राहुल गांधी ने शी जिनपिंग से क्या समझौता हस्ताक्षर किया था?

Ram Gopal Jat
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और गांधी परिवार के लाड़ले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत राजस्थान से गुजर रहे हैं। उनकी यात्रा 21 दिसंबर तक राजस्थान में रहेगी, उसके बाद हरियाणा में प्रवेश कर जायेगी। इस दौरान यात्रा के 100 दिन पूरे होने पर जयपुर में राहुल गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट समेत सरकार के मंत्रीमंडल और कांग्रेस के नेताओं ने बॉलीवुड सिंगर सुनिधि चौहान का लाइव कार्यक्रम एन्जॉय किया। उससे पहले राहुल गांधी ने जयपुर नये कांग्रेस कार्यालय में प्रेस कॉन्फेंस की, जिसमें भारत सरकार की चीन के सामने नाकामी बताई, चीन द्वारा युद्ध की तैयारी करने का दावा किया, भारतीय सैनिकों को चीन द्वारा पीटना बताया, लद्दाख में चीन ने भारत की 2000 वर्गकिलोमीटर जमीन हड़पी हुई होने का दावा किया, भारत सरकार के साये हुये होने का आरोप लगाया और भारत के विदेश मंत्री सुब्रम्ण्यम जयशंकर की समझ पर सवाल उठाते हुये उनको अपनी समझ गहरी करने का सुझाव दिया। इस प्रेस वार्ता में राहुल गांधी की यात्रा और राज्य की राजनीति स्थिति पर सवाल जवाब चल रहे थे, लेकिन जब किसी ने भी चीनी सैनिकों द्वारा पिछले दिनों तवांग में भारतीय सेना की झड़प पर सवाल नहीं पूछा तो राहुल गांधी ने पत्रकारों की मजाक बनाई और दावा किया कि सभी पत्रकार और संस्थान मोदी सरकार से डरते हैं, ​इसलिये ऐसे सवाल नहीं पूछते हैं, जिससे केंद्र सरकार को घेरने का अवसर कांग्रेस को मिले।
हालांकि, इस बीच एक पत्रकार ने इसी पर सवाल किया तो राहुल गांधी ने भी केंद्र सरकार पर तमाम आरोप जड़ दिये, जिसमें कहा कि केंद्र सरकार सोई हुई है और चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है, वह हमारे सैनिकों को पीटकर जा रहा है, सरकार की नाकामी का आलम यह है कि चीन ने लद्दाख में हमारी 2000 वर्गकिलोमीटर जमीन दबा ली है, और विदेश मंत्री जयशंकर की समझ को कमजोर बताते हुये उसे गहरा करने की सलाह भी दे डाली। अब समझने वाली कुछ बातें है, जिनके बारे में विस्तार से बात करना जरुरी है। सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी को यह जानकारी कहां से मिली कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है? यह जानकारी कहां से मिली कि चीन ने भारत की 2000 वर्गकिलोमीटर जमीन दबा ली है? क्या राहुल गांधी लद्दाख की गलवान घाटी का दौरा करके आये थे, या कांग्रेस के कोई दूसरे नेता जमीन नापकर आये थे? क्या राहुल गांधी के पास ऐसा कोई सिस्टम है, जिससे वह दिल्ली 10 जनपथ से ही सबकुछ जान लेते हैं? यदि ऐसा कुछ नहीं है तो फिर इसको मतलब चीन खुद ही राहुल गांधी को ये सभी सूचनाएं दे देता है?
किंतु सवाल यह उठता है कि चीन ऐसी गुप्त सूचनाएं राहुल गांधी को क्यों बतायेगा? दरअसल, इसकी संभानाएं सबसे अधिक हैं, क्योंकि कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के बीच 7 अगस्त 2008 को एक एमओयू साइन किया गया था, जिसपर खुद राहुल गांधी ने हस्ताक्षर किये थे। इस अवसर पर सोनिया गांध और चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग मौजूद थे। इस समझौते के तहत क्या हुआ था, इसकी विस्तार से जानकारी साझा नहीं की गई थी, और यही वजह रही है कि आज 14 साल बाद भी सवाल ज्यों के त्यों खड़े हैं। उस एमओयू को लेकर 7 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी, जिसमें कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच हुए एग्रीमेंट के मामले की जांच की मांग की गई थी। अर्जी में कहा गया है कि 2008 में कांग्रेस पार्टी और चाइना की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए एग्रीमेंट की सीबीआई अथवा एनआईए से जांच कराई जाए। जयशंकर की समझ को गहरा करने का राहुल गांधी ने सुझाव दिया है, जो खुद घिर गये हैं।
सुप्रीम कोर्ट में एक वकील और एक जर्नलिस्ट की ओर से अर्जी दाखिल की गई है और कहा गया है कि दोनों पार्टियों के बीच जो समझौता हुआ है उसकी एमओयू की डिटेलअभी तक उजागर नहीं हुई है और ये लोगों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। अर्जी में कहा गया है कि मामले में पार्दर्शिता जरूरी है। 7 अगस्त 2008 को बीजिंग में हुए समझौते के तहत एमओयू साइन हुए थे, जिसमें तय हुआ था कि दोनों पार्टीएमओयू के तहत क्षेत्रिय, द्वीपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मसले पर एक दूसरे से बात करेंगे। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर वापस लेने का कहा था कि यह कैसे हो सकता है कि एक पार्टी किसी दूसरे देश के साथ समझौता करे। बाद में शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस अपील को हाई कोर्ट में दायर कर सकता है। अदालत में दिल्ली के वकील शशांक शेखर झा और गोवा से संचालित ऑनलाइन न्यूज पोर्टल गोवा क्रोनिकल के संपादक सेवियो रोदरिग्यूज ने यह याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि यह एमओयू राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करता है और यूएपीए कानून के तहत एनआईए या सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए।
याचिका में दावा किया गया है कि यह समझौता तब हुआ था, जब 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी। दावा किया गया है कि इस समझौते में उच्च-स्तरीय जानकारी, सहयोग का आदान-प्रदान किया गया है। इसमें कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और केंद्र सरकार को प्रतिवादी बनाया गया। भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर हुए विवाद के बीच यह अर्जी दाखिल की गई है। याचिका में मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया है कि 2008 से लेकर 2013 के बीच चीन सीमा से करीब 6 सौ बार घुसपैठ की घटनाएं हुई ऐसे में एग्रीमेंट को पब्लिक किया जाए। याचिका मेंकहा गया कि दोनों देशों में दुश्मनी है फिर भी कांग्रेस ने दस्तखत किए।
चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के हमलों के सामना कर रही भाजपा ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कांग्रेस के संबंध को बड़ा मुद्दा बना लिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस और सीसीपी के बीच हुए इसी समझौते के कारण मनमोहन सिंह ने चीन को हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन समर्पित कर दी थी। उन्होंने कहा कि जब डोकलाम हुआ तो राहुल गांधी भारत में चीनी राजदूत से मिलने चीनी दूतावास में चले गए। यह बात उन्होंने छुपाने की भी कोशिश की। नड्डा ने ट्वीट में कहा, ‘पहले, कांग्रेस चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करती है। फिर, कांग्रेस चीन को भूमि सौंप देती है। डोकलाम मुद्दे के दौरान, राहुल गांधी गुपचुप तरीके से चीनी दूतावास जाते हैं। नाजुक स्थितियों के दौरान, राहुल गांधी राष्ट्र को विभाजित करने और सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने की कोशिश करते हैं। क्या ये सब एमओयू का प्रभाव है?’ इस एमओयू पर राहुल गांधी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के मंत्री वांग जिया रुई ने हस्ताक्षर किए थे। इस मौके पर सोनिया गांधी और चीन के तत्कालीन उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग उपस्थित थे। इस एमओयू पर ग्रेट हॉल ऑफ चाइना में हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत दोनों पार्टियों के बीच विचारों के आदान प्रदान को बढ़ावा देने की बात की गई थी।
इस समझौते के बाद सोनिया गांधी ने चीन के लोगों की तारीफ करते हुए कहा था कि उन्होंने ओलंपिक खेलों को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत की। साथ ही उनकी करीब आधे घंटे तक शी जिनपिंग और सीपीसी के जनरल सेक्रटरी हू जिंताओ के साथ भी बैठक हुई थी। इस बैठक में राहुल गांधी भी मौजूद थे। राहुल गांधी द्वारा विदेश मंत्री एस जयशंकर की समझ के बयान पर बात की जाये तो यह समझना अधिक मुश्किल नहीं है कि दोनों के बीच समझ के मामले में दिनरात का अंतर है। एक तरफ राहुल गांधी एक राजनीतिक परिवार से आते हैं, जिसके ​दम पर सांसद का चुनाव जीत जाते हैं, इसके अलावा उपलब्धि के नाम पर राहुल गांधी शून्य हैं। उनको पार्टी द्वारा बार बार लॉन्च किया जाता है, लेकिन बीते दस साल से उनकी लॉन्चिंग हो ही नहीं रही है। गांधी परिवार के नहीं होते तो शायद वह किसी चुनाव में जीत भी नहीं पाते। कांग्रेस के नेता केवल इसीलिये उनके आगे पीछे घूमते रहते हैं, क्योंकि वह पार्टी में शीर्ष परिवार के लाड़ले हैं।
दूसरी ओर विदेश मंत्री जयशंकर भारतीय विदेश सेवा में रहे हैं। उन्होंने जापान, चीन, रूस, अमेरिका जैसे देशों में बरसों बरस भारत की ओर से सेवाएं दी हैं। उनके लंबे अनुभव और देश सेवा की अटूट योग्यता के कारण ही मोदी की दूसरी सरकार में विदेश मंत्री जैसे अहम पद के चुना गया था। इसके बाद उन्होंने कोरोनाकाल में विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने का जो मिशन सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया, वह किसी से छुपा नहीं है। रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान 20 हजार भारतीय को युद्ध रुकवाकर जयशंकर के प्रयासों से ही वापस लाया जा सका था। इसके बाद जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल आयात बंद करने का दबाव बनाया, तो वो जयशंकर ही थे, जिन्होंने बकायदा तथ्यों के साथ अमेरिका और यूरोप का मुंह बंद कर दिया।
अन्यथा उससे पहले जब ईरान पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया था, तब दबाव में आकर भारत को भी ईरान से तेल आयात बंद करना पड़ा था। किंतु यह जयशंकर ही सूझबूझ ही थी, जिसके चलते तेल आयात जारी रखा, बल्कि 2 फीसदी से बढ़ाकर 22 फीसदी कर दिया गया। इसके कारण भारत को करोड़ों डॉलर का फायदा हुआ है। आज भारत की विदेश नीति की पूरी दुनिया दीवानी है, यहां तक पड़ोस में रहकर दुश्मन बना हुआ पाकिस्तान भी जयशंकर के प्रयासों से तीखी हुई भारत की फॉरेन पॉलिसी की वाहवाही कर रहा है। अब यदि राहुल गांधी की जयपुर वाली प्रेस वार्ता पर गौर करें तो कुछ ऐसी बातें हैं, जो या तो चीन को पता हैं, या फिर भारत की गुप्तचर ऐजेसियों के पास हो सकती हैं। किंतु ये सूचनाएं राहुल गांधी के पास कहां से आईं? जब किसी देश पर कोई देश हमला करता है, या युद्ध करता है, तो उसके सभी लोग और राजनीतिक दल एक होकर उससे मुकाबला करने का काम करते हैं, लेकिन चाहे भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक हो, एयर स्ट्राइक हो, डोकलाम विवाद हो, गलवान घाटी की घटना हो या अब तवांग का विवाद हो, हर बार राहुल गांधी और कांग्रेस अपनी ही सरकार और सेना पर सवाल उठाते हैं।
राहुल गांधी द्वारा हर बार दुश्मन देश को क्लीन चिट दे दी जाती है, उसके कुकर्त्यों, कमजोरी, सेना पर कभी शंका नहीं की जाती। बार बार भारत की क्षमता को कम करके बताया जाता है, लेकिन दुश्मन के हार जाने के बाद भी उसको ताकतवर देश बताया जाता। इसलिये यह शंका होती है कि कांग्रेस ने 2008 में चीन के साथ जो एमओयू साइन किया था, उसमें कहीं देश की गुप्त सूचनाएं आदान प्रदान करना शामिल नहीं है? यदि ऐसा किया गया था, तो देश के साथ इससे बड़ी गद्दारी कुछ नहीं हो सकती। अब समय आ गया है, जब कांग्रेस और राहुल गांधी को विस्तार से उस समझौते के बारे में देश को बताना चाहिये, ताकि यह साफ हो जाये कि आखिर कांग्रेस ने चीन कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ क्या एमओयू साइन किया हुआ है?

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