पायलट नहीं बन पायेंगे मुख्यमंत्री, गहलोत ने जनता की रड़क निकाल

Ram Gopal Jat
वसुंधरा राजे सरकार की नाकामी के चलते चार साल पहले गठित हुई लूली लंगड़ी अशोक गहलोत सरकार बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुये 6 विधायकों के कारण पूर्ण बहुमत की तो बन गई, लेकिन कांग्रेस सरकार चार साल बाद भी इसी सवाल से जूझ रही है कि आखिर कब तक चल पायेगी? सरकार के दो प्रखुम पहिये ऐसे हैं कि गाड़ी रुपी कांग्रेस आलाकमान भी इनको जोड़कर एक साथ नहीं चला पा रहा है। हालात कभी भी, कुछ भी हो जाने वाले बने हुये हैं। यूं लग रहा है, मानो सरकार खुद ही अपने अंतिम दिन गिनकर टाइम पास कर रही हो। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा सरकार और आलाकमान से दो—दो बार बगावत झेल चुकी इस सरकार के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक कोई भी यह बताने की हालात में नहीं है कि सरकार को अगले ही पल क्या होने वाला है? सीएम अशोक गहलोत ने चार साल पूर्ण होने पर अपनी सरकार के गुणगानों के भरपूर विज्ञापन अखबारों और टीवी मीडिया को परोसे हैं, या कहें कि अपने पक्ष में खबरें चलाने के लिये विज्ञापनों के जरिये ललचाये हैं, यही वजह है कि आज चार साल होने पर भी एक भी अखबार या टीवी चैनल ने सरकार की विफलताओं को प्रकाशित नहीं किया है, लेकिन हकिकत यही है कि सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर बताने को कुछ भी नहीं है। तीन लाख के उपचार वाली भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का नाम बदल उसे चिरंजीवी योजना के साथ उपचार का खर्च बढ़ाने के लिये आलावा आम जनता के लिये एक भी उपलब्धि गिनाने के लिये नहीं है।
गहलोत सरकार ने वसुंधरा सरकार के द्वारा शुरू की गई किसानों की बिजली सब्सिडी को बंद किया, फिर डेढ़ साल बाद उसमें कुछ पैसे बढ़ाये और नाम बदलकर फिर से वाहवाही लूटने का प्रयास किया, जो विफल रहा। इसी तरह से अन्न की देवी अन्नपूर्णा रसोई को बंद किया गया। करीब दो साल बाद उसका नाम इंदिरा गांधी के नाम पर किया और फिर से शुरू किया। जितना बजट इन रसोइयों पर खर्च किया गया, उससे कहीं अधिक इसके विज्ञापन पर खर्चा गया। इसी तरह से मिड डे मील में बच्चों को स्कूलों में दूध योजना को बंद किया गया। जिसे चार साल बाद वापस शुरू किया गया। ग्रामीण ओलंपिक के नाम पर खेल हुये, जिसमें जाने कितना घोटाला हुआ, इसकी जांच अगली सरकार करे तो खुलासा हो। उपर से गांवों में आपसी दुश्मनी बढ़ी जो अलग है। कहने को तो एक लाख से अधिक को सरकारी नौकरी दे दी, जबकि इतनी ही पाइपलाइन में बताई जा रही है। प्रत्येक भर्ती परीक्षा में घपला करने के मामले में सरकार ने देश के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये। रीट से लेकर आरएएस जैसी परीक्षा भी नकल और घोटालों की भेंट चढ़ गई। चुनाव से पूर्व प्रत्येक बेरोजगार को 3500 रुपये मासिक भत्ता देने का वादा चार साल में मजाक से अधिक कुछ साबित नहीं हुआ। प्रदेश में करीब 40 लाख योग्य बेरोजगार बताये जाते हैं, जो बेरोजगारी भत्ता पा सकते हैं, लेकिन इस घोषणा को अपनों तक सीमित कर दिया गया।
महिला सुरक्षा का वादा जैसे उल्टा किया गया हो, ऐसा प्रतीत होता है। आज पूरे देश में महिलाएं सबसे असुरक्षित राजस्थान में हैं। दलित अत्याचार पूर्व देश का सिरमौर राजस्थान है। बलात्कार, गैंगरेप, हत्याएं, डकैती, बजरी तस्करी, शराब तस्करी जैसे जाने कितने अपराध केवल राजस्थान को एक नंबर बना चुके हैं। कानून नाम की कोई चीज राज्य में दिखाई ही नहीं देती। खुलेआम गोली मारी जाती है, सरेराह लड़कियों का उठा लिया जाता है। सड़क पर लोगों के बीच सरियों से लोगों को मार दिया जाता है, पुलिस का इकबाल पूरी तरह से खत्म हो चुका है। चुनाव पूर्व जन घोषणा पत्र में किया गया पत्रकार सुरक्षा कानून का वादा किसी कांग्रेसी को याद नहीं, उलटा खुद मुख्यमंत्री शुरू से ही पत्रकारों को अपने पक्ष में खबरें दिखाने के लिये परोक्ष रुप से धमकाने का काम करते रहे हैं। शायद यही वजह है कि सरकार के कामकाज की निष्पक्ष समालोचना करने के वाले बड़े—बड़े कहे जाने वाले पत्रकार विज्ञापन के बोझ तले दबकर अपनी कलम को सत्ता के बिस्तर की शान बना चुके हैं। भारत जाड़ो यात्रा में राहुल गांधी और अशोक गहलोत के पास प्रत्येक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ एक ही बात रहती है कि मीडिया उनको नहीं दिखा रहा, जबकि 100 दिन की यात्रा में पत्रकारों की दूर्दशा किसी से छिपी नहीं है। हर दिन अखबारों की फ्रंट पेज खबर राहुल गांधी से शुरू होती है और आखिरी पन्ने की अंतिम खबर भी राहुल गांधी पर समाप्त हो जाती है, बावजूद इसके राहुल गांधी और अशोक गहलोत हर दिन निष्पक्ष पत्रकारिता का रोजणा रोते रहते हैं।
राहुल और गहलोत द्वारा पत्रकारों को लेकर हर दिन दिये जाने वाले बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि पत्रकारिता के तमाम संस्थान, सभी पत्रकार, संस्थानों के मालिक, उनके पूरे कर्मचारियों समेत राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हो जायें और वही से खबरें लिखें, वहीं से टीवी का संचालन करें और यात्रा को सफलतम बताने के साथ राहुल गांधी और अशोक गहलोत को देश के सबसे महानत राजनेता घोषित कर दे, मीडिया इनके कदमों में ऐसे बिछ जाये कि इनके काम किये बिना ही पत्रकारिता के दम पर 2024 में राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बन जायें। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट द्वारा प्रदेश के सभी किसानों की 10 दिन में कर्जमाफी का वादा कोई कांग्रेसी याद रखना ही नहीं चाहता है। यूरिया के लिये लठ खाते किसान और विधानसभा में कानून बनाने के बाद भी एमएसपी से आधी दरों पर अपना अनाज बेचता किसान सरकार को दिखाई ही नहीं देता। किसानों को बिजली की कमी तो जैसे इतिहास में दफन कर दी गई है, जबकि सर्दी के इस ठिठुरते मौसम में किसानों को दिन के बजाये रात को आधी अधूरी बिजली दी जा रही है।
सहमी हुई जनता, बहरी नौकरशाही, बेलगाम मंत्री और बिखरा हुआ विपक्ष ही राजस्थान की पहचान बन गई है। कर्ज में डूबा किसान, बेरोजगारी से हताश जवान ही प्रदेश का भविष्य दिखाई दे रहा है। चुनाव से पहले एक रेप पर अलवर में कैंप लगाकर मोदी सरकार को ललकारने वाले गांधी परिवार के लाडले को दर्द से चिल्लाता राजस्थान सुनाई नहीं दे रहा है। जोधपुर से जयपुर में हाकम बने गहलोत के जिले में भूंगरा गैस दुखांतिका में अब तक 33 लोगों की मौतों और रोते बिलखते परिजनों की आवाज राजस्थान में भारत जोड़ रहे राहुल गांधी के कानों तक नहीं पहुंच रही है। सरकारी नाकामी के कारण बुरी तरह से पीड़ित प्रदेशवासियों को छोड़कर सुनिधि चौहान के गानों पर थिरकते मुख्यमंत्री से लेकर तमाम सत्ताधारी दुखी मतदाताओं के घावों पर नमक छिड़क रहे हैं।
विपक्ष का पीड़ितों को दिलासा और सत्तापक्ष का राजधानी में बॉलीवुड सिंगर सुनिधि चौहान की मखमली आवाज बिखेरते कार्यक्रम से भारत जोड़ो यात्रा के 100 दिन का जश्न रूपी तमाशा जनता को गहरी पीड़ा दे रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के काउंटर अटैक के तौर पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ कुंभकर्ण नींद से जागकर भाजपा द्वारा चुनावी वर्ष नजदीक आते ही जन आक्रोश यात्रा कोई असर नहीं छोड़ पा रही है। यह समूची तस्वीर है उस राजस्थान की, जिसको पूरे देश दुनिया में आन बान शान का प्रतीक कहा जाता है। जिसकी रंग रंगीली संस्कृति और धोरों की धरती को देखने के लिये दुनियाभर से पर्यटक मरुधरा पहुंचते हैं। यही वही राजस्थान है, जिसकी पहचान मीराबाई, करमाबाई सरीखी भक्तों और महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल जैसे महान सपूतों के नाम से है।
सियासत के दिग्गज कांग्रेसियों को गुमनामी के अंधेरे में धकेलकर कांग्रेस के राजनैतिक क्षितिज में 24 बरस से चमक बिखेर रहे मारवाड़ के गांधी रुपी अशोक गहलोत मौजूदा कार्यकाल में जनता की उम्मीदों पर कितने उतरे, यह किसी को कहने की जरुरत नहीं। खुद के द्वारा गढ़ी गई गांधीवादी और मीडिया फ्रेंडली होने की अपनी बंधी बंधाई छवि से हटकर 10 जनपथ के इस भरोसेमंद नेता ने अपनी एक नई और अलग छवि गढ़ ली है, जिसको लोग कमजोर और कुंठित नेता के तौर पर पहचान रहे हैं। बजरी माफियाओं, भू-माफियाओं और शराब माफियाओं की अफसरों के बीच बंधी—प्रथा और सत्तापक्ष के दो धड़ों के बीच बाड़ाबंदी के खेल-खेल में सरकार के चार साल कब बीत गए, इसका अंदाजा मंत्रियों को भी नहीं लग पाया। इसका अहसास है तो बस जनता को है, जिसने शुरूआती दो साल सरकार गिराने बचाने की जुगत के अलावा कोरोना महामारी के साथ बिताए और अब अंतिम बचे हुआ साल पक्ष और विपक्ष की भारत जोड़ो और जन आक्रोश यात्राओं के साथ बिता रही है।
किसानों के लिये यूरिया की मारामारी, अपराधियों का गैंगवार, कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की फसल बुवाई नहीं होने जैसी चुनौतियों के बीच सियासतदारों की सियासत का मोहरा बनी जनता कभी राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में कदमताल कर रही है तो कभी जन आक्रोश यात्रा में विपक्ष की भागीदार बन रही है, लेकिन जनता को इन दोनों ही यात्राओं से मिल कुछ नहीं रहा है। अशोक गहलोत अपने तीसरे कार्यकाल के पांच साल पूरा करने की फिराक में लगे हुये हैं, तो सचिन पायलट का इसी कार्यकाल में मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटता जा रहा है, उसपर आलाकमान की चुप्पी ने नमक छिड़कने का काम किया है। अब सचिन पायलट की आखिरी उम्मीद भारत जोड़ो यात्रा के बाद आलाकमान के निर्णय पर टिकी है। पायलट समर्थकों का मानना है कि राजस्थान से यात्रा की समाप्ति के बाद राज्य में मुख्यमंत्री बदलकर सत्ता रिपीट कराने के लिये कांग्रेस जुट जायेगी। हालांकि, इसी संभावना अब समाप्त सी होती नजर आ रही है। क्योंकि सचिन पायलट लगातार राहुल गांधी की मिजाजपुर्सी में लगे हुये हैं, ताकि गांधी परिवार नाराज नहीं हो।
प्रदेश में सावों की धूम के बाद शुभ कार्य वर्जित वाले मलमास की दस्तक थकान दूर करने के लिहाज से एकबारगी जाड़े में धूप खिलने जैसे सुकून का अहसास जरूर करवा रही है, लेकिन अब मंदिरों में पौष बड़ों के भोग और प्रसादी से राम को राजी करने की तैयारी में जुटने वाले आम आवाम से राज कब राजी होगा, यह प्रश्न अभी भी भविष्य के गर्भ में ही है। आखिरी बरस के आखिरी बजट में सौगातों की झड़ी का इंतजार कर रही जनता काफी उम्मीदें लगाए बैठी है। जनता की कसौटी में खरा उतरना अब सरकार की चुनौती बना हुआ है, क्योंकि यह बात तो सत्ताधीश भी जानते हैं कि हर बार की तरह राजस्थान की जनता सत्ता में बदलाव की परंपरा को इस बार भी कायम रखने से गुरेज नहीं करेगी।

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