लिथियम बेचकर भारत कमायेगा 3.3 लाख डॉलर

Ram Gopal Jat
भारत को जम्मू-कश्मीर में 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है। इसकी कीमत करीब 3.3 लाख करोड़ डॉलर है। जिओग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 9 फरवरी को इसकी जानकारी दी है। इस समय भारत अकेले चीन से 80% लिथियम खरीदता है। लिथियम का जो भंडार मिला है, वह चीन के कुल भंडार से करीब 4 गुना ज्यादा है। भारत इस लिथियम के प्रोडक्शन में कामयाब हो जाता है, तो भारत दुनिया का बहुत शक्तिशाली देश बन सकता है।
लिथियम एक नरम और बेहद हल्का पदार्थ होता है। यह इतना नरम होता है कि इसको सब्जी काटने वाले चाकू से भी काटा जा सकता है। वजन में भी बेहद हल्का होने के कारा पानी में तेरने लगता है। आज से करीब 233 साल पहले 1790 के दौरान ब्राजील के जोजे बेनिफेसियो डी आंद्राल्डा ई सिलव को इस पत्थर जैसे दिखने वाले पदार्थ की खोज करने का श्रेय जाता है। यह पदार्थ सफेद और भूरे रंग का होता है लेकिन आग में डालने पर लाल रंग का हो जाता है। साल 1817 में स्वीडन के केमिस्ट जॉन अगस्त ने इसके कारण पर फोकस किया तो पाया कि पेटा लाइट में एक अननोन एलिमेंट छुपा हुआ है। इस अनजान पदार्थ को पेटा लाइट से अलग करने के बाद जॉन ने उसको लिथियम नाम दिया, जो ग्रीम भाषा के लिथेस, यानी पत्थर से आया है।
लिथियम आपके घर की दीवारों पर लगी घड़ी से लेकर आपको लैपटॉप, मोबाइल, रिस्ट वॉच और हर उस डिवाइस का हिस्सा है, जो बैटरी से चल रही है। इन उपकरणों की बैटरी में लिथियम सबसे ज्यादा होता है। लिथियम की वैश्विक मांग की वजह से इसे सफेद सोने के नाम से भी जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक टन लिथियम की कीमत 57.36 लाख रुपये होती है। इस हिसाब से भारत में मिले लिथियम की कीमत 3.3 लाख करोड़ रुपये आंकी जा रही है। विश्व तेजी से परंपरागत इंधन के बजाये ग्रीन एनर्जी की तरफ जा रही है। जिसके कारण एयर क्राफ्ट्स, विंड टरबाइन, सोल पैनल, इलेक्ट्रिक व्हीकल आदि में लिथियम का उपयोग बढ़ रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार लिथियम और कोबॉल्ट जैसे मेटल की मांग दुनिया में 2050 तक 500 फीसदी तक बढ़ जायेगी। ऐसे में किसी भी देश में लिथियम का भंडार मिलना उसकी अर्थव्यवस्था के लिये काफी उत्साहित करने वाला है। इस समय वैश्विक स्तर पर हर साल करीब एक लाख मैट्रिक टन लिथियम का उत्पादन होता है। इंटरनेशनल एनर्जी फॉर कोस्ट के अनुसार विश्व की मांग पूरी करने के लिये इसके उत्पादन को करीब 40 गुणा तक बढ़ाना होगा। साल 2028 तक लिथियम बैटरी निर्माण मार्केट में निवेश 9.12 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ जायेगा। एक अनुमान के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहनों का विश्व का बाजार 2030 तक 824 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा।
भारत की बात की जाये तो 2030 तक कॉमर्शियल व्हीकल 70 फीसदी बैटरी से चलने वाले होंगे। इसी तरह से 30 फीसदी कारें और 80 प्रशित दुपहिया व तिपहिया वाहन भी बैटरी चालित होंगे। भारत 2070 तक जीरो कार्बन तक पहुंचना चाहता है, जिसके लिये बैटरी की जरुरत होगी। ऐसे में भारत यदि अपने लिथियम भंडार को लिथियम रिजर्व में बदलने में सफल हो पाया तो ना केवल घरेलू स्तर पर आत्मनिर्भर हो जायेगा, बल्कि विश्व के अनेक देशों को लिथियम का निर्यात करने लगेगा। लिथियम के उपयोग की बात की जाये तो 2015 तक बैटरी में बैटरी में 39 फीसदी, चीनी मिट्टी के बर्तन व ग्लास बनाने में 24 फीसदी, 5 प्रतिशत मेडिकल आइटम के लिये, 12 फीसदी लुब्रिकेंट्स में और 20 प्रतिशत अन्य नॉन बैटरी के लिये उपयोग में आता था। उस समय विश्व में लिथियम की मांग 1.63 लाख टन थी। किंतु 2025 तक 38 फीसदी इलेक्ट्रिक व्हीकल, 30 फीसदी नॉन बैटरी, 14 फीसदी ई बाइक्स, 12 प्रतिशत ट्रेडिशनल बैटरी और 6 फीसदी एनर्जी स्टॉरेज में काम जायेगा, तब इसकी 5.34 लाख टन वैश्विक मांग होगी।
भारत इस समय 10 देशों से लिथियम आयात करता है। वित्त वर्ष 2020—21 में भारत ने 6 हजार करोड से अधिक का लिथियम दूसरे देशों से आयात किया है। इस दौरान 3500 करोड़ का अकेले चीन से खरीदा है, जो किस कुल आयात का 54 फीसदी था। इसी तरह से साल 2018 में भारत ने 11700 करोड़ का लिथियम आयात किया। साल 2014 से 2018 तक भारत का आयात 310 फीसदी बढ़ा है। भारत में लिथियम की मांग चीन, हॉन्गकॉन्ग, वियतनाम, अमेरिका और जापान से मिलकर पूरी होती है। पांच फीसदी कोरिया, सिंगापुर, चिली, मलेशिया और जर्मनी करते हैं। दुनिया में सबसे अधिक लिथियम 210 लाख टन बोलीविया में पाया जाता है। इसी तरह से 190 लाख टन अर्जेंटीन, 98 लाख टन चिली, 91 लाख टन अमेरिका, 73 लाख टन ओस्ट्रेलिया, 59 लाख टन भारत, 51 लाख टन चीन, 5 लाख टन जिम्बाब्वे और 4.7 लाख टन ब्राजील में पाया जाता है।
साल 1999 के समय ही जीएसआई ने जम्मू कश्मीर में लिथियम का पता लगा लिया था। तकनीकी भाषा में इसे जी4 स्टेज कहा जाता है, यानी धरती के अंतर जांच कर उसके नीचे खनिज होने की आशंका जताई जाती है। आधुनिक उपकरणों और तकनीक के अभाव में भारत को जी4 से जी3 स्टेज तक पहुंचने में 20 साल से अधिक समय लग गया। जी3 स्टेज में सैंपल की फिजिकल और कैमिकल स्टडी के माध्यम से रिसोर्स के अनुमानि​त भंडार का पता किया जाता है। जीएसआई के अनुसार भारत अभी इसी स्टेज पर है। भंडार का पता तो चल गया है, लेकिन अभी यह पता लगाना बाकी है कि जी2 और जी1 स्टेज के लिये, यानी माइनिंग की जा सकती है या नहीं, यह पता लगाना बाकी है। लिथियम को निकालना भी बेहद खर्चीला काम है। एक टन लिथियम उत्पादन में 20 लाख लीटर पानी चाहिय होता है। लिथियम का भंडार जिस क्षेत्र में मिला है, वह हिमालय रीजन में आता है। यह पूरा क्षेत्र भूकंप प्रभावित माना जाता है। इन जगहों पर खनन होने से धरती खिसक सकती है। 2022 में पब्लिश हुई नेचर कंजर्वेंसी की रिपोर्ट के अनुसार लिथियम के खनन में सैकडों एक जमीन बजंर हो जाती है। इसका सबसे अधिक नुकसान वन्य जीवों और स्थानीय लोगों को होता है। एक स्टैंडर्ड इलेक्ट्रिक कार में 20 किलो लिथियम का उपयोग होता है। इसका मतलब यह है कि एक कार बनाने में 40 हजार लीटर पानी चाहिये होता है और एक टन लिथियम से 15 टन कार्बन उत्पन्न होता है।
विश्व को प्राकृतिक खनीजों ने कैसे मालामाल किया है, इसके उदाहरण हैं खाड़ी देश। करीब 12000 वर्ग किलोमीटर में फैला कतर देश साल 1922 तक बसावट के काबिल नहीं समझा जाता था। यहां रहने वालों में बड़ी आबादी मछुआरों और मोती चुनने वालों की थी। ये खानाबदोश थे, जो अरब देशों में भ्रमण किया करते थे। साल 1930-40 के दौर में जब जापान ने मोती का प्रोडक्शन शुरू किया तो कतर की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई। लोग बेहतर विकल्पों की तलाश में यहां से पलायन करने लगे, देश की आबादी घटकर महज 24 हजार तक सिमट कर रह गई थी, लेकिन 1939 में कतर के वेस्ट कोस्ट पर दोहा से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी दुखान में मिले ब्लैक गोल्ड, यानी तेल के कुंए ने इस देश की किस्मत बदल दी। दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद कतर ने तेल निर्यात शुरू किया। जिस देश में लोग रहना पसंद नहीं कर रहे थे, वहां की आबादी में तेजी से बढ़ने लगी और 1970 तक 1 लाख के पार पहुंच गई। देश की GDP ने भी लंबी उछाल लगाते हुए 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर लिया। तेल निर्यात ने कतर में अवसरों का अंबार लगा दिया। यहां तेजी से बदलाव और आधुनिकीकरण हुआ।
साल 1971 में इंजीनियरों ने कतर के पूर्वोत्तर तट से दूर नॉर्थफील्ड में विशाल प्राकृतिक गैस रिजर्व की खोज की। ये रिजर्व कतर के आधे हिस्से, यानी 6 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। आज कतर के पास ईरान और रूस के बाद प्राकृतिक गैस का तीसरा सबसे बड़ा रिजर्व है। साल 1996 में तरल प्राकृतिक गैस से भरा एक जहाज जापान के रवाना हुआ, यह कतर का पहला बड़ा गैस निर्यात था। इसके बाद कतर की GDP साल दर साल बढ़ती ही चली गई। 2003 से 2004 में कतर की GDP 3.7 फीसदी से बढ़कर 19.2 फीसदी हो गई। और इसके दो साल बाद 2006 में बढ़कर 26.2 फीसदी हो गई। आज कतर में प्रति व्यक्ति GDP 50 लाख से ज्यादा है। इसी तरह से सऊदी अरब है, जो साल 1930 के दशक तक आपस में लड़ने वाला एक कबिलाई इलाका था। यहां के लोग ऊंट, भेड़, बकरियों के सहारे अपना गुजारा किया करते थे। इसके बाद साल 1932 को प्रिंस शाह अब्दुल अजीज बिन सऊद को उनके देश में तेल का बड़ा भंडार मिला। साल 1938 में खुदाई शुरू हुई और इस देश की जमीन से इतना तेल निकला कि विशेषज्ञ भी हैरान रह गए।
तेल की खोज ने सऊदी अरब को आर्थिक स्थिरता के साथ खुशहाली भी दी। वर्ल्ड बैंक के पास सऊदी अरब के बारे में 1968 से आंकड़े मौजूद हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक सऊदी अरब में 1968 तक प्रति व्यक्ति जीडीपी 61 हजार रुपए के करीब थी, जो एक दशक बाद 1981 तक 14 लाख रुपये के पार चला गई। उस समय तेल बेचकर सऊदी प्रति व्यक्ति आय के मामले में अमेरिका से आगे निकल गया था। ये कंट्री देश भारत से 63 गुना ज्यादा अमीर था। आज भी सउदी अबर दुनिया के सबसे अमीर देशों में शुमार है। साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी में प्रति व्यक्ति जीडीपी 19 लाख रुपए से ज्यादा हो गई है।

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