अशोक गहलोत पागलपन की हद तक सेवा कर रहे हैं!

Ram Gopal Jat
राजस्थान में चुनाव में अभी 10 महीनों का समय शेष है, लेकिन राजनीति के घोड़े रफ्तार पकड़ने लगे हैं। वैसे तो सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप—प्रत्यारोप होते हैं, लेकिन जब सत्ता पक्ष ही आपस में उलझ जाये, तो समझ लीजिये कि हालत बेहद खस्ता है। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में ऐसा ही कुछ चल रहा है। एक तरफ जहां सचिन पायलट का कैंप किसान सम्मेलनों के माध्यम से कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने का काम कर रहा है, तो दूसरी तरफ अंतिम सांस तक कुर्सी बचाने की जिद में बैठे अशोक गहलोत अपने ही दल के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता सचिन पायलट को बार बार अपमानित करने का प्रयास कर रहे हैं। पायलट जहां चुनाव पूर्व वादों के अनुसार सभ्य भाषा में अपनी पार्टी की सरकार को काम करने के लिये बोल रहे हैं, तो ढाई साल पहले अपनी गांधीवादी छवि के चौले से बाहर निकल चुके अशोक गहलोत पायलट को उन सब शब्दों से नवाज रहे हैं, जो राजनीति में कतई जायज नहीं कहे जा सकते।
अब तक अशोक गहलोत सीएम पद बचाये रखने के लिये सचिन पायलट को भला बुरा बोल रहे थे, लेकिन अब गहलोत ने एक तरह से खुद को ही पागल करार दे दिया है। जोरदार बजट लाने का दावा करने वाले गहलोत ने कहा है कि जब तक उनकी आखिरी सांस रहेगी, तब तक वह सेवा करते रहेंगे। गहलोत ने यह भी दावा किया कि वह राजनीति नहीं करते हैं, वह सेवा करते हैं और उसमें राजनीति हो जाती है तो उनका पता नहीं है। गहलोत यहीं नहीं थमे, उन्होंने यहां तक कहा है कि वह पागलपन की हद तक सेवा कर रहे हैं। इसके साथ ही गहलोत दूसरे लोगों को यही हिदायत देते हैं। प्रदेश में तीसरी बार सीएम का कार्यकाल पूरा कर रहे अशोक गहलोत यहां तक कहा है कि वह जब अध्यक्ष थे, तब 1998 में पार्टी 156 सीटों पर जीती थी, और प्रदेशभर से आवाज आई थी कि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री होने चाहिये। इसके बाद यही बात 2008 में और 2018 में हुई। गहलोत ने अब मिशन 156 का नारा दिया है और यह भी दावा किया है कि वह जो कहते हैं, बहुत सोच समझकर कहते हैं, यह मिशन उन्होंने यदि दिया है, तो कुछ सोचकर ही दिया होगा। वैसे गहलोत पहले पायलट को नाकारा, निकम्मा और गद्दार भी कह चुके हैं, तो सवाल यह उठता है कि क्या पायलट के बारे में ये बातें भी सोच समझकर ही कही गई थीं?
इन तमाम बातों का आज पोस्टमोर्टम करेंगे और यह जानने का प्रयास भी करेंगे कि क्या हुआ था साल 1998 के चुनाव से पहले और बाद में, जिसमें जीतने का दावा गहलोत ने किया है। साथ ही इस बात से भी पर्दा उठायेंगे कि गहलोत के शासन से राज्य की जतना कितनी खुश होती है और कितनी नाराज होती है? यह भी जानेंगे कि गहलोत कितने पागलपन की हद तक जाकर काम करते हैं और उसके परिणामस्वरुप पार्टी को कितना फायदा होता है? सबसे पहले बात करते हैं साल 1998 के चुनाव की, जब अशोक गहलोत पार्टी के अध्यक्ष थे और चुनाव लड़े जा रहे थे किसान राजनीति के नाम पर। चुनाव हो रहा था परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री बनाये जाने के नारे के साथ, किसान मुख्यमंत्री बनाये जाने के नारे के साथ। राजनीति में वह दौर सिद्धातों का अंतिम दौर था। उसके बाद राजस्थान की राजनीति में सिद्धातों का अंतिम संस्कारों कर दिया गया। तब भैंरोसिंह शेखावत जैसे कद्दावर नेता की भाजपा वाली लगातार दूसरी सरकार थी। भले ही सरकार पूर्ण बहुमत में नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने सरकार गिराने में कोई कसर नहीं छोडी थी, खुद अशोक गहलोत का नाम भी उस दौर में सरकार गिराने वालों में गिना जाता था।
राज्य के चुनाव हुये और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई, कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला, जिसके बाद सीएम बनाने की बारी आई। सिद्धतों के धनी माने जाने वाले परसराम मदेरणा राजस्थान में विधायकों के साथ तालमेल बिठाने का काम कर रहे थे और अशोक गहलोत दिल्ल पहुंच गये। बीबीसी नाम से रेडियो चलता था, जिसका खूब बोलबाला था। उसकी खबरों को खुद सोनिया गांधी भी सुनती थीं। कहा जाता है कि अशोक गहलोत ने अपनी खास के मार्फत बीबीसी में खबर चलवा दी कि राज्य के विधायक अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। उधर, दिल्ली में बैठे अशोक गहलोत ने यह बात सोनिया गांधी तक पहुंचाई और विधायकों की सहमति के अनुसार सीएम की चिट्ठी लेकर जयपुर पहुंचे। तब तक सबको यही लग रहा था कि परसराम मदेरणा ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन गहलोत ने विधायकों को सोनिया गांधी की चिट्ठी वाला संदेश दिखाते हुये आलाकमान की मर्जी का हवाला दिया। पार्टी के प्रति वफादार परसराम मदेरणा ने एक शब्द बोले बिना पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की चिट्ठी को सर्वोपरी मानते हुये अशोक गहलोत को सीएम के लिये स्वीकार कर लिया। जो कांग्रेस 1990 और 1993 का चुनाव हार चुकी थी, वह परसराम मदेरणा को अघोषित रुप से सीएम प्रोजेक्ट करके मैदान में उतरी और 153 सीटों पर जीत गई, उन्हीं मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर बिठा दिया गया। इन 153 सीटों को अशोक गहलोत 156 सीटें बता रहे हैं।
इसके बाद राज्य की जनता ने बदला लिया और 2003 के चुनाव में भाजपा को 120 सीटों की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का अवसर दिया। कांग्रेस यहां पर अशोक गहलोत की पागलपन की हद तक सेवा करने का ही परिणाम था कि चुनाव परिणाम में कांग्रेस केवल 57 सीटों पर सिमट गई। बाद में वसुंधरा राजे सीएम बनीं, लेकिन 2008 के चुनाव के वक्त पार्टी अध्यक्ष ओम माथुर और वसुंधरा राजे के बीच तनातनी के चलते पार्टी टिकट बंटवारे में उलझ गई और सत्ता से बाहर हो गई। इस चुनाव में भी कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, केवल भाजपा की लड़ाई का फायदा मिला और 96 सीटें जीत सकी। जबकि इस चुनाव में भी अघोषित रुप से सीपी जोशी कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार थे, जो एक वोट से हार गये। कहा जाता है कि सीपी जोशी को हराने में गहलोत गुट का ही हाथ था, जो नाथद्वारा में जोशी के खिलाफ लगा हुआ था। बाद में गहलोत ने इसी का फायदा उठाया और सोनिया से मिलकर दूसरी बार सीएम बन गये। सीएम बनकर गहलोत ने बसपा के 6 विधायकों को निगल गये। लेकिन कहते हैं कि गहलोत के राज में जनता कभी खुश नहीं रहती। साल 2013 के चुनाव तक नरेंद्र मोदी का जलवा पूरे देश में छा गया था। राज्य में वसुधंरा राजे को फिर सीएम फेस बनाया गया। गहलोत से आजिज आ चुकी जनता ने वसुंधरा राजे को दूसरी बार सीएम के लिये वोट दिया। भाजपा इस बार सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुये 163 सीटों पर पहुंच गई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पागलपन की सीमा तक सेवा करने का परिणाम दूसरी बार सामने आया और कांग्रेस इतिहास की सबसे कम केवल 21 सीटों तक सिमट गई।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पागलपन की सेवा का नतीजा यह हुआ कि एक तरह से कांग्रेस खत्म सी हो गई थी। गहलोत की भयंकर सेवा के कारण लोगों को कांग्रेस पर भरोसा खत्म हो चुका था और ऐसे समय में राहुल गांधी ने युवा नेता सचिन पायलट को कमान सौंपी। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भरना और प्रचंड बहुमत की वसुंधरा राजे सरकार से लड़ना दो तरफा चुनौती थी, जिसको सदन में रामेश्वर डूडी और सड़क पर सचिन पायलट ने बखूबी स्वीकार करने का काम किया। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी 21 से 101 सीटों पर पहुंच गई। लेकिन दुर्भाग्य से रामेश्वर डूडी चुनाव हार गये और सचिन पायलट के बजाये अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। तब से आज दिन तक कांग्रेस में शांति नहीं है।
अब अशोक गहलोत तीसरी बार पागलपन की हद तक सेवा कर रहे हैं, वह पहले की तरह ही अब भी राजनीति नहीं करते हैं। किंतु पागल होकर प्रदेश की सेवा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोई यह तो पूछे कि 1998 में चुनाव बाद कितनी पागलपन की हद से सेवा की थी? और 2003 में पागलपन की हद तक सेवा के बाद आपकी सेवा का क्या प्रतिफल मिला था? फिर 2008 में चुनाव बाद पागलपन की हद तक सेवा कहां पर की थी, जिसके बल पर दूसरी बार सीएम बने थे? अशोक गहलोत की पागलपन की सेवा के बावजूद राज्य की जनता ने 2013 में कांग्रेस को 21 सीटों पर क्यों पटक दिया था? अब गहलोत यह भी बताने का कष्ट करें कि 2018 तक उन्होंने कौनसी जगह पागलपन की हद तक सेवा की थी, जिसके कारण सचिन पायलट की जगह आलाकमान के आर्शीवाद ने आपको तीसरी बार सीएम बनाया गया?
आज राज्य के बच्चे बच्चे को पता है कि पागलपन की हद तक सेवा कर रहे अशोक गहलोत ने पत्रकारिता के हालात इस कदर बिगाड़ दिये हैं कि ना तो कोई पत्रकार उनसे ऐसे सवाल पूछते हैं और ना ही वो इस तरह के ईमानदार सवालों के जवाब देते हैं। अशोक गहलोत बार—बार घमंड के साथ कहते हैं कि वह माली जाति के एकमात्र विधायक हैं और तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं, तो अशोक गहलोत यह बतायें कि आपको अपनी जाति पर घमंड है या अपने आप पर, जो बार—बार माली जाति का एकमात्र विधायक ही ​मुख्यमंत्री बनने की बात को रिपीट करते हैं? दूसरी बात क्या गहलोत ऐसा बोलकर राज्य की जाट, राजपूत, ब्राह्णण, गुर्जर, मीणा जैसी जातियों के लोगों को चिढ़ाने का काम करते हैं, तो राज्य में बहुतायत में हैं?
अब तो ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत प्रदेश की भयंकर सेवा करते—करते पागलपन की हद को क्रॉस कर गये हैं और अब पूरी तरह से पागल होकर सेवा कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरुप राज्य बेरोजगारी में एक नंबर है, गैंगरेप में एक नंबर पर है, दलित अत्याचार में एक नंबर है, महिला अत्याचार में एक नंबर है, अपराधी की राजधानी राजस्थान बन चुका है। अशोक गहलोत की पागल होकर सेवा करने की इन सभी बातें राज्य की जनता देख रही है और इंतजार कर रही है 10 महीने बाद होने वाले चुनाव की, जब प्रदेश में जादूगरी ऐसी जोरदार होगी कि पागलपन की हद से बढ़कर सेवा कर रहे गहलोत के सेवाकार्यों के चलते कांग्रेस के लिये ऐतिहासिक रिकॉर्ड बन जायेगा।

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