देशों के खिलाफ छोटी मोटी सैनिक गतिविधि की जाी है। इसके साथ ही कुछ समय पहले ही जिनपिंग ने अपने टॉप सैनिक कमांडर्स के साथ मीटिंग में कहा था कि 24 घंटे युद्ध के लिये तैयार रहें। इसको ताइवान के खिलाफ अभियान से जोड़कर देखा जा रहा था, लेकिन पिछले दिनों अमेरिका की एक रिपोर्ट में बताया गया कि ड्रेगन अपनी ताकत का अहसास करवाने के लिये ताइवान के अलावा जापान और भारत पर हमला करने जैसी हकरत कर सकता है। इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि चीन द्वारा इस साल के अंत तक भारत के खिलाफ सैनिक झड़प की जा सकती है, और यह घटना उसी से जोड़कर देखी जा रही है। तीसरा और सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है भारत द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को लेकर बार बार बयान देना। जिसमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से लेकर सेना के अधिकारियों और विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर द्वारा चीन को चेतावनी देना शामिल है। यह बात सबको पता है कि चीन की सबसे बड़ी महात्वकांक्षी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरती है। इस परियोजना पर चीन करीब 46 बिलियन डॉलर निवेश कर रहा है। लेकिन भारत द्वारा बार बार पीओके वापस लेने का बयान देना चीन के गले नहीं उतर रहा है।
चीन चाहता है कि भारत इस बहाने दबाव में आ जाये और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत जाने से बचाया जा सके। यह बात चीन को अच्छे से पता है कि जब तक पीओके पाकिस्तान के पास रहेगा, तभी तक यहां से परियोजना शुरू हो सकती है, यदि भारत ने यह हिस्सा वापस ले लिया तो उसको यहां से हटना होगा। इसलिये पीओके बचाना केवल पाकिस्ताना का मकसद नहीं है, बल्कि चीन के लिये भी काफी महत्वपूर्ण है। यदि चीन इसको नहीं बचा पाता है, तो उसको शिंजियांग प्रांत से परियोजना को पीओके के बजाये सीधे पाकिस्तान में प्रवेश कराना होगा, जो करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा। इसलिये भारत को यहां पर सैनिक कार्यवाही करने से रोकने के लिये भी चीन की इस हरकत को देखा जा रहा है। चौथी वजह है खुद राष्ट्रपति जिनपिंग, जो हाल ही में तीसरी बार चुने गये हैं। जिनपिंग को चीन का अब तक का सबसे महात्वाकांक्षी प्रमुख माना जाता है। जिनपिंग को यह दिखाना है कि उनका चुनाव गलत नहीं था। यही वजह है कि एक ओर तो वह अपने देश में उठे छात्र आंदोलन रुपी तूफान को दबाने के लिये सैना का सहारा ले रहे हैं, तो साथ ही अपने पड़ोसी देशों के साथ लड़कर कोविड की असफलता जैसे देश के प्रमुख मुद्दों से ध्यान हटाना चाहते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत चीन की संभावित हरकतों को समझता नहीं है। भारत बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है। भारत को एक तरफ तो चीन को जवाब देना है, दूसरी ओर पाकिस्तान से अपना कब्जाया हुआ कश्मीर भी वापस लेना है।
यह सही है कि ताइवान को लेकर अमेरिका व चीन के लिये तलवारें खिंची हुई हैं। अमेरिका के संसद की अध्यक्ष नैंसी पैलोसी की ताइवान यात्रा के बाद दोनों देशों में तल्खी बढ़ी है, जिसके बाद अमेरिका को इस बात की आंशका है कि चीन किसी ऐसे देश पर हमला करने की हिमाकत कर सकता है, जिसके हित अमेरिका से जुड़े हुये हैं। ताइवान पर ​हमले की संभावना पर अमेरिका पहले कह चुका है कि वह चीन के खिलाफ अपने सैनिक युद्ध में उतार सकता है। यह बात भी सही है कि हाल ही के बरसों में चीन तेजी से विकास करता हुआ दूसरे नंबर पर आ गया है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसको अमेरिका जैसे अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों वाले देश से मुकाबले करने में लंबा समय लगेगा। यही वजह है कि तमाम धमकियों के बाद भी वह ताइवान पर आक्रमण करने से बच रहा है। दूसरा देश जापान है, जिसके अंदर अमेरिका के सैनिक अड्डे की ताकत ही चीन के हौसले पस्त कर देती है। जापान को अमेरिका द्वारा सुरक्षा दी जाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही जापान की सुरक्षा का जिम्मा अमेरिका के पास है। इसका मतलब यह है कि यदि चीन ने जापान के उपर आक्रमण किया तो यह सीधे तौर पर अमेरिका से युद्ध होगा, जो चीन कतई नहीं चाहेगा। तीसरे नंबर पर चीन का निशाना भारत पर ही है, जिसको सीधे तौर पर अमेरिका द्वारा सहायता नहीं दी जायेगी। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद भारत द्वारा रूस से तेल, उर्वरक और कोयला आयात को बढ़ाये जाने के बाद अमेरिका भी भारत से थोड़ा नाराज बताया जाता है। इसलिये हो सकता है कि चीन द्वारा भारत के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने के बाद अमेरिका पीछे हट जाये। यह भी एक कारण है कि चीन द्वारा भारत के खिलाफ सैनिक झड़प की जा सकती है।
इस बीच भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर की अमेरिका यात्रा शुरू हो रही है। यह माना जा रहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध के कारण भारत अमेरिका के रिश्तों में आई कडवाहट को विदेश मंत्री जयशंकर खत्म कर सकते हैं। असल में जयशंकर का अमेरिका में काफी समय तक राजदूत रहने के कारण लंबा अनुभव है। अमेरिका व रूस में जयशंकर की अप्रोच भी है, जिसके कारण दोनों देशों के बीच रिश्तों की डोर को फिर से परवान चढ़ाने का काम किया जा सकता है। भारत और चीन के बीच इस सैनिक झड़प के दौरान जयशंकर का अमेरिका दौरा काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। खासकर इसलिये भी इस दौरे पर सबकी निगाहें हैं कि चीन की हरकतें भारत व अमेरिका, दोनों ही देशों के लिये चिंताजनक हैं। अमेरिका लगातार एशिया महाद्वीप में अपनी पकड़ बनाये रखने का प्रयास कर रहा है, जिसके कारण भारत से उसको दोस्ती रखना मजबूरी और जरुरी भी है। अब देखना यह होगा कि चीन की ग्ंवाग में हरकत यहीं तक सीमित रह जाती है, या दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात भी बन सकते हैं।

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